बुधवार, 19 अगस्त 2015

नीतीश -मोदी और विभ्रम -


लोकतंत्र में विभ्रम निर्णायक हैं,जनता के वोट से लेकर दिमाग तक विभ्रम का खेल तूफान की तरह चलता है। मोदी से लेकर नीतीश तक सबके पास विभ्रम हैं। हम में से कोई भी रियलिटी देखना नहीं चाहता और रियलिटी पर बातें करना नहीं चाहता।
विभ्रम का सबसे ज्यादा असर हम मध्यवर्ग के लोगों पर होता है। हमें विभ्रम बड़े प्यारे हैं, हम विभ्रम में अहर्निश विचरण करना पसंद करते हैं।पहले मनमोहन सिंह के विभ्रम से घिरे थे अब मोदी के विभ्रमों में फंसे हैं।हम भूल जाते हैं कि समाज को विभ्रमों से ऊर्जा नहीं मिलती,बल्कि विभ्रमों का जितना दवाब होता है संकट उतना ही गहराता चला जाता है। विभ्रम का खेल देखें कि मनमोहन से नफरत करते थे लेकिन मोदी से प्यार करने लगे जबकि नीतियां वही हैं। बेकारी चरम पर है महंगाई रोज बढ़ रही है,सामाजिक असुरक्षा बढ़ी है,पाक से तनाव बरकरार है,घूसखोरी चरम पर है,सीबीआई के पास मनमोहन सिंह के जमाने की तुलना में मोदीशासन में ज्यादा करप्शन केस दर्ज हुए हैं, अदालतें चरमरा गयी हैं। लेकिन हम हैं कि विभ्रम में आनंदित हैं,मोदी-मोदी के नशे में मस्त हैं।
लोकतंत्र में विभ्रम संकट को नजरों से कुछ समय के लिए ओझल रखते हैं,लेकिन एक अवधि के बाद जब संकट सतह पर आ जाता है और हम असंतुष्ट होने लगते हैं शासकवर्ग नए विभ्रमों की सृष्टि करते हैं और हम फिर से आनंद में डूब जाते हैं और संकट भूल जाते हैं।
सोचिए रॉबर्ट बाड्रा के खिलाफ कोई केस क्यों नहीं हुआ अभी तक,जबकि मोदी खुलकर हमले कर रहे थे, शीला दीक्षित पर कोई केस नहीं हुआ जबकि केजरीवाल-मोदी दोनों ही हमले कर रहे थे, पश्चिम बंगाल में 34साल शासन करने वाले वामनेताओं के खिलाफ कोई करप्शन केस न तो राज्य सरकार ने किया न केन्द्र सरकार ने किया, जबकि ममता-मोदी दोनों ही आम जनता को वाम नेताओं के बारे में झूठी कहानियां सुना-सुनाकर व्यस्त करने,आनंदित करने में सफल रहे,वाम हार गया लेकिन सच तो नहीं बदला,सच यह है कि वामनेताओं का शासन बेदाग था।
लोकतंत्र को पुख्ता बनाना है तो विभ्रमों से बचो,बिहार के प्रसंग में मोदी फिर से विभ्रमों की वर्षा करने जा रहे हैं, इस रणनीति को समझने की जरुरत है। बिहार की सच्चाई को खुली आंख देखने की जरुरत है। जो सच है उसके आधार देखें।
सच यह है बिहार में पहले की तुलना अपराध कम हुए हैं, कम से कम मीडिया में विगत पाँच साल में अपराधों का कवरेज एकसिरे से कम हुआ है,सामाजिक टकराव की घटनाएं तकरीबन नहीं हुई हैं। सड़कों का जाल फैला है। यह सब ऐसी अवस्था में हुआ था जब बिहार का सिस्टम पूरी तरह बैठ गया था।
यह सच है कि बिहार में अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है,नीतीश से आपके मतभेद हो सकते हैं,लेकिन नीतीश कुमार बेदाग नेता हैं।उनके खिलाफ न तो दंगा कराने का आरोप है और न भ्रष्टाचार के आरोप हैं। उनके बारे में कोई यह नहीं कह सकता कि वे कारपोरेट घरानों के बंधुआनेता हैं और उनके हितों के लिए काम कर रहे हैं। जबकि ये सारी बाते नरेन्द्र मोदी पर खरी उतरती हैं।
नीतीश कुमार के बारे में सबसे अच्छी बात यह है वह कभी काल्पनिक वायदे नहीं करते। अनर्गल नहीं बोलते,मुख्यमंत्री के रुप में नियमित ऑफिस जाते हैं,विधानसभा सत्र के समय सदन में रहते हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी के बारे में यह नहीं कह सकते, वे मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक हवा-हवाई की धुन में रहे हैं।
मूल बात यह विभ्रमों से बचो रियलिटी पर बातें करो। जो व्यक्ति दिल्ली की गद्दी पर बैठकर एक भी समस्या का डेढ़ साल में समाधान नहीं कर पाया उसे बिहार को सौंपने का अर्थ है बिहार को पुनःअपराधी गिरोहों के हवाले करना।

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