माकपा के पश्चिम बंगाल में निरंतर ह्रास के कारणों की पड़ताल की जानी
चाहिए। बिना गंभीर पड़ताल के यह पता लगाना मुश्किल है कि माकपा इस दुर्दशापूर्ण
अवस्था में कैसे पहुँची। माकपा के अंदर और माकपा के बाहर बहुस्तरीय
भ्रष्टाचार हमने करीब से देखा है। मैं 2005 तक पार्टी में था,बाद में पार्टी छोड़
दी। मसलन्, राज्य के विश्वविद्यालय सिस्टम में पेशागत सीनियरटी का कोई महत्व नहीं
है। वाम जमाने में ऐसा सिस्टम बनाया गया कि उसमें पार्टी वफादार ही सीनियर होता
था,उसे ही पदों पर बिठाया गया।विश्वविद्यालय के अंदर लोकतांत्रिकीकरण के नाम पर
दलीय आदेश पर विभिन्न पदों पर लोग बिठाए गए और उनका मनमाफिक ढ़ंग से इस्तेमाल किया
गया। किसी भी किस्म की सीनियरटी और अकादमिक विद्वत्ता को कभी भी माकपा ने कोई जगह
नहीं दी। इस तरह के लोगों को पश्चिम बंगाल
में प्रोफेसर बनाया गया जिन्होंने एक निबंध लिखा,किसी विद्यार्थी को पीएचडी तक नहीं
करायी,न स्वयं पीएचडी की। इस तरह की पदोन्नति और नियुक्ति पाने वाले लोगों में
भाजपा से लेकर माकपा के लोग शामिल हैं,सभी किस्म की पदोन्नतियों और नियुक्तियों
में माकपा का होना या माकपा की सिफारिश का होना ही एकमात्र शर्त थी। इस तरह के
लोगों को उपकुलपति बनाया गया जिनका औसत अकादमिक रिकॉर्ड था। स्थिति की भयावहता का
अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यूजीसी के द्वारा प्रस्तावित अनेक नियमों की
खुलेआम अवहेलना की गयी। विश्वविद्यालय के स्तर पर बनने वाली तमाम कमेटियों में उन
लोगों को संयोजक और सदस्य बनाकर रखा गया जिनको नियमानुसार उसमें नहीं होना चाहिए।
मसलन्, 60साल की उम्र पर रिटायर होने के बाद विश्वविद्यालय और विभाग की विभिन्न
कमेटियों में वफादारों को बिठाकर रखा गया।यह काम इतने निर्लज्ज ढ़ंग से किया गया
कि इसकी मिसाल सारे देश में मिलना संभव नहीं है। मैं यहां सभ्यता के नाते नाम नहीं
लिख रहा । मेरे लिए दुखद बात यह भी रही है कि नियम-भंग की घटनाओं को विश्वविद्यालय
प्रशासन की जानकारी में लाने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ,यहां तक कि नियम-भंग
में शामिल प्रोफेसरगण भी 60साल के बाद कमेटियों से कहने के बावजूद नहीं हटे। इस
तरह माकपा ने लालझंड़े को तो कलंकित किया ही समूची अकादमिक व्यवस्था को भ्रष्ट
लोगों से भर दिया।जिसके कारण राज्य में उच्चशिक्षा का समूचा ढ़ांचा बुरी तरह चरमरा
गया ।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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