हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र की आत्महत्या की घटना शर्मनाक है,सवाल यह है कि हमारा समाज उसे बचा क्यों नहीं पाया ?सिद्धांततः आत्महत्या प्रतिवाद का पॉजिटिव कदम नहीं है।लेकिन कवि केदारनाथ सिंह ने इसे आत्महत्या न कहकर शहादत कहा है,रोहित को शहीद का दर्जा दिया है।इसलिए रोहित को शहीद के रूप में देखें।मैं निजी तौर पर केदारनाथ सिंह के नजरिए से सहमत हूँ।केदारनाथ सिंह हाल ही में कलकत्ता वि.वि, में बिड़ला व्याख्यानमाला के तहत “तुलसीदास और आधुनिक हिन्दी कविता” विषय पर बोल रहे थे,उन्होंने यह भी कहा कि रोहित को दरकिनार करके कोई साहित्य-चर्चा संभव नहीं है।
जीवन सबसे मूल्यवान है,जीवन की कीमत पर कोई भी नकारात्मक कदम उठाना सही नहीं है। सारे प्रतिवाद और सहानुभूति के बाद भी रोहित को वापस हासिल नहीं कर सकते। कईबार विचारधारा जब विकल्पहीन हो जाती है तो अवसाद घेरता है,अथवा जनांदोलन में सफलता नहीं मिलती तो अवसाद घेरता है।कईबार विचारधारा की विकल्पहीनता अवसाद पैदा करती है।विचारधारा वही टिकती है जो अपने को अपडेट करे,विकल्प पैदा करे।
एक जमाना था जब आंदोलन करने से उदात्तभाव का विकास होता था ,कुर्बानी देकर खुशी होती थी, आंदोलनकारी को अवसाद नहीं घेरता था, मजदूर आंदोलन इसके प्रमाण हैं। मजदूर लंबी लड़ाईयां लड़ते हैं,नौकरियां चली जाती हैं,लेकिन वे आत्महत्या नहीं करते। लेकिन मध्यवर्ग औरकिसान पृष्ठभूमि से आने वालों में विगत चार दशकों से अवसाद का दायरा बढ़ा है, आम जीवन में हताशा बढ़ी है,आत्महत्याओं की संख्या बढ़ी है। इसका आंदोलनकारियों पर भी असर होने लगा है। जबकि पहले आंदोलनकारियों को अवसाद नहीं घेरता था। लेकिन अब आंदोलनकारी को भी हताशा और अवसाद घेरने लगे हैं,अवसाद से बचने का एक ही तरीका है कि हम वैचारिकतौर पर और भी मजबूत बनें,ज्यादा हमदर्द और मित्र बनाएं।
रोहित के प्रसंग में आत्महत्या का सवाल बेहद जटिल है। अनुमान कर सकते हैं कि रोहित ने आत्महत्या इसलिए की कि वि.वि.प्रशासन ने गलत फैसला लिया,समय रहते समस्या का पॉजिटिव समाधान नहीं किया।छात्रों के आंदोलन के प्रति नकारात्मक रूख अपनाया।लंबे समय तक आंदोलन करते हुए जब रोहित को कोई विकल्प नजर नहीं आया तो उसने प्रतिवादस्वरूप मरना बेहतर समझा।मोदी सरकार ने आंदोलनकारियों के प्रति जिस तरह का शत्रुतापूर्ण रूख अख्तियार किया है उसके चलते भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है।इसमें अप्रत्यक्ष तौर पर मीडिया की भी भूमिका है।
प्रशासन जब हठी ,बहरा और अविवेकपूर्ण रवैय्या अपनाता है तो आत्महत्या की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।खासकर उनलोगों में जो किसान पृष्ठभूमि और मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आते हैं। इस समूचे प्रसंग का एक अन्य पहलू है , “संघी” और “अन्य”,जो संघी नहीं है उसकी कोई सुनवाई नहीं है।नई संघी लाइन है जो संघी नहीं है ,वह देशद्रोही है।जो मोदी का विरोधी है वह देशद्रोही है।इस समझ ने केन्द्र के प्रशासन को वैचारिक तौर पर हिन्दुत्व का पक्षधर होकर काम करने को मजबूर किया है।बड़े पैमाने पर नौकरशाही का हिन्दूकरण चल रहा है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार जल्द ही किसी आंदोलन पर सामान्यतौर पर राय नहीं देती,मंत्री,प्रधानमंत्री नहींबोलते,जब भी बोलते हैं हिन्दुत्व के संघी नजरिए से बोलते हैं। लेबल लगाकर बोलते हैं।जबकि केन्द्र सरकारको तटस्थ रहना चाहिए और जो भी समस्या आए उसका हर हालत में पॉजिटिव समाधान खोजना चाहिए।इसे सामाजिक अवसाद पैदा नहीं होगा।वरना मोदी सरकार का जो रूख है वह सामाजिक अवसाद में इजाफा करेगा।इसके लिए जरूरी है “अन्य” को केन्द्र सरकार माने।लेकिन पीएम के पास "अन्य" या "अदर" के दर्द को महसूस करने वाली फैकल्टी ही नहीं है। "अन्य " का दर्द तब महसूस होता है जब आप अपनों का दर्द महसूस करते हैं। जो अपने निजी दर्द को महसूस न कर सके,वह अन्य के दर्द को क्या महसूस करेगा !
सवाल यह है सन् 2002 के दंगों में मारे गए मासूम-निहत्थों की हत्या को लेकर मोदीजी कितना रोए ? कितनीबार दंगापीड़ितों के शिविऱों में गए ? दंगा पीड़ितों से कितनीबार मिले ? उनके दुख-दर्द को सुनने के लिए कितना समय खर्च किया ? "अन्य" का दर्द महसूस करने के लिए संघी मन नहीं चाहिए,मनुष्य का मन चाहिए।अन्य दर्द में रहता है,संघी दर्द को देखता है।संघियों को अन्य का दर्द देखकर संतोष मिलता है,वे दूर से देखकर दुख व्यक्त करते हैं,"बुरा हुआ",से ज्यादा न सोचते हैं ,न महसूस करते हैं।"अन्य" को समझने,उससे जुड़ने और उसे जीने के लिए हिन्दुत्व के दायरे के बाहर निकलने की जरूरत है। हिन्दुत्व की लक्ष्मणरेखा में रहकर अन्य का दर्द,रोहित की मौत या किसानों की आत्महत्या का अहसास पाना संभव नहीं है।इसके अलावा मोदी सरकार अपने को टीवी इमेजों के माध्यम से देखना बंद करे। टीवी पर तो सब प्रायोजित चल रहा है।वहीं दूसरी ओर आम लोगों को टेलीविजन इमेजों के माध्यम से मोदी सरकार को देखना बंद करना चाहिए, उसके कामों के माध्यम से देखो। टीवी इमेजों में मोदीजी जितने लुभावने लगते हैं,कामों के जरिए उतने ही डरावने लगते हैं।टीवी इमेजों ने मोदी की लुभावनी इमेज बनायी है। हम सबकी आदत है फोटो को ही सच मानने की , इसलिए हमारे अंदर रीयल मोदी से ज्यादा इमेजरी मोदी की अपील है।मोदी की रीयल इमेज वह है जिसे आरएसएस ने रचा है,आरएसएस जो कर रहा है वह मोदी का कर्म है।पीएम की फोटोजनित इमेज तो नकली है।
फोटोजनित इमेज विभ्रम है ,संघजनित इमेज य़थार्थ है,हमको फोटोजनित इमेज पसंद है,संघ को रीयल इमेज पसंद है।फोटोमोदी और रीयलमोदी में अंतर है। हम फोटोमोदी देखना बंद करके रीयल मोदी पर ध्यान केन्द्रित करें।रोता हुआ मोदी तो फोटोमोदी है,रीयलमोदी तो पत्थरदिल है।
मोदी जब रोहित के लिए दुख व्यक्त कर रहे थे तो असली दुख नहीं था वह,यदि असली दुख था तो रोहित की मौत की खबर पाते ही उसकी मां से मिलने क्यों नहीं गए ?तत्काल बयान क्यों नहीं दिया ? असल में मोदी के आंसू तो स्मृति ईरानी की असफलता के लिए निकल रहे थे,संघ की असफलता पर निकल रहे थे।असल में पराजयबोध की अवस्था में भी नायक रोते हैं।मोदी के दुख का रोहित के दुख से कोई संबंध नहीं है।यदि सच में रोहित के लिए रो रहे थे तो सात महिने में आपको पता ही नहीं चला कि रोहित किन कष्टों से गुजरा! कमाल के पत्थरदिल और बेखबर पीएम हैं !
रोहित की मौत के बाद उठे प्रतिवाद के कारण हैदराबाद वि.वि. ने 4दलित छात्रों का निलंबन वापस ले लिया है. लेकिन कारण नहीं बताया ,क्या ये लोग रोहित की मौत का इंतजार कर रहे थे या फिर निलंबन गलत था ? कायदे से वीसी को तुरंत हटाया जाना चाहिए और दलित छात्रो ने जो मांगें रखी हैं उन पर अकादमिक परिषद तुरंत फैसला करे।निलम्बन वापसी पहला कदम है।उल्लेखनीय है भारत में 1991-2014 के बीच में 13,750 दलितों की हत्या हुई है, 27,017दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है और 6,74,619 दलितों पर जुल्म के केस दायर हुए हैं।मोदी सरकार के दलित विरोधी चेहरे का एक अन्य पहलू है- एससी एसटी के लिए इस साल के बजट में आवंटित धनराशि में 19हजार करोड़ रूपये की कटौती और आम्बेडकर रचनावली न छापने का फैसला।
मोदी सरकार और उसके लगुआ-भगुआ तंत्र की विशेषता है कि वे जनांदोलन से नफरत करते हैं,मांग कर रहे आंदोलनकारियो की बातें सुनते नहीं हैं,सामान्य हमदर्दी से पेश नहीं आते,जब कोई संगठन मांग रखता है तो सीधे अड़ जाते हैं कि नहीं मानेंगे। इसी अमानवीयता का परिणाम है हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित स्कॉलर की आत्महत्या।तकरीबन यही अमानवीय व्यवहार पूर्व सैनिकों के साथ किया गया। बैंक कर्मचारियों के साथ किया गया। अमानवीय आचरण की सूची बहुत लंबी है।केन्द्र में इस तरह की अमानवीयता पहले कभी नहीं देखी गयी। यह दुखद है कि स्मृति ईरानी से लेकर संविद पात्रा तक सभी रोहित के आत्महत्या के पहले लिखे पत्र को हवाले के रूप में पेश कर रहे हैं,लेकिन उसकी आत्महत्या को नजरअंदाज कर रहे हैं।विगत छह महिने से रोहित जो कह रहा था उसका जिक्र तक नहीं कर रहे।आत्महत्या सबसे बड़ा प्रमाण है उसके सामने रोहित के लिखे सभी पत्र बेकार हैं।जाति,धर्म बेकार हैं।रोहित की मौत को न देख पाना अपने आपमें बर्बरता और असभ्यता का प्रतीक है।
रोहित की मौत के बाद मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉंफ्रेस की। प्रेस कॉफ्रेंस में निर्लज्जता के साथ सफेद झूठ बोला।झूठ नम्बर 1- कांग्रेस सांसद हनुमंत राव ने कभी कोई पत्र हैदराबाद विश्वविद्यालय के बारे में दलित छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं की जांच के लिए नहीं लिखा,जिस पत्र का ईरानी जिक्र कर रही थीं, उस पत्र के सच को पेश किया सीएनएन के एंकर ने,उसने ईरानी के दावे को झूठा करार दिया।सांसद हनुमंतराव के पत्र में जो लिखा है उसका जिक्र करते हुए एंकर ने बताया कि सांसद ने दलितों की आत्महत्या को लेकर उस पत्र में कहीं पर एक वाक्य भी नहीं लिखा।ईरानी का दूसरा सफेद झूठ- हैदराबाद विश्वविद्यालय ने जो जांच कमेटी बनायी उसमें कोई दलित प्रोफेसर नहीं था।यह बात वि.वि. के एसी-एसटी फोरम के प्रवक्ता ने कही है।
असल में ,मंत्री गलती करे या वीसी गलती करे,मोदीराज में किसी को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है।गलतियों को दुखद ,और दुखद को परपीडन में बदल दिया गया है। मोदी सरकार की इस मनोदशा ने बहुत कम समय में ही समूचे प्रशासन के कानों में तेल डाल दिया है।ध्यान रहे विश्वविद्यालय कैंपस में जुल्म होगा,कैंपस में प्रशासन राजनीति करेगा तो छात्रों के द्वारा कैंपस में प्रतिवाद होगा,कैंपस तो छात्रों का घर है,वे अपने घर में प्रतिवाद करने के लिए स्वतंत्र हैं। रोहित की आत्महत्या का प्रतिकार करने के लिए जरूरी है हैदराबाद विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को एकजुट संघर्ष में बांधकर रखा जाए।छात्रों के बीच में इस आंदोलन का विस्तार किया जाए।छात्रों के आंदोलन को छात्र-आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में चलाया जाए वरना मूल मुद्दे हाथ से निकल जाएंगे।प्रतिवाद निरंतरता की मांग करता है,उत्तेजना तो विचलन है।
जीवन सबसे मूल्यवान है,जीवन की कीमत पर कोई भी नकारात्मक कदम उठाना सही नहीं है। सारे प्रतिवाद और सहानुभूति के बाद भी रोहित को वापस हासिल नहीं कर सकते। कईबार विचारधारा जब विकल्पहीन हो जाती है तो अवसाद घेरता है,अथवा जनांदोलन में सफलता नहीं मिलती तो अवसाद घेरता है।कईबार विचारधारा की विकल्पहीनता अवसाद पैदा करती है।विचारधारा वही टिकती है जो अपने को अपडेट करे,विकल्प पैदा करे।
एक जमाना था जब आंदोलन करने से उदात्तभाव का विकास होता था ,कुर्बानी देकर खुशी होती थी, आंदोलनकारी को अवसाद नहीं घेरता था, मजदूर आंदोलन इसके प्रमाण हैं। मजदूर लंबी लड़ाईयां लड़ते हैं,नौकरियां चली जाती हैं,लेकिन वे आत्महत्या नहीं करते। लेकिन मध्यवर्ग औरकिसान पृष्ठभूमि से आने वालों में विगत चार दशकों से अवसाद का दायरा बढ़ा है, आम जीवन में हताशा बढ़ी है,आत्महत्याओं की संख्या बढ़ी है। इसका आंदोलनकारियों पर भी असर होने लगा है। जबकि पहले आंदोलनकारियों को अवसाद नहीं घेरता था। लेकिन अब आंदोलनकारी को भी हताशा और अवसाद घेरने लगे हैं,अवसाद से बचने का एक ही तरीका है कि हम वैचारिकतौर पर और भी मजबूत बनें,ज्यादा हमदर्द और मित्र बनाएं।
रोहित के प्रसंग में आत्महत्या का सवाल बेहद जटिल है। अनुमान कर सकते हैं कि रोहित ने आत्महत्या इसलिए की कि वि.वि.प्रशासन ने गलत फैसला लिया,समय रहते समस्या का पॉजिटिव समाधान नहीं किया।छात्रों के आंदोलन के प्रति नकारात्मक रूख अपनाया।लंबे समय तक आंदोलन करते हुए जब रोहित को कोई विकल्प नजर नहीं आया तो उसने प्रतिवादस्वरूप मरना बेहतर समझा।मोदी सरकार ने आंदोलनकारियों के प्रति जिस तरह का शत्रुतापूर्ण रूख अख्तियार किया है उसके चलते भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है।इसमें अप्रत्यक्ष तौर पर मीडिया की भी भूमिका है।
प्रशासन जब हठी ,बहरा और अविवेकपूर्ण रवैय्या अपनाता है तो आत्महत्या की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।खासकर उनलोगों में जो किसान पृष्ठभूमि और मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आते हैं। इस समूचे प्रसंग का एक अन्य पहलू है , “संघी” और “अन्य”,जो संघी नहीं है उसकी कोई सुनवाई नहीं है।नई संघी लाइन है जो संघी नहीं है ,वह देशद्रोही है।जो मोदी का विरोधी है वह देशद्रोही है।इस समझ ने केन्द्र के प्रशासन को वैचारिक तौर पर हिन्दुत्व का पक्षधर होकर काम करने को मजबूर किया है।बड़े पैमाने पर नौकरशाही का हिन्दूकरण चल रहा है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार जल्द ही किसी आंदोलन पर सामान्यतौर पर राय नहीं देती,मंत्री,प्रधानमंत्री नहींबोलते,जब भी बोलते हैं हिन्दुत्व के संघी नजरिए से बोलते हैं। लेबल लगाकर बोलते हैं।जबकि केन्द्र सरकारको तटस्थ रहना चाहिए और जो भी समस्या आए उसका हर हालत में पॉजिटिव समाधान खोजना चाहिए।इसे सामाजिक अवसाद पैदा नहीं होगा।वरना मोदी सरकार का जो रूख है वह सामाजिक अवसाद में इजाफा करेगा।इसके लिए जरूरी है “अन्य” को केन्द्र सरकार माने।लेकिन पीएम के पास "अन्य" या "अदर" के दर्द को महसूस करने वाली फैकल्टी ही नहीं है। "अन्य " का दर्द तब महसूस होता है जब आप अपनों का दर्द महसूस करते हैं। जो अपने निजी दर्द को महसूस न कर सके,वह अन्य के दर्द को क्या महसूस करेगा !
सवाल यह है सन् 2002 के दंगों में मारे गए मासूम-निहत्थों की हत्या को लेकर मोदीजी कितना रोए ? कितनीबार दंगापीड़ितों के शिविऱों में गए ? दंगा पीड़ितों से कितनीबार मिले ? उनके दुख-दर्द को सुनने के लिए कितना समय खर्च किया ? "अन्य" का दर्द महसूस करने के लिए संघी मन नहीं चाहिए,मनुष्य का मन चाहिए।अन्य दर्द में रहता है,संघी दर्द को देखता है।संघियों को अन्य का दर्द देखकर संतोष मिलता है,वे दूर से देखकर दुख व्यक्त करते हैं,"बुरा हुआ",से ज्यादा न सोचते हैं ,न महसूस करते हैं।"अन्य" को समझने,उससे जुड़ने और उसे जीने के लिए हिन्दुत्व के दायरे के बाहर निकलने की जरूरत है। हिन्दुत्व की लक्ष्मणरेखा में रहकर अन्य का दर्द,रोहित की मौत या किसानों की आत्महत्या का अहसास पाना संभव नहीं है।इसके अलावा मोदी सरकार अपने को टीवी इमेजों के माध्यम से देखना बंद करे। टीवी पर तो सब प्रायोजित चल रहा है।वहीं दूसरी ओर आम लोगों को टेलीविजन इमेजों के माध्यम से मोदी सरकार को देखना बंद करना चाहिए, उसके कामों के माध्यम से देखो। टीवी इमेजों में मोदीजी जितने लुभावने लगते हैं,कामों के जरिए उतने ही डरावने लगते हैं।टीवी इमेजों ने मोदी की लुभावनी इमेज बनायी है। हम सबकी आदत है फोटो को ही सच मानने की , इसलिए हमारे अंदर रीयल मोदी से ज्यादा इमेजरी मोदी की अपील है।मोदी की रीयल इमेज वह है जिसे आरएसएस ने रचा है,आरएसएस जो कर रहा है वह मोदी का कर्म है।पीएम की फोटोजनित इमेज तो नकली है।
फोटोजनित इमेज विभ्रम है ,संघजनित इमेज य़थार्थ है,हमको फोटोजनित इमेज पसंद है,संघ को रीयल इमेज पसंद है।फोटोमोदी और रीयलमोदी में अंतर है। हम फोटोमोदी देखना बंद करके रीयल मोदी पर ध्यान केन्द्रित करें।रोता हुआ मोदी तो फोटोमोदी है,रीयलमोदी तो पत्थरदिल है।
मोदी जब रोहित के लिए दुख व्यक्त कर रहे थे तो असली दुख नहीं था वह,यदि असली दुख था तो रोहित की मौत की खबर पाते ही उसकी मां से मिलने क्यों नहीं गए ?तत्काल बयान क्यों नहीं दिया ? असल में मोदी के आंसू तो स्मृति ईरानी की असफलता के लिए निकल रहे थे,संघ की असफलता पर निकल रहे थे।असल में पराजयबोध की अवस्था में भी नायक रोते हैं।मोदी के दुख का रोहित के दुख से कोई संबंध नहीं है।यदि सच में रोहित के लिए रो रहे थे तो सात महिने में आपको पता ही नहीं चला कि रोहित किन कष्टों से गुजरा! कमाल के पत्थरदिल और बेखबर पीएम हैं !
रोहित की मौत के बाद उठे प्रतिवाद के कारण हैदराबाद वि.वि. ने 4दलित छात्रों का निलंबन वापस ले लिया है. लेकिन कारण नहीं बताया ,क्या ये लोग रोहित की मौत का इंतजार कर रहे थे या फिर निलंबन गलत था ? कायदे से वीसी को तुरंत हटाया जाना चाहिए और दलित छात्रो ने जो मांगें रखी हैं उन पर अकादमिक परिषद तुरंत फैसला करे।निलम्बन वापसी पहला कदम है।उल्लेखनीय है भारत में 1991-2014 के बीच में 13,750 दलितों की हत्या हुई है, 27,017दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है और 6,74,619 दलितों पर जुल्म के केस दायर हुए हैं।मोदी सरकार के दलित विरोधी चेहरे का एक अन्य पहलू है- एससी एसटी के लिए इस साल के बजट में आवंटित धनराशि में 19हजार करोड़ रूपये की कटौती और आम्बेडकर रचनावली न छापने का फैसला।
मोदी सरकार और उसके लगुआ-भगुआ तंत्र की विशेषता है कि वे जनांदोलन से नफरत करते हैं,मांग कर रहे आंदोलनकारियो की बातें सुनते नहीं हैं,सामान्य हमदर्दी से पेश नहीं आते,जब कोई संगठन मांग रखता है तो सीधे अड़ जाते हैं कि नहीं मानेंगे। इसी अमानवीयता का परिणाम है हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित स्कॉलर की आत्महत्या।तकरीबन यही अमानवीय व्यवहार पूर्व सैनिकों के साथ किया गया। बैंक कर्मचारियों के साथ किया गया। अमानवीय आचरण की सूची बहुत लंबी है।केन्द्र में इस तरह की अमानवीयता पहले कभी नहीं देखी गयी। यह दुखद है कि स्मृति ईरानी से लेकर संविद पात्रा तक सभी रोहित के आत्महत्या के पहले लिखे पत्र को हवाले के रूप में पेश कर रहे हैं,लेकिन उसकी आत्महत्या को नजरअंदाज कर रहे हैं।विगत छह महिने से रोहित जो कह रहा था उसका जिक्र तक नहीं कर रहे।आत्महत्या सबसे बड़ा प्रमाण है उसके सामने रोहित के लिखे सभी पत्र बेकार हैं।जाति,धर्म बेकार हैं।रोहित की मौत को न देख पाना अपने आपमें बर्बरता और असभ्यता का प्रतीक है।
रोहित की मौत के बाद मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉंफ्रेस की। प्रेस कॉफ्रेंस में निर्लज्जता के साथ सफेद झूठ बोला।झूठ नम्बर 1- कांग्रेस सांसद हनुमंत राव ने कभी कोई पत्र हैदराबाद विश्वविद्यालय के बारे में दलित छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं की जांच के लिए नहीं लिखा,जिस पत्र का ईरानी जिक्र कर रही थीं, उस पत्र के सच को पेश किया सीएनएन के एंकर ने,उसने ईरानी के दावे को झूठा करार दिया।सांसद हनुमंतराव के पत्र में जो लिखा है उसका जिक्र करते हुए एंकर ने बताया कि सांसद ने दलितों की आत्महत्या को लेकर उस पत्र में कहीं पर एक वाक्य भी नहीं लिखा।ईरानी का दूसरा सफेद झूठ- हैदराबाद विश्वविद्यालय ने जो जांच कमेटी बनायी उसमें कोई दलित प्रोफेसर नहीं था।यह बात वि.वि. के एसी-एसटी फोरम के प्रवक्ता ने कही है।
असल में ,मंत्री गलती करे या वीसी गलती करे,मोदीराज में किसी को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है।गलतियों को दुखद ,और दुखद को परपीडन में बदल दिया गया है। मोदी सरकार की इस मनोदशा ने बहुत कम समय में ही समूचे प्रशासन के कानों में तेल डाल दिया है।ध्यान रहे विश्वविद्यालय कैंपस में जुल्म होगा,कैंपस में प्रशासन राजनीति करेगा तो छात्रों के द्वारा कैंपस में प्रतिवाद होगा,कैंपस तो छात्रों का घर है,वे अपने घर में प्रतिवाद करने के लिए स्वतंत्र हैं। रोहित की आत्महत्या का प्रतिकार करने के लिए जरूरी है हैदराबाद विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को एकजुट संघर्ष में बांधकर रखा जाए।छात्रों के बीच में इस आंदोलन का विस्तार किया जाए।छात्रों के आंदोलन को छात्र-आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में चलाया जाए वरना मूल मुद्दे हाथ से निकल जाएंगे।प्रतिवाद निरंतरता की मांग करता है,उत्तेजना तो विचलन है।