इन दिनों फेसबुक से लेकर
मीडिया तक जिस तरह का हंगामा मोहनमंडली मचाए हुए है वह काबिलेगौर है।सारा नाटक
सुभाषचन्द्र बोस के गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक किए जाने की आड़ में हो रहा
है।इस समूचे प्रसंग को मोहनप्रसंग कहें तो अनुचित न होगा।मोहनमंडली जिस भाव और
मंशा के साथ इतिहासनिर्माताओं को प्रदूषित करने के काम में लगी है उससे इतिहास में
नए तथ्य और सूचनाएं कम जुड़ेंगे, इतिहास का विकृतिकरण ज्यादा होगा।क्योंकि इनकी
पूरी मंशा इतिहास को विकृत करने और इतिहास के प्रति नफरत पैदा करने की है।भारत
जैसे लोकतंत्र में साम्प्रदायिक ताकतें इतिहास के प्रति नफरत पैदा करके ही जिंदा
रह सकती हैं।जबकि तालिबानी इलाके में इस तरह की ताकतें इतिहास का विध्वंस करती
हैं।बाबरी मसजिद विध्वंस एक नमूना मात्र है,उनके पास भविष्य में विध्वंस करने वाली
ऐतिहासिक इमारतों की लंबी सूची है।वे सिर्फ उचित माहौल की तलाश में हैं ,ज्योंही
अनुकूल माहौल देखेंगे फिर से बाबरीयोजना कहीं पर भी लागू कर सकते हैं। इसका प्रधान
कारण है उनका इतिहास के प्रति द्वेषभाव।इसलिए मोहनमंडली में इतिहासप्रेम खोजना चील
के घोंसले में मांस का टुकड़ा खोजने के बराबर है।
इतिहास में नफरत पैदा करने के लिए जरूरी है कि पहले इतिहास निर्माता
को मारो,हत्या करो।यह काम वे महात्मा गांधी की हत्या करके कर चुके हैं।उनके
हत्यारे हाथों से जो बच गए हैं उनको ‘वे हमारे हैं वे हमारे हैं’ का राग अलाप करके
मारने में लगे हैं।गांधीजी की हत्या के बाद उनको सबसे पहले दो लोग पसंद आए वे थे
विवेकानन्द और भगतसिंह । इन दोनों ही विभूतियों के विचारों को लेकर मोडनमंडली ने
जिस तरह का जहर युवाओं में भरा है उसकी कोई कल्पना ही नहीं कर सकता।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के
बाद मोहनमंडली के इतिहास विध्वंसक अभियान की राष्ट्रीय योजना में कई नए नाम नाम
शिखर पर आए हैं इनमें महामना पंडित ,बल्लभभाई पटेल,मदनमोहन मालवीय,बाबासाहेब भीमराव
आम्बेडकर और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस प्रमुख हैं। मोडनमंडली की पूरी योजना यह है कि
युवापीढ़ी को इन विभूतियों के सकारात्मक वैचारिक मूल्यों से दूर रखा जाए। इनको
डिजिटल इमेज मात्र बनाकर पेश किया जाय।वे इन विभूतियों को अपने साम्प्रदायिक
राजनीतिक षडयंत्रों और दैनंदिन घृणित धर्मनिरपेक्षताविरोधी वैचारिक अभियान के
पैकेज में पेश कर रहे हैं।
आज जब हम मोहनमंडली के
वैचारिक प्रदूषण पर विचार करें तो यह बात ध्यान रखें कि बाबरी मसजिद विध्वंस के
बाद इस मंडली का बुनियादी लक्ष्य रहा है धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को नष्ट
करना।धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ युवाओं में नफरत के बीज बोना।इस काम में उन्हें कुछ
हद तक सफलता भी मिली है,उनकी सफलता के पीछे कई कारण रहे हैं, पहला बड़ा कारण है
भारत के कारपोरेट घरानों का हिन्दुत्वप्रेम। दूसरा बड़ा कारण है धर्मनिरपेक्षदलों,खासकर
कांग्रेस का धर्मनिरपेक्षता को लेकर
ढ़ुलमुल रवैय्या।कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को लेकर सख्त वैचारिक रवैय्या अपनाया
होता तो आज धर्मनिरपेक्षता इस तरह कलंकित न होती।तीसरा बड़ा कारण मनमोहन सिंह की
आर्थिक नीतियां ,जिनके कारण धर्मनिरपेक्ष माहौल कमजोर हुआ और उपभोक्तावाद पुख्ता
बना।इन तीन कारणों ने बुनियादी तौर पर आमलोगों को धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से दूर
लेजाने में बड़ी भूमिका अदा की है।मोहनमंडली ने बड़े कौशल के साथ इन तीनों कारणों
का लाभ उठाया है।
मोहनमंडली के टुईंया से
लोग आए दिन धर्मनिरपेक्षता पर हमले करते रहते हैं,तमाम मीडिया लगातार
धर्मनिरपेक्षता विरोधी मुहिम में बाबरी मसजिद विध्वंस के लिए चलाए आंदोलन के समय
से सक्रिय है और उसने जितनी बड़ी कु-सेवा सेवा समाज की है उसकी लोकतंत्र में मिसाल मिलनी असंभव है।
धर्मनिरपेक्षताविरोधी मुहिम के कारण समाज में जहां एक ओर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण
तेज हुआ है वहीं दूसरी ओर वाम ताकतें कमजोर हुई हैं।वाम ताकतों ने कभी सोचा ही
नहीं कि सामान्य धर्मनिरपेक्ष माहौल जब नष्ट होगा तो उन पर इसका किस तरह का नकारात्मक
असर होगा।
बाबरी मसजिद विध्वंस के
समय वाम विचारधारा ने वैचारिक तौर पर जिस ऊर्जा का प्रदर्शन किया था उसको यदि
कांग्रेस ने सही ढ़ंग से समझा होता तो देश का नक्शा कुछ और होता।लेकिन वोटबैंक
राजनीति के चलते कांग्रेस ने नरम हिन्दुत्व का मार्ग पकड़ा और अंततःवे समूचा मैदान
मोहनमंडली को खैरात में सौंपकर मैदान से भाग खड़े हुए।यूपी से कांग्रेस का साफ
होना सामान्य घटना नहीं है।बाबरी मसजिद विध्वंस के बाद कांग्रेस के साफ होने का
अर्थ है धर्मनिरपेक्ष माहौल का कमजोर होना। मोहनमंडली के धर्मनिरपेक्षताविरोधी
प्रचार अभियान को जब तक एकजुट होकर धर्मनिरपेक्ष ताकतें वोट से लेकर विचारधारा के
विभिन्न क्षेत्रों तक चुनौती नहीं देतीं तब तक धर्मनिरपेक्षताविरोधी माहौल को
तोड़ना बहुत मुश्किल है।
इस प्रसंग में यह भी
ध्यान रहे बसपा और सपा सिर्फ वोटबैंक के मामले में भाजपा को यूपी में पीट सकते
हैं,वैचारिक प्रचार के मामले में ये दोनों दल बेहद कमजोर हैं,बाबरी विध्वंस के बाद
राज्य में भाजपा हारती रही है लेकिन लोकसभा में लगातार अपनी ताकत में इजाफा करती
रही है। भाजपा के वोटबैंक में यूपी में स्थानीय स्तर पर इजाफा भले ही नहीं हुआ, लेकिन
संसद के वोट में इजाफा हुआ है,इससे भी बड़ी बात यह है आम लोगों के मन में
धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ जहर भरने में मोहनमंडली सफल रही है।यही वह परिप्रेक्ष्य
है जिसमें हमें सुभाषचन्द्र बोस –आम्बेडकर आदि के प्रति मोहनराग के मर्म को उद्घाटित
करने का काम करना चाहिए।
उल्लेखनीय है मोहनमंडली
में राष्ट्रीयनेताओं के प्रति वास्तव अर्थ में कोई श्रद्धा नहीं है। वह सिर्फ
श्रद्धा का नाटक कर रहे हैं।मसलन्, सुभाषचन्द्र बोस को ही लें। आरएसएस ने कभी
सुभाषचन्द्र बोस के जीते जी उनके विचारों और आदर्शों का समर्थन और स्वागत नहीं
किया।यही दशा बाबासाहेब आम्बेडकर की थी। सवाल यह है जब ये दोनों नेता जिंदा थे तब
आरएसएस के नेताओं को इनके गुण नजर क्यों नहीं आए ? अचानक बाबरी मसजिद विध्वंस के
बाद ही नजर क्यों आए ?भगतसिंह जब जिंदा थे तब उनके पक्ष में आरएसएस ने कोई कदम
क्यों नहीं उठाया ? क्यों आरएसएस लगातार स्वाधीनता संग्राम से भागता रहा,उसके साथ
जुड़े तमाम नेता ब्रिटिश एजेंट का काम करते रहे ? आरएसएस ने ब्रिटिशदौर की भूमिका
की आत्मालोचना तक नहीं की है।ऐसी स्थिति में उनके राजनीतिक लक्ष्य को समझने में
भूल नहीं करनी चाहिए।
Change is the only constant of the world, so does with RSS.
जवाब देंहटाएंभाजपाईयों के उत्पात,अतिवाद और आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए वैचारिक रूप से मजबूत टीम की जरूरत है और एेसे लेखों से लोगों में जागरूकता ला कर टीम बनाने में मदद मिलेगी
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