हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित की आत्महत्या असामान्य – बर्बर घटना है।विश्वविद्यालय प्रशासन ने सामान्य स्थानीय छात्र विवाद को असामान्य बनाकर बुद्धिहीनता और छात्रविरोधी नजरिए का परिचय दिया है। कल जिस तरह केन्द्रीय मानव संसाधनमंत्री ने इस घटना पर विस्तार से प्रेस कॉफ्रेंस की,उससे साफ जाहिर है कि इस घटना में आरएसएस नीचे से ऊपर तक शामिल है।मेरी जानकारी में किसी विश्वविद्यालय की घटना पर कभी किसी केन्द्रीयमंत्री ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस तरह कभी कोई प्रेस कॉफ्रेंस नहीं की।ईरानी का सबसे घटिया रूप इस कॉफ्रेस में सामने आया।वह निर्लज्जता से विश्वविद्यालय प्रशासन के बर्बर आचरण की हिमायत कर रही थीं।
केन्द्रीय मंत्री का काम हिमायत करना नहीं है। वह पक्षधर नहीं हो सकता,वह सबका होता है,उसका काम है समाधान खोजना ,सबकी मदद करना,न कि पक्षविशेष की हिमायत करना। लेकिन मोदी सरकार जब से आई है उसके मंत्री खुलेआम निचले स्तर पर संघियों की हरकतों की अंधी हिमायत करके मंत्री के तटस्थ आचरण के नियम का उल्लंघन कर रहे हैं। बेहतर तो यही होता कि स्मृति ईरानी की यह प्रेस कॉफ्रेस आज न होकर उसी दिन होती जिस दिन यह घटना हुई थी और वे संबंधित पक्षों को बुलाकर समझा-बुझाकर मामले का हल तलाश करतीं,केन्द्रीय मंत्री को बोलने में इतना लंबा समय क्यों लगा ?
केन्द्रीय मंत्री का काम निचले स्तर पर प्रशासन की खामियों पर पर्दा डालना या उसकी हिमायत करना नहीं है।मंत्री यदि पक्षधर होकर काम करेगा तब आम जनता न्याय मांगने कहां जाएगी ? ईरानी की प्रेस कॉफ्रेस से यह भी संदेश गया है कि संघ अब विश्वविद्यालय कैम्पसों में खुलेआम अलोकतांत्रिक और शिक्षाविरोधी और अ-सामाजिक कार्यकलापों को संरक्षण देगा,संघ का खुला संदेश है उसके सदस्यगण जो मन में आए करें ,उनको किसी भी किस्म के सभ्य आचरण की जरूरत नहीं है।लगता है मंत्रियों को संघ का आदेश है कि हर हालत में निचले स्तर पर काम कर रहे संघियों के पक्ष में खड़े रहो। इस तरह की संघी प्रशासनिक पक्षधरता शिक्षा संस्थानों को अपराध संस्थान बनाकर छोड़ेगी।उल्लेखनीय है पहले से ही हमारे शिक्षा संस्थानों में अनेक समस्याएं हैं ,ऐसे में संघी पक्षधरता के आधार पर प्रशासन का काम करने का तरीका अपने आपमें मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
रोहित को आत्महत्या न करनी पड़ती यदि संघियों ने हठधर्मिता से काम न लिया होता। इस समूचे प्रसंग में संघी हठधर्मिता के अलावा जो अन्य संदेश निकल रहा है वह यह कि छात्रों में बीच-बचाव करके मित्रतापूर्ण समाधान निकालने में स्थानीय स्तर पर छात्र-शिक्षक-कर्मचारी संगठन भी असफल रहे हैं। छात्रों के बीच में सामान्य मारपीट की घटना इस कदर विकराल रूप कैसे ले सकती है और उसमें आरएसएस के बड़े दिग्गज नेता इस कदर शामिल कैसे हो सकते हैं ?
सवाल यह है क्या छात्रों के निजी झगड़े या राजनीतिक विवाद इसी तरह हल किए जाएंगे या उनके समाधान के सभ्य तरीकों का हम पालन करना सीखेंगे?छात्र राजनीति में वैचारिक मतभेद होंगे,वैचारिक गरमी भी होगी,लेकिन बलप्रयोग,सत्ता का दुरूपयोग आदि की उसमें कोई जगह नहीं है। हम नहीं जानते कि रोहित प्रसंग में किसने किसको मारा-पीटा,अब वह मार-पीट उतनी प्रासंगिक भी नहीं रह गयी है ,रोहित की आत्महत्या के बाद समूचा प्रसंग और उसका संदर्भ एकदम बदल गया है। रोहित और पांच लड़कों के खिलाफ कायदे से विश्वविद्यालय प्रशासन को पक्षधर होकर बीच में पड़ने की जरूरत नहीं थी। विश्वविद्यालय प्रशासन पक्षधरता के आधार चलेगा तो कैम्पस में समस्याओं का अम्बार लग जाएगा। इससे विश्वविद्यालयों का समूचा वातावरण और अकादमिक सभ्यता का समूचा ढ़ांचा टूटेगा।
हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने सामान्य मारपीट की घटना पर जिस तरह का एक्शन लिया,जांच बिठायी और जिस तरह संघी राजनेता उसमें कूद गए उससे साफ है कि संघ के लोगों ने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए सामान्य मारपीट की घटना का बहाने के रूप में इस्तेमाल किया है।इस चक्कर में जहां उन्होंने स्थानीय प्रशासन का दुरूपयोग किया वहीं दूसरी ओर शिक्षा प्रबंधन के सभ्य आचरण का उल्लंघन किया ।
उल्लेखनीय है जिन विश्वविद्यालयों में वाम राजनीति या वैकल्पिक राजनीति करने वाले छात्र संगठन सक्रिय हैं वहीं पर संघी छात्र संगठन सुनियोजित ढ़ंग से निजी पंगे ले रहे हैं और उनका राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।इसके बहाने वे कैम्पस से लोकतांत्रिक राजनीति को बाहर खदेड़ना चाहते हैं। वाम-लोकतांत्रिक राजनीति करने वालों को संघ के मंत्री से लेकर अदना से मीडियागुलाम तक राष्ट्रद्रोही की पदवी देकर अपमानित कर रहे हैं। जेएनयू से लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय तक एक ही आख्यान चल रहा है कि विश्वविद्यालयों से वाम-लोकतांत्रिक राजनीति को बाहर करो,इसके लिए अपराधियों से लेकर वि.वि. प्रशासन तक,मोदी सरकार के मंत्रियों से लेकर राज्यपाल तक सभी का दुरूपयोग खुला दुरूपयोग किया जा रहा है। संघ की इस तरह की आक्रामकता पहले कभी देखी नहीं गयी।
संघ की विश्वविद्यालय कैम्पसों में बढ़ रही आक्रामकता का लक्ष्य है छात्र राजनीति का अपराधीकरण करना। उच्चशिक्षा के संस्थानों खासकर केन्द्र सरकार के अधीन चल रहे शिक्षा संस्थानों के समूचे तंत्र को तोड़ना। यह काम वे दो तरीके से कर रहे हैं।पहला,वे उन तमाम लोगों को विश्वविद्यालय के जिम्मेदार पदों पर बिठा रहे हैं जो लोग उन पदों के लायक नहीं हैं,जिनकी कोई अकादमिक साख नहीं है।वे विश्वविद्यालय की फैसलेकुन कमेटियों में उन लोगों को जिम्मेदारी दे रहे हैं जो अव्वलदर्जे के डफर हैं।धूर्त हैं।इससे प्रशासन को पूरी तरह प्रदूषित करने,वि.वि. की नीतियों को मनमाफिक ढ़ंग से तोड़ने-मरोड़ने का संघ को मौका मिल रहा है।दूसरी ओर संघ समर्थित छात्र-शिक्षक-कर्मचारी संगठनों के भ्रष्ट राजनीतिक कर्मकांड जगह-जगह विश्वविद्यालय की गरिमा को नष्ट कर रहे हैं, लोकतांत्रिक छात्र संगठनों और उनके साथ जुड़े छात्रों पर घटिया किस्म के राजनीतिक हमले हो रहे हैं और शारीरिक हमले भी हो रहे हैं।इस काम में मीडिया का संघ को खुला समर्थन मिल रहा है।
केन्द्रीय मंत्री का काम हिमायत करना नहीं है। वह पक्षधर नहीं हो सकता,वह सबका होता है,उसका काम है समाधान खोजना ,सबकी मदद करना,न कि पक्षविशेष की हिमायत करना। लेकिन मोदी सरकार जब से आई है उसके मंत्री खुलेआम निचले स्तर पर संघियों की हरकतों की अंधी हिमायत करके मंत्री के तटस्थ आचरण के नियम का उल्लंघन कर रहे हैं। बेहतर तो यही होता कि स्मृति ईरानी की यह प्रेस कॉफ्रेस आज न होकर उसी दिन होती जिस दिन यह घटना हुई थी और वे संबंधित पक्षों को बुलाकर समझा-बुझाकर मामले का हल तलाश करतीं,केन्द्रीय मंत्री को बोलने में इतना लंबा समय क्यों लगा ?
केन्द्रीय मंत्री का काम निचले स्तर पर प्रशासन की खामियों पर पर्दा डालना या उसकी हिमायत करना नहीं है।मंत्री यदि पक्षधर होकर काम करेगा तब आम जनता न्याय मांगने कहां जाएगी ? ईरानी की प्रेस कॉफ्रेस से यह भी संदेश गया है कि संघ अब विश्वविद्यालय कैम्पसों में खुलेआम अलोकतांत्रिक और शिक्षाविरोधी और अ-सामाजिक कार्यकलापों को संरक्षण देगा,संघ का खुला संदेश है उसके सदस्यगण जो मन में आए करें ,उनको किसी भी किस्म के सभ्य आचरण की जरूरत नहीं है।लगता है मंत्रियों को संघ का आदेश है कि हर हालत में निचले स्तर पर काम कर रहे संघियों के पक्ष में खड़े रहो। इस तरह की संघी प्रशासनिक पक्षधरता शिक्षा संस्थानों को अपराध संस्थान बनाकर छोड़ेगी।उल्लेखनीय है पहले से ही हमारे शिक्षा संस्थानों में अनेक समस्याएं हैं ,ऐसे में संघी पक्षधरता के आधार पर प्रशासन का काम करने का तरीका अपने आपमें मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
रोहित को आत्महत्या न करनी पड़ती यदि संघियों ने हठधर्मिता से काम न लिया होता। इस समूचे प्रसंग में संघी हठधर्मिता के अलावा जो अन्य संदेश निकल रहा है वह यह कि छात्रों में बीच-बचाव करके मित्रतापूर्ण समाधान निकालने में स्थानीय स्तर पर छात्र-शिक्षक-कर्मचारी संगठन भी असफल रहे हैं। छात्रों के बीच में सामान्य मारपीट की घटना इस कदर विकराल रूप कैसे ले सकती है और उसमें आरएसएस के बड़े दिग्गज नेता इस कदर शामिल कैसे हो सकते हैं ?
सवाल यह है क्या छात्रों के निजी झगड़े या राजनीतिक विवाद इसी तरह हल किए जाएंगे या उनके समाधान के सभ्य तरीकों का हम पालन करना सीखेंगे?छात्र राजनीति में वैचारिक मतभेद होंगे,वैचारिक गरमी भी होगी,लेकिन बलप्रयोग,सत्ता का दुरूपयोग आदि की उसमें कोई जगह नहीं है। हम नहीं जानते कि रोहित प्रसंग में किसने किसको मारा-पीटा,अब वह मार-पीट उतनी प्रासंगिक भी नहीं रह गयी है ,रोहित की आत्महत्या के बाद समूचा प्रसंग और उसका संदर्भ एकदम बदल गया है। रोहित और पांच लड़कों के खिलाफ कायदे से विश्वविद्यालय प्रशासन को पक्षधर होकर बीच में पड़ने की जरूरत नहीं थी। विश्वविद्यालय प्रशासन पक्षधरता के आधार चलेगा तो कैम्पस में समस्याओं का अम्बार लग जाएगा। इससे विश्वविद्यालयों का समूचा वातावरण और अकादमिक सभ्यता का समूचा ढ़ांचा टूटेगा।
हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने सामान्य मारपीट की घटना पर जिस तरह का एक्शन लिया,जांच बिठायी और जिस तरह संघी राजनेता उसमें कूद गए उससे साफ है कि संघ के लोगों ने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए सामान्य मारपीट की घटना का बहाने के रूप में इस्तेमाल किया है।इस चक्कर में जहां उन्होंने स्थानीय प्रशासन का दुरूपयोग किया वहीं दूसरी ओर शिक्षा प्रबंधन के सभ्य आचरण का उल्लंघन किया ।
उल्लेखनीय है जिन विश्वविद्यालयों में वाम राजनीति या वैकल्पिक राजनीति करने वाले छात्र संगठन सक्रिय हैं वहीं पर संघी छात्र संगठन सुनियोजित ढ़ंग से निजी पंगे ले रहे हैं और उनका राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।इसके बहाने वे कैम्पस से लोकतांत्रिक राजनीति को बाहर खदेड़ना चाहते हैं। वाम-लोकतांत्रिक राजनीति करने वालों को संघ के मंत्री से लेकर अदना से मीडियागुलाम तक राष्ट्रद्रोही की पदवी देकर अपमानित कर रहे हैं। जेएनयू से लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय तक एक ही आख्यान चल रहा है कि विश्वविद्यालयों से वाम-लोकतांत्रिक राजनीति को बाहर करो,इसके लिए अपराधियों से लेकर वि.वि. प्रशासन तक,मोदी सरकार के मंत्रियों से लेकर राज्यपाल तक सभी का दुरूपयोग खुला दुरूपयोग किया जा रहा है। संघ की इस तरह की आक्रामकता पहले कभी देखी नहीं गयी।
संघ की विश्वविद्यालय कैम्पसों में बढ़ रही आक्रामकता का लक्ष्य है छात्र राजनीति का अपराधीकरण करना। उच्चशिक्षा के संस्थानों खासकर केन्द्र सरकार के अधीन चल रहे शिक्षा संस्थानों के समूचे तंत्र को तोड़ना। यह काम वे दो तरीके से कर रहे हैं।पहला,वे उन तमाम लोगों को विश्वविद्यालय के जिम्मेदार पदों पर बिठा रहे हैं जो लोग उन पदों के लायक नहीं हैं,जिनकी कोई अकादमिक साख नहीं है।वे विश्वविद्यालय की फैसलेकुन कमेटियों में उन लोगों को जिम्मेदारी दे रहे हैं जो अव्वलदर्जे के डफर हैं।धूर्त हैं।इससे प्रशासन को पूरी तरह प्रदूषित करने,वि.वि. की नीतियों को मनमाफिक ढ़ंग से तोड़ने-मरोड़ने का संघ को मौका मिल रहा है।दूसरी ओर संघ समर्थित छात्र-शिक्षक-कर्मचारी संगठनों के भ्रष्ट राजनीतिक कर्मकांड जगह-जगह विश्वविद्यालय की गरिमा को नष्ट कर रहे हैं, लोकतांत्रिक छात्र संगठनों और उनके साथ जुड़े छात्रों पर घटिया किस्म के राजनीतिक हमले हो रहे हैं और शारीरिक हमले भी हो रहे हैं।इस काम में मीडिया का संघ को खुला समर्थन मिल रहा है।
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