माकपा का संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा।समूची पोलिट ब्यूरो और केन्द्रीय कमेटी भ्रष्ट बंगाल माकपा यूनिट को बचाने में लगी है।जिस बंगाल लाइन को लेकर हंगामा मचा है उसके लिए मेनीपुलेशन और इस्तेमाल का आधार तो विगत सीसी और पीबी ने ही तैयार किया था।संध्याभाषा में बंगाल में मोर्चा बनाने का जो आह्वान किया गया उसके ही गर्भ से बंगाल लाइन निकली है।मीडिया की मानें तो इसके निर्माता हैं बुद्धदेव भट्टाचार्य,सूर्यकांत मिश्रा,गौतमदेव,मोहम्मद सलीम।इन चार नेताओं ने गंभीरता के साथ बंगाल लाइन को लागू किया,इसके अलावा इसे लागू करने में पश्चिम बंगाल के सभी पोलिट ब्यूरो और केन्द्रीय समिति सदस्य अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास में यह विरल घटना है कि पार्टी ने किसी दल के साथ समझौता किया या मोर्चा बनाया या सीटों पर समझौता किया लेकिन उसके बारे में पोलिट ब्यूरो,केन्द्रीय कमेटी और राज्य कमेटी किसी ने भी आधिकारिक तौर पर कोई लिखित बयान जारी नहीं किया,हमने इस संदर्भ में फेसबुक पर लिखा भी था। लिखिततौर पर बयान जारी न करके दलीय समझौता करके चुनाव लड़ना स्वयं में अनैतिक ,नीतिहीन और भ्रष्ट आचरण है।
सवाल यह है बंगाल लाइन आई कहां से और क्यों आई ॽ बंगाल लाइन का स्रोत है पार्टी का भ्रष्टतंत्र।मैंने करीब से इस भ्रष्टतंत्र को देखा है ।माकपा में भ्रष्ट दलतंत्र का जन्म ज्योति बाबू के शासनकाल में ही हुआ।इसकी उस जमाने में विनयकृष्ण चौधुरी और नृपेन चक्रवर्ती जैसे धाकड़ नेताओं ने जमकर आलोचना की,अफसोस की बात है कि उनकी आलोचना की ओर किसी ने द्यान नहीं दिया और पार्टी ने सामूहिकतौर पर अनुशासनभंग करने के नाम पर इन दोनों नेताओं को आम जनता में अपमानित किया और अनुशासनात्मक कार्रवाई की गयी।
34साल तक शासन के बाद माकपा में यह भावना और आदत गहरे जड़ जमा चुकी है कि वे तो सरकार के लिए बने हैं और उनको हर हालत में सरकार में ही होना चाहिए। यहां तक कि पार्टी मेम्बरों में भी यही भावना बनी कि वे सरकार के लिए बने हैं।यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां से माकपा मेम्बरों का चरित्र गठन हुआ।संयोग से ममता ने 2011 में वाम मोर्चे को हराकर विधानसभा कब्जे में कर ली,यह स्थिति माकपा के सदस्य झेलने को तैयार नहीं थे,देखते ही देखते रातों-रात बगैर किसी विवाद के हजारों माकपा सदस्यों और हमदर्दों ने ममता का दामन धाम लिया,ममता का दामन थामने का यह सिलसिला अभी भी जारी है।इसका प्रधान कारण है माकपा का विचारधाराहीन पार्टी में रूपान्तरण,34साल के शासन के दौरान माकपा ने सचेत रूप से कम्युनिस्ट विचारधारा का त्याग किया और सत्ता की विचारधारा को अपने सदस्यों में प्रचारित किया,इसके कारण माकपा एक कम्युनिस्ट दल की बजाय सत्ताधारी दल के रूप में परिवर्तित हो गयी,यह स्थिति लगातार बद-बदतर अवस्था की ओर ले गयी।माकपा यह भूल गयी कि वह कम्युनिस्ट दल है,संघर्ष के लिए बनी पार्टी है,उसने सचेत रूप से सत्ता के संस्थान के रूप में यहां पर अपना विकास किया और यही वह बृहत्तर प्रक्रिया है जिसने माकपा को नीतिहीन दल के रूप में परिणत करके रख दिया।नंदीग्राम आंदोलन के समय और उसके पहले भी मैंने निजी तौर पर इस पहलू पर बहुत लिखा था जिसके कारण मेरी तीखी आलोचना हुई और माकपाईयों ने मेरा बड़े पैमाने पर अपमान किया,सामाजिक बहिष्कार किया और सारी प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग मेरे खिलाफ किया।
मैं निजी तौर पर मार्क्सवाद को पसंद करता हूं जिसके कारण मुझे वाम अच्छा लगता है लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि मैं माकपा के बारे में अपनी दो-टूक राय व्यक्त न करूँ,मैंने जबभी उचित समझा जमकर माकपा की खुली आलोचना की और उसकी कीमत भी दी,दुखद बात यह है कि माकपा जैसे सुंदर दल को लीडरशिप ने सचेत रूप से नष्ट किया है।आज स्थिति यह है कि बंगाल में माकपा की कोई साख नहीं है।ममता के महान भ्रष्टाचार,हिंसाचार आदि के बावजूद आम जनता माकपा पर विश्वास नहीं करती।कायदे से बंगाल लाइन के नाम पर जो घोटाला हुआ है उसके लिए पश्चिम बंगाल की पूरी पार्टी को भंग किया जाना चाहिए और निचले स्तर से लेकर राज्य स्तर तक नए सिरे से पार्टी का निर्माण किया जाना चाहिए।
सवाल यह है बंगाल लाइन आई कहां से और क्यों आई ॽ बंगाल लाइन का स्रोत है पार्टी का भ्रष्टतंत्र।मैंने करीब से इस भ्रष्टतंत्र को देखा है ।माकपा में भ्रष्ट दलतंत्र का जन्म ज्योति बाबू के शासनकाल में ही हुआ।इसकी उस जमाने में विनयकृष्ण चौधुरी और नृपेन चक्रवर्ती जैसे धाकड़ नेताओं ने जमकर आलोचना की,अफसोस की बात है कि उनकी आलोचना की ओर किसी ने द्यान नहीं दिया और पार्टी ने सामूहिकतौर पर अनुशासनभंग करने के नाम पर इन दोनों नेताओं को आम जनता में अपमानित किया और अनुशासनात्मक कार्रवाई की गयी।
34साल तक शासन के बाद माकपा में यह भावना और आदत गहरे जड़ जमा चुकी है कि वे तो सरकार के लिए बने हैं और उनको हर हालत में सरकार में ही होना चाहिए। यहां तक कि पार्टी मेम्बरों में भी यही भावना बनी कि वे सरकार के लिए बने हैं।यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां से माकपा मेम्बरों का चरित्र गठन हुआ।संयोग से ममता ने 2011 में वाम मोर्चे को हराकर विधानसभा कब्जे में कर ली,यह स्थिति माकपा के सदस्य झेलने को तैयार नहीं थे,देखते ही देखते रातों-रात बगैर किसी विवाद के हजारों माकपा सदस्यों और हमदर्दों ने ममता का दामन धाम लिया,ममता का दामन थामने का यह सिलसिला अभी भी जारी है।इसका प्रधान कारण है माकपा का विचारधाराहीन पार्टी में रूपान्तरण,34साल के शासन के दौरान माकपा ने सचेत रूप से कम्युनिस्ट विचारधारा का त्याग किया और सत्ता की विचारधारा को अपने सदस्यों में प्रचारित किया,इसके कारण माकपा एक कम्युनिस्ट दल की बजाय सत्ताधारी दल के रूप में परिवर्तित हो गयी,यह स्थिति लगातार बद-बदतर अवस्था की ओर ले गयी।माकपा यह भूल गयी कि वह कम्युनिस्ट दल है,संघर्ष के लिए बनी पार्टी है,उसने सचेत रूप से सत्ता के संस्थान के रूप में यहां पर अपना विकास किया और यही वह बृहत्तर प्रक्रिया है जिसने माकपा को नीतिहीन दल के रूप में परिणत करके रख दिया।नंदीग्राम आंदोलन के समय और उसके पहले भी मैंने निजी तौर पर इस पहलू पर बहुत लिखा था जिसके कारण मेरी तीखी आलोचना हुई और माकपाईयों ने मेरा बड़े पैमाने पर अपमान किया,सामाजिक बहिष्कार किया और सारी प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग मेरे खिलाफ किया।
मैं निजी तौर पर मार्क्सवाद को पसंद करता हूं जिसके कारण मुझे वाम अच्छा लगता है लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि मैं माकपा के बारे में अपनी दो-टूक राय व्यक्त न करूँ,मैंने जबभी उचित समझा जमकर माकपा की खुली आलोचना की और उसकी कीमत भी दी,दुखद बात यह है कि माकपा जैसे सुंदर दल को लीडरशिप ने सचेत रूप से नष्ट किया है।आज स्थिति यह है कि बंगाल में माकपा की कोई साख नहीं है।ममता के महान भ्रष्टाचार,हिंसाचार आदि के बावजूद आम जनता माकपा पर विश्वास नहीं करती।कायदे से बंगाल लाइन के नाम पर जो घोटाला हुआ है उसके लिए पश्चिम बंगाल की पूरी पार्टी को भंग किया जाना चाहिए और निचले स्तर से लेकर राज्य स्तर तक नए सिरे से पार्टी का निर्माण किया जाना चाहिए।
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