रविवार, 16 सितंबर 2012

हिन्दी के 12 कटु सत्य


1.हिन्दीभाषी अभिजन की हिन्दी से दूरी बढ़ी है ।

2.राजभाषा हिन्दी के नाम पर केन्द्र सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है लेकिन उसका भाषायी,सांस्कृतिक,अकादमिक और प्रशासनिक रिटर्न बहुत कम है।

3.इस दिन केन्द्र सरकार के ऑफिसों में मेले-ठेले होते हैं और उनमें यह देखा जाता है कि कर्मचारियों ने साल में कितनी हिन्दी लिखी या उसका व्यवहार किया। हिन्दी अधिकारियों में अधिकतर की इसके विकास में कोई गति नजर नहीं आती।संबंधित ऑफिस के अधिकारी भी हिन्दी के प्रति सरकारी भाव से पेश आते हैं। गोया ,हिन्दी कोई विदेशी भाषा हो।

4.केन्द्र सरकार के ऑफिसों में आधुनिक कम्युनिकेशन सुविधाओं के बावजूद हिन्दी का हिन्दीभाषी राज्यों में भी न्यूनतम इस्तेमाल होता है।

5.हिन्दीभाषी राज्यों में और 10 वीं और 12वीं की परीक्षाओं में अधिकांश हिन्दीभाषी बच्चों के असंतोषजनक अंक आते हैं. हिन्दी भाषा अभी तक उनकी प्राथमिकताओं में सबसे नीचे है।

6.ज्यादातर मोबाइल में हिन्दी का यूनीकोड़ फॉण्ट तक नहीं है।ज्यादातर शिक्षित हिन्दी भाषी यूनीकोड फॉण्ट मंगल का नाम तक नहीं जानते।ऐसी स्थिति में हिन्दी का विकास कैसे होगा ?

7.राजभाषा संसदीय समिति और उसके देश-विदेश में हिन्दी की निगरानी के लिए किए गए दौरे भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े अपव्ययों में से एक है.

8.विगत 62सालों में हिन्दी में पठन-पाठन,अनुसंधान और मीडिया में हिन्दी का स्तर गिरा है।

9.राजभाषा संसदीय समिति की सालाना रिपोर्ट अपठनीय और बोगस होती हैं।

10.भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय में मूल बयान कभी हिन्दी में तैयार नहीं होता। सरकारी दफ्तरों में हिन्दी मूलतः अनुवाद की भाषा मात्र बनकर रह गयी है

11.हिन्दी दिवस के बहाने भाषायी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला है इससे भाषायी समुदायों में तनाव पैदा हुआ है। हिन्दीभाषीक्षेत्र की अन्य बोलियों और भाषाओं की उपेक्षा हुई है।

12.सारी दुनिया में आधुनिकभाषाओं के विकास में भाषायी पूंजीपतिवर्ग या अभिजनवर्ग की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दी की मुश्किल यह है कि हिन्दीभाषी पूंजीपतिवर्ग का अपनी भाषा से प्रेम ही नहीं है।जबकि यह स्थिति बंगला,मराठी,तमिल.मलयालम,तेलुगू आदि में नहीं है।वहां का पूंजीपति अपनी भाषा के साथ जोड़कर देखता है।हिन्दी में हिन्दीभाषी पूंजीपति का परायी संस्कृति और भाषा से याराना है।

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