मंगलवार, 25 सितंबर 2012

राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण ममता अकेली पड़ी

    ममता बनर्जी और सोनिया गांधी में कल तक मित्रता थी इनदिनों दोनों नेत्रियों में छत्तीस का आंकड़ा है। ममता की राजनीतिक अदूरदर्शिता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कल तक ममता बनर्जी पापुलिज्म की बेताज बादशाह थीं लेकिन आज वे संकट में हैं। राज्य में मुख्यमंत्री बनने के एक साल के अंदर उन्होंने सबसे पहले प्रणव मुखर्जी का विश्वास खोया,हाल में मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी का साथ खोया और जल्द ही उनको कांग्रेस का राज्य में साथ भी खोना पडेगा ।इसके अलावा देश-विदेश के उद्योगपतियों की नजरों में ममता बनर्जी की साख गिरी है। ममता यह मानकर चल रही थी कि वे जल्द ही तिकड़मों के जरिए भारत की राजनीति में बड़ा स्थान बना लेंगी। लेकिन अब यह सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा। मनमोहन सरकार से समर्थन वापसी के बाद ममता और भी अकेली हो गयी हैं।

पिछले सप्ताह कोलकाता के टाउनहॉल में टीएमसी सांसदों-विधायकों और मंत्रियों की बैठक में एक दर्जन सांसदों ने भरी सभा में साफ कहा कि मनमोहन सरकार से समर्थन वापस नहीं लेना चाहिए। इस पर ममता बनर्जी ने कहा कि समर्थन वापस लेते ही केन्द्र सरकार गिर जाएगी और उनको भरोसा है कि समाजवादी पार्टी उनका साथ देगी। लेकिन दिल्ली में घटनाक्रम जिस गति से चला उसने ममता बनर्जी को अदूरदर्शी नेता साबित किया है। जिन एक दर्जन टीएमसी सांसदों ने मनमोहन सरकार को समर्थन जारी रखने की मांग की थी उनका कहना था कि केन्द्र सरकार की मदद से चलने वाले सभी प्रकल्प इस फैसले से प्रभावित होंगे।साथ ही हर महिने रिजर्व बैंक से जो ओवरड्राफ्ट राज्य सरकार ले रही है उस पर भी असर पड़ सकता है।

दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के जिन मंत्रियों ने मनमोहन सिंह सरकार से इस्तीफा दिया है वे निजी तौर पर शांति महसूस कर रहे है। टीएमसी के एक पूर्व केन्द्रीयमंत्री का कहना था हमलोग जब से दिल्ली मंत्रीमंडल में शामिल हुए हैं हमारे ऊपर ममता दीदी की सख्त निगरानी थी और सभी मंत्रियों को ज्यादातर समय दिल्ली की बजाय कोलकाता में रहने का निर्देश था इसके कारण सभी मंत्री तनाव में रहते थे। मंत्रीमंडल से इस्तीफा देने वाले एक दूसरे मंत्री ने कहा कम से कम अब दिल्ली के बेगानेपन से वे बच गए हैं।सभी पूर्व मंत्रियों को उस समय असुविधा हुई जब वे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को समर्थन वापसी का पत्र देने पहुँचे। वे राष्ट्रपति के सामने निरुत्तर खड़े थे। तकरीबन यही स्थिति प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलते समय भी थी।

सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसबार ममता बनर्जी से एकबार भी बात क्यों नहीं की ? पिछले सप्ताह जिस तरह तेजी से घटनाक्रम चला है उसमें ममता बनर्जी ने एकबार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बात की थी और ममता को उम्मीद थी कि सोनिया गांधी उनको मनाने की कोशिश करेंगी,लेकिन ममता को सोनिया गांधी की बातें सुनकर तेज झटका लगा। सोनिया गांधी के करीबी सूत्र बताते हैं कि सोनिया गांधी ने ममता से साफ कहा कि सरकार में निकम्मेपन को अब बर्दाश्त करना संभव नहीं है। टीएमसी के मंत्री दिल्ली के मंत्रालय ऑफिसों में आते ही नहीं हैं और इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। तीन साल हो गए टीएमसी के अधिकांश मंत्रियों को दिल्ली में मंत्रालय के ऑफिस आने की फुर्सत नहीं है ,इससे अच्छा है आपके मंत्री इस्तीफा दे दें। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि ममता बनर्जी ने अपने मंत्रियों को आरंभ से ही यह निर्देश दे रखा था कि दिल्ली में कम रहो कोलकाता या अपने चुनावक्षेत्र में ज्यादा रहो।सोनिया गांधी ने ममता को दो-टूक शब्दों में यह भी कहा बताते हैं कि केन्द्र सरकार के फैसले बदले नहीं जाएंगे और टीएमसी की अड़ंगेबाजी से सरकार की साख में बट्टा लगा है। सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी को सोनिया गांधी के इस सख्त रवैय्ये से कड़ा झटका लगा है।

उल्लेखनीय है कि ममता बनर्जी यह दावा करती थीं कि वे जो चाहेंगी सोनिया गांधी से मनवा लेंगी। लेकिन विगत एकसाल में जब से उनकी प्रणव मुखर्जी से अनबन हुई और बातचीत बंद हुई तब से कांग्रेस के सभी केन्द्रीय नेताओं को कही कहा गया कि ममता से दूर रहो ।इस समूची प्रक्रिया में यूपीए-2 सरकार की जड़ता टूटी है और नए किस्म के राजनीतिक समीकरण की संभावनाएं पैदा हुई हैं। ममता का राजनीतिक कद छोटा करने में प्रणव मुखर्जी के फार्मूले पर ही अंततःमनमोहन सरकार को आना पड़ा और अर्थव्यवस्था के बारे में कठोर फैसले लेने पड़े हैं। उल्लेखनीय है दिल्ली में टीएमसी के समर्थन वापसी की स्थितियों से निबटने की सारी तैयारियां मनमोहन सरकार के फैसला लेने के पहले ही कर ली गयी थीं।

कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि ममता ने समर्थन वापसी की घोषणा करके असल में भाजपा और एनडीए के हितों को साधने की कोशिश की है। भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए ममता ने विगत सप्ताह प्रेस कॉफ्रेंस में कांग्रेस के खिलाफ जिस भाषा का इस्तेमाल किया वह भाजपा की भाषा है।ममता की प्रेस कॉफ्रेस के तत्काल बाद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर ने सही कहा कि हमें खुशी है कि ममता अब वही कह रही हैं जो अब तक भाजपा बोलती आई है।

ममता बनर्जी केद्वारा कांग्रेस के साथ समझौता तोड़ने का कई मोर्चों पर असर होगा। पहला असर यह होगा कि मनमोहन सरकार बिना किसी अडंगेबाजी के नीतिगत फैसले ले पाएगी। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में आने वाले पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस आमने-सामने होंगे और इससे वामदलों को लाभ मिल सकता है।




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