सोमवार, 3 सितंबर 2012

पश्चिम बंगाल में पूंजीनिवेश के मित्रतापूर्ण माहौल की तलाश में रतन टाटा


पश्चिम बंगाल में औद्योगिक पूंजी निवेश में सबसे बड़ी बाधा है नेताओं का पूंजीपति विरोधी राजनीतिक कठमुल्लापन । इस राजनीतिक कठमुल्लेपन को विभिन्न कम्युनिस्ट ग्रुपों और दलों ने विगत चार दशक में समय समय पर हवा दी फलतःराज्य में पूंजीनिवेश बंद हो गया। यहां पर वह नेता जनशत्रु माना जाता है जो औद्योगिक पूंजी निवेश की बातें करता है।

आमजनता की ग्राम्यचेतना के सबसे पिछड़े मूल्यों को बनाए रखकर औद्योगिकीकरण का विरोध करना यहां के नेताओं और सांस्कृतिक नायकों की विशेषता है। विगत वाम मोर्चा सरकारों से लेकर मौजूदा ममता सरकार के आने के बाद भी यह राजनीतिक कठमुल्लापन खत्म नहीं हुआ है।सच यह है कि जनता की पिछड़ी चेतना का दोहन करने और वोट जुटाने के लिए राजनीतिकदलों ,स्वयंसेवी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने विभिन्न रूपों में राजनीतिक कठमुल्लेपन को हवा दी है।

राजनीतिक कठमुल्लापन स्थानीय मीडिया में भी व्यापक कवरेज और सम्मान प्राप्त करता रहा है।इसके कारण राज्य के बौने नेता अपने को महान नेता समझते हैं। जिन नेताओं ने कभी राज्य में एक भी पैसे का पूंजीनिवेश नहीं कराया वे जनहितकारी होने का दावा करते हैं.उनकी राजनीतिक भाषा में भय और संत्रास व्यक्त होता रहा है .वे अपने को राज्य का उन्नायक मानते हैं .और वे ही राज्य के सांस्कृतिक-राजनीतिक नायक-उपनायक भी हैं।

राज्य के तथाकथित सांस्कृतिक नायकों –उपनायकों की सामान्यभाषा में तथाकथित क्रांति या जनहित की भाषा में पूंजीविरोधी उन्माद को व्यापक अभिव्यक्ति मिली है और मीडिया ने उसका महिमामंडन किया है। यही वो प्रतिकूल परिवेश है जिसकी ओर प्रकारान्तर से प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा ने हाल ही में अपनी यात्रा के दौरान प्रकाश डाला। उल्लेखनीय है रतन टाटा विगत दिनों टाटा ग्लोबल व्रेबरीज या टाटा टी कंपनी के शेयरधारकों की आमसभा में बोल रहे थे। रतन टाटा के इस सभा में दिए गए बयान में बहुत गंभीर संकेत छिपे हैं जिनको राजनेताओं-सांस्कृतिककर्मियों को गंभीरता से पढ़ना चाहिए।

रतन टाटा का सीधा संदेश था कि पश्चिम बंगाल राजनीतिक कठमुल्लेपन से मुक्ति हासिल करे। इस संदेश ने ममता बनर्जी सहित सभी नेताओं को दुविधा में डाल दिया है।ममता बनर्जी और उनके सलाहकार समझ ही नहीं पा रहे हैं कि राज्य के औद्योगिक माहौल में आए गतिरोध को कैसे तोड़ा जाए।

आमतौर पर कोई भी बड़ा उद्योगपति जब कोलकाता आता है तो उससे सत्तारूढ़ दल के नेतागण मिलते हैं या वो उनसे मिलता है। पिछलीबार टाटा ग्रुप के नए चेयरमैन सायरस मिस्त्री कोलकाता आए थे तो राज्य के उद्योगमंत्री सहित कई आला अधिकारी उनसे मिले थे। लेकिन इसबार विलक्षण बात हुई कि रतन टाटा और सायरस मिस्त्री कोलकाता आए तो उनसे सत्तारूढ़ दल का कोई नेता मिलने नहीं गया। यह खुशी की बात है कि राज्यपाल ने उनके लिए निजी भोज दिया।

रतन टाटा के लिए इसबार की यात्रा बेहद महत्वपूर्ण रही। उनके संदेश ने राजनीतिक गलियारों में बेचैनी पैदा की है। टाटा टी कंपनी के शेयरधारकों की आमसभा को सम्बोधित करते हुए रतन टाटा ने जो कहा है वह राज्य के सत्तारूढ़दल के लिए एक तरह का खुला निमंत्रण है कि यदि टाटा ग्रुप का राज्य में पूंजी निवेश बढाना है तो सत्तारूढ़ दल को अपने राजनीतिक कठमुल्लेपन को त्यागना होगा।

रतन टाटा ने उम्मीद जतायी कि एकदिन यहां पर ऐसा राजनीतिक वातावरण जरूर पैदा होगा जिसमें पूंजीपति अपने लिए सुरक्षित महसूस करेंगे।जब तक राज्य में पूंजीपतियों के लिए मित्र वातावरण पैदा नहीं होता तब तक असुविधा बनी रहेगी। रतन टाटा ने अपने स्वभाव के अनुकूल भावुक होकर साफ शब्दों में कहा कि पश्चिम बंगाल से उनकी कंपनी भाग नहीं रही है, उनकी कंपनी यहां पर है और रहेगी।विभिन्न क्षेत्रों में टाटा ग्रुप का यहां पर करोड़ों रूपये का पूंजीनिवेश है और आगे इसमें इजाफा होगा।

जब एक शेयरहोल्डर ने राज्य में कार का कारखाना खोलने के बारे में सवाल किया तो रतनटाटा ने बड़ी मार्के की बात कही। टाटा ने कहा कि वे राज्य में कहीं पर भी कार का कारखाना लगाने को तैयार हैं उन्हें राज्य सरकार मित्रभाव से बुलाए। रतनटाटा का मित्रभाव की मांग करना और इस मित्रभाव का पश्चिम बंगाल में अभाव उनको बार बार परेशान करता रहा है। शेयरहोल्डरों की आमसभा में बोलते समय रतन टाटा अपने लिए जब मित्रभाव की मांग कर रहे थे तो वे प्रच्छन्न तरीके से राजनीतिक कठमुल्लेपन से लड़ने के लिए राज्य के नेताओं और संस्कृतिकर्मियों को साफ संदेश दे रहे थे कि वे पहले अपना रवैय्या ठीक करें.पूंजी और पूंजीपतिवर्ग के प्रति द्वेषभाव को त्यागें.

रतनटाटा ने कहा कि हमने यहां पर दुनिया का श्रेष्ठतम कैंसर अस्पताल खोला है।इस अस्पताल में वे सभी सुविधाएं हैं जो दुनिया के किसी भी बेहतरीन अस्पताल में होनी चाहिए। आमसभा में रतन टाटा ने कोलकाता के साथअपने निजी लगाव की बातें भी कहीं।उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल भारत का अभिन्न हिस्सा है और वे भी भारत का अभिन्न अंग हैं। इसीलिए उनकी कंपनियां यहां पर रहेंगी। एकदिन ऐसा भी आएगा जब उनकी कार कंपनी का राज्य में स्वागत किया जाएगा। रतनटाटा ने कहा कि सिंगूर की घटना से वे दुखी महसूस करते हैं।राज्य में उनकी कार कंपनी निवेश करे इसके लिए जरूरी है राज्य के सत्तारूढ़दल के नेता पहल करें और मित्रता का माहौल बनाएं। रतन टाटा ने कहा कि उनके मन में राज्य को लेकर न तो कोई पूर्वाग्रह है और न मतभेद हैं और नहीं इस राज्य को छोड़कर चले जाने की इच्छा है।

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