आगामी 9 नवम्बर को राज्य सरकार की ओर से उद्योगपतियों का एक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की देश के प्रसिद्ध उद्योगपतियों से सामूहिक मुलाकात होगी। उद्योगपतियों के सामने पिछले साल उन्होंने जो वायदे किए थे उनमें से एक भी वायदा पूरा नहीं हुआ है। इसके अलावा किसी भी नए प्रकल्प पर राज्य में काम आरंभ नहीं हुआ है। राज्य प्रशासन को पेशेवर ढ़ंग से चलाने की बजाय दलतंत्र के आधार पर चलाया जा रहा है इससे देश के उद्योगपति परेशान हैं। उद्योगपतियों में ममता सरकार के बंद विरोधी नजरिए को लेकर सकारात्मक भाव है लेकिन वे चाहते हैं कि सरकार इससे आगे जाए और स्थानीय अशांति और राजनीतिक दादागिरी को नियंत्रित करे। कई उद्योगपतियों ने यह भी कहा कि ममता सरकार का बंद विरोधी रवैय्या असल में माकपा विरोध की राजनीति से जुड़ा है। इसके पीछे कोई पॉजिटिव सोच नहीं है। जिन उद्योगपतियों से इस बीच में हमारी बातचीत हुई उनमें से अधिकांश राजनीतिक मिलिटेंसी को लेकर बेहद चिन्तित हैं। इस बीच में कई उद्योगपतियों ने निजी तौर पर राज्यप्रशासन को अपनी भावनाओं से भी अवगत कराया है।
उद्योग जगत को उम्मीद है 9 नवम्बर को ममता सरकार कोई लोकलुभावन पैकेज लेकर आए। उद्योगपतियों की कई मांगें हैं जिनको इस मौके पर उठाए जाने की संभावना है। उनकी पहली मांग है कि स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन राजनीतिक गुण्डई पर रोक लगाए और ममता सरकार इस समस्या के प्रति कड़े रूख का इजहार करे। उद्योग जगत की दूसरी मांग है स्थानीयनेताओं की हफ्ता वसूली को तुरंत रोका जाए। तीसरी मांग है राज्य प्रशासन प्रकल्प स्वीकृति की प्रक्रिया आसान और त्वरित बनाए और चौथी मांग है कि उद्योगधंधों के लिए जमीन और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने के लिए ममता बनर्जी स्वयं दिलचस्पी लें।
उल्लेखनीय है पिछले साल ममता सरकार ने उद्योगपतियों से जब मुलाकात की थी तो राज्य में जीत का माहौल था, आम उद्योगपति उम्मीदें लगाए बैठे थे कि नई सरकार शांति स्थापित करने में मदद करेगी। लेकिन ऐसा करने में सरकार असफल रही है। कई बड़ी कंपनियां राज्य छोड़कर जाने का मन बना चुकी हैं और नई कंपनियां पूंजीनिवेश के लिए तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर मिलिटेंसी ने अपराधीकरण की शक्ल ग्रहण कर ली है। उल्लेखनीय है कि मिलिटेंसी और झूठ एकसाथ चलते हैं। मिलिटेंसी हमेशा झूठ का सहारा लेती है। राज्य में विगत कई सालों से इस क्षेत्र में एक नया फिनोमिना सामने आया है वह है मिलिटेंसी के नाम पर गुण्डई।
मिलिटेंसी की खूबी है कि वह हमेशा जन समस्याओं के बहाने सिर उठाती है। जनहितैषी तर्कशास्त्र ,बाहुबल और शस्त्र इसके प्रमुख उपकरण हैं। उद्योग जगत परेशान है कि हल्दिया पोर्ट ट्रस्ट की ताजा समस्या ने गुण्डई में रूपान्तरण कर लिया है। कई उद्योगपतियों ने कहा है कि मिलिटेंसी को ’सब सामान्य है’ के मुहावरे में बांधकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी साख को दांव पर लगा दिया है।
उल्लेखनीय है कि पहले वाम शासन में ट्रेड यूनियन मिलिटेसी के कारण पश्चिम को व्यापक स्तर महत्वपूर्ण उद्योगों से हाथ धोना पड़ा है। आम आदमी यह उम्मीद कर रहा था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस प्रवृत्ति को अपने शासन के दौरान पनपने नहीं देंगी। इस प्रसंग में कुछ मुख्य बातें हैं जो साफ दिखाई दे रही हैं। राज्य प्रशासन का दलतंत्र के रूप में विस्तार हुआ है। पापुलिज्म बनाए रखने के लिए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और बस्तियों के बाशिंदों का गुण्डावाहिनी के रूप में जमकर दुरूपयोग हो रहा है।
मिलिटेंसी जब भी सिर उठाती है तो कानून-व्यवस्था बनाए रखने वाली मशीनरी सबसे पहले पंक्चर हो जाती है है। आमतौर पर ट्रेड यूनियन मिलिटेंसी संबंधित उद्योग तक सीमित रहती है लेकिन मौजूदा दौर में यूनियन मिलिटेंसी ने अपराधीकरण की शक्ल अख्तियार कर ली है। राज्य का मौजूदा नेतृत्व खुलकर इस अपराधीकरण को संरक्षण दे रहा है। मसलन् किसी कंपनी ने मजदूरों के खिलाफ एक्शन लिया है तो मजदूर संगठनों को उसका एकजुट होकर प्रतिवाद करना चाहिए। लेकिन इस तरह का रास्ता न अपनाकर हल्दिया में गुण्डई का मार्ग पकडा गया। हल्दिया में घटना का आरंभ हुआ तब हुआ जब एचबीटी कार्गो कंपनी ने अपने यहां काम करने वाले 270 कर्मचारियों को सीधे नौकरी से निकाल दिया। इस प्रसंग में कंपनी का तर्क है कि उसने बंदरगाह के आधुनिकीकरण पर 200 करोड़ रूपये खर्च किए हैं और उसे इन कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं है,साथ यह भी कहाकि कंपनी ने मजदूरों से संबंधित कानूनों का पालन करते हुए ही इन मजदूरों को नौकरी से निकाला है। स्थानीय टीएमसी सांसद ने स्थानीय स्तर प्रतिवाद का नया तरीका अपनाया और पूरे इलाके में आतंक पैदा कर दिया। कंपनी के 3 अधिकारियों का पूरे परिवार के साथ अपहरण कर लिया, बंदरगाह पर काम पर जाने वाले मजदूरों को मारा-पीटा और आतंकित किया। उल्लेखनीय बात यह है कि सत्तारूण तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाले मजदूर संगठन इंटक ने कोई आंदोलन मजदूरों की छंटनी के खिलाफ संगठित नहीं किया बल्कि सीधे कंपनी के खिलाफ गुण्डई शुरू कर दी। उद्योग जगत चाहता है कि मजदूरों और कंपनियों के बीच के विवाद आपसी बातचीत से हल हों या कानूनीमंचों पर हल हों। बाहुबलियो के जरिए इस तरह की समस्याओं के समाधान तलाशने से बचा जाय। उद्योग जगत उम्मीद कर रहा है कि ममता बनर्जी 9 नवम्बर की बैठक में मिलिटेंसी की आलोचना करेंगी और कोशिश करेंगी कि उस बैठक के पहले हल्दिया विवाद के समाधान के लिए कोई मध्यममार्ग निकल आए।
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