-1-
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
कैसे फासिस्टी प्रभुओं की --
गला रहा है दाल ठाकरे!
अबे संभल जा, वो आ पहुंचा बाल ठाकरे !
सबने हां की, कौन ना करे !
छिप जान, मत तू उधर ताक रे!
शिव-सेना की वर्दी डाटे जमा रहा लय-ताल ठाकरे!
सभी डर गए, बजा रहा है गाल ठाकरे !
गूंज रही सह्यद्रि घाटियां, मचा रहा भूचाल ठाकरे!
मन ही मन कहते राजा जी; जिये भला सौ साल ठाकरे!
चुप है कवि, डरता है शायद, खींच नहीं ले खाल ठाकरे !
कौन नहीं फंसता है, देखें, बिछा चुका है जाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
बर्बरता की ढाल ठाकरे !
प्रजातंत्र के काल ठाकरे!
धन-पिशाच के इंगित पाकर ऊंचा करता भाल ठाकरे!
चला पूछने मुसोलिनी से अपने दिल का हाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
-----नागार्जुन (जनयुग, 7 जून 1970)
-2-
उद्धव ठाकरे को टीवी वालों ने जिस तरह हिन्दूरीति से अपने पिता का अंतिम संस्कार करते हुए लाइव प्रसारित किया है उससे टीवी प्रसारण की आचार संहिता के प्रचलित मानकों का सीधे उल्लंघन हुआ है।
उल्लेखनीय है रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी द्वारा हिन्दूरीति से किए गए अंतिम संस्कार के अविकल प्रसारण पर आपत्ति व्यक्त की थी।
उस प्रसारण को दूरदर्शन ने आधा घंटे तक सीधे दिखाया था और उसका सीधा असर सिखों के खिलाफ घृणा के रूप में सामने आया था। इस तथ्य की ओर रंगनाथ मिश्रा कमीशन की अप्रकाशित रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
हम मांग करते हैं कि अंतिम संस्कार के लाइव प्रसारण के खिलाफ निजी चैनल अपनी आत्मालोचना करें और भविष्य में इस तरह के प्रसारण से बचें। सब जानते हैं कि बाल ठाकरे सारी जिंदगी घृणा की राजनीति करते रहे हैं, कभी किसी के खिलाफ कभी किसी के खिलाफ। घृणा के नायक का महिमामंडन बेहद खतरनाक है और यह टीवी चैनलों की स्तरहीनता और नीतिहीनता की अभिव्यक्ति है।
-3-
कल शिवाजी मैदान में जिस तरह बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार किया गया उसने कई सवाल खड़े किए हैं। मैं नहीं जानता कि शिवाजी पार्क के अहाते में क्या कोई श्मशान है ? और यदि है तो कोई फेसबुक मित्र बताए,हमें शिवाजी मैदान के भूगोल का कोई ज्ञान नहीं है।
सवाल यह है कि शिवाजी मैदान को अंतिम संस्कार करने के लिए चिता बनाने की अनुमति देना क्या ठीक है ? हमारी सामान्य बुद्धि कहती है कि मैदान का श्मशान के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह कि बालठाकरे कभी किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहे, ऐसी स्थिति में भी क्या राजकीय सम्मान के साथ पुलिस की सलामी दी जा सकती है ?
-4-
जो नेता जिंदगीभर भारतीय राजसत्ता को तरह तरह से कोसते रहते हैं , नए रंग का झंडा फहराते रहते हैं ,वे अंत में राजसत्ता के तिरंगे में ही लिपटकर स्वर्ग जाना चाहते हैं । यह सीधे सत्ता के सामने समर्पण है ।
-5-
बाल ठाकरे ने साठ के दशक में अस्मिता की राजनीति की शुरूआत की और सारी ज़िंदगी उसके लिए लड़ते रहे।
अस्मिता की जंग में उन्होंने मराठी पहचान के सवाल को आक्रामक तेवर के साथ उठाया और इस क्रम में वाम और उदार राजनीति पर हमले किए। उन्होंने मराठी अस्मिता पर पहले काम किया बाद में 1992 में हिन्दू पहचान के सवालों को प्रमुखता के साथ उठाया ।
-6-
उल्लेखनीय है साठ का दशक सारे देश में अस्मिता की राजनीति के उभार का दौर है ।
-7-
नए दौर में फिर से 'हिन्दू हृदय सम्राट 'की खोज आरंभ हो गई है, बाल ठाकरे की मौत से यह जगह खाली हुई है । वैसे भी बाल ठाकरे स्वनियुक्त' हिन्दू हृदय सम्राट 'थे ।
इस काम में कारपोरेट हिन्दू मीडिया अभी से सक्रिय हो गया है। ठाकरे की मौत के बाद का टीवी कवरेज असल में उसी प्रयास का हिस्सा है।
-8-
बालठाकरे की विरासत के वारिस की जंग आरंभ हो गई है ।
-9-
बालठाकरे को महाराष्ट्र के किसानों में वैसी जनप्रियता नहीं मिली जैसी उनको मुंबई में मिली । यह इस बात का संकेत है कि वे मध्यवर्ग और निम्नमध्यवर्ग के जनप्रिय नेता थे ।
-10-
शवयात्रा में शामिल होने का अर्थ संबंधित व्यक्ति के विचारों से सहमत ह़ोना नहीं है।
-11-
बाल ठाकरे ने समानान्तर सत्ताकेन्द्र के रूप में मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में जिस तरह अपने को विकसित किया उसने उनके इर्दगिर्द बड़े पैमाने पर दादा राजनीति को नई बुलंदी दी।उन्होंने निजी बातचीत में उदार और राजनीति में कट्टरतावादी व्यक्तित्व का प्रदर्शन किया। यह एक तरह से सर्वसत्तावादी भारतीय मन है जिसको श्यामाप्रसाद मुखर्जी-अटलजी आदि से प्रेरणा लेकर गढ़ा गया।
-12-
बालठाकरे का व्यापक टीवी कवरेज कम से कम ठाकरे भक्तजनता के भावों का शमन करने में मदद कर रहा है। इसी अर्थ में टीवी भावों के नियंत्रण और नियमन में मदद करता है । राजकीय सम्मान और नेशनल कवरेज के साथ विदाई अंततः एक संस्कार है ।
-13-
बाल ठाकरे ने लोकल राजनीति के साथ अंधक्षेत्रीयतावाद और भावुकता को जोड़कर मराठी अस्मिता को प्रधान मुद्दा बनाया ।
वे राष्ट्रवाद के नए युग के नायक थे। वे अपने पिता के गुणों से भिन्न गुणों को राजनीति में लेकर आए । महाराष्ट्र में वे निर्विवाद नायक थे।
-14-
बाल ठाकरे ने अंधक्षेत्रीयतावाद का हिन्दू साम्प्रदायिकता में बड़े कौशल के साथ रूपान्तरण किया । बाल ठाकरे ने जो पैराडाइम शिफ्ट किया है उसका भविष्य अब इन दोनों से परे विकास की राजनीति में देख सकेंगे।
-15-
शिवसेना के शेर बाल ठाकरे के निधन के साथ शिवसेना की साम्प्रदायिक राजनीति के प्रथम चरण का अवसान हो गया है। बाल ठाकरे की मौत के साथ आक्रामक राजनीति का मैनस्ट्रीम राजनीति से अंत हो गया ।
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
कैसे फासिस्टी प्रभुओं की --
गला रहा है दाल ठाकरे!
अबे संभल जा, वो आ पहुंचा बाल ठाकरे !
सबने हां की, कौन ना करे !
छिप जान, मत तू उधर ताक रे!
शिव-सेना की वर्दी डाटे जमा रहा लय-ताल ठाकरे!
सभी डर गए, बजा रहा है गाल ठाकरे !
गूंज रही सह्यद्रि घाटियां, मचा रहा भूचाल ठाकरे!
मन ही मन कहते राजा जी; जिये भला सौ साल ठाकरे!
चुप है कवि, डरता है शायद, खींच नहीं ले खाल ठाकरे !
कौन नहीं फंसता है, देखें, बिछा चुका है जाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
बर्बरता की ढाल ठाकरे !
प्रजातंत्र के काल ठाकरे!
धन-पिशाच के इंगित पाकर ऊंचा करता भाल ठाकरे!
चला पूछने मुसोलिनी से अपने दिल का हाल ठाकरे !
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
-----नागार्जुन (जनयुग, 7 जून 1970)
-2-
उद्धव ठाकरे को टीवी वालों ने जिस तरह हिन्दूरीति से अपने पिता का अंतिम संस्कार करते हुए लाइव प्रसारित किया है उससे टीवी प्रसारण की आचार संहिता के प्रचलित मानकों का सीधे उल्लंघन हुआ है।
उल्लेखनीय है रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी द्वारा हिन्दूरीति से किए गए अंतिम संस्कार के अविकल प्रसारण पर आपत्ति व्यक्त की थी।
उस प्रसारण को दूरदर्शन ने आधा घंटे तक सीधे दिखाया था और उसका सीधा असर सिखों के खिलाफ घृणा के रूप में सामने आया था। इस तथ्य की ओर रंगनाथ मिश्रा कमीशन की अप्रकाशित रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
हम मांग करते हैं कि अंतिम संस्कार के लाइव प्रसारण के खिलाफ निजी चैनल अपनी आत्मालोचना करें और भविष्य में इस तरह के प्रसारण से बचें। सब जानते हैं कि बाल ठाकरे सारी जिंदगी घृणा की राजनीति करते रहे हैं, कभी किसी के खिलाफ कभी किसी के खिलाफ। घृणा के नायक का महिमामंडन बेहद खतरनाक है और यह टीवी चैनलों की स्तरहीनता और नीतिहीनता की अभिव्यक्ति है।
-3-
कल शिवाजी मैदान में जिस तरह बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार किया गया उसने कई सवाल खड़े किए हैं। मैं नहीं जानता कि शिवाजी पार्क के अहाते में क्या कोई श्मशान है ? और यदि है तो कोई फेसबुक मित्र बताए,हमें शिवाजी मैदान के भूगोल का कोई ज्ञान नहीं है।
सवाल यह है कि शिवाजी मैदान को अंतिम संस्कार करने के लिए चिता बनाने की अनुमति देना क्या ठीक है ? हमारी सामान्य बुद्धि कहती है कि मैदान का श्मशान के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह कि बालठाकरे कभी किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहे, ऐसी स्थिति में भी क्या राजकीय सम्मान के साथ पुलिस की सलामी दी जा सकती है ?
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जो नेता जिंदगीभर भारतीय राजसत्ता को तरह तरह से कोसते रहते हैं , नए रंग का झंडा फहराते रहते हैं ,वे अंत में राजसत्ता के तिरंगे में ही लिपटकर स्वर्ग जाना चाहते हैं । यह सीधे सत्ता के सामने समर्पण है ।
-5-
बाल ठाकरे ने साठ के दशक में अस्मिता की राजनीति की शुरूआत की और सारी ज़िंदगी उसके लिए लड़ते रहे।
अस्मिता की जंग में उन्होंने मराठी पहचान के सवाल को आक्रामक तेवर के साथ उठाया और इस क्रम में वाम और उदार राजनीति पर हमले किए। उन्होंने मराठी अस्मिता पर पहले काम किया बाद में 1992 में हिन्दू पहचान के सवालों को प्रमुखता के साथ उठाया ।
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उल्लेखनीय है साठ का दशक सारे देश में अस्मिता की राजनीति के उभार का दौर है ।
-7-
नए दौर में फिर से 'हिन्दू हृदय सम्राट 'की खोज आरंभ हो गई है, बाल ठाकरे की मौत से यह जगह खाली हुई है । वैसे भी बाल ठाकरे स्वनियुक्त' हिन्दू हृदय सम्राट 'थे ।
इस काम में कारपोरेट हिन्दू मीडिया अभी से सक्रिय हो गया है। ठाकरे की मौत के बाद का टीवी कवरेज असल में उसी प्रयास का हिस्सा है।
-8-
बालठाकरे की विरासत के वारिस की जंग आरंभ हो गई है ।
-9-
बालठाकरे को महाराष्ट्र के किसानों में वैसी जनप्रियता नहीं मिली जैसी उनको मुंबई में मिली । यह इस बात का संकेत है कि वे मध्यवर्ग और निम्नमध्यवर्ग के जनप्रिय नेता थे ।
-10-
शवयात्रा में शामिल होने का अर्थ संबंधित व्यक्ति के विचारों से सहमत ह़ोना नहीं है।
-11-
बाल ठाकरे ने समानान्तर सत्ताकेन्द्र के रूप में मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में जिस तरह अपने को विकसित किया उसने उनके इर्दगिर्द बड़े पैमाने पर दादा राजनीति को नई बुलंदी दी।उन्होंने निजी बातचीत में उदार और राजनीति में कट्टरतावादी व्यक्तित्व का प्रदर्शन किया। यह एक तरह से सर्वसत्तावादी भारतीय मन है जिसको श्यामाप्रसाद मुखर्जी-अटलजी आदि से प्रेरणा लेकर गढ़ा गया।
-12-
बालठाकरे का व्यापक टीवी कवरेज कम से कम ठाकरे भक्तजनता के भावों का शमन करने में मदद कर रहा है। इसी अर्थ में टीवी भावों के नियंत्रण और नियमन में मदद करता है । राजकीय सम्मान और नेशनल कवरेज के साथ विदाई अंततः एक संस्कार है ।
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बाल ठाकरे ने लोकल राजनीति के साथ अंधक्षेत्रीयतावाद और भावुकता को जोड़कर मराठी अस्मिता को प्रधान मुद्दा बनाया ।
वे राष्ट्रवाद के नए युग के नायक थे। वे अपने पिता के गुणों से भिन्न गुणों को राजनीति में लेकर आए । महाराष्ट्र में वे निर्विवाद नायक थे।
-14-
बाल ठाकरे ने अंधक्षेत्रीयतावाद का हिन्दू साम्प्रदायिकता में बड़े कौशल के साथ रूपान्तरण किया । बाल ठाकरे ने जो पैराडाइम शिफ्ट किया है उसका भविष्य अब इन दोनों से परे विकास की राजनीति में देख सकेंगे।
-15-
शिवसेना के शेर बाल ठाकरे के निधन के साथ शिवसेना की साम्प्रदायिक राजनीति के प्रथम चरण का अवसान हो गया है। बाल ठाकरे की मौत के साथ आक्रामक राजनीति का मैनस्ट्रीम राजनीति से अंत हो गया ।
He was true King who ed proved that king can rule the the hearts of people and on yours article is totally Rubbish shows yours lower mentality and proved that your so-called secular who write and promote all anti-Hindu activities but you loves and justified all Islamic Terrorism
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