मंगलवार, 11 नवंबर 2014

'भाईयों' का लोकतंत्र


         दलालों की भाषा एक होती है,उनकी कर्म संस्कृति भी एक जैसी होती है।उसमें थोड़ा भाषिक अंतर होता है। दलाल बनाना और दलाल पालना हुनरमंदों के वश का काम नहीं है!यह काम तो सिर्फ 'बड़ा भाई'(कारपोरेट घराने) ही कर सकता है! दलाल को तो बस 'बड़ा भाई' ही संभाल सकता है! 'भाई' यदि खुद दलाल हो तो फिर तो कहने ही क्या जी! यह तो सोने में सुहागा हो गया! कश्मीर के एक पृथकतावादी नेता ने कल बड़ी ही गरमजोशी के साथ भगवारत्न से 7नम्बर में भेंट की, भेंट के बाद घर से बाहर निकलकर मीडिया से कहा कि वे तो मुझे ''भाई जैसे लगे'', जाहिर है ,'भाई' को तो 'भाई' ही पहचानेगा! कश्मीरी पृथकतावादी यदि किसी भगवानेता को 'भाई'कहे तो यह राजनीतिक तौर पर करेक्ट बयान है! इस बयान को हमें राजनीतिविज्ञान की सही स्प्रिट में ही लेना चाहिए!

मजेदार बात यह है कि ऩए स्वच्छता अभियान के दौर में 'स्वच्छता के आदर्श नायक' (साम्प्रदायिक,पृथकतावादी और वैदिकजी) एक-दूसरे देश से 'भाई' की तरह मिल रहे हैं,स्वच्छ राजनीति का यह आदर्श है! इसबार कश्मीर में 'भगवा वैदिक'' की पाक में 'भाई' से हुई मुलाकात के फल मिलने की संभावनाएं हैं ! कश्मीर से सीधे दिल्ली आकर 'भाई' से 'भाई' मिल रहा है ! पाक में भारत का 'भाई' जाकर 'भाई' से मिल रहा है! 'भाईयों' यह मिलन विरल है ! यह विरल संयोग लोकतंत्र ने उपलब्ध कराया है! 'भाई' से 'भाई' मिल रहा है!ये मिलकर जनता के लोकतंत्र की बजाय 'भाईयों का लोकतंत्र' रच रहे हैं! दिलचस्प बात यह है 'भगवा भाई' ,पाक के 'भाई' और 'कश्मीरी पृथकतावादी भाई' के स्पांसर,आर्थिक मददगार या मालिक एक ही वर्ग के लोग हैं। इन तीनों 'भाईयों' के पास देशी कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों की दलाली करके खाने के अलावा कोई और काम नहीं है। इनकी आंखों का तारा(सामाजिक विभाजन) एक है! इनकी वैचारिक शैली एक है!



'भाईयों' का ऐसा सुखद मिलन इधर बार बार हो रहा है। 'भाई' मिलते हैं तो 'भाईचारा' खूब फलता-फूलता है, लोकतंत्र का ये खूब चर्वण करते हैं! लोकतंत्र को खाने में 'भाईयों' को मजा आता है। ' भाईयों के लोकतंत्र' का अगला पड़ाव कश्मीर है! 'भाईयों' की समूची फौज इसबार 'भगवा भाई' के साथ जाने की जुगत में है! यह 'भाईयों' का विरल प्रयोग है जो 'भगवा भाई' संपन्न करने जा रहा है!

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