मंगलवार, 25 नवंबर 2014

मिथ्या के संसार का मनुष्य

राजनीति से लेकर निजी जीवन के हर पहलु में अधिकतर लोग मिथ्या का इस्तेमाल करते हैं,मिथ्या असल में प्रौपेगैंडा है,वह बबंडर है,मिथ्या इस युग का सबसे गतिशील तत्व है| मिथ्या में मिथ बनाने और मिथों के दुरुपयोग की अपार शक्ति है,मिथ्या न हो तो जीवन नीरस हो जाता है| मिथ्या के आधार पर ही कल्पना और वायदे के पहाड़ खड़े किए जाते हैं|
लोकतंत्र ,बाजार और मीडिया तो मिथ्या के बिना चल ही नहीं सकता,परिणामत: मिथ्या में रमण करते हुए मनुष्य सत्य से विमुख हुआ है ,अनेक मामलों में सत्य से नफरत करने लगा है| समाज में एकवर्ग है जो मिथ्या को स्वाभाविक मानता है| सामान्यत: मिथ्या को जीवनशैली के रुप में इस्तेमाल करता है| इसके कारण ये लोग मेनीपुलेशन के कौशल में भी माहिर हो गए हैं| यही वजह है कि हर स्तर पर मेनीपुलेशन को जायज मानने लगे हैं|इसके परिणामस्वरुप राजनीति में मिथ्या को सच और सच को मिथ्या मानने लगे हैं| सरकारी संसाधनों के शोषण और लूट को विकास कहने लगे हैं| लोकतंत्र में शोषण और असमानता है लेकिन प्रचार का असर है कि हमें चीजों को उलटा देखते हैं|
झूठ बोलने और झूठा जीवन जीने की कला में हमारा मध्यवर्ग तो गुरु है| अध्ययन-अध्यापन से लेकर राजनीति तक सबमें न्यूनतम काम करते हैं,कामचलाऊ ढंग से काम करते हैं लेकिन दावा बहुत काम का करते हैं| न्यूनतम काम क्यों करते हैं और अधिकतम काम क्यों नहीं करते हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं है|
झूठ को लेकर निष्ठा इतनी गहरी है कि सत्य के पैमानों पर बातें करना अप्रासंगिक हो गया है| सबसे पहले किस सामाजिक संरचना में झूठ दाखिल हुई यह कहना संभव नहीं है लेकिन मानव सभ्यता के विकास के क्र में ईश्वर सबसे पहली झूठ है| ईश्वर का तंत्र जितना प्रचारित - प्रसारित हुआ झूठ का तंत्र भी उतना प्रसारित हुआ है| ईश्वर की वैधता ने झूठ को अपरिहार्य और अनिवार्य बना दिया है|
झूठ की दूसरी बडी संरचना है कला,कलाओं के सृजन का जितना बेहतरीन ढांचा बनता गया झूठ के कलात्मक आयाम उतने ही बड़ी संख्या में विकसित होते गए | कलाओं में यथार्थ का तत्व तो बहुत बाद में दाखिल हुआ है|
झूठ के वैचारिक आयामों को निर्मित करने में दर्शन की बडी भूमिका है| दर्शन का जन्म ही इसलिए हुआ कि जिससे झूठ को वैध और स्वीकार्य बनाया जा सके|
मानव सभ्यता के विकास के काफी लंबे लमय के बाद वास्तववादी दर्शन और कलारुप आए जिनके जरिए झूठ को पहलीबार चुनौती मिली | लेकिन सच यही है कि हमें यथार्थ कम निर्मित यथार्थ ज्यादा अपील करता है | झूठ या कृत्रिमता अपील करती है | वास्तव की बजाय विभ्रम अपील करते हैं|

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