राजनीति से लेकर निजी जीवन के हर पहलु में अधिकतर लोग मिथ्या का इस्तेमाल करते हैं,मिथ्या असल में प्रौपेगैंडा है,वह बबंडर है,मिथ्या इस युग का सबसे गतिशील तत्व है| मिथ्या में मिथ बनाने और मिथों के दुरुपयोग की अपार शक्ति है,मिथ्या न हो तो जीवन नीरस हो जाता है| मिथ्या के आधार पर ही कल्पना और वायदे के पहाड़ खड़े किए जाते हैं|
लोकतंत्र ,बाजार और मीडिया तो मिथ्या के बिना चल ही नहीं सकता,परिणामत: मिथ्या में रमण करते हुए मनुष्य सत्य से विमुख हुआ है ,अनेक मामलों में सत्य से नफरत करने लगा है| समाज में एकवर्ग है जो मिथ्या को स्वाभाविक मानता है| सामान्यत: मिथ्या को जीवनशैली के रुप में इस्तेमाल करता है| इसके कारण ये लोग मेनीपुलेशन के कौशल में भी माहिर हो गए हैं| यही वजह है कि हर स्तर पर मेनीपुलेशन को जायज मानने लगे हैं|इसके परिणामस्वरुप राजनीति में मिथ्या को सच और सच को मिथ्या मानने लगे हैं| सरकारी संसाधनों के शोषण और लूट को विकास कहने लगे हैं| लोकतंत्र में शोषण और असमानता है लेकिन प्रचार का असर है कि हमें चीजों को उलटा देखते हैं|
झूठ बोलने और झूठा जीवन जीने की कला में हमारा मध्यवर्ग तो गुरु है| अध्ययन-अध्यापन से लेकर राजनीति तक सबमें न्यूनतम काम करते हैं,कामचलाऊ ढंग से काम करते हैं लेकिन दावा बहुत काम का करते हैं| न्यूनतम काम क्यों करते हैं और अधिकतम काम क्यों नहीं करते हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं है|
झूठ को लेकर निष्ठा इतनी गहरी है कि सत्य के पैमानों पर बातें करना अप्रासंगिक हो गया है| सबसे पहले किस सामाजिक संरचना में झूठ दाखिल हुई यह कहना संभव नहीं है लेकिन मानव सभ्यता के विकास के क्र में ईश्वर सबसे पहली झूठ है| ईश्वर का तंत्र जितना प्रचारित - प्रसारित हुआ झूठ का तंत्र भी उतना प्रसारित हुआ है| ईश्वर की वैधता ने झूठ को अपरिहार्य और अनिवार्य बना दिया है|
झूठ की दूसरी बडी संरचना है कला,कलाओं के सृजन का जितना बेहतरीन ढांचा बनता गया झूठ के कलात्मक आयाम उतने ही बड़ी संख्या में विकसित होते गए | कलाओं में यथार्थ का तत्व तो बहुत बाद में दाखिल हुआ है|
झूठ के वैचारिक आयामों को निर्मित करने में दर्शन की बडी भूमिका है| दर्शन का जन्म ही इसलिए हुआ कि जिससे झूठ को वैध और स्वीकार्य बनाया जा सके|
मानव सभ्यता के विकास के काफी लंबे लमय के बाद वास्तववादी दर्शन और कलारुप आए जिनके जरिए झूठ को पहलीबार चुनौती मिली | लेकिन सच यही है कि हमें यथार्थ कम निर्मित यथार्थ ज्यादा अपील करता है | झूठ या कृत्रिमता अपील करती है | वास्तव की बजाय विभ्रम अपील करते हैं|
लोकतंत्र ,बाजार और मीडिया तो मिथ्या के बिना चल ही नहीं सकता,परिणामत: मिथ्या में रमण करते हुए मनुष्य सत्य से विमुख हुआ है ,अनेक मामलों में सत्य से नफरत करने लगा है| समाज में एकवर्ग है जो मिथ्या को स्वाभाविक मानता है| सामान्यत: मिथ्या को जीवनशैली के रुप में इस्तेमाल करता है| इसके कारण ये लोग मेनीपुलेशन के कौशल में भी माहिर हो गए हैं| यही वजह है कि हर स्तर पर मेनीपुलेशन को जायज मानने लगे हैं|इसके परिणामस्वरुप राजनीति में मिथ्या को सच और सच को मिथ्या मानने लगे हैं| सरकारी संसाधनों के शोषण और लूट को विकास कहने लगे हैं| लोकतंत्र में शोषण और असमानता है लेकिन प्रचार का असर है कि हमें चीजों को उलटा देखते हैं|
झूठ बोलने और झूठा जीवन जीने की कला में हमारा मध्यवर्ग तो गुरु है| अध्ययन-अध्यापन से लेकर राजनीति तक सबमें न्यूनतम काम करते हैं,कामचलाऊ ढंग से काम करते हैं लेकिन दावा बहुत काम का करते हैं| न्यूनतम काम क्यों करते हैं और अधिकतम काम क्यों नहीं करते हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं है|
झूठ को लेकर निष्ठा इतनी गहरी है कि सत्य के पैमानों पर बातें करना अप्रासंगिक हो गया है| सबसे पहले किस सामाजिक संरचना में झूठ दाखिल हुई यह कहना संभव नहीं है लेकिन मानव सभ्यता के विकास के क्र में ईश्वर सबसे पहली झूठ है| ईश्वर का तंत्र जितना प्रचारित - प्रसारित हुआ झूठ का तंत्र भी उतना प्रसारित हुआ है| ईश्वर की वैधता ने झूठ को अपरिहार्य और अनिवार्य बना दिया है|
झूठ की दूसरी बडी संरचना है कला,कलाओं के सृजन का जितना बेहतरीन ढांचा बनता गया झूठ के कलात्मक आयाम उतने ही बड़ी संख्या में विकसित होते गए | कलाओं में यथार्थ का तत्व तो बहुत बाद में दाखिल हुआ है|
झूठ के वैचारिक आयामों को निर्मित करने में दर्शन की बडी भूमिका है| दर्शन का जन्म ही इसलिए हुआ कि जिससे झूठ को वैध और स्वीकार्य बनाया जा सके|
मानव सभ्यता के विकास के काफी लंबे लमय के बाद वास्तववादी दर्शन और कलारुप आए जिनके जरिए झूठ को पहलीबार चुनौती मिली | लेकिन सच यही है कि हमें यथार्थ कम निर्मित यथार्थ ज्यादा अपील करता है | झूठ या कृत्रिमता अपील करती है | वास्तव की बजाय विभ्रम अपील करते हैं|
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