मंगलवार, 4 नवंबर 2014

इंटरनेट और सामाजिक परिवर्तन के आयाम

      
          संचार तकनीक बहुरंगी होती है।वह कभी एकायामी नहीं होती।उसका संस्कृति ,राजनीति और अर्थव्यवस्था से गहरा सम्बन्ध भी होता है। वह महज कम्युनिकेशन का उपकरण मात्र नहीं है। बल्कि वह तो समाज की धुरी है। सामाजिक अध्ययन किया जाता है वैसे ही कम्युनिकेशन का भी अध्ययन किया जाना चाहिए। समाज कैसा है और कैसा होगा,इन दोनों सवालों को जानने के लिए उत्पादन सम्बन्धों और कम्युनिकेशन तकनीक की अवस्था का संयुक्त रुप से अध्ययन किया जाना चाहिए। प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था में लंबे समय से कम्युनिकेशन के एकाधिक तकनीकी रुप सक्रिय हैं। इनमें वह तकनीकी रुप खोजना चाहिए जो प्रभुत्वशाली हो।प्रभुत्वशाली तकनीकी रुप की पहचान संचार की गति पर आधारित है। संचार की गति के नजरिए से देखें तो आज इंटरनेट
तीव्रगामी संचार माध्यम है। यह माध्यम है और तकनीक भी है।यह ऐसा माध्यम है जिसने अपने पूर्ववर्ती सभी माध्यमों का अपने अंदर समाहार कर लिया है।इसका तकनीकी आधार है उपग्रह संचारप्रणाली और कम्प्यूटर।

कम्प्यूटर और इंटरनेट के आने के बाद कम्युनिकेशन में मूलगामी बदलाव आया है।राजनीति से लेकर संस्कृति तक सब क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन घटित हुए हैं।इसकी शक्ति और स्पीड पर सारी दुनिया मुग्ध है।लेकिन दूसरी ओर लोकतंत्र,लोकतांत्रिक प्रक्रिया और लोकतांत्रिक संस्थानों को इस तकनीक ने बहुत तेजी से क्षतिग्रस्त किया है। इंटरनेट और कम्प्यूटर की आर्थिक सफलता पर हम मुग्ध हैं लेकिन इसकी अन्य भूमिकाओं को लेकर विभ्रम में जी रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी खासकर दैनंदिन अभिव्यक्ति के रुपों को लेकर खुश हैं लेकिन कारपोरेट घरानों की भूमिका की अनदेखी करते रहे हैं। राजनीतिक अर्थशास्त्र के आधार पर इंटरनेट के अधिकांश मूल्याँकन असफल साबित हुए हैं । वे यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि पूंजीवाद आखिरकार किस तरह समाज को बना रहा है और पूंजीवाद अपने चरित्र का किस तरह गठन कर रहा है । साथ ही इंटरनेट को घर घर में किस तरह घरेलू मीडियम के रूप में पहुँचाया जा रहा है।इंटरनेट के " फ्लो ने इस कदर प्रभावित किया है कि हम भूल ही गए हैं कि पूंजीवाद अपनी हजम कर जाने की प्रवृत्ति के कारण किस तरह समाज में वर्चस्व बनाने का काम कर रहा है । पूंजीवाद के पक्ष-विपक्ष में बोलने वाले दोनों ही पक्ष यह नहीं समझ पा रहे हैं कि हमारे इंटरनेट हमारे "समय "को किस तरह प्रभावित कर रहा है ? खासकर राजनीति ,समाज की प्रकृति और अन्य चीज़ों को किस तरह प्रभावित कर रहा है । मुनाफे की मंशा, व्यावसायिकता , पब्लिक रिलेशन, मार्केटिंग आदि कारपोरेट पूंजीवाद को परिभाषित करने वाले तत्व हैं । ये वे बुनियादी क्षेत्र हैं जिनके आधार पर इंटरनेट को देखा जाना चाहिए । इन्हीं आधारों पर इंटरनेट के विकास का अध्ययन चाहिए और वह इन्हीं आधारों पर विकसित होगा ।मैकचेनी ने लिखा है तकनीक को नियंत्रण के बाहर बताने वाले लोग अब व्यावसायिकता को भी नियंत्रण के बाहर बता रहे हैं ।

माध्यम विशेषज्ञ मैकचेनी के अनुसार इंटरनेट या बृहत्तर डिजिटल क्रांति का निर्धारित तत्व तकनीक मात्र नहीं है । बल्कि हमें देखना चाहिए कि तकनीक को किस शक्ल में लाया जाता है और उसके आने से समाज को किस तरह की शक्ल मिल रही है । इंटरनेट आने के बाद अमेरिका के कारपोरेट घरानों के पास अकूत राजनीतिक शक्ति संचित हो गयी है और वे लोकतंत्र के सिद्धान्तों का उल्लंघन करते रहते हैं । यह संचार नीति अपने असली रुप में निर्माता के रुप में नज़र आती है । दूरसंचार और इंटरनेट के क्षेत्र में बड़ी कंपनियां इंटरनेट व्यावसायिकता के ज़रिए अहर्निश मानवीय स्वभाव को निशाना बना रही हैं। लोगों की सूचनाएँ एकत्रित करना , उनका मुनाफे और विज्ञापन के लिए इस्तेमाल करना , निजी डाटा का दुरुपयोग करना और लोगों को विज्ञापनों के ज़रिए निशाना बनाना , निगरानी करना और प्राइवेसी का उल्लंघन करना आम बात हो गयी है । अमेरिकी राज्य अपने सैन्य हितों और "राष्ट्रीय सुरक्षा" के नाम पर दुरूपयोग करता रहा है ।

कारपोरेट घरानों ने मीडिया में विगत 25सालों में खुलेपन और बहुलतावाद को सीमित करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है । उनके अस्तित्व का दारोमदार मौजूदा व्यवस्था को और भी बंद या क्लोज सिस्टम में तब्दील करने पर है । वे जनता के लिए कम से कम विकल्प खुले रखना चाहते हैं । वे इंटरनेट यूजर की राज्य के ज़रिए निगरानी रखना चाहते हैं और व्यावसायिकता का बांध खोल देना चाहते हैं । आज इंटरनेट को मीडिया का सरताज कहते हैं । उसके ज़रिए उपभोक्ता की शक्ति और दांत काटी प्रतिस्पर्धा की बातें की जा रही हैं । आर्थिक विकास के इतिहास में आज यह माध्यम इजारेदारियों के विकास का सबसे बड़ा माध्यम है । डिजिटल तकनीक तेज़ी से नीचे तक जा रही है । वह उन क्षेत्रों में भी पैठ बना रही है जहाँ पर परंपरागत तकनीक घुस नहीं पायी थी । मैकचेनी ने इसे " किलर एपलीकेशन" की संज्ञा दी है । नई डिजिटल तकनीक प्रतिस्पर्धा के युग से निकलकर इजारेदाराना गति से अपना विकास कर रही है । यह सच है कि इंटरनेट की अनेक सफल फ़र्में हैं । इनका काम करने का तरीका पुराने किस्म के पूंजीवाद की याद ताज़ा करता है । सिस्टम के रुप में ये फ़र्में जो शक्ल बना रही हैं उसको समझने की ज़रूरत है । वे प्राइवेसी को नहीं मानतीं,व्यावसायिकता पर जोर देती हैं, कर अदा करने से परहेज करती हैं, टैक्सचोरी करती हैं । तीसरी दुनिया के देशों में कम पगार पर काम कराती हैं । इन सब बातों को हम बहुत ही जल्दी भूल जाते हैं । वे अपने सिस्टम के लिए खास तरीके से लोग तैयार करते हैं जिससे वे अपने कर्मचारियों के मूल्य और मनोदशा बनाने में सफल हो जाते हैं । इंटरनेट की प्रकृति पूंजी संजय की मानसिकता से बंधी है । इंटरनेट आने के बाद खुलेपन और पारदर्शिता का बंद और मुनाफाखोरी की सीमित सूचना व्यवस्था के बीच सीधे टकराव पैदा हुआ है । इंटरनेट का अपना आंतरिक तर्क है जो डिजिटल तकनीक की लोकतांत्रिक क्षमताओं पर निर्भर है। इंटरनेट पर व्यापक सार्वजनिक स्पेस और वातावरण है जो वस्तु विनिमय के संसार से बाहर ले जाता है । लेकिन निजी स्पेस को और भी क्लोज या बंद बनाता है । इसकी प्राथमिकताएं इजारेदाराना बाजार की हैं । इंटरनेट लगातार गैर- व्यावसायिक साइबर स्पेस को पैदा कर रहा है इसके बावजूद यह गैर - व्यावसायिक स्पेस हाशिए पर है।इंटरनेट को यदि लोकतंत्र का माध्यम बनना है तो उसे असमानता , इजारेदारी, भ्रष्टाचार , अ- राजनातिकरण और ठहराव की ताकतों के बढ़ाव को रोकने का काम करना चाहिए ।

डिजिटल तकनीक आज शिखर पर है । इसके कारण समाज क्या पैदा करता है और क्या पैदा नहीं करता , इसके कारकों को आसानी से देखा जा सकता है । मैकचेनी का मानना है इंटरनेट सार्वजनिक वस्तु है और यह सामाजिक विकास के लिए आदर्श माध्यम है । यह अभाव को ख़त्म करता है और उसे लोकतंत्र के हवाले करता है । नई तकनीक इससे भी आगे बढ़कर उत्पादन की प्रकृति मूलगामी तौर पर बदल रही है । आज चीज़ों के निर्माण में कम लागत आती है और ज्यादा सक्षम चीजें बन रही हैं ।समाज में विकेन्द्रीकृत उत्पादन और वातावरण की अनुगूंज देख सकते हैं। । मैकचेनी के अनुसार 80 और 90 के दशक में जब इंटरनेट की शुरुआत हुई थी तब लोगों को लगा कि यह गैर व्यावसायिक अभिव्यक्ति का समुद्र है । वहाँ आम आदमी जाकर समानता के आधार पर अपने को सबल बनाएगा । आर्थिक और राजनीतिक तौर पर ताकतवर महसूस करेगा । प्रौपेगैण्डा कर सकता है उसके ऊपर कोई निगरानी नहीं होगी । यही इंटरनेट का लोकतांत्रिक विजन है । लेकिन व्यवहार में देखा गया कि इंटरनेट आने के बाद बड़े पैमाने पर इजारेदारियां बढ़ी हैं । पूंजी का केन्द्रीकरण बढ़ा है । गूगल,अमाजा़न,एपल,फेसबुक, माइक्रोसाफ्ट आदि कंपनियां सारी दुनिया में वर्चस्व बनाए हुए हैं । धीरे धीरे इनके बीच में महाद्वीप और देश की सीमाएँ भी तय हो जाएंगी । विभिन्न वस्तुओं के पेटेंट को जिस तरह से इन कंपनियों ने अपने नाम कर लिया है उसके कारण किसी नए खिलाड़ी का इंटरनेट खेल में शामिल होना मुश्किल हो गया है ।

डिजिटल क्रांति सूचना और उसकी व्यापक शेयरिंग पर टिकी है । सूचनाओं को इस दौर में जितना शेयर किया गया पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर सूचनाएँ शेयर नहीं की गयीं । यह "सूचना बेचैनी" है। " सूचना बेचैनी" अति सूचना के कारण पैदा हुई है । डिजिटल में लाखों किताबें रोज़ छप रही हैं । अकेले अमेरिका में ही सैंकडों पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । इंटरनेट के सारी दुनिया में 1995 में 10 मिलियन यूजर थे । सन् 2011 में इनकी संख्या दो विलियन हो गयी । सन् 2020 तक यह संख्या बढ़कर तीन विलियन हो जाएगी । अफ्रीका में मोबाइल फोन के विकास की गति सन् 2000 में दो प्रतिशत थी जो सन्2009 में बढ़कर 28 फीसदी हो गयी है । यह उम्मीद की जा रही है कि 2013 के अंत तक 70 फीसदी जनता के पास मोबाइल पहुँच जाने की उम्मीद है । IMS के शोध के अनुसार मौटेतौर 22 विलियन डिवाइस इंटरनेट और ऑनलाइन कनेक्ट हैं । सन् 2012 तक विश्व की तीन चौथाई आबादी मोबाइल से कनेक्ट हो जाएगी । सन् 2012 की विश्व बैंक रिपोर्ट में कहा कि मनुष्यों पर यह सबसे बड़े प्रभाव की ख़बर है । मैकचेनी के अनुसार इंटरनेट का विकास विगत 200 सालों के इलैक्ट्रोनिक कम्युनिकेशन के शोध का परिणाम है । वेन स्कॉट के अनुसार यह त्रिस्तरीय पैराडाइम शिफ्ट है । निजी संचार , मासमीडिया और बाज़ार सूचना को नई सूचना प्रणाली में समायोजित करके पेश किया गया है इससे इन तीनों पैराडाइम का अंतर ख़त्म हो गया है । मैकचेनी का मानना है आज इंटरनेट हर उस चीज़ को अपना गुलाम बना रहा है और रुपान्तरित कर रहा है जो उसके रास्ते में आ रही है । वस्तुओं और संचार को इंटरनेट अपने उपनिवेश में शामिल करता जा रहा है। इससे भी बड़ी बात यह कि समूची मानव जाति को स्पीड के साथ एक- दूसरे से जोड रहा है । इसके कारण सभी किस्म के कम्युनिकेशन को क्षणभर में पा सकते हैं । इसके कारण समूची मानवीय संस्कृति आपकी पकड में आ गयी है । आज वह मानव सभ्यता का आमुख है और उसके ज़रिए ही वस्तुएँ और सूचनाएँ पहुँच रही हैं । यह ऐसी मशीन है जिसने हमारी मनुष्य की समझ ही बदलकर रख दी है । आज मनुष्य को समझना और भी मुश्किल हो गया है । इंटरनेट ने हमारी ज़िंदगी के हर पहलू को प्रभावित किया है । आज विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे जीवन को प्रभावित कर रही हैं और इनके कारण विकास की नई नीतियां सामने आ रही हैं ।

इंटरनेट के प्रभाव का यह परिणाम है कि अब हम यह नहीं जानते कि भविष्य में कैसा मनुष्य जन्म लेगा । इंटरनेट के बारे में उपलब्ध सामग्री का विवेचन करते हुए रॉबिन मनसैल ने लिखा कि इंटरनेट सामग्री मूलत: दो कोटि में आती है ,पहली कोटि उस साहित्य की है जो उत्सवधर्मी है और इंटरनेट को महिमामंडित करता है दूसरी कोटि में वह साहित्य आता है जो पलायनवादी है ,ये लोग इंटरनेट की किसी भी किस्म की सकारात्मक भूमिका नहीं देखते। इंटरनेट अध्ययन के क्षेत्र में ये दोनों कोटियां खूब फल फूल रही हैं । हम यहां इंटरनेट के महिमामंडन करने वालों के नजरिए तक सीमित रखेंगे। मैकचेनी ने लिखा मैं इन दोनों कोटियों से प्रभावित हूं और दोनों कोटियाँ संतोषजनक समाधान नहीं देतीं । ये दोनों कोटियाँ बंद गली में ले जाती हैं । इन कोटियों में विभाजन करने वाली कोई बर्लिन की दीवार नहीं है । बल्कि यह दो किस्म के मानसिक गठन के लोगों का विवेचन है ।जेम्स कुरेन ने " मिसअंडरस्टेंडिंग इंटरनेट "( 2012) में लिखा हमें बताया गया इंटरनेट क्रांतिकारी परिवर्तनों का वाहक है । वह व्यापार को संगठित करेगा । समृद्धि लाएगा । वह नए युग के सांस्कृतिक लोकतंत्र का जनक है । यह भी कहा गया पुराना मीडिया ख़त्म हो जाएगा । वह लोकतंत्र को नया जीवन देगा । ई गवर्नेंस के ज़रिए पारदर्शिता बढ़ेगी । कमज़ोर और हाशिए के लोग ताकतवर बनेंगे । ऑटोक्रेट धराशायी होंगे । शक्ति संतुलन बदलेगा । इंटरनेट के कारण दुनिया छोटी हो जाएगी और दो देशों में आपसी संवाद बढ़ेगा । दुनिया में एक दूसरे के प्रति समझदारी बढ़ेगी । एक वाक्य में कहें तो इंटरनेट अबाधित शक्ति है । यह कहा गया कि प्रिंट और बारुद की तरह इंटरनेट अपरिवर्तनीय शक्ति है जो समूचे समाज को स्थायी और अपरिवर्तनीय तौर पर बदल देगा । यह भी कहा गया कि इंटरनेट के द्वारा संसार को बेहतर रुप में बदल दिया जाएगा । इसके बाद संसार को पहचानना मुश्किल होगा । "इंटरनेट केन्द्रित" विश्वासों के कारण उसे सभी तकनीकों का मूलाधार घोषित कर दिया गया । उसे सभी एजेंसियों का आधार बताया गया । जबकि मनसेल के अनुसार डिजिटल तकनीक की खोज और इंटरनेट पर वर्चुअल स्पेस के उदय ने एक किस्म की रहस्यात्मक गुणवत्ता को जन्म दिया है। इस बीच में कईबार मंदी आई लेकिन इंटरनेट और सूचना उद्योग इस संकट से निकलते गए । क्ले सिर्की ने"कागनेटिव सरप्लस" (2010) में लिखा आज जिस तरह की शिरकत नज़र आती है यह उसका छोटा उदाहरण है और यह चारों ओर फैलेगा । यही चीज़ हमारी संस्कृति का आधार हो जाएगी।समस्या यह है कि हमारी संस्कृति कैसी हो । युवा लोग मानते हैं कि नेटमीडिया तो उपभोग, प्रस्तुति, और शेयरिंग का काम करता है । साथ ही वह सबके लिए खुला है । मानवता के लिए लिखने का अर्थ है विश्व के लिए फ्री टाइम को संसाधन बनाना । नए किस्म की शिरकत और शेयरिंग ही इस नए किस्म के संसाधन की विशेषता है। इससे हमारा समाज मूलगामी तौर पर बदलेगा । यही "कागनेटिव सरप्लस "है जो हमारे जीवन को बदलेगा ।हेनरी जैनकिंस ने लिखा, इंटरनेट पर लेखन मशरूम की तरह आ रहा है । यह "सामूहिक बौद्धिकता " की निशानी है । क्योंकि इंटरनेट पर आप अपने संसाधनों एवं कौशल को काम पर लगाते हैं तो उसे सामूहिक बौद्धिकता में रुपान्तरित करते हैं ।मिशेल नेलशेन (फिजिसिस्ट और क्वांटम कम्प्यूटर वैज्ञानिक ) ने "री इनवेंटिंग डिस्कवरी"( 2012) में लिखा इंटरनेट ने जन सहभागिता को संभव करके विज्ञान में कॉगनेटिव वैविध्यगत मूलगामी परिवर्तन किए हैं । ऑनलाइन उपकरणों की उपलब्धता के कारण वैज्ञानिकों की खोजों का रूप ही बदल दिया है । इसके कारण विज्ञान और समाज का संबंध बुनियादी तौर पर बदल गया है । यहाँ पर असंख्य लोगों के शिरकत करने की संभावनाएं हैं और असंख्य लोग शिरकत कर रहे हैं । ऑनलाइन सहभागिता के कारण एकदिन ऐसा भी आएगा कि नोबुल पुरस्कार सामूहिक तौर पर काम करने वाले एमेच्योर वैज्ञानिकों के समूह को मिलेगा । इंटरनेट से सिर्फ़ व्यापार ही नहीं होगा बल्कि अब हर चीज़ का पेटेंट कराने की ज़रूरत होगी और यह भी पता चलेगा कि ज्ञान को कैसे निर्मित किया जाता है । इस प्रक्रिया को पलटा नहीं जा सकता । इंटरनेट आने के बाद मानवीय प्रकृति में बुनियादी बदलाव आया है । हम बेहतरी की ओर बढ़े हैं । चारों ओर नेट पर एक दूसरे से सहयोग करके लोग काम कर रहे हैं । सहभागिता से काम कर रहे हैं । ईमानदारी से काम कर रहे हैं , सही दिशा में काम कर रहे हैं । उदार व्यवहार कर रहे हैं । समूहों में मिलकर काम कर रहे हैं । सही बातों के लिए सहयोग कर रहे हैं । सभ्यता और ममता के साथ पेश आ रहे हैं । विकीपीडिया जैसे ओपन सोर्स मंच खुले हैं ।



मैकचेनी ने लिखा है एक ज़माना था जब सुस्टेंस जैसे लोग कहते थे कि इंटरनेट के कारण लोग असामाजिक हो रहे हैं ।जनता से कट रहे हैं । लेकिन 2006 में सुस्टेन्स ने ही इंफोटोपिया में लिखा कि मनुष्य को इंटरनेट से संचित ज्ञान मिल रहा है ।विकीपीडिया के आने के साथ हमने सूचना की आक्रामकता को मानना आरंभ कर दिया है । उसके प्रति सहिष्णु बने हैं । परा-राष्ट्रीय , परा-भाषी संबंध बने हैं । निज के स्वार्थ और सामाजिक स्वार्थ की पूर्ति के मामले में संतोष मिला है । जैफ जरविस ने इंटरनेट के सार्वजनिक पहलू पर रोशनी डालते हुए लिखा ,"इंटरनेट आने के बाद अभूतपूर्व सार्वजनिकता का उदय हुआ है । यह पब्लिकनेस युगान्तरकारी है ,फलत : पूरी तरह डिसरप्टिव है । इस पब्लिकनेस ने उन संस्थानों को चुनौती दी है जो सूचना और दर्शकों को नियंत्रित करते थे । पब्लिकनेस एक तरह से उन संस्थानों की कीमत पर सशक्तिकरण हासिल करने का प्रयास है ।तानाशाह,राजनेता , मीडिया मुग़ल बताया करते थे कि हम क्या सोचें और क्या न सोचें, लेकिन अब इन लोगों का ज़माना लद गया । आज हमारा समाज वास्तव अर्थों में सार्वजनिक समाज बना है । राजनेता सुनने को मजबूर हैं कि इंटरनेट पर क्या कहा जा रहा है या जनता क्या कह रही है । राजनेताओं को जनता का सम्मान करने की , व्यक्ति के तौर पर सम्मान करने की आदत डालनी होगी । क्योंकि समूह के तौर पर पब्लिक के तौर पर जो शक्ति हासिल की है ,यह उसका सम्मान है । इंटरनेट आने के बाद लोकतांत्रिक शक्तियों की ताकत में इजाफा हुआ है । इंटरनेट तो लोकतंत्र की शक्ति है । यह सूचना की इजारेदारी और केन्द्रीकृत नियंत्रण का अंत है " सोशलमीडिया एंड टैक्नोलाजी " में पामेला लुंड ने लिखा " यह माध्यम पहले की तुलना में और भी ज्यादा शक्ति देता है, मनुष्य को इतनी शक्ति पहले कभी नहीं मिली ।" जरविस ने लिखा है कि "इस माध्यम के खिलाफ़ प्रतिरोध निरर्थक है "











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