संघ का नया नारा है 'क्लिक करो और गप करो'', यह मूलतः इमेज अपहरण और असभ्यता का नारा है। कैमरा इसकी धुरी है। इसके तहत धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्ष नेताओं को हड़पने के सघन प्रयास हो रहे हैं। संघवालों की मुश्किल यह है कि वे धर्मनिरपेक्षता पर हमला करते -करते थक गए हैं!मुसलमानों पर हमले करते-करते थक गए हैं ! अब वे उन क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ से उनके खिलाफ वैचारिक प्रतिवाद आता रहा है। वे उन तमाम धर्मनिरपेक्ष नेताओं को 'अपना' बनाने में लगे हैं जिनके नजरिए और आचरण से उनका तीन-तेरह का रिश्ता है।
संघ की 'क्लिक करो और गप करो''मुहिम में सीखने-सिखाने ,मूल्यांकन, विचार-विमर्श का कोई काम नहीं हो रहा,सिर्फ मीडिया इवेंट बनाने,मूर्तियाँ लगाने, शिलान्यास करने और मीडिया बाइट्स देने पर जोर है। उनके अनुसार 'क्लिक करो और गप करो'' मुहिम का लक्ष्य है कैमरे में धर्मनिरपेक्ष नेताओं के साथ अपनी इमेज को प्रचारित-प्रसारित करो। हेकड़ी के साथ ,सीना ताने असभ्यों की तरह अपने को धर्मनिरपेक्ष नेताओं की इमेज के साथ पेश करो। संघवाले तर्क दे रहे हैं गांधी-पटेल-नेहरु किसी दल के नहीं हैं ,वे तो देश के हैं, फलतःवे उनके भी हैं, विवेकानंद- भगतसिंह किसी एक विचारधारा के नहीं हैं ,वे तो सबके हैं,फलतःवे उनके असली बारिस हैं। इस तरह का बेहूदा तर्कशास्त्र कॉमनसेंस के फ्रेमवर्क में रखकर खूब परोसा जा रहा है। मध्यवर्ग का एक अशिक्षित हिस्सा है जो उनके इस तरह के कॉमनसेंस तर्कों को खूब पसंद कर रहा है, अ-राजनीतिक युवा इन सब हरकतों पर तालियां बजा रहा है,मीडिया भी इन सब चीजों को खूब उछाल रहा है।
'क्लिक करो और गप करो'' अभियान के जरिए संघवाले अपनी असभ्यता को सभ्य बनाने,गप्पबाजी को शास्त्र बनाने में मशगूल हैं। उनके भक्त युवागण भी फेसबुक पर विचार -विमर्श नहीं करते वे तो बस 'कहते हैं',मानना है तो मानो ,वरना वे फिर भारतीय असभ्यता का जोशीलेभाव से प्रदर्शन करने लगते हैं,ज्ञान-शून्यता और राजनीति शून्यता को इससे विस्तार मिला है। जो राजनीति का ककहरा नहीं जानता वह भी अपने को चाणक्य समझता है। मूर्खता का इस तरह का तूफान भारतीय मीडिया से लेकर फेसबुक तक पहले कभी नहीं देखा गया।
'क्लिक करो और गप करो'' का नारा मूलतः देशी हास्य पैदा कर रहा है। तर्कहीनता को तर्क के रुप में पेश करना,बिना सोचे-समझे बक -बक करना,अपने को सच्चा और अन्य को झूठा कहना, फेसबुक से लेकर मीडिया तक दबाव की राजनीति से लेकर आत्म-सेंसरशिप का इस्तेमाल करना इसकी विशेषताएं हैं। लोकतंत्र के लिए यह स्थिति सुखद नहीं त्रासद है। लोकतंत्र फले-फूले इसके लिए जरुरी है कि हम कम्युनिकेशन में इमेजों की बजाय ठोस सभ्यता विमर्श का विकास करें,इमेजों में जीने की बजाय यथार्थ के सवालों पर बहस करें।
संघ की नयी विशेषता है कि वह युवाओं के ज्वलंत सवालों और समस्याओं पर सीधे बात ही नहीं कर रहा है। वह इमेज युद्ध में युवाओं को व्यस्त किए हुए है। इमेज युद्ध बोगस होता है। यह सभ्यता के विमर्शों से विमुख बनाता है। पशुवत क्रियाओं में मनुष्य को ठेल देता है और पशुवत क्रियाओं को ही हम संस्कृति-सभ्यता समझने लगते हैं।
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