पश्चिम बंगाल में विलक्षण फिनोमिना देखने में
आया है। यहां पर नेता एक-दूसरे की नकल में व्यस्त हैं। राजनीति में नकल सबसे बुरी
छवि बनाती है। राजनेता का अनुकरणीयभाव कभी नए की सृष्टि नहीं करता। बुरी नीतियों
का तबाही मचा सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस पार्टी (माकपा) से सबसे ज्यादा
नफरत करती हैं व्यवहार में उसी पार्टी की गलत नीतियों का इन दिनों अनुसरण कर रही
हैं। हाल ही में राज्य सरकार संचालित फिल्म लेबोरेटरी रूयायन को बंद किए जाने का
ममता सरकार ने मन बना लिया है। रूपायन लेबोरेटरी का स्टूडियो सॉल्टलेक सेक्टर -5 में है और इस स्टूडियो के
पास अपना बहुत बड़ा फिल्मी जखीरा है। यह राज्य में फिल्म संपादन की एकमात्र लेबोरेटरी
है। सॉल्टलेक में इसके पास 2.5 एकड़ जमीन है जिसमें एक एकड़ में लेबोरेटरी है और
बाकी जमीन का अन्य कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस लेबोरेटरी में फिल्म
संपादन की तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं और तकनीक उपलब्ध है लेकिन पेशेवर लोग नहीं
हैं।
इनदिनों इस लैब में बंगाली फिल्मकार अपनी
फिल्मों का संपादन कम करते हैं,ज्यादातर फिल्मकार फिल्म संपादन के लिए चेन्नई जाते
हैं.वाममोर्चा शासन के अकुशल प्रबंधन ने इस लेबोरेटरी को कबाड़ बनाया। वामशासन की
मंशा थी कि इसे निजीक्षेत्र के हवाले किया जाय।
ममता सरकार आने के बाद बंगाली फिल्मकार उम्मीद
कर रहे थे कि इस लेबोरेटरी को नए सिरे से संगठित किया जाएगा। लेकिन ममता बनर्जी ने
भी वही रास्ता पकड़ा जो वाम मोर्चा सरकार ने पकड़ा।
राज्य सरकार के
सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी के निर्देश पर इसे बंद करने का फैसला लिया जा चुका
है और इसमें काम रहे सभी 49कर्मचारियों को वीआरएस देने का फैसला ले लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि रूपायन इस राज्य की बेहतरीन
फिल्म संपादन लेबोरेटरी है .विगत बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार इस लैब को जीन्यूज को
औने-पौने दामों पर बेचने का फैसला लेचुकी थी .लेकिन उस समय यहां के सभी
संस्कृतिकर्मियों और फिल्मी हस्तियों के जमकर प्रतिवाद किया। फलतः वाम सरकार को
फैसला बदलना पड़ा और इसे बीमार उद्योग घोषित करके पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के
जरिए नए सिरे संगठित करने का फैसला लिया गया। संयोग की बात है कि जब यह फैसला लिया
गया उसके कुछ महिने बाद ममता बनर्जी की
सरकार आ गई और रूयायन को नए सिरे से संगठित करने का फैसला ठंड़े बस्ते में चला
गया। दो सप्ताह पहले ममता सरकार को ख्याल आया कि रूपायन लेबोरेटरी को बंद कर दिया
जाय।
रूपायन को समूचे उत्तर-पूर्वी राज्यों में
श्रेष्ठतम फिल्म लेबोरेटरी माना जाता है। इसमें बंगाली ,असमिया,संथाली,उड़िया, मणिपुरी,
भोजपुरी,नागपुरी, छत्तीसगढ़ी फिल्मों के
संपादन के अलावा बड़े पैमाने पर डबिंग का काम भी होता रहा है। इसके अलावा बंगलादेश
की फिल्मों के संपादन के काम में इस लेबोरेटरी की बड़ी भूमिका है।
आधिकारिक तौर पर रूपायन लेबोरेटरी पश्चिम
बंगाल फिल्म विकास निगम के तहत संचालित संगठन है। पश्चिम बंगाल फिल्म विकास निगम
की आय में वामशासन काल में ही गिरावट आनी शुरू हो गई थी और इस संगठन पर कर्ज का
आर्थिक बोझ बढ़ गया था। नई सरकार ने इस समस्या पर विचार ही नहीं किया और सीधे लेबोरेटरी बंद करने का फैसला ले लिया है।
उल्लेखनीय है ममता सरकार आने के बाद संस्कृति
के क्षय की जो प्रक्रिया में तेजी आई है। सत्ता ने संस्कृति के संरक्षण के काम को
त्याग दिया है। अब संस्कृति संरक्षण के
नाम पर सत्ता के संसाधनों का अपव्यय हो रहा है। जो राज्य संस्कृति संरक्षण के लिए
विख्यात खा आज सांस्कृतिक अपव्यय में सर्वोपरि है। राज्य सरकार की संस्कृति के विकास और नवनिर्माण
में कोई दिलचस्पी नहीं है। ममता बनर्जी संस्कृति का जितना गायन कर रही हैं उससे कई
गुना ज्यादा बुनियादी क्षति कर रही हैं। वे नई नई योजनाएं घोषित कर रही हैं,
शिलान्यास कर रही हैं,मेले-समारोह-उत्सव-जलसे कर रही हैं। इससे यह आभास मिलता है
कि ममता की संस्कृति में गहरी दिलचस्पी है लेकिन इसके ठीक विपरीत वे सत्ता में
बैठकर इस तरह के फैसले ले रही हैं जिससे पश्चिम बंगाल का सांस्कृतिक और
बौद्धिकवैभव क्षतिग्रस्त हो रहा है। रूपायन के बंद करने का फैसला सत्यजित राय के
सपनों का अंत है। यह लेबोरेटरी उनके सपने की उपज है।यह वही लेबोरेटरी है जिसमें
सत्यजित राय की महान फिल्म पाथेर पांचाली तैयार की गयी।इस लेबोरेटरी के साथ बंगाल
के अग्रणी फिल्मकारों की स्मृतियां जुड़ी हैं। यह बिडम्बना है कि एक तरफ मता सरकार
राज्य में फिल्म उद्योग को चंगा करने के लिए 20करोड़ रूपये खर्च करके नई फिल्म
सिटी बनाने र शाहरूख खान को ब्रॉण्ड एम्बेसडर बनाकर यश कमाना चाहती है वहीं दूसरी
एर रूपायन को बंद करने जा रही है। रूपायन के साथ टॉलीबुड की यादें जुड़ी हैं। रूपायन
के बंद होने का अर्थ है टॉलीवुड के एक बड़े अध्याय का अवसान।
उल्लेखनीय है कोलकाता में प्रतिवर्ष 35-40 बंगला
फिल्में रिलीज होती हैं और तकरीबन 50 करोड़ रूपये का कारोबार करती हैं। राज्य में
522 सिनेमा पर्दे हैं इनमें मात्र 52 डिजिटल पर्दे हैं।राज्य में फिल्म संस्कृति
के विकास के लिए राज्य सरकार को तेजी से सिनेमाघरों के नवीनीकरण के लिए कार्ययोजना
बनानी चाहिए। इसके अलावा रूपायन को बंद करने का फैसला वापस लेना चाहिए।
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