रविवार, 24 फ़रवरी 2013

आर्थिकमंदी में फंसी मनमोहन सरकार की मुश्किलें



      राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संसद का बजटसत्र आरंभ होने पर अपना जो अभिभाषण पढ़ा है वह नई उम्मीदों की बात करता है। भारतीय राजनीति की बिडम्बना है कि राष्ट्रपति के भाषण को हमारे नेता-सांसद और अन्य जागरूक लोग ध्यान से नहीं पढ़ते। असल में राष्ट्रपति का अभिभाषण तो मनमोहन सरकार की नीतियों का आधिकारिक बयान है इस बयान में कई नए सवालों और संभावनाओं को पेश किया गया है। इस भाषण में आगामी लोकसभा चुनाव का पापुलिज्म झलक मार रहा है। आने वाले 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार और खासकर कांग्रेस किस-किस क्षेत्र के मतदाताओं की ओर नजर गढ़ाए है और किनकी ओर भविष्य में देख रही है इसकी झलक देखी जा सकती है। यह भी सच है कि मनमोहन सरकार अकल्पनीय भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी होने के बावजूद कई मामलों में कुछ मूल्यवान काम कर बैठी है। विपक्ष की सारी रणनीति इस पर टिकी है कि किसी तरह मनमोहन सरकार को अपनी उपलब्धियां प्रचारित न करने दिया और उस पर दनादन हमले जारी रहें।
    प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का पहला विश्वव्यापी असर यह हुआ है कि आज विकसित पूंजीवादी मुल्कों के राज्याध्यक्ष हमारे देश में पूंजीनिवेश का अनुरोध करने आ रहे हैं। वे चाहते हैं कि भारत के पूंजीपति उनके देश में जाकर निवेश करें और वहां के लोगों को रोजगार दें।
    एक जमाना था कि भारत का प्रधानमंत्री विदेश जाता था और विकसित देशों से अपील करता था कि आपलोग भारत आएं और पूंजी निवेश करें।लेकिन इन दिनों उलटा हो रहा है। अमेरिका,फ्रांस,ब्रिटेन,जर्मनी आदि विकसित देशों से लेकर तीसरी दुनिया के देशों खासकर अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत से मदद मांग रहे हैं । यह बहुत बड़ा परिवर्तन है। पंडित नेहरू के शासनकाल  में विदेशनीति में सब हमारी ओर टकटकी लगाए देखते थे आज उद्योग-धंधों के लिए भारत से मदद मांग रहे हैं।इससे भारत की आर्थिक शक्ति का अंदाजा लगता है। यही वो परिदृश्य है जिसको ध्यान में रखकर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने  कहा 'एक महत्वाकांक्षी भारत का उदय हो रहा है, एक ऐसा भारत जहां अधिक अवसर, अधिक विकल्प, बेहतर आधारभूत संरचना तथा अधिक संरक्षा एवं सुरक्षा होगी। हमारे युवा जो हमारी सबसे बड़ी राष्ट्रीय धरोहर हैं, आत्मविश्वास और साहस से परिपूर्ण हैं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि इनका जोश, इनकी ऊर्जा और इनका उद्यम भारत को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।'
   सपनों को देखना और उनको साकार करना भी एक राजनीतिक उपलब्धि है। मसलन् अल्पसंख्यकों की उन्नति के सवाल को ही लें और मनमोहन सरकार के रिकॉर्ड को देखें कि तथ्य और सत्य क्या है ? यह सच है कि कांग्रेस के शासनकाल में अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा अभाव में रहे हैं और सामाजिक विकास की दौड़ में एकदम पिछड़ गए थे जिसकी ओर सच्चर कमीशन ने ध्यान खींचा था। लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद अल्पसंख्यकों के विकास के लिए केन्द्र सरकार ने जो 15सूत्री कार्यक्रम सारे देश में लागू किया उसके अभीप्सित परिणाम सामने आने लगे हैं। बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के बच्चे पढ़ने जाने लगे हैं और उनमें नई उम्मीदें जगी हैं।
अल्पसंख्यक समुदायों का शैक्षिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के लिए तीन छात्रवृत्ति स्कीमों का कार्यान्वयन किया गया है  और प्रत्येक स्कीम में 30 प्रतिशत निधि छात्राओं के लिए निर्धारित की गई है। वर्ष 2012-13 में 31 दिसंबर तक 55 लाख से अधिक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के रूप में लगभग  880 करोड़ रूपये की राशि का वितरण किया जा चुका है। अल्पसंख्यक समुदायों के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना के तहत 66 करोड़ की राशि दे दी गई है। 15 सूत्री कार्यक्रम के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान दिनांक 30.09.2012 तक राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों को ` 1,71,960 करोड़ प्राथमिकता क्षेत्र ऋण दिया गया, जो कि कुल प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के 15 प्रतिशत से अधिक है।
इसी तरह अनुसूचित जाति के कक्षा IX और X में पढ़ने वाले छात्रों के लिए केन्द्र प्रायोजित छात्रवृत्ति योजना शुरू की गई है, जिससे लगभग 40 लाख छात्रों को लाभ पहुँचा है।  
 ग्रामीण वोटरों का दिल जीतने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत एक लाख से अधिक ऐसे गांवों में बिजली पहुंचाई गई, जहां अभी तक बिजली नहीं थी, लगभग 2,85,000 गांवों को सघन रूप से बिजली दी गई है और गरीबी रेखा से नीचे के 2 करोड़ से अधिक परिवारों को नि:शुल्क बिजली कनेक्शन दिए गए हैं।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अभिभाषण का सबसे कमजोर हिस्सा अर्थव्यवस्था को लेकर था। मनमोहन सरकार के पास अर्थव्यवस्था को चंगा करने का कोई प्रभावी फार्मूला लागू करने में विगत 4सालों में सफलता नहीं मिली है।  चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रही। यह पिछले दशक के लगभग 8 प्रतिशत वार्षिक विकास औसत दर से काफी कम है। यह सच है कि मंदी से निकलने का कोई फार्मूला किसी के पास नहीं है लेकिन मनमोहन सरकार को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। वर्चुअल और मैन्यूफैक्चरिंग अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता देने की बजाय औद्योगिक उत्पादन बढ़ने और नए उद्योग खोलने पर जोर देना होगा। कायदे से देश के विभिन्न इलाकों में प्राथमिकता के अनुसार बड़ी क्षमता वाले उद्योग खोले जाने चाहिए। सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग के जरिए मंदी और आर्थिक संकट से नहीं निकला जा सकता। साथ ही उन नीतियों को भी बदलने की जरूरत है जिनके कारण नए रोजगार पैदा करने में बाधाएं आ रही हैं। आज स्थिति बदतर है राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 5.3 प्रतिशत के बराबर हो गया है। इसका अर्थ यह है कि मनमोहन सरकार ने कमाई कम की है,निवेश भी कम किया है और खर्चे ज्यादा किए हैं। रोजगारोन्मुख उद्योग –धंधों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए बिना मंदी के संकट से निकलना संभव नहीं है । साथ ही कृषिक्षेत्र में व्याप्त अराजकता की समस्याओं पर भी मनमोहन सरकार को ध्यान देना होगा। किसानों की सब्सीड़ी में कटौती बंद की जानी चाहिए। कृषिक्षेत्र को और भी शक्तिशाली बनाने की जरूरत है इसके लिए उनकी सब्सीड़ी में इजाफा किया जाना चाहिए। किसानों की सब्सीड़ी ऐसे समय में काटी जा रही है जब वे उत्पादन बढ़ा रहे हैं। कृषिक्षेत्र में  11वीं योजना में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में विकास दर, 10वीं योजना के 2.4 प्रतिशत की तुलना में 3.7 प्रतिशत रही। इसके अलावा मनमोहन सरकार को संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्याओं की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। हाल ही में 2दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल के संदेश को केन्द्र सरकार को गंभीरता से लेना होगा और मजदूरों से संबंधित मांगों और कानूनों को सख्ती से लागू करने की दिशा में प्रयास करने होंगे वरना सन्  2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का गणित गड़बड़ा सकता है।

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