कमजोर का लक्षण है कि वह मीडिया उन्माद से डरता
है। यह आभास दिया जा रहा है कि मनमोहन सरकार राजनीतिक तौर पर सबसे कमजोर सरकार है।
वह मीडिया के दबाब में फांसी दे रहे है। मीडिया में जब भी किसी मसले को लेकर
हो-हल्ला आरंभ होता है ,सरकार ऐसा आभास देती है कि वह मीडिया की सुन रही है। असल
में भ्रष्टाचार के आरोपों पर केन्द्र सरकार मीडिया का सामना करने से कतराती रही उसने
है और मीडिया के दबाब में हमेशा काम करती रही है। भ्रष्टाचार के मामलों में अपने
विवेक से बहुत कम एक्शन लिए हैं।
हाल ही में विचारधीन फांसी के कैदियों की
मर्सी पिटीशनों पर सरकार ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है वैसी सक्रियता पहले कभी
नहीं दिखाई।
उल्लेखनीय है दामिनी बलात्कार कांड के
प्रतिवाद में जब जुलूस निकल रहे थे और देश में चारों ओर प्रतिवाद हो रहा था उस समय
एक ही नारा सभी दिशाओं से मीडिया से गूंज रहा था बलात्कारी को फांसी दो। लगता है
इस नारे को केन्द्र सरकार ने अपनी नई न्यायनीति का एक्शन प्लान बना लिया है।
राष्ट्रपति
पद संभालने के बाद प्रणव मुखर्जी की सक्रियता देखने लायक है। केन्द्र सरकार की
फांसी की सजा को लागू करने की अतिसक्रियता किसी भी तर्क से स्वीकार्य नहीं है। आज
के दौर में अधिकतर देशों में फांसी की सजा खत्म करने की ओर न्यायप्रणाली जा रही
है। यहां तक कि दामिनी बलात्कार कांड के बाद बने वर्मा आयोग ने भी बलात्कारी को
फांसी की सजा दिए जाने की सिफारिश नहीं की थी। उसने यह रेखांकित किया कि न्याय
करते समय या कानून बनाते समय मीडिया के दबाब से बचना चाहिए।
कहा जा रहा है आतंकी
कसाब और अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के बाद से देश में जिस तरह का माहौल बना है
उसने राष्ट्रपति को जल्दी-जल्दी फांसी के मर्सी पिटीशन सिलटाने को प्रेरित किया
है। लेकिन आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते।
आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2001 से 2011
के बीच में 1455लोगों को फांसी की सजा दी गयी और 4321लोगों की फांसी माफ करके उसे
आजन्म कैद में बदला गया । इस अवधि में यूपी में 370 को फांसी दी गयी,बिहार में132,महाराष्ट्र
125, कर्नाटक 95,तमिलनाडु 95,पश्चिम बंगाल 79,दिल्ली 71,गुजरात 57,राजस्थान
38,केरल 34,उड़ीसा 33,हरियाणा31, असम 21,जम्मू-कश्मीर 20,पंजाब 19,छत्तीसगढ़
18,उत्तराखण्ड 16,आंध्रप्रदेश 8, मेघालय 6,चंडीगढ़,दमन एवं दीउ में प्रत्येक में
4-4,हिमाचल प्रदेश3,मणिपुर 3, त्रिपुरा 2,पांडिचेरी 2 और गोवा में 1 अभियुक्त को
फांसी की सजा दी गयी।
हाल ही में राष्ट्रपति
प्रणव मुखर्जी ने कर्नाटक-तमिलनाडु में सक्रिय चंदन माफिया वीरप्पन के 4 साथियों
की मर्सी पिटीशन खारिज कर दी है।अब जल्दी ही उनको भी फांसी देदी जाएगी। इनलोगों पर
9अप्रैल 1993 में पालार में 5पुलिसकर्मियों, 15 पुलिस मुखबिरों और 2
वनकर्मियों सहित 22 लोगों को बारूदी सुरंग के जरिए विस्फोट करके हत्या कर देने का
आरोप है।इस मामले की बिडम्बना यह है कि दोषी पाए गए 4में से 2 अपराधियों को पहले अदालत ने आजन्म
कैद की सजा सुनाई। बाद में 2004 में सुप्रीमकोर्ट ने चारों को फांसी की सजा सुना
दी। जिन अपराधियों की मर्सी पिटीशन राट्रपति ने खारिज की है उनके परिवारीजनों को
अभी तक इसकी कोई आधिकारिक जानकारी तक नहीं दी गयी है।
इसके अलावा राष्ट्रपति ने 7 अन्य मामलों में
फांसी की सजा पाए अपराधियों के मर्सी पिटीशन को खारिज करके भेज दिया है। इनसब
सूचनाओं को देखकर यह आभास मिलता है कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने तेजी से मर्सी
पिटीशन सिलटाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
जिस तरह आतंकी अफज़ल गुरू की फांसी के खिलाफ
कश्मीर में उत्तेजना है । ठीक इसी तरह की स्थिति कर्नाटक और तमिलनाडु के उन इलाकों
में भी हो सकती है जो चंदन माफिया वीरप्पन के प्रभावक्षेत्र में रहे हैं।एक जमाना
था चंदन माफिया वीरप्पन के प्रभाव में कर्नाटक- तमिलनाडु की 50 विधानसभा सीटें हुआ
करती थीं और सभी राजनीतिक दल उससे मदद मांगते थे।
सारी दुनिया में जिस
तरह मानवाधिकारों की चेतना बढ़ रही है उसी अनुपात में न्याय और दण्ड को रूपान्तरित
करने की मांग भी बढ़ रही है।
सारी दुनिया में फांसी की सजा खत्म करने के
खिलाफ आवाजें उठ रही है। लेकिन भारत में अभी तक फांसी के खिलाफ आम जनता से लेकर
राजनीतिकदलों तक इस मसले पर आम राय नहीं बन पायी है। इस मसले पर मानवाधिकार संगठन
एकस्वर से फांसी की सजा को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन वोटबैंक की
राजनीति इस मामले में सभी राजनीतिकदलों को एकमत राय कायम करने से रोक रही है।
राष्ट्रपति प्रणव
मुखर्जी की फांसी पर सक्रियता का एक और कारण है हाल ही में उठा हेलीकॉप्टर घोटाला
कांड।इटली के हेलीकॉप्टर सौदे को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के 2005 में
रक्षामंत्रीकाल में मंजूरी दी थी और यह मसला इटली की अदालत में विगत 8महिनों से चल
रहा है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस केस के बारे में जानता है। इस समूची
प्रक्रिया में राष्ट्रपति पर आंच न आए इसके लिए ध्यान हटाने की रणनीति के तहत
राष्ट्रपति की फांसी के खिलाफ मर्सी पिटीशनों पर सक्रियता बढ़ा दी गयी है। जिससे
उनको बेदाग रखा जा सके। यदि हेलीकॉप्टर घोटाले में घूसखोरी के आरोप इटली की अदालत
में सिद्ध होते हैं तो यह भारत के लिए बहुत शर्मनाक होगा।
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