-1-
अभिव्यक्ति की आजादी की धारणा के जन्म लेने के बाद विचारकों ने बार-बार अभिव्यक्ति की सीमाओं को तोड़ा है ,और अभिव्यक्ति के नए दायरे पैदा किए हैं। मर्यादा को मानते तो नए दायरे नहीं पैदा होते। यह काम लेखकों-विचारकों ने पुराने सोच,विचार,मान्यता ,मूल्य और न्याय व्यवस्था आदि के बारे में निर्मम विचार संग्राम चलाकर किया है।
ग्राम्शी कहते थे युद्ध में शत्रु के कमजोर हिस्सों पर हमले करो और विचारों की जंग में शत्रु के मजबूत किले पर हमला करो। आशीषनंदी ने मजबूत किले पर हमला बोला है इसीलिए इतनी बेचैनी है।
-2-
टीवी मीडिया पर ज्ञानीजी कह रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हमें मर्यादा की सीमा तय करनी चाहिए। ये महान ज्ञानी लोग आईबीएन-7 में बोल रहे थे।
अरे मित्रो, अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा तय नहीं कर सकते। अभिव्यक्ति का क्षितिज किसी सीमा में नहीं बांध सकते। अभिव्यक्ति में मर्यादा की मांग अंततः अभिव्यक्ति में कटौती और नियंत्रण की मांग है। अभिव्यक्ति को यह नैतिक आधार पर देखना होगा। अभिव्यक्ति का मसला मर्यादा या सीमा का मसला नहीं है।
-3-
भाषण में किस तरह की भाषा होगी, यह वक्ता तय करेगा। आशीषनंदी के बयान की भाषा को लेकर ज्ञानी लोग टीवी में बैठकर सवाल कर रहे हैं कि वे ऐसे नहीं ,ऐसे बोलते तो मामला ठीक रहता। ये लोग भूल रहे हैं कि भाषा पर विवाद नहीं है, विवाद आशीषनंदी के आइडिया के कारण हुआ है। आशीषनंदी अपने विचार को वापस लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में पुलिस-कचहरी आदि के बहाने ये तथाकथित हाशिए की राजनीति करने वाले लोग कानूनी आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं ।
जजों के एक वर्ग में भी कानूनी आतंकवाद की महत्ता बनी हुई है। जज कैसे तय कर सकते हैं कि किसी वक्ता को क्या कहना चाहिए।
-4-
दलित विचारकों का एक वर्ग यह कह रहा है कि उनके विचारों को चुनौती नहीं दी जा सकती। यह धारणा लोकतंत्रविरोधी है। लोकतंत्र में सभी किस्म के विचारों और नीतियों की निंदा-आलोचना हो सकती है। लोकतंत्र विचारों का विश्वविद्यालय है। यह एकवर्ग के विचारों का संरक्षकतंत्र नहीं है।
-5-
गजब कुतर्क दिए जा रहे हैं कुछ लोग कह रहे हैं कि आशीषनंदी ने गलत बात की है अतः उनको जेल भेजो। इस तरह के लोग मीडिया से लेकर अदालत तक भीड़तंत्र को लोकतंत्र का सिरमौर बनाने में लगे हैं। ये भीड़तंत्र के छोटे हिटलर हैं।
-6-
भारत साहित्य समारोहों के आयोजक विलक्षण-मजेदार और रीढ़िविहीन हैं। पिछलीबार जयपुर साहित्य महोत्सव में सलमान रूसदी बुलाए गए वे नहीं आ पाए,इसबार वे भारत आए हैं, लेकिन जयपुर में बुलाए नहीं गए.कोलकाता साहित्य महोत्सव में वे बुलाए गए लेकिन ममता के आदेश केकारण शामिल नहीं हो पाए।
मजेदार बात यह कि कलकत्ता साहित्य महोत्सव के आयोजकों ने कहा कि उन्होंने सलमान रूशदी को आमंत्रित ही नहीं किया था। इसके जबाब में रूशदी ने ट्विट किया है कि उनके पास आयोजकों के कई ईमेल हैं, निमंत्रणपत्र है, और यहां तककि आयोजकों ने उनको एयरटिकट भी भेजा था। रूशदी ने कहा कि ममता बनर्जी के दबाब के कारण उनको कोलकाता आने से रोका गया है।
-7-
सुप्रीम कोर्ट ने आशीषनंदी के विवादास्पद बयान पर दर्ज एफआईआर के आधार पर उनको गिरफ्तार करने पर 1फरवरी 2013 को रोक लगा दी ।
-8-
पश्चिम बंगाल में असभ्यता की लहर चल रही है।वामदलों से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक,अधिकांश दलों के नेता सार्वजनिक सभाओं में घटिया और गंदी भाषा का जमकर उपयोग कर रहे हैं। यह पश्चिम बंगाल में मध्यवर्ग की सभ्यता के ह्रास का युग है।
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अभिव्यक्ति की आजादी की धारणा के जन्म लेने के बाद विचारकों ने बार-बार अभिव्यक्ति की सीमाओं को तोड़ा है ,और अभिव्यक्ति के नए दायरे पैदा किए हैं। मर्यादा को मानते तो नए दायरे नहीं पैदा होते। यह काम लेखकों-विचारकों ने पुराने सोच,विचार,मान्यता ,मूल्य और न्याय व्यवस्था आदि के बारे में निर्मम विचार संग्राम चलाकर किया है।
ग्राम्शी कहते थे युद्ध में शत्रु के कमजोर हिस्सों पर हमले करो और विचारों की जंग में शत्रु के मजबूत किले पर हमला करो। आशीषनंदी ने मजबूत किले पर हमला बोला है इसीलिए इतनी बेचैनी है।
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टीवी मीडिया पर ज्ञानीजी कह रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हमें मर्यादा की सीमा तय करनी चाहिए। ये महान ज्ञानी लोग आईबीएन-7 में बोल रहे थे।
अरे मित्रो, अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा तय नहीं कर सकते। अभिव्यक्ति का क्षितिज किसी सीमा में नहीं बांध सकते। अभिव्यक्ति में मर्यादा की मांग अंततः अभिव्यक्ति में कटौती और नियंत्रण की मांग है। अभिव्यक्ति को यह नैतिक आधार पर देखना होगा। अभिव्यक्ति का मसला मर्यादा या सीमा का मसला नहीं है।
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भाषण में किस तरह की भाषा होगी, यह वक्ता तय करेगा। आशीषनंदी के बयान की भाषा को लेकर ज्ञानी लोग टीवी में बैठकर सवाल कर रहे हैं कि वे ऐसे नहीं ,ऐसे बोलते तो मामला ठीक रहता। ये लोग भूल रहे हैं कि भाषा पर विवाद नहीं है, विवाद आशीषनंदी के आइडिया के कारण हुआ है। आशीषनंदी अपने विचार को वापस लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में पुलिस-कचहरी आदि के बहाने ये तथाकथित हाशिए की राजनीति करने वाले लोग कानूनी आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं ।
जजों के एक वर्ग में भी कानूनी आतंकवाद की महत्ता बनी हुई है। जज कैसे तय कर सकते हैं कि किसी वक्ता को क्या कहना चाहिए।
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दलित विचारकों का एक वर्ग यह कह रहा है कि उनके विचारों को चुनौती नहीं दी जा सकती। यह धारणा लोकतंत्रविरोधी है। लोकतंत्र में सभी किस्म के विचारों और नीतियों की निंदा-आलोचना हो सकती है। लोकतंत्र विचारों का विश्वविद्यालय है। यह एकवर्ग के विचारों का संरक्षकतंत्र नहीं है।
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गजब कुतर्क दिए जा रहे हैं कुछ लोग कह रहे हैं कि आशीषनंदी ने गलत बात की है अतः उनको जेल भेजो। इस तरह के लोग मीडिया से लेकर अदालत तक भीड़तंत्र को लोकतंत्र का सिरमौर बनाने में लगे हैं। ये भीड़तंत्र के छोटे हिटलर हैं।
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भारत साहित्य समारोहों के आयोजक विलक्षण-मजेदार और रीढ़िविहीन हैं। पिछलीबार जयपुर साहित्य महोत्सव में सलमान रूसदी बुलाए गए वे नहीं आ पाए,इसबार वे भारत आए हैं, लेकिन जयपुर में बुलाए नहीं गए.कोलकाता साहित्य महोत्सव में वे बुलाए गए लेकिन ममता के आदेश केकारण शामिल नहीं हो पाए।
मजेदार बात यह कि कलकत्ता साहित्य महोत्सव के आयोजकों ने कहा कि उन्होंने सलमान रूशदी को आमंत्रित ही नहीं किया था। इसके जबाब में रूशदी ने ट्विट किया है कि उनके पास आयोजकों के कई ईमेल हैं, निमंत्रणपत्र है, और यहां तककि आयोजकों ने उनको एयरटिकट भी भेजा था। रूशदी ने कहा कि ममता बनर्जी के दबाब के कारण उनको कोलकाता आने से रोका गया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने आशीषनंदी के विवादास्पद बयान पर दर्ज एफआईआर के आधार पर उनको गिरफ्तार करने पर 1फरवरी 2013 को रोक लगा दी ।
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पश्चिम बंगाल में असभ्यता की लहर चल रही है।वामदलों से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक,अधिकांश दलों के नेता सार्वजनिक सभाओं में घटिया और गंदी भाषा का जमकर उपयोग कर रहे हैं। यह पश्चिम बंगाल में मध्यवर्ग की सभ्यता के ह्रास का युग है।
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