औरत सभ्य
होती है,लेकिन औरत के अंदर अनेक ऐसी आदतें,परंपराएं और मूल्य हैं जो उसे असभ्यता
के दायरे में धकेलते हैं। औरत को संयम और सही नजरिए से स्त्री के असभ्य रुपों को
निशाना बनाना चाहिए। असभ्य आयाम का एक पहलू है देवीभाव । औरत को देवीभाव में रखकर देखने की बजाय मनुष्य
के रुप में,स्त्री के रुप में देखें तो बेहतर होगा । औरत में असभ्यता कब जाग जाए
यह कहना मुश्किल है लेकिन असभ्यता के अनेक रुप दर्ज किए गए हैं। खासकर औरत के
असभ्य रुपों की स्त्रीवादी विचारकों ने खुलकर चर्चा की है। हमें भारतीय समाज के
संदर्भ में और खासकर हिन्दू औरतों के संदर्भ में उन क्षेत्रों में दाखिल होना चाहिए जहां पर औरत के असभ्य
रुप नजर आते हैं।
औरत की असभ्य संस्कृति
के निर्माण में पुंसवाद की निर्णायक भूमिका है। इसके अलावा स्वयं औरत की अचेतनता
भी इसका बहुत बड़ा कारक है। मसलन्, जब कोई लड़की शिक्षित होकर भी दहेज के साथ शादी
करती है , दहेज के खिलाफ प्रतिवाद नहीं करती तो वह असभ्यता को बढ़ावा देती है।हमने
सभ्यता के विकास को शिक्षा,नौकरी आदि से जोड़कर इस तरह का स्टीरियोटाइप विकसित किया
है कि उससे औरत के सभ्यता के मार्ग का संकुचन हुआ है।
हमारी शिक्षा
लड़कियों को सभ्य कम और अनुगामी ज्यादा बनाती है। औरत सभ्य तब बनती है जब वह सचेतन
भाव से सामाजिक बुराईयों के खिलाफ जंग करती है। औरत की जंग तब तक सार्थक नहीं हो
सकती जब तक हम उसे आम औरत के निजी जीवन तक नहीं ले जाते। हमारे सभ्य समाज की आयरनी
यह है कि वह सभ्य औरत तो चाहता है लेकिन उसे सभ्य बनाने के लिए आत्मसंघर्ष करने की
प्रेरणा नहीं देता। मसलन्,औरतों में दहेज प्रथा के खिलाफ जिस तरह की नफरत होनी
चाहिए वह कहीं पर भी नजर नहीं आती।
औरत सभ्य है या
असभ्य है यह इस बात से तय होगा कि वह अपने जीवन से जुड़े बुनियादी सवालों और
समस्याओं पर विवेकवादी नजरिए से क्या फैसला लेती है ? समाज ने स्त्री के लिए अनुकरण
और निषेधों की श्रृंखला तैयार की है और उसे वैध बनाने के तर्कशास्त्र, मान्यताएं
और संस्कारों को निर्मित किया है। इसके विपरीत यदि कोई औरत अनुकरण और निषेधों का
निषेध करे तो सबसे पहले औरतें ही दवाब पैदा करती हैं कि तुम यह मत करो,ऐसा मत करो,
परिवार की इज्जत को बट्टा लग जाएगा। औरत को बार-बार परिवार की इज्जत का वास्ता
देकर असभ्य कर्मों को करने के लिए कहा जाता है। खासकर युवा लड़कियों के अंदर दहेज
प्रथा के खिलाफ जब तक घृणा पैदा नहीं होगी, औरत को सभ्य बनाना संभव नहीं है। औरत
सभ्य बने इसके लिए जरुरी है कि वह उन तमाम चीजों से नफरत करना सीखे जो उसको सभ्य बनने
से रोकती हैं। दहेज प्रथा उनमें से एक है।
औरत के अंदर
असभ्यता का आधार है
अनुगामी भावबोध ,जब तक औरतें अनुगामी भावबोध को विवेक के जरिए अपदस्थ नहीं करतीं
वे सभ्यता को अर्जित नहीं कर पाएंगी। समाज में अनुगामी औरत को आदर्श मानने की
मानसिकता को बदलना होगा।
औरत को असभ्य बनाने में दूसरा बड़ा तत्व है,
औरतों और खासकर लड़कियों का सचेतभाव से मूर्खतापूर्ण हरकतें करना, मूर्खता को वे
क्रमशः अपने जीवन का आभूषण बना लेतीं हैं। तमाम किस्म के स्त्रीनाटक इस
मूर्खतापूर्ण आचरण के गर्भ से निकलते हैं।स्त्री की मूर्खतापूर्ण हरकतें अधिकांश पुरुषों को अच्छी
लगती हैं। फलतः लड़कियां सचेत रुप से मूर्खता को अपने जीवन का स्वाभाविक अंग बना
लेती हैं। इससे स्त्री की छद्म इमेज बनती है। स्त्री सभ्य बने इसके लिए जरुरी है
कि वह छद्म इमेज और छद्म मान्यताओं में जीना बंद करे।
छद्म इमेज का आदर्श है लड़कियों में फिल्मी
नायिकाओं को आदर्श मानने का छद्मभाव। मसलन्, माधुरी दीक्षित ,रेखा,ऐश्वर्या राय
में कौन सी चीज है जिससे लड़कियां प्रेरणा लेती हैं ? क्या
सौंदर्य-हाव-भाव आदि आदर्श हैं ? यदि ये आदर्श हैं तो इनसे सभ्यता का विकास नहीं होगा। सौंदर्य के
बाजार और प्रसाधन उद्योग का विकास होगा। यदि इन नायिकाओं के कैरियर और उसके लिए इन
नायिकाओं द्वारा की गयी कठिन साधना और संघर्ष को लड़कियां अपना लक्ष्य बनाती हैं
तो वे सभ्यता का विकास करेंगी और पहले से ज्यादा सुंदर दिखने लगेंगी। ये वे
नायिकाएं हैं जिन्होंने अपने कलात्मक जीवन को सफलता की ऊँचाईयों तक पहुँचाने के
लिए कठिन रास्ता चुना और समाज में सबसे ऊँचा दर्जा हासिल किया। अपने अभिनय के जरिए
लोगों का दिल जीता।
कहने
का अर्थ है कि फिल्मी नायिका से सौंदर्य टिप्स लेने की बजाय,उसके सौंदर्य का
अनुकरण करने की बजाय, कलात्मक संघर्ष की भावनाएं और मूल्य यदि ग्रहण किए जाते तो
देश में हजारों माधुरी दीक्षित होतीं! दुर्भाग्य की बात है कि हम यह अभी तक समझ नहीं पाए हैं कि औरत का
सौंदर्य उसके शरीर में नहीं उसकी सभ्यता में होता है ! औरत जितनी सभ्य होगी वह उतनी ही सुंदर होगी।
सभ्यता के निर्माण के लिए जरुरी है कि औरतें स्वावलंबी बनें। अनुगामी भाव से बचें।
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