किसान का नाम आते ही राजनीति का रोमांस गायब हो जाता है। किसान के सवाल आते ही राजनीति की वर्गीयबुनाबट खुलने लगती है। लोकतंत्र के विभ्रम टूटने लगते हैं। किसानों का नंदीग्रामप्रतिवाद हाल के वर्षों का ऐसा आंदोलन रहा है जिसने मनमोहन सरकार को पुराना भूमिअधिग्रहण कानून बदलने के लिए मजबूर किया था। जबकि पुराने कानून के तहत सारे देशमें तकरीबन दस लाख एकड़ जमीन विभिन्न सरकारें किसानों से छीनकर कारपोरेट घरानों कोसौंप चुकी थीं। नंदीग्राम आंदोलन ने वाम राजनीति को शिखर से लेकर नीचे तक बुरी तरहक्षतिग्रस्त किया। उस आंदोलन के बाद मनमोहन सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण कानूनबनाया था,जिसे पिछली संसद पास कर चुकी थी, नई मोदी सरकार को उसे लागू करना थालेकिन मोदी सरकार ने उसे लागू करने के पहले ही खत्म कर दिया और नया भूमि अधिग्रहणअध्यादेश जारी कर दिया,यह अध्यादेश क्या है इसके परिणाम क्या होंगे इस पर मीडियामें बहुत सार्थक और सटीक सामग्री और सूचनाएं आ रही हैं,यह किसानों के पक्ष में मीडिया की सकारात्मक भूमिका को सामनेलाता है। इस कानून के खिलाफ बृहत्तर राष्ट्रीय एकता भी बनती नजर आ रही है। जरुरतहै इस कानून के खिलाफ जनांदोलन तेज करने की । भाजपा के दुरंगेपन को नंगा करने की ।
उल्लेखनीय है कि मनमोहनसरकार में निर्मित भूमि अधिग्रहण कानून को भाजपा ने पूर्ण समर्थन दिया था,यहां तककि संपूर्ण विपक्ष ने समर्थन दिया था, वह कानून संसद की आम सहमति से बना था, मोदीसरकार ने बिना किसी कारण के उस कानून को लागू करने के पहले ही खत्म करके नयाअध्यादेश जारी करके संसद का अपमान किय़ा है, राजनीतिक सहमति को तोड़ा है और इससे भीबड़ी बात यह है कि यह मसला भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में नहीं था। जो मसला चुनावघोषणापत्र में नहीं है उसे मोदी सरकार जोर-जबर्दस्ती से पास करना चाहती है । यदियह कानून इतना ही जरुरी था तो भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र क्यों नहींकिया ? मोदी ने अपने भाषणों में इस तरह का कानूनलाने की मंशा जाहिर क्यों नहीं की ?
सवाल यह है मोदी सरकारइतने उतावलेपन से कानून क्यों बदलना चाहती है ? क्यादेश के कारपोरेट घराने देश में पैसा निवेश करने के लिए इतने बेचैन हैं कि उनकोरातों-रात देश की जमीन कौडियों के भाव पर सब कानून तोड़कर दे दी जाय ? हम जानना चाहते हैं कि भारत के कारपोरेट घरानों को विगत मनमोहन सरकारने जो जमीन आवंटित की थी क्या उस पर कारखाने लगाए गए हैं ? क्याजो जमीन भारत सरकार ने विकास के नाम पर किसानों से ली है उस पर काम हो रहा है ? यदि पुरानी जमीन खाली पड़ी है और कारपोरेट घराने वायदा नहीं निभा पाएहैं तो फिर नई जमीन हासिल करने के लिए वे बैचैन क्यों हैं ? हमारे देश में लाखों बीमार-बंद कारखाने हैं पहले उनको चंगा करने की ओरकारपोरेट घराने ध्यान क्यों नहीं देते ? वे नई जमीनें क्यों हड़पना चाहते हैं ?क्या जमीनें खरीद लेनेभर से विकास होता है ? क्या हाउसिंग सोसायटियों के बनाने सेदेश का विकास होगा ? क्या इससे देश की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी ? क्या किसान औरमजदूरों की उत्पादकता में बढोतरी होगी ?
अब तक का अनुभव बताता है कि किसानों से विगत सरकारों के जरिए हथियाई गई दसलाख एकड़ से ज्यादा जमीन के बावजूद देश की उत्पादकता में कोई इजाफा नहीं हुआ है।नए कारखाने बहुत कम इलाको में खुले हैं, अधिकतर सेज के इलाके सूने पड़े हैं । मोदीसरकार कम से कम सीएजी की रिपोर्ट को ही गंभीरता से देख लेती तो उसे सेज प्रकल्पोंकी दशा का अंदाजा लग जाता। लेकिन मोदी सरकार ने तो तय कर लिया है हर हालत में राष्ट्रीयसंपदा और संसाधनों को कारपोरेट घरानों के हाथों में सौंप देना है। इससे आरएसएस काहिन्दूमार्ग भी आसानी से समझ में आ सकता है। आरएसएस कहने के लिए राष्ट्रवादी होनेका दावा करता है लेकिन उनका हिन्दू नायक जब पीएम बनता है तो खुलकर किसानों औरगरीबों की संपदा पर डाकेजनी का कानून बनाकर पेश करता है। यह मजेदार तथ्य है किआरएसएस के नियंत्रण में केन्द्र सरकार के आने के बाद से सबसे खुशहाल हैं कारपोरेटघराने। कारपोरेट घरानों को जितना फायदा मिला है और उनकी संपदा में जिस तेज गति सेइजाफा हुआ है उसने संघ को कारपोरेट संघ में रुपान्तरित कर दिया है।
हमें किसानों के पक्ष में बिना किसी संशय के सोचना चाहिए। किसान के मसलोंके लिए जो भी संगठन संघर्ष करें, जो भी नेता लड़े , हमें उससे सहयोग करना चाहिए।किसान के सवाल और खासकर किसान की जमीन को विकास के नाम पर हथियाने के सभी प्रयासोंको हर स्तर पर विफल करने की जरुरत है । मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेशवस्तुतः किसान और विकास विरोधी है। यह देश के साथ भाजपा की गद्दारी का आदर्शप्रमाण है। यह आरएसएस के दुरंगेपन का भी आदर्श प्रमाण है ।
सवाल यह है मोदी सरकारइतने उतावलेपन से कानून क्यों बदलना चाहती है ? क्यादेश के कारपोरेट घराने देश में पैसा निवेश करने के लिए इतने बेचैन हैं कि उनकोरातों-रात देश की जमीन कौडियों के भाव पर सब कानून तोड़कर दे दी जाय ? हम जानना चाहते हैं कि भारत के कारपोरेट घरानों को विगत मनमोहन सरकारने जो जमीन आवंटित की थी क्या उस पर कारखाने लगाए गए हैं ? क्याजो जमीन भारत सरकार ने विकास के नाम पर किसानों से ली है उस पर काम हो रहा है ? यदि पुरानी जमीन खाली पड़ी है और कारपोरेट घराने वायदा नहीं निभा पाएहैं तो फिर नई जमीन हासिल करने के लिए वे बैचैन क्यों हैं ? हमारे देश में लाखों बीमार-बंद कारखाने हैं पहले उनको चंगा करने की ओरकारपोरेट घराने ध्यान क्यों नहीं देते ? वे नई जमीनें क्यों हड़पना चाहते हैं ?क्या जमीनें खरीद लेनेभर से विकास होता है ? क्या हाउसिंग सोसायटियों के बनाने सेदेश का विकास होगा ? क्या इससे देश की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी ? क्या किसान औरमजदूरों की उत्पादकता में बढोतरी होगी ?
अब तक का अनुभव बताता है कि किसानों से विगत सरकारों के जरिए हथियाई गई दसलाख एकड़ से ज्यादा जमीन के बावजूद देश की उत्पादकता में कोई इजाफा नहीं हुआ है।नए कारखाने बहुत कम इलाको में खुले हैं, अधिकतर सेज के इलाके सूने पड़े हैं । मोदीसरकार कम से कम सीएजी की रिपोर्ट को ही गंभीरता से देख लेती तो उसे सेज प्रकल्पोंकी दशा का अंदाजा लग जाता। लेकिन मोदी सरकार ने तो तय कर लिया है हर हालत में राष्ट्रीयसंपदा और संसाधनों को कारपोरेट घरानों के हाथों में सौंप देना है। इससे आरएसएस काहिन्दूमार्ग भी आसानी से समझ में आ सकता है। आरएसएस कहने के लिए राष्ट्रवादी होनेका दावा करता है लेकिन उनका हिन्दू नायक जब पीएम बनता है तो खुलकर किसानों औरगरीबों की संपदा पर डाकेजनी का कानून बनाकर पेश करता है। यह मजेदार तथ्य है किआरएसएस के नियंत्रण में केन्द्र सरकार के आने के बाद से सबसे खुशहाल हैं कारपोरेटघराने। कारपोरेट घरानों को जितना फायदा मिला है और उनकी संपदा में जिस तेज गति सेइजाफा हुआ है उसने संघ को कारपोरेट संघ में रुपान्तरित कर दिया है।
हमें किसानों के पक्ष में बिना किसी संशय के सोचना चाहिए। किसान के मसलोंके लिए जो भी संगठन संघर्ष करें, जो भी नेता लड़े , हमें उससे सहयोग करना चाहिए।किसान के सवाल और खासकर किसान की जमीन को विकास के नाम पर हथियाने के सभी प्रयासोंको हर स्तर पर विफल करने की जरुरत है । मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेशवस्तुतः किसान और विकास विरोधी है। यह देश के साथ भाजपा की गद्दारी का आदर्शप्रमाण है। यह आरएसएस के दुरंगेपन का भी आदर्श प्रमाण है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें