इतिहास के बिना मनुष्य बोगस नजर आता है। भारत में मुग़लों के आने के पहले इतिहास लेखन की परंपरा नहीं थी । आरएसएस के लोग मुसलमानों को बर्बर और हिन्दू विरोधी प्रचारित करने के चक्कर में यह भूल ही गए कि मुसलमानों के आने के बाद ही भारत में इतिहास लिखने की परंपरा का श्रीगणेश हुआ है। मुग़लों के आने के पहले हिन्दुओं में सांसारिक घटनाओं और दैनंदिन ज़िंदगी की घटनाओं का इतिहास लिखने की प्रवृत्ति नहीं थी। हिन्दुओं के लिए तो संसार माया था और माया का ब्यौरा कौन रखे ! मुसलमानों को इसका श्रेय जाता है कि हमने उनसे इतिहास लिखना सीखा। मुग़लों के आने के पहले हिन्दूसमाज में दैनंदिन जीवन में क्या घटा और कैसे घटा इसका हिसाब रखना समय का अपव्यय माना जाता था । यही वजह है कि मुग़लों के आने के पहले कभी किसी व्यक्ति ने इतिहास नहीं लिखा। कुछ राज प्रशस्तियाँ या अतिरंजित वर्णन जरुर मिलते हैं। उनमें तिथियों का कोई कालक्रम नहीं है। इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अनुसार उस दौर में काल -निरुपण ग्रंथ तो एकदम नहीं मिलते।
यदुनाथ सरकार ने लिखा है" अरब लोग पक्के व्यवहारवादी थे और प्रकृत-वस्तुओं पर सर्वदा सजग दृष्टि रखा करते थे। इसीलिए उन्होंने इस्लाम के आदि युग से लेकर घटनाओं का इतिहास , राजाओं की तिथि-संवत और राजाओं की जीवनियां लिख छोड़ी हैं। उनके इस इतिहास में तिथि संवतों का पूर्ण समावेश पाया जाता है । " यही वह प्रस्थान बिंदु है जहाँ से भारत में इतिहास रचना आरंभ होती है। बाद में हिन्दू लेखकों ने इस पद्धति का प्रयोग किया । मुसलमान इतिहासकारों की रचनाओं के जरिए ही हमें उस दौर के हिन्दू समाज और हिन्दू राजाओं के बारे में जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
कहने का तात्पर्य है कि भारत के निर्माण में मुसलमानों की देन को भूलना नहीं चाहिए। इतिहास रचना हमें मुसलमानों से ही प्राप्त हुई ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें