सलमान
के कवरेज ने एकबार फिर से हमें मध्यवर्ग के अपराधी मनोभावों पर सोचने के लिए विवश
किया है। भारत का महान मध्यवर्ग का व्यापक अंश मूल्यों की दृष्टि से महान मूल्यों
की ओर नहीं जा रहा,बल्कि अ-सामाजिक मूल्यों की ओर इसका स्वाभाविक
रुझान देखने में आ रहा है। मध्यवर्ग के इस बड़े समूह की सामान्य विशेषता
है अ-सामाजिक मूल्यों को वैधता प्रदान
करना,उनका महिमा मंडन करना और उनके लिए सामाजिक समूहों और दवाब ग्रुपों का
निर्माण करना ।इसे हम लंपट मध्यवर्ग कहें तो बेहतर होगा।
स्वभाव से लंपट मध्यवर्ग अविवेकवादी और
कानूनभंजक है। यह हाशिए के लोगों से नफरत
करता है,उनको कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं समझता, गायक
अभिजीत का कल सलमान प्रसंग में आया बयान इस वर्ग में हाशिए के लोगों के प्रति
व्याप्त घृणा का आदर्श नमूना है।
मीडिया
में बार-बार सलमान समर्थक लोग सलमान के सुधार कार्यों का उल्लेख करके मानवीय
आबोहवा पैदा कर रहे थे, लेकिन सामाजिक जीवन में ऐसे समाजसुधार और मानवीय
कार्यों का कोई स्वस्थ लक्ष्य नहीं है जो निहित स्वार्थ और सामाजिक जन समर्थन
जुटाने के लिए किया जाय।
लंपट मध्यवर्ग-उच्चमध्यवर्ग के कानूनभंजकों में माफिया और फंडामेंटलिस्ट भी
आते हैं और वे लोग तमाम किस्म के असामाजिक,लोकतंत्रविरोधी,न्यायविरोधी कामों के
साथ-साथ समाजसुधार के काम भी करते हैं । उनकी समाजसेवा का लक्ष्य है गुनाहों पर परदा
डालना। वे चाहते हैं आम जनता उनके गुनाहों की अनदेखी करे और उनके लिए सामाजिक आधार
का काम करे।
लोकतांत्रिक समाज में समाजसुधार का मतलब है
न्याय और समानता के भाव का कड़ाई से पालन। मानवाधिकारों के पक्ष में निष्ठा के साथ
खड़े रहने की भावना। सलमान के मामले में ये सारी चीजें एकसिरे से नदारत हैं,उलटे
सलमान पतंगबाजी के बहाने मानवाधिकार भंजकों के नायक के प्रचारक की भूमिका अदा करते
नजर आए हैं।
समाजसुधार
का अर्थ किसी का ऑपरेशन कराना या पैसे देना या आर्थिक मदद कर देना मात्र नहीं है
बल्कि इस मदद के साथ दानदाता किस तरह के मूल्यों का आचरण करता है यह भी देखना
चाहिए। सामान्य सी बात है कि समाजसुधार का दावा करने वाला दारु पीकर ,बिना
लाइसेंस के गाड़ी चलाता है तो वह कानून तोड़ता है, गाड़ी से
कुचलते हुए चला जाता है, लेकिन पीड़ितों को अस्पताल नहीं ले
जाता, उनको आर्थिक मदद नहीं देता,बल्कि अदालत में
सौदेबाजी करता है,सामाजिक सुधार को मानने का अर्थ है दण्ड को
नतमस्तक होकर स्वीकार करना, न कि पैसे के बल पर,तिकड़मों
के जरिए अपने पक्ष में करना।
सलमान
टाइप चैरिटी या दान-पुण्य-मदद का लक्ष्य है अपने लिए जनाधार और जन-समर्थन तैयार
करना, इसका लक्ष्य समाजसेवा नहीं है। इसका लक्ष्य है अपने लिए प्रशंसकों की भीड़
जुगाड़ करना, इसका लक्ष्य है सलमान के अमानवीय और कानूनभंजक रुप पर पर्दा डालना। इस
तरह की समाजसेवा को लंपट समाज सेवा कहते हैं। जो लोग समाज सेवा करते हैं वे उसके
जरिए जन-समर्थन या निजी स्वार्थों की पूर्ति नहीं करते। समाज सेवा का मतलब है कि
सेवा करने वाला बदले में अपने लिए कुछनहीं चाहता, लेकिन सलमान के समाजसेवा कार्यों
में खर्च हुए 42करोड़ रुपयों का बार-बार हवाला देकर यह मांग की जा रही है कि उसे
कानून बरी कर दे, वह मानवीय है ,हत्यारा नहीं है । उसके समाजसेवा के तमगों के नाम
पर यह भी कहा जा रहा है कि उसने कितने लोगों के हृदय के ऑपरेशन में मदद की ,कितने
जरुरतमंदों के काम आया। यानी सलमान के लिए समाजसेवा का मतलब आम जनता को अपने पीछे
गोलबंद करना है और यही वह बिंदु है जहां पर हमें सोचना चाहिए कि इस तरह की समाजसेवा
क्या सच में समाजसेवा है या निजीसेवा है ?
सलमान
मार्का चैरिटी का सारा धंधा या इसी तरह की समाजसेवा करने वाले संगठन जब बदले में
वोट मांगते हैं या राजनीतिक तौर पर साथ रहने की मांग करते हैं तो समाजसेवा को
कलंकित करके उसे निहितस्वार्थ सेवा में तब्दील कर देते हैं। हमारे देश में अनेक संगठन
हैं जो समाजसेवा के नाम पर शिक्षा,स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में काम कर रहे हैं,साम्प्रदायिक
विभाजन और घृणा का काम कर रहे हैं, लेकिन बदले में वोट की राजनीति भी कर रहे हैं
या साम्प्रदायिक या फंडामेंटलिस्ट राजनीति कर रहे हैं। देश का सबसे बड़ा संगठन
आरएसएस समाजसेवा ही कर रहा है।साथ में अन्य राजनीतिक लक्ष्यों में लगा है। यह
समाजसेवा नहीं है यह समाज मेनीपुलेशन है।
कहने का आशय यह है कि समाजसेवा को तब ही
समाजसेवा कहते हैं जब आप अन्य की मदद करें और भूल जाएं,बदले में उससे कुछ न चाहें,
समाजसेवा का ढोल बजाकर जिक्र न करें। मसलन् ,समाजसेवा का रामकृष्ण परमहंस मिशन का
तरीका देखें तो यह बात सहज ही समझ में आ जाएगी। वह समाजसेवा किसी काम की नहीं है
जो बदले में निहितस्वार्थों की पूर्ति की मांग करे, राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति
की मांग करे।
समाजसेवक न्यायप्रिय और सभ्य होता है। सलमान
और उनके जैसे सामाजिक संगठन या समाजसेवक इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। वे न तो
न्यायप्रिय हैं और न सभ्य ही हैं। बल्कि स्थिति यह है कि वे लंपटता और
मीडियाप्रेशर के जरिए सामाजिक माहौल को अपने अनुकूल बनाने की घृणिततम कोशिश कर रहे
हैं. इन लोगों ने बड़े पैमाने पर लंपट मध्यवर्ग को अपने साथ गोलबंद कर लिया है। यह
लंपट मध्यवर्ग आए दिन उन सभी नेताओं और अभिनेताओं के पीछे गोलबंद नजर आता है जिनकी
नागरिक समाज में कोई आस्था नहीं है,जिनकी भारत के कानून में कोई आस्था नहीं है, वे
समूह या भीड़ के दवाब के जरिए कानून से लेकर सरकार तक सबको प्रभावित करना जानते
हैं। मीडिया को वे अपने प्रौपेगैण्डा अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें