यूपी में औरतें जीती हैं,देश में हजारों औरतें जनप्रितिनिधि के रुप में काम कर रही हैं,इससे लोकतंत्र में औरतों की शिरकत बढ़ी है।औरत की पहचान बदली है। औरतों पर जिन बातों को लेकर संदेह किया जा रहा है वे बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं। मसलन्, यह कहा जा रहा है कि वे अंगूठा छाप हैं,उनके पास निजी विवेक नहीं है,पति का मोहरा हैं।ये सारी बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं। हमारे पुरुष तुलनात्मक तौर पर ज्यादा ये ही सब काम कर रहे हैं।वे किसी न किसी के मोहरे हैं। विवेकहीनता में भी औरतों से आगे हैं।
कहने का तात्पर्य यह कि औरतें जब लोकतंत्र में फैसलेकुन कमेटियों में चुनी जाती हैं तो हमें संदेह का माहौल बनाने से बचना चाहिए। औरतें क्रमशःघर से बाहर आ रही हैं,राजनीति में दाखिल हो रही हैं,उनमें बदलाब हो रहा है।वे एकदम विपरीत परिस्थितियों में काम कर रही हैं,उनको हर हालत में तब तक मदद और समर्थन की जरुरत है जब तक उनकी स्थिति पूरी तरह बदल नहीं जाती।औरत का सबसे बड़ा शत्रु संदेह है। संदेह न करें,उस पर विश्वास करें,वह न तो माया है,न ठगिनी है,वह भी मनुष्य है,उसे भी सामान्य मनुष्य की तरह जीने और काम करने का मौका दें।
ऐसी नेक सोच सबकी होनी चाहिए। . औरत जिस तरह से घर को स्वर्ग बना सकती है वैसे ही वह देश को भी संभाल सकती है
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