रविवार, 27 दिसंबर 2015

माकपा के पार्टी प्लेनम के सामने प्रमुख चुनौतियां

         आज से कोलकाता में माकपा पार्टी प्लेनम आरंभ होरहा है। यह प्लेनम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके ज़रिए माकपा अपने विकास का मार्ग तलाश करने का प्रयास करेगी। खासकर पश्चिम बंगाल में पुन: सत्ता में वापसी हो यह चिंता भी है। माकपा को यदि पश्चिम बंगाल की जनता का विश्वास जीतना है तो उसे निम्न सवालों के दवाब खोजने होंगे-
१. पश्चिम बंगाल की समूची शिक्षा व्यवस्था को किन नीतियों और फ़ैसलों ने पतन के स्तर पर पहुँचाया? समूची शिक्षा का ढाँचा कैसे बर्बाद हुआ? कौन लोग उसके लिए ज़िम्मेदार हैं? शिक्षा का अपराधीकरण कैसे हुआ ?
२. पार्टी संगठन और जनसंगठनों के अपराधीकरण के लिए किस तरह की नीतियाँ और कौन से नेता ज़िम्मेदार हैं?
३.समूचे पश्चिम बंगाल में वामशासन के अंतिम १० साल आम जनता के लिए बेहद तकलीफ़देह रहे हैं,सामाजिकतौर पर माकपा के नेता और कार्यकर्ताओं ने आम जनता के जीवन में जिस तरह हस्तक्षेप किया उसके कारण राजनीति और समाज का अपराधीकरण हुआ। आम जनता को अकल्पनीय मानसिक- सामाजिक यातनाएँ सहन करनी पड़ी हैं, इस समूची प्रक्रिया के लिए जो लोग ज़िम्मेदार रहे हैं वे आजतक पार्टी में हैं जबकि उनको दल से निकालना चाहिए, इस तरह के व्यापक अपराधीकरण के मूल कारणों को रेखांकित किया जाना चाहिए,साथ ही अपराधी मनोदशा के पार्टी सदस्यों और नेताओं को पार्टी ने निकालना चाहिए।
४.पार्टी की सांगठनिक प्रणाली को लोकतांत्रिक बनाया जाय और सदस्यों को पहल करके काम करने देने की नीति बनायी जाय।
५. पार्टी यह तय करे कि वह अपराधी तत्वों से दूर रहेगी और आम जनता से अपने वामशासन में हुई गलतियों के लिए घर घर जाकर माफ़ी माँगेगी,आम जनता का विश्वास जीतने के लिए यह ज़रूरी है।
उपरोक्त पाँचों समस्याओं पर समग्रता में कार्रवाई की योजना लेकर पार्टी सामने आए तो आम जनता से जुड़ने में मदद मिल सकती है।
  उल्लेखनीय है माकपा के दस लाख से ज्यादा सदस्य हैं।90हजार से ज्यादा ब्रांच-प्राथमिक इकाईयां हैं।तकरीबन 10हजार से ज्यादा होलटाइमर हैं।इतने बड़े नेटवर्क के बावजूद यदि माकपा में ठहराव और संकट है तो उसकी जड़ें कहीं गहरी होंगी जिनको प्लेनम को खोजना चाहिए। सामयिक संकट का प्रधान कारण है पार्टी सदस्यों का सामंती मनोभाव,सामंती आदतेंऔर आत्मसंघर्ष करके बदल न पाने की स्थिति।इसके अलावा पूंजीवाद और पूंजीपतिवर्ग के प्रति अंधघृणा।सामंतीबोध और अंध- पूंजीवादी घृणा के आधार पर सांगठनिक विकास संभव नहीं है।
लोकतंत्र के अनुरूप जिस उदार मनोदशा को विकसित होना चाहिए वह मनोदशा पार्टी अपने सदस्यों में विकसित ही नहीं कर पायी है।उदारवादी मूल्यों,संस्कारों और क्रांतिकारी मूल्यों -संस्कारों में अंतर्क्रिया का एकसिरे से अभाव है।इसके विपरीत पार्टी में गुटबाजी का,खासकर पश्चिम बंगाल में बोलवाला है।जिन नेताओं की इमेज खराब है या फिर जो एकसिरे से अप्रासंगिक हो चुके हैं,उनसे पार्टी अपने को मुक्त नहीं कर पायी,उनके साथ पार्टी ने सामंती वफादारों जैसा संबंध बनाया हुआ है।सामंती वफादारी के आधार पर क्रांतिकारी पार्टी का विकास संभव ही नहीं है।यही सामंतीभावबोध है जिसके कारण उत्तरभारत में पार्टी अपना विकास नहीं करपायी है।पार्टी के अंदर सामंती भावबोध,सामंती वफादारी आदि के खिलाफ संघर्ष का माकपा अभी तक कोई ब्लूप्रिंट तैयार नहीं करपायी है।यही वजह है नेकनीयत के बावजूद पार्टी अपना विकास नहीं कर पा रही है।
आज के राजनीतिक हालात में भारत के राजनीतिक दलों में तुलनात्मक तौर पर माकपा सबसे बेहतरीन राजनीतिक दल है,इसके पास बेहतरीन ईमानदार केन्द्रीय नेतृत्व है।निचले स्तर पर बहुत बड़ी संख्या में समर्पित कार्यकर्ता हैं। नीतियों के मामले में यह बेजोड़ है। आज माकपा जिस राजनीतिक संकट और ठहराव में फंसी है उसमें से यह पार्टी देर-सबेर निकलेगी,इसका प्रधान कारण है भारत की परिस्थितियां।
भारत की मौजूदा परिस्थितियों में माकपा की भूमिका बढ़ गयी है,जरुरत इस बात की है कि नेता-कार्यकर्ता वैचारिक पहल करें,नए नजरिए को अपनाएं,पुराने संकीर्णतावादी रूझानो से संगठन को मुक्त करें और नए सामाजिक यथार्थ के अनुरुप पार्टी का सांगठनिक ढाँचा बनाएं।
पार्टी का मौजूदा सांगठनिक ढाँचा एकसिरे से अप्रासंगिक हो चुका है,यह आम जनता के सवालों पर त्वरित कार्रवाई करने में असमर्थ है।आज कम्युनिस्ट पार्टी सदस्यों को रीयल टाइम में फैसले लेने,राय व्यक्त करने और आम लोगों को सार्वजनिक संचार माध्यमों के मंचों पर लोकतांत्रिक आचरण करने,लोकतांत्रिक नजरिए से पार्टी की राय रखने या निजी तौर पर हस्तक्षेप करने की आदत डालनी होगी।
कम्युनिस्ट पार्टी को रीयल टाइम में रेस्पांस देने की शिक्षा अपने सदस्यों और नेताओं को देने की व्यवस्था करनी चाहिए।यह दौर राजनीतिक पहल और राजनीतिक संचार का दौर है।इस दौर में मार्क्सवाद के विकास की अनंत संभावनाएं हैं।खासकर युवाओं के बीच सक्रिय रहने की जरुरत है।
युवाओं को जोड़ने का सोशलमीडिया सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है।इस माध्यम में पार्टीलाइन की नहीं लोकतांत्रिक संवाद और लोकतांत्रिक नजरिए,लोकतांत्रिक वेबसाइट या लोकतांत्रिक साइबर समूहों में गोलबंद करने की जरुरत है। साइबर संचार के जरिए लोकतांत्रिक और मार्क्सवादी विचार सामग्री के नए-नए साइबर मंचों के निर्माण की जरुरत है।इस दिशा में माकपा को व्यापक पहल करने की जरूरत है।
माकपा के सांगठनिक ढाँचे के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैचारिक है,इस समय जो सदस्य हैं उनमें अधिकांश को मार्क्सवाद का क ख ग तक नहीं आता।यह स्थिति जितनी जल्द खत्म हो उतना ही अच्छा है। भारत में सामाजिक परिवर्तन के लिए अच्छे पढाकू और अच्छे लड़ाकू कॉमरेडों की जरुरत है। लट्ठ कॉमरेडों की नहीं।विगत दो दशकों में पश्चिम बंगाल में हमने कॉमरेडों के ज्ञान के स्तर में जो क्षय देखा है वह अकल्पनीय है। अधिकांश के लिए माकपा एक कैरियर संगठन रहा है।माकपा और उसके जनसंगठन कैरियर प्रमोशन स्कीम का अंग नहीं है। राजनीतिकचेतना की बजाय कैरियरचेतना पर कॉमरेडों ने काम किया है और उन सभी को पार्टी नेतृत्व ने पाला-पोसा है जो कैरियर के रुप में पार्टी में शामिल हुए,सरकारीतंत्र की मलाई खाई,ऐसे ही कॉमरेडों ने संगठन को सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त किया है। इसे लेनिन की भाषा में राजनीतिक अवसरवाद कहते हैं। राजनीतिक अवसरवाद किसी भी कम्युनिस्टपार्टी के लिए जहर है।
देश में जिस तरह का राजनीतिक संकट और नीतिहीनता का माहौल है उसमें वामपंथी ताकतों को नए नीतिगत परिप्रेक्ष्य और पद्धतियों के साथ आम जनता और लोकतांत्रिक राजनीतिक ताकतों को एकजुट करने के बारे में सोचना होगा।इसमें दो स्तरों पर कदम उठाने के बारे में पार्टी प्लेनम निर्णय ले,पहला, पूर्व माकपा सदस्यों और हमदर्दों को कैसे वापस साथ लिया जाए और उनके साथ निचले स्तर पर संपर्क-संबंध बनाने के लिए प्लेनम सीधे सभी इकाईयों को निर्देश दे,जो पार्टी जनपार्टी बनना चाहती है वह अपने बिछुड़े या त्यागे या भागे हुए सदस्यों हमदर्दों को उसे हर हालमें अपने साथ जोड़ना चाहिए।यह काम आत्मालोचना और विनम्रता के साथ किया जाना चाहिए। पार्टी में आए अहंकार को हर स्तर पर सीधे चुनौती दी जानी चाहिए। माकपा सदस्यों में अहंकार क्यों है और उससे कैसे मुक्ति पायी जाए,यह बड़ी चुनौती प्लेनम के सामने है। अहंकार तो कम्युनिस्ट को अमानुष बना देता है।

वामशासन के दौरान सरकार और पार्टीतंत्र का अंतर खत्म हो गया था।पार्टी मेम्बर समूचे राज्य तंत्र को उसके नियमों से चलाने की बजाय पार्टी नियमों और पार्टी आदेशों के जरिए चलाते रहे इसके कारण आम जनता के हितों को गंभीर नुकसान पहुँचा।इसने प्रत्येक स्तर पर पेशेवर कौशल और स्वायत्तता को क्षतिग्रस्त किया।इसके कारण विभिन्न स्तरों पर दलीय आधार पर भेदभाव हुआ।ये वे मसले हैं जिनका हल प्लेनम को खोजना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...