शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

साइबर स्‍पेस और साइबर संस्‍कृति‍

साइबर स्पेस,साइबर कल्चर -
साइबर स्पेस वैकल्पिक चेतना है।यह दूसरी प्रकृति है। अब लोग 'साइबोर्ग' होते जा रहे हैं। साइबर स्पेस में खोजते रहते हैं,विचरण करते हैं, पढ़ते हैं ,आनंद लेते हैं, अपनी इच्छित इमेज बनाते रहते हैं। आज व्यक्ति के अस्तित्व के लिए अनंत विकल्प सइबर स्पेस दे रहा है। ये विकल्प मनुष्य को प्रत्येक क्षेत्र में उदार बना रहे हैं। साइबर स्पेस में विचरण करने का अर्थ है संकीर्णता की मौत । यहां निर्मिति पर जोर है। एक जमाना था जब निर्मिति को मनुष्य के लिए औपचारिकता के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। साइबर स्पेस में अनौपचारिक प्रतिक्रिया के अर्थ में इस्तेमाल किया जा रहा है। आज हम देख रहे हैं कि कम्प्यूटर व्यक्ति की अस्मिता के निर्माण के महत्वपूर्ण उपकरण्ा के रूप में उभरकर सामने आया है। कुछ लोग मानते हैं कि यह व्यक्ति की अस्मिता का मर्म भी तय कर रहा है। साइबर स्पेस के बारे में मारकोस नोवाक का मानना है कि यह ग्लोबल सूचन प्रोसेसिंग सिस्टम की सभी सूचनाओं का विशिष्ट दृश्यांकन है। वर्तमान और भविष्य का संचार नेटवर्क है। यह बहुस्तरीय यूजरों की एक साथ मौजूदगी और संपर्क का केन्द्र है। यहां सामग्री जोड़ी या घटायी जा सकती है। वास्तव जगत की नकल है।वर्चुअल रियलिटी है। इसमें दूर से डाटा संकलन किया जा सकता है।दूरसंचार के जरिए दूर से ही नियंत्रण किया जा सकता है।चीजों को अन्तर्गृथित करता है।बौध्दिकतापूर्ण मालों और माहौल को रीयल स्पेस में पहुँचाता है। साइबर स्पेस मौजूदा संपर्क रूपों के एकदम विपरीत है। यह कम्प्यूटरीकृत सूचना से युक्त है। सामान्य तौर पर हम सूचना के बाहर होते हैं। किन्तु साइबर स्पेस में हम सूचना के अंदर होते हैं। ऐसा करने के लिए हमें वाइट्स में अपना रूपान्तरण करना होता है। वाइट्स में रूपान्तरण करते ही व्यक्ति स्वयं सूचना बन जाता है। आज तक वह सूचना के बाहर था किन्तु इंटरनेट आने के बाद वह सूचना के अंदर आ जाता है। व्यक्ति का सूचना में रूपान्तरण विलक्षण परिघटना है। वाइट्स में रूपान्तरित सूचना की रक्षा के लिए ही प्राइवेसी के कानूनों की जरूरत होती है। बाइट्स में रूपान्तरित होने के बाद सूचना स्वायत्त हो जाती है। यदि वह सुरक्षा के घेरे में कैद नहीं है तो उसके दुरूपयोग की अनंत संभावनाएं हैं। सुरक्षा घेरे में रहने के कारण वह बंद रहती है। किन्तु सुरक्षा घेरा हटते ही सूचना का अन्य वस्तुओं में रूपान्तरण हो सकता है। साइबर स्पेस में सूचना की स्वायत्तता तर्क को अतर्क और अतर्क को तर्क बना देती है। यहां औपचारिकता का अनौपचारिकता में और अनौपचारिकता का औपचारिकता में रूपान्तरण्ा हो जाता है। समय की धारणा खत्म हो जाती है।सब कुछ रीयल टाइम या यथार्थ समय में घटित होता है। अब जो सिस्टम का प्रिनिधित्व करेगा वह बाइट्स बन जाता है।
साइबर स्पेस डाटा, सूचना, एवं फॉर्म आदि को डिजिटल तकनीकी में विस्तार देता है। समृध्द करता है। पृथक् करता है। अनंत संभावनाओं के द्वार खोलता है। अब हम प्रतिनिधित्व के युग में पहुँच चुके हैं। यह भी कह सकते हैं कि साइबर स्पेस कल्पना का स्वर्ग है। चरमोत्कर्ष है। यह कविता के तत्वों को भी आत्मसात् कर लेता है। रेखीय चिन्तन कविता की बुनियाद है। उसका क्रमिक स्मृति से संबंध है। इसमें प्रत्येक चीज संचित की जा सकती है। किन्तु इसे खोजने के लिए समय की जरूरत होगी। अत: इसके लिए चिर-परिचित रणनीति अपनायी जाती है। जिससे सूचना हासिल की जा सके। साइबर स्पेस वह जगह है जहां सचेत स्वप्न और अचेत स्वप्न की मुलाकात होती रहती है। यह तर्कपूर्ण जादू की दुनिया है। रहस्य का तर्क है। यह दरिद्रता के ऊपर कविता की विजय है।

साइबर स्पेस तेजी से फैल रहा है।उसकी स्वायत्त दुनिया है। साइबर स्पेस का आज कोई भी विवाद जब उठता है तो उसे एकाकी फिनोमिना के रूप में देखा जाता है। साइबर में स्थानीयता का अभाव है। क्योंकि उसके नेट के दायरे में सारा भूमंडल आता है। कुछ देश आज भी यह सोचते हैं कि इस भूमंडलीय नेटवर्क से काटकर अपना विकास कर लेंगे। उसके प्रत्येक कार्यक्रम की जांच करेंगे। उस पर निगरानी रखेंगे। जो आपत्तिजनक साइट हैं उन्हें प्रतिबंधित करेंगे। ये सारी चीजें असंभव हैं। प्रसिध्द संचार शास्त्री निकोलस नीग्रोपॉण्टी ने लिखा है कि कानूनी नियंत्रण हमेशा स्थानीय होता है। चूंकि यह माध्यम विकासशील है अत: इसके बारे में कोई भी कानून स्थायी तौर पर बनाना असंभव है। इसके विपरीत कानून स्थानीय होते हैं। उनमें स्थानवश भेद होता है। किंतु साइबर स्पेस का मामला थोड़ा भिन्न है। साइबर स्पेस भू-राजनय जगत नहीं है। बल्कि टोपोलॉजी है। यह टोपोग्राफी नहीं है। इसका कोई कायिक आधार नहीं है। यही वजह है कि डिजिटल युग में संप्रभुता बेमानी है। अर्थहीन है। संप्रभुता की असली परीक्षा श्लील अथवा अश्लील के आधार पर संभव नहीं है। नैतिकता के आधार पर नहीं होती। बल्कि पैसे के आधार होती है। सवाल यह है कि डिजिटल से लोग कितना कमाते हैं। जो जितना ज्यादा कमाता है वह अपने राष्ट्र की पहचान से जुड़ने लगता है।
नए युग का मंत्र है 'डिजिटल मनी ' आज सभी क्षेत्रों में डिजिटल मनी प्रवेश कर गई है। इसके कारण मुद्रा के निर्माण में जो लागत आती थी,उसके रखरखाव में जो दिक्कतें आती थीं, वे सब धीरे-धीरे गायब होती जा रही हैं। करेंसी सिकुडकर स्थानीय बनकर रह गई है। डिजिटल मनी ग्लोबल मनी है। आज आप विश्व प्रसिध्द स्तर पर अनेक देशों की एक ही करेंसी को भी देख सकते हैं। यूरो डालर का जन्म इसीलिए हुआ है। अब स्थानीय नहीं विश्व मुद्रा का युग है। उसी में लेन-देन होता है। अंतरिक्ष से स्थानान्तरित होकर आने वाली करेंसी ठीक समय पर हमारी जेब में या खाते में आ जाती है। ऐसा तब होता है जब करेंसी '''वाइट्स' में तब्दील हो जाती है। 'वाइट्स' की असीमित पहुँच है। कल तक हम जिसे पड़ोस कहते थे उसमें स्थान शामिल था। किंतु डिजिटल युग में पडोस खत्म हो जाता है। अब उसकी जगह ग्रुप ले लेता है। ग्रुप में वे शामिल हैं जिनके साझा हित हैं। इसे वर्चुअल पडोसी कहना सही होगा। यह नए किस्म का वर्चुअल स्थानीयतावाद है।
इंटरनेट की अंतर्वस्तु का सन् 2002 में सर्वे करने के बाद पता चला है कि इसमें 56.4 फीसदी अंतर्वस्तु अंग्रेजी भाषा में है।इसके बाद जर्मन में 7.7 फीसदी ,फ्रेंच में 5.6 फीसदी, जापानी में 4.9 फीसदी ,स्पेनिश में 3.0 फीसदी, चीनी में 2.4 फीसदी ,इटालियन में 2.0 फीसदी ,डच में 1.9 फीसदी ,रशियन में 1.7 फीसदी, कोरियन में 1.5 फीसदी , पोर्तुगीज में 1.5 फीसदी , स्वीडिश में 0.7 फीसदी , पोलिश में 0.7 फीसदी , डेनिश में 0.6 फीसदी ,हंगेरियन में 0.2 फीसदी, ग्रीक में 0.1 फीसदी , अन्य भाषाओं में 8.3 फीसदी सामग्री उपलब्ध है। सन् 2001 में इंटरनेट पर 550 विलियन डाकूमेंटस दर्र्र्ज किए गए। इनमें बड़ी मात्रा में अभी अदृश्य हैं।यह भी देखा गया है कि गुगल पर अंग्रेजीभाषी वेबसाइट की खोज करने वालों की संख्या में गिरावट आई है। जबकि अन्य उपरिलिखित भाषाओं की वेब खोजने वालों की संख्या मे इजाफा हुआ है। बाजार और ग्राहक के नजरिए से विचार करें तो पाएंगे कि वेब के आने के बाद ग्राहक की मोलतोल करने की शक्ति एकसिरे से खत्म हो गयी है। अब प्रत्येक वस्तु निश्चित दाम पर ही खरीदी और बेची जाती है।
वेब के जनप्रिय होते ही और 'ब्रॉडबैण्ड पाथ ' बनने के साथ ही टेलीफोन का धंधा बैठ भी सकता है। भविष्य में जितने ब्रॉडबैण्ड बनते जाएंगे,प्रतिस्पर्धा बढ़ती जाएगी। मुनाफे का अंतर घटता जाएगा। फाइबर तार का जाल,वायरलैस और सैटेलाइट के विस्तार के कारण संचार की आज जो प्रकृति है वह पूरी तरह बदल जाएगी। इंटरनेटवेस टेलीफोनी सिस्टम का तंत्र तेजी से फैलेगा। उसके शुरू होते ही बात करने के समय में कमी आ जाएगी।टेलीफोन का स्वचालितीकरण होले के बाद हमारे सम्बोधन की प्रकृति ही बदल गयी है। अब हम बातचीत आरंभ करते समय हलो नहीं कहते। आज हमारे पास डिजिटल नौकर हैं। जो हमारा सारा काम कर देते हैं। पहले टेलीफोन एक्सचेंज में बैठी हुई लड़की से नम्बर मिलवाना होता था। वह फोन उठाती थी हलो बोलती थी हम भी हलो बोलते थे। हलो इसलिए बोलते हैं कि हम सामने वाले को नहीं जानते। आजकल टेलीफोन एक्सचेंज का ग्राहक सेवाओं का सारा काम लिजिटल लड़की करती है। सारे सवालों के जबाव यही देती है। आप सिर्फ बटन दबाते जाइए और आगे बढ़ते जाइए। यही स्थिति जीवन के अन्यान्य क्षेत्रों और दैनन्दिन कार्यों के बारे में होने जा रही है। सब कुछ डिजिटल संचालित होगा। घर के रोजमर्रा के कामों से लेकर घर की चौकीदारी तक सब कुछ डिजिटल संचालित रोबोट और कैमरा करेगा। इस समूची प्रक्रिया का संबंध कम्प्यूटर से होगा। आप घर के बाहर रहकर समूचे घर पर नजर रख सकेंगे। एक जमाना था पैसा निकालने के लिए बैंक जाना पड़ता था। आज ऑनलाइन के जरिए आप अपना पैसा निकाल सकते हैं।घर बैठे पैसा प्राप्त कर सकते हैं। ऑन लाइन पर आप खर्च कम करते हैं,सम्प्रेषण ज्यादा करते हैं। ब्रॉडबैण्ड के फैलते ही तीव्रगामी परिवर्तन होंगे। फोन के बेकार हो जाने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। अभी फोन लाइन से फोन करने पर बार-बार पैसा देना होता है। किंतु ऑनलाइन पर पैसा नहीं देना होगा। सिर्फ ब्रॉडबैण्ड का मासिक शुल्क देना होगा। ऑन लाइन में आप कहीं से भी संपर्क में रह सकते हैं। कहीं भी बातें कर सकते हैं। आजकल कम्प्यूटर में ही सारी सुविधाओं का समावेश हो चुका है। भविष्य में लोग टी.वी. के सामने नहीं कम्प्यूटर के सामने बैठे मिलेंगे। कम्प्यूटर से बातें कर रहे होंगे। कम्प्यूटर हमसे बातें कर रहा होगा। कैमरा सब जगह होगा। इसे होलोविजन कहते हैं। कम्प्यूटर में कैमरा लगा होगा और वह सब कुछ देख रहा होगा। आप जिससे भी बातें करेंगे वह आपको देख पाएगा। चाहेगा तो सारे घर को देख पाएगा। कोई भी चीज छिपी नहीं होगी। सब कुछ पारदर्शी होगा। कहने का अर्थ है कम्प्यूटर की आंखें सब जगह होंगी। अभी हम टेली काँफ्रेंसिंग करते हैं। यह कम्प्यूटर आधारित संचार है। वहां कैमरा कम्प्यूटर की आंख और कान का काम करता है। निकट भविष्य में यूजर को देखने का सुख पाएंगे। कम्प्यूटर की आंखें वैसी ही होंगी जैसी हमारी आंखें हैं।
जब व्यक्ति एक-दूसरे को देख रहा होता है तो संचार बदल जाता है। दो व्यक्ति मिलते हैं तो हाथ मिलाते हैं।महसूस करते हैं।चुम्बन लेते हैं। गले मिलते हैं। हंसते हैं। यानी मानवीय संचार होता है। अब इसकी जगह आप कम्प्यूटर में होगे और वह सेंध लगा रहा होगा। देखते ही चौंक जाएंगे। चौंकते ही आपकी आंखें चल निकलेंगी। कम्प्यूटर को मानवीय बनाने के लिए वैक चैनलों का होना जरूरी है। तब ही आमने-सामने मुलाकात का मजा भी आएगा। कम्प्यूटर में जब कैमरा लगा होगा तो आप देख पाएंगे ,प्रशंसा कर पाएंगे। समझ पाएंगे। भविष्य में सूचना समृध्द और सूचना दरिद्र नहीं होंगे। इंटरनेट ऐसी संभावनाएं पैदा कर रहा है कि सूचना पर वर्चस्व स्थापित करना असंभव हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है इंटरनेट यूजरों की संख्या में तेजी से हो रहा इजाफा। इंटरनेट अभी जिस अवस्था में है उसमें ब्राउजिंग की जरूरत बनी रहेगी। किंतु जल्दी ही इससे भी मुक्ति संभव है। ब्राउजिंग उनके लिए है जिनके पास फालतू समय है। इंटरनेट जंगल की तरह है और यूजर भूखे जंगली पशु की तरह है जो जंगल में अपने लिए भोजन की तलाश में घूमता रहता है।ब्राउजिंग के लिए समय की जरूरत होती है किंतु भविष्य में मनुष्य के पास खोज के लिए इतना समय नहीं होगा। आज हम एक शहर से दूसरे शहर और एक पेज से दूसरे पेज की यात्रा करते रहते हैं। इसके बावजूद अपने पेज को होम कहते हैं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक जमाना था जब निर्मिति को मनुष्य के लिए औपचारिकता के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। साइबर स्पेस में अनौपचारिक प्रतिक्रिया के अर्थ में इस्तेमाल किया जा रहा है।
    ...यह पंक्ति व्याख्या चाहती है. कृपया स्पस्ट करें.....

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  2. बंधु रविरंजन जी , साइबरस्पेस में कहा-सुना,लिखा, निर्मिति है । अनौपचारिक और नश्वर है। जैसे ईमेल हम देखकर नष्ठ कर देते हैं।

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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