सोमवार, 13 जुलाई 2009

माकपा का पाखंड: सत्‍य बडा या अनुशासन

सत्‍य के सामने माकपा मार्का मार्क्‍सवाद हमेशा हार जाता है । सत्‍य से माकपा को एलर्जी है अथवा नफरत है कहना मुश्‍कि‍ल है। केरल में लवलीन केस के मामले में भ्रष्‍टाचार हुआ ,इस आरोप पर मुकदमा चल रहा है किंतु माकपा का फैसला आ गया है कि‍ पार्टी सचि‍व वि‍जयन र्नि‍दोष है। दोषी हैं अच्‍युतानंदन क्‍योंकि‍ उन्‍होने पार्टी अनुशासन तोडा। फलत: केन्‍द्रीय समि‍ति‍ ने अंतत: केरल के मुख्‍यमंत्री अच्‍युतानंदन को पोलि‍ट ब्‍यूरो के बाहर कर दि‍या। अखबार में छपी रि‍पार्ट बताती हैं कि‍ उन पर पार्टी की अनुशासनहीनता का आरोप था जि‍से केन्‍द्रीय कमेटी ने सही पाया। अच्‍युतानंदन सही हैं या पार्टी सही है इसके बारे में तथ्‍यपूर्ण आधारों पर कुछ भी कहना संभ्‍ाव नहीं है।
पार्टी की समूची सांगठनि‍क कार्यप्रणाली में पारदर्शी नजरि‍ए का अभाव है। कोई भी राजनीति‍क दल हो उसे पारदर्शी ढंग से काम करना चाहि‍ए, और समस्‍त सबूत और प्रक्रि‍याओं को आम जनता के सामने रखना चाहि‍ए। माकपा की साफ सुथरी इमेज के लि‍ए यह जरूरी है कि‍ वह साफ शब्‍दों में बताए कि‍ केन्‍द्रीय समि‍ति‍ और पोलि‍ट ब्‍यूरो में क्‍या बहस हुई और केन्‍द्रीय समि‍ति‍ में फैसला कि‍न आधारों पर लि‍या गया।
कुछ अर्सा पहले त्रि‍पुरा के मुख्‍यमंत्री को ,जो अब हमारे बीच नहीं हैं, उन्‍हें आनंद बाजार पत्रि‍का को यह बात कहने के लि‍ए पार्टी से नि‍काल दि‍या गया कि‍ पश्‍चि‍म बंगाल प्रशासन भ्रष्‍टाचार में फंसा हुआ है,उस समय मुख्‍यमंत्री ज्‍योति‍ बाबू थे। आज यही तथ्‍य प्रत्‍येक पार्टी दस्‍तावेज में पार्टी ने दर्ज कि‍या हुआ है कि‍ पश्‍चि‍म बंगाल में पार्टी में भ्रष्‍ट तत्‍व आ गए हैं। सवाल अनुशासन का नहीं सत्‍य का है। माकपा अथवा कि‍सी भी राजनीति‍क दल को अनुशासन को तरजीह देनी चाहि‍ए अथवा सत्‍य को। मौटे तौर पर माकपा से यह सवाल है कि‍ केरल के पार्टी सचि‍व के बारे में यदि‍ भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं और उन्‍हें मुकदमे का सामना करना है तो उन्‍हें पार्टी मदद करे किंतु पार्टी उन्‍हें पद मुक्‍त करके मदद करे।
केरल पार्टी सचि‍व साधारण नागरि‍क नहीं है, वह सत्‍तारूढ मोर्चे के प्रमुख घटक दल का सचि‍व है, उसकी तरफ यदि‍ संदेह की उंगली उठ रही है तो अदालत के फैसले तक पार्टी को चुप रहकर देखना चाहि‍ए। मजेदार बात यह है कि‍ बोफोर्स घूस कांड में नाम मात्र उठने से माकपा ने राजीव गांधी से प्रधानमंत्री पद से इस्‍तीफा मांग लि‍या था। अब जब उनकी पार्टी के नेता का नाम भ्रष्‍टाचार के मामले में आया है तो राजनीति‍क संघर्ष की बात की जा रही है ,जबकि‍ यही फार्मूला वे अन्‍य कि‍सी भी दल के नेता पर लागू करने के लि‍ए तैयार नहीं हैं।
यह एक ठोस वास्‍तवि‍कता है कि‍ पश्‍चि‍म बंगाल और केरल में माकपा की कतारों में भ्रष्‍ट लोग आ घुसे हैं और पार्टी के नाम को, संपत्‍ति‍ को चूहों की तरह कुतर कुतरकर खा रहे हैं। कुछ पार्टी नेता तो एकदम माफि‍या ,बाहुबली और धनाढय की तरह हैं जि‍नके पास आय से कई गुना ज्‍यादा संपत्‍ति‍ है। पार्टी के केन्‍द्रीय नेतागण उनके बारे में अच्‍छी तरह जानते हैं इसके बावजूद उनके बारे में अभी तक अनुशासनात्‍मक कार्रवाई के बारे में कभी सोचा तक नहीं गया। पार्टी में रहो,अनुशासन में रहो,चुप रहो,तो पार्टी खुश है। इसके बाद पार्टी के नाम पर अथवा उसके बहाने चाहे जि‍तना कमाओ और घूस खाओ। पार्टी को कोई एतराज नहीं है। माकपा में भ्रष्‍टाचार कि‍स हद तक आ चुका है और पार्टी के केन्‍द्रीय नेतागण उसे लेकर कि‍तने गंभीर हैं इसके लि‍ए इस तथ्‍य से ही प्रमाणि‍त होता है कि‍ आज तक केन्‍द्रीय नेत़ाओं ने अपनी पहलकदमी पर कभी भी कि‍सी नेता के खि‍लाफ भ्रष्‍टाचार के आरोप में कार्रवाई नहीं की और उसे कानून के हवाले नहीं कि‍या। उलटे पार्टी अनुशासन के नाम पर उस पर लीपापोती की गई। अनुशासन का सवाल माकपा में तब ही उठता है जब कोई चीज पार्टी के बाहर लीक हो जाती है।
अच्‍युतानंदन के मामले में माकपा ने जो गलती की है,वही गलती सोमनाथ चटर्जी के मामले में भी की थी। सवाल यह है कि‍ जो पार्टी सदस्‍य संवैधानि‍क पद पर कार्य कर रहा हो उसे सबसे पहले कि‍स पद के दायि‍त्‍व का पालन करना चाहि‍ए । क्‍या पार्टी का अनुशासन देश के संवैधानि‍क पद के अनुशासन से बडा है, क्‍या पार्टी का फैसला देश की अदालत के फैसले से बडा है, क्‍या केरल के पार्टी सचि‍व को यदि‍ अदालत दोषी करार दे देती है तो अच्‍युतानंदन के बारे में लि‍या गया फैसला पार्टी वापस ले लेगी, कायदे से पार्टी को अदालत का फैसला आने तक इंतजार करना चाहि‍ए था। आश्‍चर्य की बात है कि‍ जि‍स व्‍यक्‍ति‍ पर आरोप है वह तो पार्टी के सर्वोच्‍च पद पोलि‍ट ब्‍यूरो में बना रहेगा और जि‍स व्‍यक्‍ि‍त के बारे में 86 साल की उम्र में भी कोई आरोप नहीं लगा उसे पार्टी के सर्वोच्‍च पद से इसलि‍ए बाहर कर दि‍या गया क्‍योंकि‍ उसने अपने संवैधानि‍क दायि‍त्‍व का पालन कि‍या। अच्‍युतानंदन को दण्‍डि‍त कि‍या है संवैधानि‍क धर्म का पालन करने के लि‍ए।
दूसरा एक महत्‍वपूर्ण सवाल यह भी है कि‍ अब माकपा कम से कम सीबीआई के द्वारा आरोप लगाए जाने अथवा कि‍सी के भी आरोप लगाए जाने के आधार पर कि‍सी भी नेता से कम से कम इस्‍तीफा मांगने का नैति‍क हक खो चुकी है। अब वे लि‍ब्रहान कमीशन की रि‍पोर्ट के आधार पर कि‍सी भी भाजपा नेता के खि‍लाफ कार्रवाई की मांग भी कैसे कर सकते हैं, क्‍योंकि‍ भाजपा का भी वही तर्क है जो माकपा का है। इस प्रसंग में इतना ही कहना है कि‍ राजनीति‍क दलों को अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शि‍ता लाने की जरूरत है, पार्टी अनुशासन और देश के कानून के शासन और कार्यप्रणाली में से उन्‍हें एक चीज को चुनना होगा।

1 टिप्पणी:

  1. aapse ek galti ho rahi hai.aap jage huyon ko jagana chah rahe hain.parti ka najariya ausat sakriya karmi ke vichar ko pradarshit karta hai.party ke lagbhag sare sakriya(direct beneficiary) log vijayan zindabad bolenge.party anushashan, desh se bada hai ,ye ghutti jawani se pilai gai hai.kabhi ye karyakarta bhi unche pado par aayenge ,us din inka bhi to aisi besharm logic par 'raaj' chalega...kaise aap ye sab likh pate hain,tazzub hai.sare mulk me sayad aap akele honge...

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