शनिवार, 22 दिसंबर 2012

नरेन्द्र मोदी का मीडिया असत्य और फेसबुक

मीडिया में लाइव कमेंट्री के दौरान पत्रकारों और राजनीतिक विशेषज्ञों ने अमूमन नरेन्द्र मोदी की जीत पर भावविभोर होकर बातें की। विश्लेषकों का भावविभोर होना सही नहीं है। विश्लेषक को टीवी पर सत्य को सामने लाने का काम करना चाहिए और उन्माद से बचना चाहिए। उन्माद से बचने के लिए विधानसभा चुनाव परिणामों के इतिहास का बारीकी से ज्ञान होना चाहिए। 

आमतौर पर विश्लेषक गुजरात और मोदी पर बात करते हुए सरलीकरण और झूठ का सहारा ले रहे थे। जो झूठ बोले गए उनमें से एक बड़ा झूठ यह है कि ‘विधानसभा चुनाव के इतिहास में मोदी ने तीसरीबार जीतकर इतिहास रचा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।’ यह बात एकसिरे से गलत है।यह बात गुजरात के संदर्भ में सही है लेकिन देश के संदर्भ में नहीं।

मसलन्, ज्योतिबाबू के लोकप्रियता के मानक से काफी पीछे हैं नरेन्द्रमोदी और उनकी पार्टी भाजपा। मीडियापंडितों के द्वारा मोदी की प्रशंसा में अहर्निश झूठ कहा गया। तथ्य बताते हैं कि ज्योतिबाबू 23साल मुख्यमंत्री रहे,वाममोर्चे की तीन-चौथाई बहुमत से चार बार विजय हुई।यह रिकार्ड पार करना किसी भी दल के लिए संभव नहीं है।

विद्या सुब्रहमण्यम ने हिन्दू ( 22दिसम्बर2012) में लिखा पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे को सन् 1977 से 1996 के बीच में तीन-चौथाई बहुमत के रूप में 294 के सदन में क्रमशः 225,228,242 और 241 सीटें मिली थीं।इसके बाद वाममोर्चे के नम्बरों में कमी आई तो 1996 में उसे दो-तिहाई बहुमत मिला तो वाममोर्चे को 202 सीटें मिलीं और 68.70फीसदी वोट मिले थे। वाममोर्चे के वोट 47 प्रतिशत से लेकर 51 प्रतिशत के बीच में घूमते रहे। इसी तरह शीला दीक्षित और नवीन पटनायक भी तीसरीबार मुख्यमंत्री बने हैं।

मोदी पर बातें करते समय मोदी के अलोकतांत्रिक चरित्र को वोट की राजनीति और उनके भाषणों की बाइटस की ओट में छिपाने की कोशिश की गयी। मोदी की अलोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का आलम यह है कि राज्य में समूचा प्रशासन दलतंत्र के मातहत कर दिया गया है। राज्य में सांस्कृतिक बहुलतावाद और जातीय बहुलतावाद को हाशिए पर डालकर सुनियोजित ढ़ंग से हिन्दुत्वकी विचारधारा के मातहत रख दिया गया है। राज्य में धर्मनिरपेक्ष विचारधारा पर राज्यप्रशासन में बैठे लोग आए दिन हमले करते रहते हैं। इसके कारण एक खासकिस्म का साम्प्रदायिक जहर आमजीवन में फैल गया है। इस दहर का ही दुष्परिणाम है कि भाजपा ने एक भी मुसलमान को विधानसभा का टिकट नहीं दिया यहां तक अपने केन्द्रीय मुस्लिम नेताओं की सार्वजनिकसभाएं नरेन्द्र मोदी के साथ नहीं कीं।

यह भी कहा गया कि मुसलमानों का मोदी ने बड़ा ख्याल रखा है। सवाल यह है 2002 में मुसलमानों की जो क्षति की है उसकी भरपायी आनेवाले 100सालों में नहीं होगी। मुसलमानों की पूरी जमी-जमायी अर्थव्यवस्था को 2002 के दंगों ने तबाह कर दिया, जिन लोगों की संपत्ति उस दौरान नष्ट हुई वे आज भी पामाली झेल रहे हैं। दूसरी बात मुसलमानों की ओर जितना पैसा अभी राज्य खर्चा करता है उसमें केन्द्र की स्कीमों से ही अधिकांश पैसा खर्च हो रहा है। राज्य की ओर से विशेष कुछ भी नहीं किया गया है। उलटे राज्य प्रशासन में मुस्लिमविरोधी जहर भर दिया है। इस जहर से न्यायपालिका तक प्रभावित हुई है इसके कारण सुप्रीमकोर्ट को आदेश देकर 2002 के दंगों के केस राज्य के बाहर सुनवाई के लिए भेजने पड़े हैं। सुप्रीमकोर्ट का इस तरह का फैसला अपने आपमें मोदी प्रशासन की अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता को नंगा करता है।

मोदी के इसबार के चुनावप्रचार अभियान में हाईटेक का जमकर इस्तेमाल किया गया। इंटरनेट,ब्लॉग,फेसबुक आदि का भी खूब प्रयोग हुआ है। इस प्रचार से कितना प्रभाव पड़ा यह कहना कठिन है लेकिन इंटरनेट और हाईटेक का प्रभावशाली ढ़ंग से वे इस्तेमाल करने में सफल रहे हैं। इस मामले में कांग्रेस उनसे काफी पीछे रही है।

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भारतीय लोकतंत्र को हठधर्मी और अलोकतांत्रिक दिमाग ने घेर लिया है। कांग्रेस को गुजरात में अपनी हार को शालीनता से मान लेना चाहिए। वहीं पर भाजपा को हिमाचल में अपनी हार को स्वीकार कर लेना चाहिए।

सबको शालीनता का पाठ पढ़ाने वाले इन दोनों दलों के नेताओं में कोई शालीनता नजर नहीं आती। मसलन् गुजरात में हारकर भी कांग्रेस के नेताओं को मोदी को बधाई देनी चाहिए। यही स्थिति हिमाचल में भाजपा को भी करना चाहिए। धूमलजी को वीरभद्र सिंह को बधाई घर जाकर देनी चाहिए। मैं कल सारे दिन टीवी देखता रहा लेकिन एक-दूसरे को बधाई देने वाले दृश्य नहीं देख पाया।

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मोदी को किसी ने यूपी में प्रचार करते नहीं देखा, वे उत्तराखंड भी नहीं गए,पंजाब भी नहीं गए, हिमाचल भी नहीं गए. फिर वे देश में अपनी शक्ति का कब प्रदर्शन करेंगे।

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टाइम्स नाउ चैनल पर अभी एक पत्रकार (जे.स्वामीनाथन अय्यर) ने कहा- "गुजरात का शेर हिमाचल का बकरा।" योगेन्द्र यादव ने कहा कि भावी परिणाम के रूप में मोदी की जीत लोकतंत्र का डार्कसाइड है।

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गुजरात में भाजपा को 115,कांग्रेस को 61 सीटें मिली हैं। सन् 1985 के बाद पहलीबार कांग्रेस को 60 से ऊपर सीटें मिली हैं। भाजपा को रिकॉर्ड 51 फीसदी मत मिले हैं। तकरीबन एक बार वाममोर्चे को भी पश्चिम बंगाल में 52 फीसदी मत मिले थे। अतः मोदी का यह कहना सही नहीं है वे अकेले नेता हैं जो इतिहास बना रहे हैं।

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हिन्दी में बोलना राष्ट्रीय नेता होना नहीं है। मोदी का हिन्दी स्पीच से चुनाव प्रचार का आरंभ और समापन हुआ। हिन्दी बोलने से पीएम बनना आसान होता तो अटलजी को 40साल न लगते पीएम बनने में और आडवाणी तो अभी भी इंतजार में हैं ,लेकिन देवगौड़ा पीएम बन गए बिना हिन्दी जाने। हिन्दी में बोलने का मतलब है हिन्दी चैनलों के लिए बोलना।

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मोदी ने कहा कि मेरे खिलाफ झूठ का बबंडर चला है। वे (मीडियावाले) मेरे खिलाफ गंदी भाषा बोल रहे थे।

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फेसबुक पर बातें करते समय दलीय बुद्धि से नहीं । बुद्धि से काम लें मित्रलोग। दलीय नजरिए के लिए वे अपने अपने दल के वॉल पर जाएं ,यहां पर वस्तुगत बहस के लिए आएं।

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अहमदाबाद में नरेन्द्र मोदी ने विजय रैली में सुंदर भाषण दिया। उनके भाषण का निचोड़ यही है वे गुजरात छोड़ने नहीं जा रहे। इस रैली में उन्होंने मीडिया आलोचकों की कड़ी आलोचना की। अपने आलोचकों की बातों को मोदी ने बौद्धिक व्यभिचार की संज्ञा दी।

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गुजरात में भाजपा की यह पांचवीं जीत है। मोदी की तीसरी जीत है। इसके बावजूद हिमाचल में क्यों हारे मोदी के नायकत्व से हिमाचल में मदद नहीं मिली,तो यूपी-बिहार में क्या मोदी से 2014 में मदद मिलेगी ?

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गुजरात के बारे में एग्जिट पोल सर्वे की तुलना करें तो सच और कल्पना का अंतर साफ नजर आएगा। पहली बात यह कि मोदी को 51 फीसद वोट मिले हैं ,कांग्रेस को 41 फीसदी वोट मिले हैं , अधिकांश सर्वे जो सीटें बता रहे थे उससे भी परिणाम का मेल नहीं बैठता। खासकर कांग्रेस की सीटों के बारे में अधिकांष अनुमान गलत साबित हुए हैं। एग्जिट पोल देखें-



टाइम्स नाउ के लिए सी-वोटर द्वारा कराए गए एग्जिट पोल में भाजपा को गुजरात की कुल 182 सीटों में से 119 से 129 सीटें तथा कांग्रेस को 49 से 59 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है।
न्यूज 24 ने दिखाया कि भाजपा को वर्ष 2007 में 117 सीटों के मुकाबले इस बार 140 सीटें मिलने की संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी को कुल पड़े मतों में से 46 प्रतिशत मिलने की संभावना है। चैनल के लिए एग्जिट पोल चाणक्य द्वारा कराया गया। इसमें अनुमान लगाया गया है कि कांग्रेस को 40 सीटें मिलेंगी, जो उसे वर्ष 2007 में मिली 59 सीटों से 19 कम होंगी। 
हेडलाइंस टुडे ने अनुमान लगाया कि भाजपा को 118 से 128 के बीच सीटें मिलेंगी जबकि कांग्रेस को 50 से 56 सीटें मिलने की संभावना है। कांग्रेस को कुल पड़े मतों में से 37 प्रतिशत मिलने की संभावना है। 
एबीपी न्यूज ने अनुमान लगाया कि भाजपा को इस चुनाव में 126 सीटें मिलेंगी और कांग्रेस 50 सीटों पर जीत दर्ज करेगी। भाजपा के बागी केशुभाई की जीपीपी को मात्र 2 सीटें, जबकि अन्य के खाते में 4 सीटें जाने का अनुमान है। सी-वोटर ने अनुमान लगाया कि भाजपा को कुल पड़े मतों में से 46 प्रतिशत और कांग्रेस को 37 प्रतिशत मत मिलेंगे। वहीं चाणक्य ने कहा कि भाजपा को 50 प्रतिशत वोट जबकि कांग्रेस को 35 प्रतिशत वोट मिलेंगे। 

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हिमाचल के बारे में एग्जिट पोल सर्वे गलत साबित हुए हैं। इन सर्वेक्षणों में जो अनुमान भाजपा के बारे में लगाए गए थे वे सही साबित नहीं हुए हैं। मसलन्

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर है। इस सर्वे में कांग्रेस को 41 फीसद और भाजपा को 40 फीसद वोट मिलने की बात कही गई है। सीटों के हिसाब से देखें तो इस सर्वे में कांग्रेस को 29-35 सीटों पर जीत दिखाई गई है तो भाजपा को भी कमोबेश इतनी ही सीटें दी गई हैं। वहीं सीवोटर्स द्वारा कराए गए सर्वे में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल करते हुए दिखाया गया है। इसमें कांग्रेस को 40 सीटों पर विजयी दिखाया गया है जबकि भाजपा के खाते में कुल 24 सीटें ही दिखाई गई हैं। वहीं सीएनएन आईबीएन के सर्वे में भी कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर होने की बात सामने आई है। इस सर्वे में कांग्रेस को कुल मतों का 41 फीसद और भाजपा को 40 फीसद मत मिलने का दावा किया गया है।
न्यूज 24 के सर्वे में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत दिया है। इस सर्वे में कांग्रेस को 40 सीट और भाजपा को 23 सीटें दी गई हैं। 
ताजा परिणाम बताते हैं कि भाजपा को 26 और कांग्रेस को 36 सीटें मिली हैं। 

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कहा जा रहा है कांग्रेस में व्यक्तिपूजा होती है भाजपा में नहीं, अरे विज्ञजनों कांग्रेस में सोनिया-राहुल हैं ,तो भाजपा में आडवाणी-मोदी आदि हैं ।

व्यक्तिपूजा के बिना बुर्जुआ समाज में राजनीति संभव ही नहीं है।

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हिमाचल और गुजरात में पहले भाजपा की राज्य सरकार थी, इसबार वे हिमाचल में हारे हैं। इसबार के चुनाव भाजपा के लिए वाटरलू साबित हुए हैं। भाजपा अपने किले नहीं बचा पायी है। यह हाल तब है जब कांग्रेस के खिलाफ व्यापक गुस्सा रहा है।

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हमने फेसबुक पर 18तारीख को लिखा था-
एग्जिट पोल के परिणाम कई बिंदुओं पर सही साबित नहीं हो सकते।हमारा व्यक्तिगत अनुमान है रि भाजपा सरकार तो बनाएगी लेकिन उसके मतों और सीटों में गिरावट आने की संभावनाएं हैं। कांग्रेस और अन्यदलों ने जिस तरह की ढ़ीला प्रचार किया है उसने मोदी की जीत को काफी आसान कर दिया है। लेकिन आम वोटरों में मतों के पैटर्न में बदलाव आएगा। यह चुनाव मोदी के राजनीतिक ह्रास के आरंभ का प्रस्थान बिंदु है। 
हमारी राय गुजरात परिणामों से सही साबित हुई है। 

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मोदी तीसरीबार गुजरात के मुख्यंत्री बनेंगे ,सवाल यह है कि जब वे पिछलीबार जीतकर केन्द्र में भाजपा को नहीं ला पाए तो इसबार ले ही आएंगे ,इसका आधार क्या है ?

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मोदी शेर हैं तो धूमल क्या हैं ? गुजरात की जीत पर भाजपा के लोग नाच रहे हैं ,लेकिन हिमाचल की हार पर रोनेवाले कहां हैं टीवी इमेजों में .

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मोदी को नायक बनाया भाजपा ने,मीडिया ने भी उछाला,लेकिन हिमाचल पर मोदी का कोई असर नहीं पड़ा, ऐसे में देश पर कितना असर होगा कल्पना कर सकते हैं।

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भाजपा का दावा था उन्होंने हिमाचल-गुजरात में विकास किया, लेकिन जनता ने हिमाचल में हराया और गुजरात में जिताया है। क्या यह भाजपा मार्का विकास की जीत है ? शायद नहीं.

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मोदी ने मुसलमानों को भाजपा की ओर से गुजरात में मौका न देकर साफ कर दिया है कि यदि वे केन्द्र की राजनीति में आते हैं तो मुस्लिम विरोधी एजेण्डा जारी रखेंगे।

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गुजरात में कांग्रेस 60सीटों के ऊपर पहलीबार जाती दिख रही है। यह भाजपा के पैर में कांटा है।

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गुजरात में कांग्रेस यदि अपनी पुरानी सीटें बनाए रखती है और वोट बढ़ा ले जाती है तो यह उसकी सफलता मानी जाएगी। कांग्रेस पर मीडिया का कोई असर नहीं हुआ लगता है।

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जो लोग कह रहे हैं कि चुनाव में भ्रष्टाचार मुद्दा बना है, वे गलतफहमी में हैं , राज्य विधानसभा चुनाव में लोकल कारक प्रधान कारक हैं,राष्ट्रीय भ्रष्टाचार प्रधान कारक नहीं है।

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आने वाले दिनों में भाजपा का भविष्य क्या होगा इसे हिमाचलप्रदेश की हवा से पहचान सकते हैं।गुजरात की तुलना में हिमाचल का हिन्दीभाषीक्षेत्रों पर असर ज्यादा होगा।

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मजेदार बात यह है कल तक जो लोग टीवी चैनलों में मोदी को भावी प्रधानमंत्री बना रहे थे आज किसी भी चैनल पर उनको प्रधानमंत्री बनाने की बात नहीं कर रहे। भाजपा के लिए दो राज्यों (गुजरात, हिमाचलप्रदेश) के परिणाम कई सबक देते हैं। पहला यह कि कोई क्षेत्रीयनेता राष्ट्रीयनेता नहीं बन सकता। मोदी-धूमल लोकल नेता है।

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टीवी चैनलों पर बैठे राजनीति विशेषज्ञों का हाल यह है कि वे लोकल को जानते नहीं है लेकिन सरलीकरण के जरिए व्याख्याएं कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव अंततः लोकल मसले पर होते हैं,लोकल कारक प्रधान होते हैं। विचारधारात्मक कारक गौण होते हैं।

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टीवी पर मोदी विमर्श का खोखलापन यह है कि उसमें से गुजरात में पूंजीवाद का असमान विकास कभी प्रमुख एजेण्डा नहीं बन पाया।

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समाचार प्रस्तुति की नई शैली एबीपी न्यूज में देखें कि किस तरह दीपक चौरसिया बोल रहे हैं, जैसे कोई शेयर मार्केट में आवाज लगाते 5-5, 6 और 6 ,ये लोग कहां ले जाएंगे खबरों को ? 


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