फिरौती लेना गुंडों और माफिया गिरोहों का काम रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में जबसे पेडन्यूज की संस्कृति मीडिया में आई है तब से फिरौती वसूली और ब्लैकमेलिंग की प्रवृत्ति मीडिया में भी आ गई है। पहले कभी-कभार छुटभैय्ये पत्रकार लोकल खबरों को छापने को लेकर ब्लैकमेलिंग करते थे,लेकिन जब से टीवी न्यूज चैनल आए हैं उनके संपादक और मालिक सीधे समाचारों का समय और टॉकशो का समय सीधे बेच देते हैं। विगत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मौके पर प्रिंट से लेकर इलैक्ट्रोनिक मीडिया तक पेडन्यूज की संस्कृति छायी रही और यह सब चुनाव आयोग की आंखों के सामने हुआ, इस धंधे में सभी प्रमुख राजनीतिक दल शामिल थे। इसी तरह जब से भ्रष्टाचार के बड़े घोटाले सामने आए हैं तबसे भ्रष्ट्र लोगों द्वारा मीडियाप्रबंधन पर अच्छी खासी रकम खर्च की जा रही है। स्थिति यहां तक खराब है कि केन्द्रीय मंत्रीमंडल में इच्छित विभाग पाने, खासक्षेत्र का खास सौदा हासिल करने के लिए मीडिया-जनसंपर्क फर्मों की मदद ली जा रही है। नीरा राडिया की जनसंपर्क कंपनी यही काम करती रही है।इसके अलावा पिछलीबार तमिलनाडु के एक नेता को केन्द्र में संचारमंत्री बनाने के लिए दिल्ली स्थित दो मीडिया घरानों के बड़े पदाधिकारियों ( वीर सिंघवी और बरखा दत्ता) की सक्रिय मदद ली गयी। इनलोगों की मंत्री की नियुक्ति में सक्रिय हिस्सेदारी को सप्रमाण मीडिया में पेश भी किया गया लेकिन इनके मालिकों ने इन दोनों को न तो नौकरी से निकाला और न अदालत ने इनके इस अनैतिक कर्म का संज्ञान लिया,लेकिन इस सारे फजीहत में टाटा समूह का नाम आ गया,उन कंपनियों और व्यक्तियों के नाम आए जो इस धंधे में शामिल थे और अंतमें नीरा राडिया एंड कंपनी ने भारत से अपना जनसंपर्क का कारोबार खत्म कर दिया। लेकिन इस प्रक्रिया में कारपोरेट घरानों और मीडिया के मुखियाओं की सत्ता के साथ भ्रष्ट मित्रता उजागर हो गई।यह भी उजागर हुआ कि केन्द्र सरकार किस तरह इस तरह के दलालों से घिरी है।
विगत तीन सालों में जिस तरह धड़ाधड़ भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। उनकी वजह से कारपोरेट घरानों ने मीडिया प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान देना आरंभ कर दिया है। वे अब सीधे मीडिया के पूरे समूह के अधिकांश शेयरों को खरीदकर मालिकाना अधिकार अपने पास रख रहे हैं या फिर पिछले दरवाजे से मीडिया को खरीदने की कोशिशें कर रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार की खबरों को नियंत्रित किया जाय। खासकर टीवी न्यूज चैनलों के प्रबंधन पर खास ध्यान दिया जा रहा है। यही वो परिप्रेक्ष्य है जिसमें कोलगेट कांड की रिपोर्टिंग और उसके बहाने फिरौती की 100 करोड़ रूपये वसूली की खबर पहले सामने आई,उस खबर के आने के 40 दिन बाद जी न्यूज के दो प्रमुख मीडियाकर्मियों की गिरफ्तारी हुई और अब जिंदल कारपोरेट घराना और जीन्यूज मीडिया घराने आमने –सामने हैं। इसमें सत्य क्या है यह तो भविष्य ही बताएगा ,लेकिन एकबात साफ है कि जिंदल ग्रुप कोलगेटकांड में सबसे ज्यादा घिरा हुआ है और उसके ऊपर कानून तोड़ने के संगीन आरोप लगे हैं। उसी तरह जीन्यूज ने कोलगेटकांड की न्यूज को दबाने के बदले 100 करोड़ रूपये की मांग करके मीडिया को शर्मसार किया है।
सवाल यह है कि जीन्यूज ने एक भ्रष्ट कारपोरेट घराने से अपने चैनल के लिए 100 करोड़ रूपये क्यों मांगे ? ये रूपये किसी भी रूप में हो,लेकिन मांगे गए,ये रूपये ऐसे समय में मांगे गए जब कोलगेट कांड को लेकर संसद से लेकर आम मीडिया तक जिंदल ग्रुप घिरा हुआ था और उनकी कंपनी पर सवाल उठ रहे थे। यानी समूचे मीडिया में खबरों का फ्लो जिंदल ग्रुप के खिलाफ था। ऐसे में जीन्यूज के दो प्रमुख कर्मियों ने सौदेबाजी के लिए जिंदल ग्रुप के लोगों से बातचीत की और यह मीडिया एथिक्स के खिलाफ है। इस बारे में सांसद नवीन जिंदल ने वीडियो टेप मीडिया को जारी किए और उनकी वैधता की पुष्टि फोरेंसिक लैव की रिपोर्ट से भी हो गई है।फोरेंसिक विभाग की रिपोर्ट आने के बाद 40 दिन बाद जीन्यूज के दो प्रमुखकर्मियों सुधीरचौधरी (संपादक जी न्यूज) और जी बिजनेस के संपादक समीर अहलुवालिया की गिरफ्तारी हुई और मामला अदालत के सामने है।अदालत में पेशी के बाद इनदोनों को अदालत ने दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया।बाद में 14दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया,फिलहाल इनदोनों की जमानत याचिकाएं अदालत के सामने विचाराधीन हैं।
इस प्रसंग में जीन्यूज के पांच बड़े अधिकारियों से पुलिस आनेवाले दिनों में पूछताछ करेगी। इनमें जी ग्रुप के मालिक सुभाषचन्द्र भी हैं। समस्या यह है कि सुभाषचन्द्र यदि इस प्रसंग में लिप्त पाए जाते हैं तो क्या पुलिस उनको भी गिरफ्तार करेगी ? कायदे से इस मामले में जो भी लिप्त पाया जाए उसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। क्योंकि गिरफ्तार किए गए संपादकद्वय निजीतौर पर इतनी बड़ी रकम की जिंदल ग्रुप से वसूली का फैसला नहीं कर सकते। केस का परिणाम कुछ भी आए। इससे जिंदल ग्रुप और जीन्यूज वाले दूध के धुले साबित नहीं होते। कारण यह है कि ये दोनों ही इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं एक कोलगेट की लूट के जरिए दूसरा न्यूज के बदले धनवसूली के जरिए। यह अभिव्यक्ति की आजादी के हनन का मसला नहीं है। यह तो लूट में हिस्सेदारी का मामला है। सबसे बुरी बात यह हुई कि जीन्यूज ने अपने दो कर्मियों की गिरफ्तारी के तत्काल बाद प्रेस कॉफ्रेस की। प्रेस कॉफ्रेंस की बेचैनी क्यों ? प्रेस कॉफ्रेस में जी न्यूज ने कोई नया सबूत भी नहीं रखा और नहीं वीडियो टेप की प्रामाणिकता को ही झूठा साबित कर पाए। सवाल यह है कि जब मामला अदालत के विचाराधीन है तब प्रेसकॉफ्रेंस क्यों ? यह सीधे मीडिया के दबाब के जरिए अदालत की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश है।
दूसरी ओर जीन्यूज को घेरकर जिंदल ग्रुप को फिलहाल एक बड़ा लाभ मिला है अचानक मीडिया में कोलगेट पर चुप्पी छा गयी है और संसद भी शांत है। कहीं पर भी कोलगेट पर हंगामा नहीं हो रहा। असल में जिंदल ग्रुप यही चाहता था कि मीडिया में कोलगेटकांड की खबर दबा दी जाय और उसके लिए उसने जो जाल बिछाया उसके परिणाम सामने दिख रहे हैं।
मीडिया में सभी पुण्यात्मा निवास नहीं करते, मीडिया में जो लोग गलत काम करते हैं , उनके खिलाफ शिकायत आने पर पुलिस को उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए।
जीन्यूज के दो कर्मियों की गिरफ्तारी का मीडिया की स्वतंत्रता से कोई संबंध नहीं है,यह तो व्यापार की स्वतंत्रता का मामला है। खबरें जब व्यापार होंगी तो इस तरह के केस और भी सामने आएंगे और भविष्य में इसके लिए विशेष अदालतें बनानी होंगी। मीडिया का मामला खाली धोखाधड़ी,ठगई,ब्लैकमेलिंग का मामला नहीं है यह तो कवरेज के सामाजिक प्रभाव से भी जुड़ा है और इस मामले में जजों को ज्यादा समझ नहीं होती। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को कानूनसम्मत और संवैधानिक-कानूनी अधिकारों से लैस मीडियाकौंसिल का जल्द गठन करना चाहिए। अब तक के भारत में मीडिया नैतिकता के मानकों को आत्मनियंत्रण के जरिए लागू करने में मीडियाघराने असफल रहे हैं और इसके भविष्य में सुधरने की संभावनाएं भी नहीं हैं। फलतः इलैक्ट्रोनिक मीडिया को नियमित करने के लिए मीडिया कौंसिल का तुरंत गठन किया जाय।
विगत तीन सालों में जिस तरह धड़ाधड़ भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। उनकी वजह से कारपोरेट घरानों ने मीडिया प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान देना आरंभ कर दिया है। वे अब सीधे मीडिया के पूरे समूह के अधिकांश शेयरों को खरीदकर मालिकाना अधिकार अपने पास रख रहे हैं या फिर पिछले दरवाजे से मीडिया को खरीदने की कोशिशें कर रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार की खबरों को नियंत्रित किया जाय। खासकर टीवी न्यूज चैनलों के प्रबंधन पर खास ध्यान दिया जा रहा है। यही वो परिप्रेक्ष्य है जिसमें कोलगेट कांड की रिपोर्टिंग और उसके बहाने फिरौती की 100 करोड़ रूपये वसूली की खबर पहले सामने आई,उस खबर के आने के 40 दिन बाद जी न्यूज के दो प्रमुख मीडियाकर्मियों की गिरफ्तारी हुई और अब जिंदल कारपोरेट घराना और जीन्यूज मीडिया घराने आमने –सामने हैं। इसमें सत्य क्या है यह तो भविष्य ही बताएगा ,लेकिन एकबात साफ है कि जिंदल ग्रुप कोलगेटकांड में सबसे ज्यादा घिरा हुआ है और उसके ऊपर कानून तोड़ने के संगीन आरोप लगे हैं। उसी तरह जीन्यूज ने कोलगेटकांड की न्यूज को दबाने के बदले 100 करोड़ रूपये की मांग करके मीडिया को शर्मसार किया है।
सवाल यह है कि जीन्यूज ने एक भ्रष्ट कारपोरेट घराने से अपने चैनल के लिए 100 करोड़ रूपये क्यों मांगे ? ये रूपये किसी भी रूप में हो,लेकिन मांगे गए,ये रूपये ऐसे समय में मांगे गए जब कोलगेट कांड को लेकर संसद से लेकर आम मीडिया तक जिंदल ग्रुप घिरा हुआ था और उनकी कंपनी पर सवाल उठ रहे थे। यानी समूचे मीडिया में खबरों का फ्लो जिंदल ग्रुप के खिलाफ था। ऐसे में जीन्यूज के दो प्रमुख कर्मियों ने सौदेबाजी के लिए जिंदल ग्रुप के लोगों से बातचीत की और यह मीडिया एथिक्स के खिलाफ है। इस बारे में सांसद नवीन जिंदल ने वीडियो टेप मीडिया को जारी किए और उनकी वैधता की पुष्टि फोरेंसिक लैव की रिपोर्ट से भी हो गई है।फोरेंसिक विभाग की रिपोर्ट आने के बाद 40 दिन बाद जीन्यूज के दो प्रमुखकर्मियों सुधीरचौधरी (संपादक जी न्यूज) और जी बिजनेस के संपादक समीर अहलुवालिया की गिरफ्तारी हुई और मामला अदालत के सामने है।अदालत में पेशी के बाद इनदोनों को अदालत ने दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया।बाद में 14दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया,फिलहाल इनदोनों की जमानत याचिकाएं अदालत के सामने विचाराधीन हैं।
इस प्रसंग में जीन्यूज के पांच बड़े अधिकारियों से पुलिस आनेवाले दिनों में पूछताछ करेगी। इनमें जी ग्रुप के मालिक सुभाषचन्द्र भी हैं। समस्या यह है कि सुभाषचन्द्र यदि इस प्रसंग में लिप्त पाए जाते हैं तो क्या पुलिस उनको भी गिरफ्तार करेगी ? कायदे से इस मामले में जो भी लिप्त पाया जाए उसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। क्योंकि गिरफ्तार किए गए संपादकद्वय निजीतौर पर इतनी बड़ी रकम की जिंदल ग्रुप से वसूली का फैसला नहीं कर सकते। केस का परिणाम कुछ भी आए। इससे जिंदल ग्रुप और जीन्यूज वाले दूध के धुले साबित नहीं होते। कारण यह है कि ये दोनों ही इस भ्रष्टाचार में शामिल हैं एक कोलगेट की लूट के जरिए दूसरा न्यूज के बदले धनवसूली के जरिए। यह अभिव्यक्ति की आजादी के हनन का मसला नहीं है। यह तो लूट में हिस्सेदारी का मामला है। सबसे बुरी बात यह हुई कि जीन्यूज ने अपने दो कर्मियों की गिरफ्तारी के तत्काल बाद प्रेस कॉफ्रेस की। प्रेस कॉफ्रेंस की बेचैनी क्यों ? प्रेस कॉफ्रेस में जी न्यूज ने कोई नया सबूत भी नहीं रखा और नहीं वीडियो टेप की प्रामाणिकता को ही झूठा साबित कर पाए। सवाल यह है कि जब मामला अदालत के विचाराधीन है तब प्रेसकॉफ्रेंस क्यों ? यह सीधे मीडिया के दबाब के जरिए अदालत की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश है।
दूसरी ओर जीन्यूज को घेरकर जिंदल ग्रुप को फिलहाल एक बड़ा लाभ मिला है अचानक मीडिया में कोलगेट पर चुप्पी छा गयी है और संसद भी शांत है। कहीं पर भी कोलगेट पर हंगामा नहीं हो रहा। असल में जिंदल ग्रुप यही चाहता था कि मीडिया में कोलगेटकांड की खबर दबा दी जाय और उसके लिए उसने जो जाल बिछाया उसके परिणाम सामने दिख रहे हैं।
मीडिया में सभी पुण्यात्मा निवास नहीं करते, मीडिया में जो लोग गलत काम करते हैं , उनके खिलाफ शिकायत आने पर पुलिस को उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए।
जीन्यूज के दो कर्मियों की गिरफ्तारी का मीडिया की स्वतंत्रता से कोई संबंध नहीं है,यह तो व्यापार की स्वतंत्रता का मामला है। खबरें जब व्यापार होंगी तो इस तरह के केस और भी सामने आएंगे और भविष्य में इसके लिए विशेष अदालतें बनानी होंगी। मीडिया का मामला खाली धोखाधड़ी,ठगई,ब्लैकमेलिंग का मामला नहीं है यह तो कवरेज के सामाजिक प्रभाव से भी जुड़ा है और इस मामले में जजों को ज्यादा समझ नहीं होती। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को कानूनसम्मत और संवैधानिक-कानूनी अधिकारों से लैस मीडियाकौंसिल का जल्द गठन करना चाहिए। अब तक के भारत में मीडिया नैतिकता के मानकों को आत्मनियंत्रण के जरिए लागू करने में मीडियाघराने असफल रहे हैं और इसके भविष्य में सुधरने की संभावनाएं भी नहीं हैं। फलतः इलैक्ट्रोनिक मीडिया को नियमित करने के लिए मीडिया कौंसिल का तुरंत गठन किया जाय।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें