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देश में सारी व्यवस्था चरमरा गयी है,देश में न तो पर्याप्त जज हैं और न अदालतें हैं , न अदालतों की सुविधाएं हैं, ऊपर से करोड़ों केस हैं जो लंबित पड़े हैं। लोग परेशान हैं और लुट रहे हैं लेकिन सरकार सोई है,जजों ने कान में तेल डाला हुआ है। आखिर कब तक लोग इंतजार करेंगे,मनमोहन सरकार ने यदि न्यायव्यवस्था को दुरूस्त और सक्षम नहीं बनाया तो वह दिन दूर नहीं जब जजों से लेकर सांसदों तक लोग घेरेंगे और कानून अपने हाथ में लेंगे। न्याय अब अदृश्य है उसे दृश्य बनाने का काम सरकार का है। जो काम वर्मा कमीशन अभी करेगा वह काम काफी पहले क्यों नहीं किया गया, क्या सरकार नहीं जानती कि सालाना डेढ़ लाख से ज्यादा सालाना बलात्कार हो रहे हैं। जनता के लिए सरकार का निकम्मापन अब असहनीय महसूस हो रहा है इसलिए वो सड़कों पर निकल रही है।
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इंडियागेट पर तैनात कांस्टेबिल सुभाष की मौत की खबर आई है। यह मौत बहुत ही दुखद है। सुभाष की मौत के जिम्मेदार लोगों को जेल में पहुँचाया जाना चाहिए।
इंडियागेट पर हाल ही में जो आंदोलन चला उसके आखिरी दिन सुभाष को चारों ओर से घेरकर आंदोलनकारियों ने सिर में लट्ठों से मार-मारकर अधमरा कर दिया था,आज सिपाही सुभाष ने दम तोड़ दिया है।
यह असामान्य मौत है । यह मौत संदेश दे रही है कि जुनूनी लोग हिंसक भी हो सकते हैं। वैसे आंदोलनकर्ताओं को ईमानदारी से काम लेना चाहिए और उन लोगों को पुलिस के हवाले करना चाहिए जिनलोगों का सुभाष की मौत में हाथ है।
सरकार ने लाठीचार्ज करनेवालों पर एक्शन लिए हैं और जांच चल रही है । कायदे से टीवीवालों को ईमानदारी से उसशाम के सारे फुटेज सरकार को सौंपने चाहिए जिससे सुभाष पर हमला करने वालों की शिनाख्त हो सके।हमें उनलोगों की भी शिनाख्त करनी चाहिए जो इस आंदोलन में हिंसा फैला रहे थे।
मनमोहन सरकार ने जो कदम आंदोलन के दबाब में उठाए उनको यदि पहले ही उठाते तो यह नौबत ही नहीं आती। सरकार के निकम्मेपन को नंगा किया है इस आंदोलन ने। हिंसा हुई वह निंदनीय है। लेकिन दैनन्दिन बलात्कार हो रहे हैं और मनमोहन सरकार कोई कदम नहीं उठा रही,इस पहलू पर सोचें।यह भी सोचें कि भारत में मनमोहनजी 9साल से शासन में हैं वे कोई कदम बिना दबाब के क्यों नहीं उठाते? लोकतंत्र में सरकार की पहलकदमी का महत्वपूर्ण है सरकार का काम है नेतृत्व करना। यहां उल्टा हो रहा है सरकार को जनता डिक्टेट कर रही है।
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रेप पर फांसी की सजा लागू होने पर अनेकदलों के नेता झूलते नजर आएंगे। साथी इन सभी नेताओं के ऊपर लगे रेप केसों को भी फास्ट ट्रैक कोर्ट के हवाले कर देना चाहिए। देखते हैं मोदी की विधानसभा और देश की लोकसभा से कितने नेता अंदर जाते हैं।
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औरत होने की सजा
सीताराम येचुरी (माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य)
देश की राजधानी के भीड़-भाड़ वाले इलाके में एक चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार तथा नृशंसता की घटना ने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। पीड़िता अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है, तथा देश भर में विक्षुब्ध जनता स्वतःस्फूर्त तरीके से विरोध के लिए उठ खड़ी हुई है।
इसकी प्रतिध्वनि संसद के दोनों सदनों में भी हुई और सांसदों ने गृहमंत्री को यह भरोसा दिलाने के लिए मजबूर किया कि दोषियों के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की जाएगी और कानून व व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। हालांकि ऐसे आश्वासन लोगों के मन में कोई खास भरोसा शायद ही पैदा कर पाएंगे।
इसकी वजह तो यही है कि ताजातरीन घटना कोई अकेली नहीं है। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध देश भर में चिंताजनक रफ्तार से बढ़ते जा रहे हैं। हरियाणा में ही पिछले कुछ महीनों में नृशंस बलात्कार के एक के बाद एक पंद्रह मामले सामने आए थे, जिनमें ज्यादातर सामूहिक बलात्कार के थे।
इसी तरह, इसी महीने की शुरुआत में अमृतसर में एक पुलिस अधिकारी की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि वह यौन उत्पीड़न से अपनी बेटी को बचाने की कोशिश कर रहा था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि 1953 से 2011 के बीच बलात्कार की घटनाओं में 873 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बलात्कार की वारदातों की बढ़ोतरी की रफ्तार, तमाम संज्ञेय अपराधों की संख्या से तीन गुना ज्यादा बैठती है और हत्याओं में बढ़ोतरी की रफ्तार से साढ़े तीन गुना ज्यादा। पिछले पांच वर्षों में (2007 से 2011 के बीच) ही बलात्कार की वारदातों में 9.7 फीसद की वृद्धि हुई है।
कुछ हफ्ते पहले ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने भारत को औरतों के लिए जी-20 के सभी देशों में बदतरीन जगह बताया था। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले सूचना व सहायता केंद्र, थॉमस रायटर्स ट्रस्ट लॉ वीमेन के एक सर्वे के अनुसार, भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में आता है और इस श्रेणी में उसका साथ देने वाले अन्य देश हैं, अफगानिस्तान, कांगो तथा सोमालिया।
भारत में औसतन हर चालीस मिनट में एक महिला को देश में कहीं न कहीं अपहरण और बलात्कार का निशाना बनाया जा रहा होता है। महानगरों में दिल्ली शर्मनाक तरीके से बलात्कार की घटनाओं के मामले में सबसे आगे है। वर्ष 2007 से 2011 के बीच राजधानी में बलात्कार की 2,620 घटनाएं दर्ज हुई थीं। इसकी तुलना में मुंबई में 1,033, बंगलूरू में 383, चेन्नई में 293 और कोलकाता में 200 वारदातें ही दर्ज की गई थीं। इससे भी बदतर यह कि 2002 से 2011 के बीच, राजधानी में ही बलात्कार के चार में से तीन मामलों में आरोपी सजा से बचकर निकल गए थे।
2002 से 2011 के बीच, यानी पिछले एक दशक में बलात्कार के 5,337 मामलों में फैसले आए थे और इनमें से 3,860 मामलों में आरोपियों को या तो बरी ही कर दिया गया था या फिर समुचित साक्ष्यों के अभाव में अदालतों ने छोड़ दिया। निवारक सजा की तो बात दूर, ऐसा लगता है कि हमारे देश में अपराध के लिए सजा दिए जाने का रिकॉर्ड इतना खराब होने के चलते ही, अपराधियों के मन में अब कानून का कोई डर ही नहीं रह गया है।
कुछ ही महीने पहले देश के गृह सचिव आर के सिंह ने यह कुबूल किया था कि अब वक्त आ गया है, ‘कानून और व्यवस्था की बात करना बंद कर, न्याय दिलाए जाने की बात करना शुरू किया जाए।’वास्तव में, तफ्तीश का काम पूरा होने के बाद मुकदमों की तेजी से सुनवाई करने के लिए पर्याप्त जज ही हमारे देश में नहीं हैं।
1987 में विधि आयोग ने इसका खाका तैयार किया था कि किस तरह पांच वर्ष में न्यायाधीश-आबादी अनुपात, एक लाख की आबादी पर 1.05 न्यायाधीश से बढ़ाकर पांच न्यायाधीश के स्तर पर पहुंचाया जाना चाहिए। लेकिन, उसके बाद पच्चीस बरस गुजर चुके हैं और यह अनुपात एक लाख की आबादी पर 1.4 न्यायाधीश से ऊपर नहीं ले जाया जा सका है।
इसे देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय का ताजा हस्तक्षेप भी भरोसा नहीं जगाता है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि महिलाओं की हिफाजत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं, जैसे सादा वर्दी में महिला पुलिस अधिकारियों को तैनात करना, सार्वजनिक परिवहन साधनों में क्लोज्ड सर्किट कैमरे लगाना और हैल्प लाइन स्थापित करना आदि।
सचाई यही है कि हमारे देश के सभी राज्यों में और जाहिर है कि देश के स्तर पर भी, आबादी और पुलिस का अनुपात, दुनिया भर में सबसे निचले स्तर पर है। जब तक कानून का पालन कराने वाले बलों की कतारों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी करने तथा उन्हें समुचित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं, हालात सुधरने वाले नहीं हैं।
द गार्जियन ने महिलाओं के लिए भारत के बदतरीन जगह होने के तथ्य को दर्ज करने के बाद एक सवाल पूछा हैः एक ऐसे देश में, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर अपनी पीठ ठोंकता है, आखिर वहां ऐसा कैसे हो सकता है?’ ऐसा इसलिए हो रहा है कि कानून का पालन कराने वाली संस्थाएं तथा हमारी न्यायिक प्रणालियां बहुत ही खस्ता हालत में हैं।
यह जरूरी है कि महिलाओं के खिलाफ ऐसे अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने के लिए, विशेष अदालतें कायम की जाएं। साथ ही, उनकी सजा ऐसी होनी चाहिए, जो दूसरों को ऐसे अपराध करने से रोक सके और संभावित अपराधियों के मन में डर पैदा करने में समर्थ हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह ताजा जघन्यता देश को झकझोर कर तंद्रा से जगाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि भारत अब महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के प्रति शून्य सहिष्णुता की इच्छा दिखाएगा।
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जनांदोलन का दबाब किस तरह काम करता है और सरकार किस तरह सोई थी इस पर सोचें और पढ़ें कि आंदोलन से दुनिया में किस तरह असर होता है। बहुचर्चित दिल्ली गैंगरेप मामले में जल्द न्याय सुनिश्चित करने की कोशिशों के तहत इस मामले का ट्रायल 3 जनवरी से शुरू करने का फैसला किया गया है। इस मामले की रोज सुनवाई होगी। इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से निर्देश जारी किया है कि सरकार रेप के सभी मामले में फास्ट ट्रैक अदालतों में रोज सुनवाई के आधार पर मामला चलाया जाए।
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दिल्ली गैंगरेप मामले में एसीपी (ट्रैफिक) मोहन सिंह डबास और एसीपी (पीसीआर) यादराम को सस्पेंड कर दिया गया। अधिकारियों को ड्यूटी में लापरवाही के चलते सस्पेंड कर किया गया। दिल्ली के उप राज्यपाल ले. तेजिंदर खन्ना ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की जानकारी दी। हालांकि इसी बीच दिल्ली पुलिस ने रविवार को प्रदर्शन के दौरान हुए उपद्रवों पर भी अपना रुख और कड़ा करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल वी के सिंह के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। सवाल यह है कि जिस इलाके में यह घटना हुई थी उस इलाके के जिम्मेदार थानेदार और पेट्रोलिंग पुलिस अफसर को अभी तक न तो सस्पेंड किया है और न बर्खास्त किया गया है। केन्द्र सरकार को इस मामले में तेजी से ऊपर से नीचे तक कदम उठाने चाहिए।
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इंडियागेट पर चले बलात्कार कांड विरोधी आंदोलन में 78 पुलिस वाले 65 आंदोलनकारी घायल हुए हैं। इससे यह बात साफ है कि 6दिन चले इस आंदोलन की दिशा अहिंसक नहीं थी। इतने लोग हाल-फिलहाल में किसी आंदोलन में घायल नहीं हुए। पुलिस की हिंसा इसकी जड़ में है।
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इंडियागेट आंदोलन पर केन्द्र सरकार ने लाठीचार्ज के एक घंटे बाद ही पुलिस एक्शन के लिए पीड़ितों और आंदोलनकारियों से माफी मांगकर सही किया है। इससे यह पता चलता है कि जनता की कराह सरकार के कानों तक जा रही है।
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बलात्कार कांड के खिलाफ आम लोगों का आक्रोश जायज है कल रात(रविवार) को प्रधानमंत्री ने भी आंदोलन की भावनाओं को शेयर करते हुए बयान दिया है। पीड़िता के शीघ्र स्वस्थ हो जाने की कामना की है और आंदोलनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील की है। यह स्वागतयोग्य बयान है।हम उम्मीद करते हैं कि गृहमंत्री ने जो आश्वासन दिए हैं उनको पूरा करने की दिशा में सरकार जल्द ही प्रयास करेगी।
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मणिपुर में एक अभिनेत्री के साथ एक नागा आतंकी ने झेड़खानी की और उसके प्रतिवाद में वहां आज दूसरे दिन भी आंदोलन जारी है। आज वहां एक पत्रकार नानो सिंह की पुलिस फायरिंग में मौत हो गयी। दिल्ली में मीडिया पर पुलिस ने जमकर हमले किए हैं पुलिस का मीडिया विरोधी रवैय्या निंदनीय है। बड़े चैनल चुप क्यों हैं ?
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हमारे मित्र है रणधीरसिंह सुमन ,एडवोकेट, उन्होंने जरूरी सवाल उठाए हैं,लिखा है-
देश बहुत बड़ा है। दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। देश में तरह-तरह के लोग रहते हैं। एक थाने में लगभग 200 बलात्कार के प्रार्थना पत्र पेंडिंग हैं। इस क्षेत्र में विरोधियों के ऊपर बलात्कार के मुक़दमे दर्ज कराने का रिवाज है। किसी विरोधी को लोग कायदे से ठीक करना चाहते हैं तो कोई औरत खड़ी कर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा देते हैं। यदि सभी लिख लिए जाए तो 200 अगले दिन फिर आ जायेंगे। इसकी रोकथाम कैसे करोगे। न्याय के कुछ सिद्धांत हैं उनको बने रहने दो। तभी देश चलेगा। हर आदमी दंड देने का अधिकारी अगर हो जायेगा तो कुछ नहीं बचेगा। आज एक घटना को लेकर जन उभार मौजूद है लेकिन देश के अन्दर सोनी आदिवासी महिला के साथ जो हुआ उसके लिए कोई कुछ नहीं बोला। माननीय उच्चतम न्यायलय की जानकारी में सोनी का सम्पूर्ण प्रकरण है। अभी तक कोई कार्यवाई विशेष नहीं हुई है। सम्बंधित पुलिस अधिकारी को सरकार से इनाम मिल चूका है। मणिपुर में भारतीय सेना के बलात्कारों से ऊब कर महिलाओं का नग्न प्रदर्शन तक हो चुका है। दिल्ली गैंग रेप के मामले में सम्बंधित बस क्या उस वक्त यात्रियों को ले जाने के लिए अधिकृत थी ? बस का परमिट कहीं का बनता है और बस चलती कहीं और है। दिल्ली में पुलिस और प्रशासन की मेहेरबानी से अनाधिकृत वाहन चलते रहते हैं। जनता उसमें सफ़र करती रहती है। मीडिया को कुछ लोगों का प्रदर्शन तहरीर चौक का प्रदर्शन लगने लगता है और लाखों लोगो का प्रदर्शन जब होता है तब उसके बारे में एक लाइन भी नहीं लिखी जाती है। प्रदर्शनकारी क्या यह चाहते हैं कि अभियुक्तों को उनको सौप दिया जाए और वह सजा देंगे। अन्ना केजरीवाल के आन्दोलन के बाद कुछ लोगों की समझ में यह गलतफ़हमी हो गयी है कि वह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते है। दंड की मात्रा कितनी हो उसके भी सिद्धांत हैं और उन्ही सिद्धांतो पर कार्य होना चाहिए। फांसी की सजा अंतर्गत धारा 376 आई पी सी में बढ़ा देने से क्या बलात्कार रुक जायेंगे। प्रदर्शनकारियों को भी ईसा की कहानी याद रखनी चाहिए की जिसमे एक औरत पर छिनारा का आरोप था। उस समय सजा यह थी कि उस औरत को पत्थरों से पीट कर मार डाला जाए। ईशा ने कहा पहला पत्थर वह व्यक्ति मारे जिसने मन से, वचन से, कर्म से, इस काम के बारे में न सोचा हो। किसी ने भी एक पत्थर नहीं मारा और भीड़ चली गयी। नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज नहीं जाती है। समाज की स्तिथियाँ क्या हैं उसके बारे में भी सोच समझ कर बात करनी चाहिए।
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एक मित्र ने अभी अभी ख़बर दी है कि इंडिया गेट के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं और जंतर-मंतर पर जहाँ पर प्रदर्शनकारी खड़े हैं वहां की स्ट्रीट लाइट बंद कर दी गई है। प्रदर्शन स्थल पर अधिकतर विद्यार्थी और शिक्षक हैं।
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इंडिया गेट पर आमतौर पर लोग तफरीहबाजी के लिए आते हैं और छुट्टी के दिन काफी हलचल रहती है। आज चूंकि वहां पर बलात्कार विरोधी आंदोलन भी चल रहा था अतः उनलोगों को अंदाजा ही नहीं था कि पुलिस के एक्शन के कारण उनकी तफरीबाजी तकलीफ में तब्दील हो जाएगी। कम से कम आंदोलन की जगह को तफरीबाजी की जगह न समझें।
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इंडियागेट पुलिस एक्शन की सबसे निंदनीय घटना है मीडियाकर्मियों पर हमले, कई मीडियाकर्मियों को चोटें आई हैं और कई के सामान को पुलिस ने नष्ट किया है। सबसे खराब पक्ष है मध्यवर्ग युवाओं के मुँह से तालिबानी भाषा का निकलना।वे मांग कर रहे हैं बलात्कारी को सरेआम फांसी दो। ये लोग नहीं जानते कि जिन देशों में सीधे फांसी दी जाती हैं वहां औरत सबसे ज्यादा तकलीफ में है। अफगानिस्तान इसका आदर्श प्रमाण है।
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।दामिनी बलात्कार कांड के खिलाफ दिल्ली में चले 6दिवसीय आंदोलन का आरंभ स्वतःस्फूर्त्त ढ़ंग से हुआ था लेकिन धीरे धीरे इस पर केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के अ-नियोजित मंच ने कब्जा जमा लिया। यह मंच अराजकतावादी राजनीति की अभिव्यक्ति साबित हुआ है। खासकर इस आंदोलन के दौरान अंत में शाम को इंडिया गेट पर आज जो लाठीचार्ज हुआ उसकी सारी जिम्मेदारी आंदोलनकारियों के निर्णय न लेने की स्थिति ने पैदा की। किसी भी जेनुइन आंदोलन को ये लोग अराजकता में तब्दील करने में सफल रहे। जनतंत्र के लिए वे लोग खतरनाक हैं जो जनता को आंदोलन के दौरान अनाथ छोड देते हैं।
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केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के अ-नियोजित मंच ने इंडियागेट पर एक ही काम किया-जो तेरा है वो मेरा है।
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इंडियागेट पर पुलिस लाठीचार्ज और आंसूगैस के गोले छोड़ने के बाद सारा माहौल रणक्षेत्र में बदल गया है।इंडियागेट से लोग हटाए जा चुके हैं। कायदे से इस स्थिति से बचना चाहिए था। लेकिन केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के लोगों के अनियोजित मंच ने निर्णय लेने में देरी की और पुलिस के हाथों आंदोलन का आज समापन करा दिया।
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इंडियागेट आंदोलन हिंसक और अराजक होने की ओर जा रहा है। इंडियागेट के एक तरफ शांतिपूर्ण आंदोलनकर्मी हैं दूसरी ओर हिंसक भीड़ है जो सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ कर रही है। पुलिस पर पथराव कर रही है।
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नई दिल्ली में नए किस्म की युवा राजनीतिक कतारबंदी उभरकर आई है ,यह कतारबंदी अन्ना आंदोलन के गर्भ से जन्मी है। इसमें कई रंगत के संगठन हैं इन संगठनों की सक्रियता प्रशंसनीय है लेकिन ये लोग आंदोलन आरंभ करके पीछे हटना नहीं जानते या सुचिंतित मंशा के तहत पीछे नहीं हटते।
युवा आंदोलन को संघर्ष के हित में आगे जाने के साथ पीछे हटने का राजनीतिक कौशल भी आना चाहिए। वरना युवा आंदोलन के नष्ट होने की संभावनाएं हैं।
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अभी कुछ देर पहले धर्मेन्द्र कुमार (विशेष पुलिस कमिश्नर दिल्ली )ने एक प्रेस कॉफ्रेंस में कहा है कि बलात्कार कांड के खिलाफ जो आदोलन चल रहा है उसकी तीनों मांगें मान ली गयी हैं , इसके बाद भी लोग आंदोलन करना चाहते हैं तो वे शांति से आंदोलन करें। शांति से एक स्थान पर बैठकर आंदोलन करें। कमिश्नर ने कहा कि वे आंदोलनकारियों को नहीं हटाएंगे।
आंदोलनकारियों में एक तबका उन लोगों का है जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा चुके हैं। ये लोग मांग कर रहे हैं बलात्कारियों को सीधे फांसी की सजा जब तक नहीं दी जाती तब तक वे आंदोलन करते रहेंगे। हम यही कहना चाहते हैं कानूनी कार्रवाई इंडियागेट पर नहीं होगी। गृहमंत्री के आश्वासन पर विश्वास करके आंदोलन को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
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युवाओं के आंदोलन के दबाब केन्द्र सरकार ने दिल्ली गैंग रेपकांड के संदर्भ में अधिकांश मांगे मान ली हैं। इसके बाद इन युवाओं को अपना आंदोलन खत्म कर देना चाहिए। उनको इंतजार करना चाहिए कि आगे क्या होता है।
वे जिस तरह से अघोषित ढ़ंग से इंडिया गेट पर जमा हैं। उससे उनके आंदोलन में से अब कुछ नया तत्व निकलने वाला नहीं है। उनकी सारी मांगें मान ली गयी हैं तो उनको अपना आंदोलन वापस ले लेना चाहिए। यदि वे आंदोलन वापस नहीं लेते हैं तो इस आंदोलन के पीछे सक्रिय राजनीतिक ताकतें अपने निहित स्वार्थों के लिए दुरूपयोग करने से बाज नहीं आएंगी।
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कहां सोए है टीवी चैनलवाले,
संजय निरूपम के स्मृति ईरानी को अपमानित करने वाले बयान पर सकारात्मक हस्तक्षेप करने वाले चैनलों से अपील है कि सुषमाजी पर दबाब बनाएं और भाजपानेत्री सुषमा स्वराज को बलात्कार की शिकार लड़की को जिंदा लाश कहने के लिए माफी मांगनी चाहिए। किसी भी नेता या नेत्री को स्त्री को अपमानित करने का हक नहीं है।
Girish Mishra ने लिखा- What Nirupam said was stupid but why was there no condemnation of Modi's utterance as regards Tharoor's wife and that of RSS's characterisation of Indira Gandhi?
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सोनिया गांधी ने देर से ही सही लेकिन सही कदम उठाया है वे प्रतिवादी युवाओं से मिली हैं, कायदे से प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करके युवाओं को बुलाना चाहिए और उनकी मांगों पर आश्वासन देना चाहिए। जागो मनमोहन जागो। इसके अलावा राष्ट्र के नाम सीधे संदेश देना चाहिए। इस तरह के मामलों पर अति सक्रिय होकर हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
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बलात्कार कांड पर युवाओं में जायज आक्रोश है और वे ठीक कर रहे हैं कि निरंतर आंदोलन कर रहे हैं और पीड़ित लड़की के लिए तुरंत न्याय की मांग कर रहे हैं। लेकिन बलात्कार की समस्या कानून की समस्या मात्र नहीं है। समाज में बलात्कार न हों इसके लिए जरूरी है कि हम इस समाज को ही बदलें। राजनीतिकतौर पर सजकता और सक्रियता बढ़ाएं। राजनीति से दूर न रहें बल्कि लोकतांत्रिक छात्र-युवा राजनीति में शिरकत करें।
इसके अलावा अपने परिवार के ढ़ाँचे को लोकतांत्रिक बनाएं,परिवार को लोकतांत्रिक बनाने से समाज भी लोकतांत्रिक बनेगा। परिवार को लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है परिवार में सभी सदस्य समान हों,कोई न छोटा होगा और बड़ा होगा। प्रत्येक सदस्य की स्वायत्तता और निजता का सम्मान किया जाय,साथ ही उसके विवेक पर विश्वास किया जाय। दबाब,हस्तक्षेप आदि से परिवार को पूरी तरह मुक्त किया जाए।
परिवार में किसी का वर्चस्व न हो।यहां तक कि माता-पिता का भी नहीं। सब मिलकर तय करें और प्रत्येक सदस्य की स्वायत्तता और भावनाओं का दिल से सम्मान करें। स्त्री के प्रति दुर्व्यवहार परिवार से आरंभ होता है। अतःपरिवार को बदलने की जरूरत है। परिवार बदलेगा तो समाज बदलेगा।
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भाजपानेत्री सुषमा स्वराज ने बलात्कार की शिकार लड़की को जिंदा लाश कहकर अपने मन में बैठे प्रतिक्रियावादी भावबोध की अभिव्यक्ति की है। प्रतिक्रियावादी भावबोध के अनुसार बलात्कार कलंक है और स्त्री कलंकित स्त्री है।फलतः वह समाज में बहिष्कृत है। जबकि सच यह है बलात्कारी कलंकित है और अपराधी है और उसका बहिष्कार किया जाना चाहिए। उसे जिंदा लाश कहा जाना चाहिए। पीड़िता तो निर्दोष और निष्कलंक है।वह इस समाज की जीती-जागती सदस्य है।
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प्रतिवाद को राजनीतिक लक्ष्यों से दूर रखें आंदोलनकारी युवा। सोनिया गांधी जब बोल रही हैं तो उनकी बात पर विश्वास किया जाना चाहिए और इंतजार करना चाहिए कि सरकार क्या करती है।
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कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने एक महिला के नाते बड़ी ही संजीदगी के साथ दिल्ली बलात्कार कांड की निंदा की है और शीघ्र एक्शन की मांग की है। सवाल यह है कि वे घर के बाहर निकलें और प्रदर्शनकारियों से मिलें। यह पत्र देकर एक्शन कराने का समय नहीं है। सरकारी बाधाओं से बाहर आकर मिलने और बयान देने का समय है।
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बलात्कार की घटनाएं रूकें और औरतों पर शारीरिक हमले न हों इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक तौर पर नार्मल सक्रिय माहौल बनाया जाय। एक्शन केन्द्रित माहौल अस्थायी होता है। आज की दो बड़ी बलात्कार की खबरें हैं जो टाइम्स ऑफ इण्डिया में बेव पर हैं।
1. Woman gang-raped, stripped naked in Tripura; seven arrested .
2.Three-year-old girl raped in Delhi playschool, owner's husband held
बलात्कार का मसला राष्ट्रीय मसला है यह स्त्री के प्रति समग्र नजरिए को बदलने की मांग करता है। भारत में जो लोग औरत को परिवार और परंपरा की बंदिशों में बांधे रखना चाहते हैं वे ही सबसे ज्यादा औरतों पर हमले करते हैं। औरत पर शारीरिक हमले से भी ज्यादा पीड़ादायक हैं वाचिक हमले।
औरत के सम्मान के लिए उसे परंपरा और परिवार के पुंस वर्चस्व से मुक्त करे समाज। साथ ही औरत पर शारीरिक और वाचिक हमले बंद किए जाएं।
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आश्चर्य की बात है कि बलात्कार कांड पर राहुल गांधी ने कोई बयान तक जारी नहीं किया।
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बलात्कार कांड की घटना के प्रतिवाद में हजारों युवाओं के बलात्कार विरोधी आक्रोश को जिस तरह टीवी चैनलों ने पॉजिटिव कवरेज दिया है उसने युवाओं के आक्रोश की मात्रा में इजाफा किया है। अपराध के खिलाफ समाचार चैनलों की इसी तरह आक्रामक भूमिका की भारत को जरूरत है।
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दिल्ली के इतिहास में यह विलक्षण दृश्य है कि कई दिनों से हजारों युवा बलात्कार कांड और दिल्ली में कानून-व्यवस्था के बिगडने के खिलाफ गुस्से का इजहार कर रहे हैं।
अभी भी हजारों युवा विजयचौक पर जमे हुए हैं। केन्द्र सरकार को संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। आज जिन अधिकारियों ने जनविरोधी एक्शन लिया है उनको सस्पेंड किया जाय।
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दिल्ली बलात्कार काड की पीड़ित लड़की की हालत में सुधार आ रहा है। आज उसने जूस पिया है और उसके चेहरे पर कोई निराशा नहीं है।
हम चाहते हैं कि वो जल्दी ठीक होकर सामान्य जीवनयापन करे। दिल्ली में औरतों का सुरक्षित जीवन सरकार सुनिश्चित करे।
औरतों के खिलाफ शोहदों की हरकतों को पुलिस सख्ती से रोके और शोहदों को पकड़ते ही थाने में बंद करने के पहले शहर में गधे पर बिठाकर घुमाया जाय जिससे इस तरह के अपराध के खिलाफ आमलोगों में सचेतनता बढायी जाय।
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आज दिल्ली में बलात्कार कांड के खिलाफ व्यापक जनरोष दिखाई दिया। हजारों युवाओं ने प्रदर्शन किया। मनमोहन सरकार ने इन युवाओं के खिलाफ पुलिस का निर्ममता के साथ दुरूपयोग किया है।
त्रासद पहलू है कि लाठीचार्ज,आंसूगैस के गोले ,पानी की बौछारें फेंककर सैंकड़ों युवाओं को घायल कर दिया गया।
कायदे से केन्द्रीय गृहमंत्री को इन आंदोलनकारी युवाओं से बाहर आकर मिलना चाहिए। इस तरह के मसले पर कमरों में नेताओं के द्वारा बैठना लोकतंत्र का अपमान है ।
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'The protest I participated in the morning was hijacked later in the afternoon by self-serving politicians and people who perhaps had other agendas to pursue,' Aseem Chhabra notes in this first person account of what happened:
The messages had been mixed from the beginning of the protests, following last week's shocking gang-rape of a 23-year-old young woman in a moving bus in south Delhi [ Images ].
Even during the quieter candlelight vigils at India [ Images ] Gate, there were loud voices of hysteria calling for death penalty for the alleged rapists, and disturbing demands like chemical castration, which would probably turn the Indian democracy into a State with Taliban [ Images ] form of justice.
But this whole week, while I was in Delhi, I was more than curious about the protests that were growing larger by the day at India Gate. The latest tragedy and growing cases of rape in and around Delhi and other parts of India called for major action -- greater police protection for women, faster legal responses to the crimes and, most important, a drastic change in Indian society where women are often treated as commodities, as second grade citizens to be tossed around by the men in their lives.
On Saturday the protestors had attempted to reach all the way up to Rashtrapati Bhavan [ Images ] and the Delhi police used teargas, water cannon and even a lathi-charge to disperse them. But still, on Sunday morning, when a friend sent out a tweet saying that protestors were gathering near Humayun's tomb, I decided to join the group.
At noon there were about 100 people gathered at the meeting point, mostly students from Delhi's Jawaharlal Nehru [ Images ] University -- my alma mater. Wrapped in jackets, sweaters and scarves, they were prepared with large signs and placards. The surprise for me was to meet two JNU professors, who were my peers at the university 31 years ago.
In half hour the group got bigger, as a busload of JNU students joined us and we started the march to India Gate on the flyover that leads to Dr Zakir Hussain [ Images ] Marg. The JNU Student Union president -- a member of the Students Federation of India, the student wing of the Communist Party of India-Marxist -- was there, along with many participants from the All India Students' Association and All India Progressive Women's Association -- both groups affiliated with the CPI-Marxist-Leninist.
My life had come full circle. Just as three decades ago, I was again on the streets of Delhi with left-wing student groups and surrounded by spirited slogans that had not changed over time. Another JNU professor handed me a small placard that said in Hindi that the death sentence and hanging were not the solution to increasing cases of rape in India.
Walking among a large number of red flags, and even a couple of Indian national flags, I heard the marchers yell out 'Lal Salaam', 'Inquilab Zindabad', 'Dilli police Hai-Hai', and 'Dilli police sharm karo. And there were calls for azaadi, women asking for freedom from patriarchy, and the desire to dress as they wanted to and whenever they wanted to without being questioned by society.
The Delhi police had reportedly imposed Section 144 of the Criminal Procedure Code, banning gatherings in the India Gate area, but we were able to walk peacefully all the way up to Delhi's central section.
We did see some police along the way, outside the Golf Club -- perhaps assuring security for Delhi's elite -- but the protest was peaceful. The protestors were spirited, somewhat angry after Saturday's clashes with the police and naturally about the issue of rape, but they were under control.
As we reached India Gate, I made it clear to a friend who was marching with me, along with his two European tourist friends, that I would leave the gathering if things turned violent. I had no plans to get arrested, or lathi-charged.
At India Gate, suddenly the picture became clearer. There was indeed a massive police presence, along with several television vans and large cameras. There were also many more protestors who had gathered.
In one such group I saw many protestors carrying placards that called for the death sentence and hanging of the alleged rapists in the gang rape case. I saw two young girls standing with placards that boldly stated the word 'castration'. And I wondered if they even knew the meaning of the word or what the act entails.
We stood along with our original group of protestors looking straight at Rajpath all the way up to Rashtrapati Bhavan. And although it was a cold foggy day, one thing was clear -- the police had completely shut down the entire Rajpath. It was a very surreal sight.
That is when I first heard a loud explosion, perhaps like a gunshot. It was followed by smoke at a distance. "That's teargas," I told the two Europeans, who started to run. Within seconds there was another explosion and I saw a smoking teargas shell land just five feet away from me.
And so I ran too, back to India Gate where things appeared a lot calmer, although there were other dispirited groups yelling slogans such as 'We Want Justice.' Some had decided to sit on the street right besides India Gate.
We heard another tear gas being shot towards the protestors and that was enough indication for us to leave the area altogether. I spent the rest of the afternoon at home following reports of more and more violence as the protestors were joined by Arvind Kejriwal, Baba Ramdev [ Images ] and then according to one media outlet youth groups affiliated with the Bharatiya Janata Party [ Images ] also showed up.
By the evening one police constable was fighting for his life and over 40 protestors were injured. Images from India Gate showed that what started off as a peaceful protest had turned the area into a war-like zone.
Bloggers and other folks on Twitter were trying to figure out which political groups were responsible for the protests turning violent.
I had joined the protest hoping something good would come out from the demands for a change in the police's policies and practices, and society at large.
I had naively believed that for the rape-related crisis to be resolved the young protestors would have walked along with the police, with the hope of eventually working out issues with the elected officials and the law enforcement personnel.
The protest as I participated in the morning was hijacked later in the afternoon by self-serving politicians and people who perhaps had other agendas to pursue.
The day ended with a wider gap between the authorities and the protestors, and I do not know if there is a middle ground to resolve the crisis.
Aseem Chhabra( जेएनयूएसयू के पूर्व पदाधिकारी)
देश में सारी व्यवस्था चरमरा गयी है,देश में न तो पर्याप्त जज हैं और न अदालतें हैं , न अदालतों की सुविधाएं हैं, ऊपर से करोड़ों केस हैं जो लंबित पड़े हैं। लोग परेशान हैं और लुट रहे हैं लेकिन सरकार सोई है,जजों ने कान में तेल डाला हुआ है। आखिर कब तक लोग इंतजार करेंगे,मनमोहन सरकार ने यदि न्यायव्यवस्था को दुरूस्त और सक्षम नहीं बनाया तो वह दिन दूर नहीं जब जजों से लेकर सांसदों तक लोग घेरेंगे और कानून अपने हाथ में लेंगे। न्याय अब अदृश्य है उसे दृश्य बनाने का काम सरकार का है। जो काम वर्मा कमीशन अभी करेगा वह काम काफी पहले क्यों नहीं किया गया, क्या सरकार नहीं जानती कि सालाना डेढ़ लाख से ज्यादा सालाना बलात्कार हो रहे हैं। जनता के लिए सरकार का निकम्मापन अब असहनीय महसूस हो रहा है इसलिए वो सड़कों पर निकल रही है।
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इंडियागेट पर तैनात कांस्टेबिल सुभाष की मौत की खबर आई है। यह मौत बहुत ही दुखद है। सुभाष की मौत के जिम्मेदार लोगों को जेल में पहुँचाया जाना चाहिए।
इंडियागेट पर हाल ही में जो आंदोलन चला उसके आखिरी दिन सुभाष को चारों ओर से घेरकर आंदोलनकारियों ने सिर में लट्ठों से मार-मारकर अधमरा कर दिया था,आज सिपाही सुभाष ने दम तोड़ दिया है।
यह असामान्य मौत है । यह मौत संदेश दे रही है कि जुनूनी लोग हिंसक भी हो सकते हैं। वैसे आंदोलनकर्ताओं को ईमानदारी से काम लेना चाहिए और उन लोगों को पुलिस के हवाले करना चाहिए जिनलोगों का सुभाष की मौत में हाथ है।
सरकार ने लाठीचार्ज करनेवालों पर एक्शन लिए हैं और जांच चल रही है । कायदे से टीवीवालों को ईमानदारी से उसशाम के सारे फुटेज सरकार को सौंपने चाहिए जिससे सुभाष पर हमला करने वालों की शिनाख्त हो सके।हमें उनलोगों की भी शिनाख्त करनी चाहिए जो इस आंदोलन में हिंसा फैला रहे थे।
मनमोहन सरकार ने जो कदम आंदोलन के दबाब में उठाए उनको यदि पहले ही उठाते तो यह नौबत ही नहीं आती। सरकार के निकम्मेपन को नंगा किया है इस आंदोलन ने। हिंसा हुई वह निंदनीय है। लेकिन दैनन्दिन बलात्कार हो रहे हैं और मनमोहन सरकार कोई कदम नहीं उठा रही,इस पहलू पर सोचें।यह भी सोचें कि भारत में मनमोहनजी 9साल से शासन में हैं वे कोई कदम बिना दबाब के क्यों नहीं उठाते? लोकतंत्र में सरकार की पहलकदमी का महत्वपूर्ण है सरकार का काम है नेतृत्व करना। यहां उल्टा हो रहा है सरकार को जनता डिक्टेट कर रही है।
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रेप पर फांसी की सजा लागू होने पर अनेकदलों के नेता झूलते नजर आएंगे। साथी इन सभी नेताओं के ऊपर लगे रेप केसों को भी फास्ट ट्रैक कोर्ट के हवाले कर देना चाहिए। देखते हैं मोदी की विधानसभा और देश की लोकसभा से कितने नेता अंदर जाते हैं।
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औरत होने की सजा
सीताराम येचुरी (माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य)
देश की राजधानी के भीड़-भाड़ वाले इलाके में एक चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार तथा नृशंसता की घटना ने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। पीड़िता अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है, तथा देश भर में विक्षुब्ध जनता स्वतःस्फूर्त तरीके से विरोध के लिए उठ खड़ी हुई है।
इसकी प्रतिध्वनि संसद के दोनों सदनों में भी हुई और सांसदों ने गृहमंत्री को यह भरोसा दिलाने के लिए मजबूर किया कि दोषियों के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की जाएगी और कानून व व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। हालांकि ऐसे आश्वासन लोगों के मन में कोई खास भरोसा शायद ही पैदा कर पाएंगे।
इसकी वजह तो यही है कि ताजातरीन घटना कोई अकेली नहीं है। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध देश भर में चिंताजनक रफ्तार से बढ़ते जा रहे हैं। हरियाणा में ही पिछले कुछ महीनों में नृशंस बलात्कार के एक के बाद एक पंद्रह मामले सामने आए थे, जिनमें ज्यादातर सामूहिक बलात्कार के थे।
इसी तरह, इसी महीने की शुरुआत में अमृतसर में एक पुलिस अधिकारी की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि वह यौन उत्पीड़न से अपनी बेटी को बचाने की कोशिश कर रहा था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि 1953 से 2011 के बीच बलात्कार की घटनाओं में 873 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बलात्कार की वारदातों की बढ़ोतरी की रफ्तार, तमाम संज्ञेय अपराधों की संख्या से तीन गुना ज्यादा बैठती है और हत्याओं में बढ़ोतरी की रफ्तार से साढ़े तीन गुना ज्यादा। पिछले पांच वर्षों में (2007 से 2011 के बीच) ही बलात्कार की वारदातों में 9.7 फीसद की वृद्धि हुई है।
कुछ हफ्ते पहले ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने भारत को औरतों के लिए जी-20 के सभी देशों में बदतरीन जगह बताया था। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले सूचना व सहायता केंद्र, थॉमस रायटर्स ट्रस्ट लॉ वीमेन के एक सर्वे के अनुसार, भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में आता है और इस श्रेणी में उसका साथ देने वाले अन्य देश हैं, अफगानिस्तान, कांगो तथा सोमालिया।
भारत में औसतन हर चालीस मिनट में एक महिला को देश में कहीं न कहीं अपहरण और बलात्कार का निशाना बनाया जा रहा होता है। महानगरों में दिल्ली शर्मनाक तरीके से बलात्कार की घटनाओं के मामले में सबसे आगे है। वर्ष 2007 से 2011 के बीच राजधानी में बलात्कार की 2,620 घटनाएं दर्ज हुई थीं। इसकी तुलना में मुंबई में 1,033, बंगलूरू में 383, चेन्नई में 293 और कोलकाता में 200 वारदातें ही दर्ज की गई थीं। इससे भी बदतर यह कि 2002 से 2011 के बीच, राजधानी में ही बलात्कार के चार में से तीन मामलों में आरोपी सजा से बचकर निकल गए थे।
2002 से 2011 के बीच, यानी पिछले एक दशक में बलात्कार के 5,337 मामलों में फैसले आए थे और इनमें से 3,860 मामलों में आरोपियों को या तो बरी ही कर दिया गया था या फिर समुचित साक्ष्यों के अभाव में अदालतों ने छोड़ दिया। निवारक सजा की तो बात दूर, ऐसा लगता है कि हमारे देश में अपराध के लिए सजा दिए जाने का रिकॉर्ड इतना खराब होने के चलते ही, अपराधियों के मन में अब कानून का कोई डर ही नहीं रह गया है।
कुछ ही महीने पहले देश के गृह सचिव आर के सिंह ने यह कुबूल किया था कि अब वक्त आ गया है, ‘कानून और व्यवस्था की बात करना बंद कर, न्याय दिलाए जाने की बात करना शुरू किया जाए।’वास्तव में, तफ्तीश का काम पूरा होने के बाद मुकदमों की तेजी से सुनवाई करने के लिए पर्याप्त जज ही हमारे देश में नहीं हैं।
1987 में विधि आयोग ने इसका खाका तैयार किया था कि किस तरह पांच वर्ष में न्यायाधीश-आबादी अनुपात, एक लाख की आबादी पर 1.05 न्यायाधीश से बढ़ाकर पांच न्यायाधीश के स्तर पर पहुंचाया जाना चाहिए। लेकिन, उसके बाद पच्चीस बरस गुजर चुके हैं और यह अनुपात एक लाख की आबादी पर 1.4 न्यायाधीश से ऊपर नहीं ले जाया जा सका है।
इसे देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय का ताजा हस्तक्षेप भी भरोसा नहीं जगाता है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि महिलाओं की हिफाजत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं, जैसे सादा वर्दी में महिला पुलिस अधिकारियों को तैनात करना, सार्वजनिक परिवहन साधनों में क्लोज्ड सर्किट कैमरे लगाना और हैल्प लाइन स्थापित करना आदि।
सचाई यही है कि हमारे देश के सभी राज्यों में और जाहिर है कि देश के स्तर पर भी, आबादी और पुलिस का अनुपात, दुनिया भर में सबसे निचले स्तर पर है। जब तक कानून का पालन कराने वाले बलों की कतारों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी करने तथा उन्हें समुचित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं, हालात सुधरने वाले नहीं हैं।
द गार्जियन ने महिलाओं के लिए भारत के बदतरीन जगह होने के तथ्य को दर्ज करने के बाद एक सवाल पूछा हैः एक ऐसे देश में, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर अपनी पीठ ठोंकता है, आखिर वहां ऐसा कैसे हो सकता है?’ ऐसा इसलिए हो रहा है कि कानून का पालन कराने वाली संस्थाएं तथा हमारी न्यायिक प्रणालियां बहुत ही खस्ता हालत में हैं।
यह जरूरी है कि महिलाओं के खिलाफ ऐसे अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने के लिए, विशेष अदालतें कायम की जाएं। साथ ही, उनकी सजा ऐसी होनी चाहिए, जो दूसरों को ऐसे अपराध करने से रोक सके और संभावित अपराधियों के मन में डर पैदा करने में समर्थ हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह ताजा जघन्यता देश को झकझोर कर तंद्रा से जगाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि भारत अब महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के प्रति शून्य सहिष्णुता की इच्छा दिखाएगा।
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जनांदोलन का दबाब किस तरह काम करता है और सरकार किस तरह सोई थी इस पर सोचें और पढ़ें कि आंदोलन से दुनिया में किस तरह असर होता है। बहुचर्चित दिल्ली गैंगरेप मामले में जल्द न्याय सुनिश्चित करने की कोशिशों के तहत इस मामले का ट्रायल 3 जनवरी से शुरू करने का फैसला किया गया है। इस मामले की रोज सुनवाई होगी। इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से निर्देश जारी किया है कि सरकार रेप के सभी मामले में फास्ट ट्रैक अदालतों में रोज सुनवाई के आधार पर मामला चलाया जाए।
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दिल्ली गैंगरेप मामले में एसीपी (ट्रैफिक) मोहन सिंह डबास और एसीपी (पीसीआर) यादराम को सस्पेंड कर दिया गया। अधिकारियों को ड्यूटी में लापरवाही के चलते सस्पेंड कर किया गया। दिल्ली के उप राज्यपाल ले. तेजिंदर खन्ना ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की जानकारी दी। हालांकि इसी बीच दिल्ली पुलिस ने रविवार को प्रदर्शन के दौरान हुए उपद्रवों पर भी अपना रुख और कड़ा करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल वी के सिंह के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। सवाल यह है कि जिस इलाके में यह घटना हुई थी उस इलाके के जिम्मेदार थानेदार और पेट्रोलिंग पुलिस अफसर को अभी तक न तो सस्पेंड किया है और न बर्खास्त किया गया है। केन्द्र सरकार को इस मामले में तेजी से ऊपर से नीचे तक कदम उठाने चाहिए।
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इंडियागेट पर चले बलात्कार कांड विरोधी आंदोलन में 78 पुलिस वाले 65 आंदोलनकारी घायल हुए हैं। इससे यह बात साफ है कि 6दिन चले इस आंदोलन की दिशा अहिंसक नहीं थी। इतने लोग हाल-फिलहाल में किसी आंदोलन में घायल नहीं हुए। पुलिस की हिंसा इसकी जड़ में है।
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इंडियागेट आंदोलन पर केन्द्र सरकार ने लाठीचार्ज के एक घंटे बाद ही पुलिस एक्शन के लिए पीड़ितों और आंदोलनकारियों से माफी मांगकर सही किया है। इससे यह पता चलता है कि जनता की कराह सरकार के कानों तक जा रही है।
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बलात्कार कांड के खिलाफ आम लोगों का आक्रोश जायज है कल रात(रविवार) को प्रधानमंत्री ने भी आंदोलन की भावनाओं को शेयर करते हुए बयान दिया है। पीड़िता के शीघ्र स्वस्थ हो जाने की कामना की है और आंदोलनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील की है। यह स्वागतयोग्य बयान है।हम उम्मीद करते हैं कि गृहमंत्री ने जो आश्वासन दिए हैं उनको पूरा करने की दिशा में सरकार जल्द ही प्रयास करेगी।
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मणिपुर में एक अभिनेत्री के साथ एक नागा आतंकी ने झेड़खानी की और उसके प्रतिवाद में वहां आज दूसरे दिन भी आंदोलन जारी है। आज वहां एक पत्रकार नानो सिंह की पुलिस फायरिंग में मौत हो गयी। दिल्ली में मीडिया पर पुलिस ने जमकर हमले किए हैं पुलिस का मीडिया विरोधी रवैय्या निंदनीय है। बड़े चैनल चुप क्यों हैं ?
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हमारे मित्र है रणधीरसिंह सुमन ,एडवोकेट, उन्होंने जरूरी सवाल उठाए हैं,लिखा है-
देश बहुत बड़ा है। दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। देश में तरह-तरह के लोग रहते हैं। एक थाने में लगभग 200 बलात्कार के प्रार्थना पत्र पेंडिंग हैं। इस क्षेत्र में विरोधियों के ऊपर बलात्कार के मुक़दमे दर्ज कराने का रिवाज है। किसी विरोधी को लोग कायदे से ठीक करना चाहते हैं तो कोई औरत खड़ी कर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा देते हैं। यदि सभी लिख लिए जाए तो 200 अगले दिन फिर आ जायेंगे। इसकी रोकथाम कैसे करोगे। न्याय के कुछ सिद्धांत हैं उनको बने रहने दो। तभी देश चलेगा। हर आदमी दंड देने का अधिकारी अगर हो जायेगा तो कुछ नहीं बचेगा। आज एक घटना को लेकर जन उभार मौजूद है लेकिन देश के अन्दर सोनी आदिवासी महिला के साथ जो हुआ उसके लिए कोई कुछ नहीं बोला। माननीय उच्चतम न्यायलय की जानकारी में सोनी का सम्पूर्ण प्रकरण है। अभी तक कोई कार्यवाई विशेष नहीं हुई है। सम्बंधित पुलिस अधिकारी को सरकार से इनाम मिल चूका है। मणिपुर में भारतीय सेना के बलात्कारों से ऊब कर महिलाओं का नग्न प्रदर्शन तक हो चुका है। दिल्ली गैंग रेप के मामले में सम्बंधित बस क्या उस वक्त यात्रियों को ले जाने के लिए अधिकृत थी ? बस का परमिट कहीं का बनता है और बस चलती कहीं और है। दिल्ली में पुलिस और प्रशासन की मेहेरबानी से अनाधिकृत वाहन चलते रहते हैं। जनता उसमें सफ़र करती रहती है। मीडिया को कुछ लोगों का प्रदर्शन तहरीर चौक का प्रदर्शन लगने लगता है और लाखों लोगो का प्रदर्शन जब होता है तब उसके बारे में एक लाइन भी नहीं लिखी जाती है। प्रदर्शनकारी क्या यह चाहते हैं कि अभियुक्तों को उनको सौप दिया जाए और वह सजा देंगे। अन्ना केजरीवाल के आन्दोलन के बाद कुछ लोगों की समझ में यह गलतफ़हमी हो गयी है कि वह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते है। दंड की मात्रा कितनी हो उसके भी सिद्धांत हैं और उन्ही सिद्धांतो पर कार्य होना चाहिए। फांसी की सजा अंतर्गत धारा 376 आई पी सी में बढ़ा देने से क्या बलात्कार रुक जायेंगे। प्रदर्शनकारियों को भी ईसा की कहानी याद रखनी चाहिए की जिसमे एक औरत पर छिनारा का आरोप था। उस समय सजा यह थी कि उस औरत को पत्थरों से पीट कर मार डाला जाए। ईशा ने कहा पहला पत्थर वह व्यक्ति मारे जिसने मन से, वचन से, कर्म से, इस काम के बारे में न सोचा हो। किसी ने भी एक पत्थर नहीं मारा और भीड़ चली गयी। नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज नहीं जाती है। समाज की स्तिथियाँ क्या हैं उसके बारे में भी सोच समझ कर बात करनी चाहिए।
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एक मित्र ने अभी अभी ख़बर दी है कि इंडिया गेट के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं और जंतर-मंतर पर जहाँ पर प्रदर्शनकारी खड़े हैं वहां की स्ट्रीट लाइट बंद कर दी गई है। प्रदर्शन स्थल पर अधिकतर विद्यार्थी और शिक्षक हैं।
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इंडिया गेट पर आमतौर पर लोग तफरीहबाजी के लिए आते हैं और छुट्टी के दिन काफी हलचल रहती है। आज चूंकि वहां पर बलात्कार विरोधी आंदोलन भी चल रहा था अतः उनलोगों को अंदाजा ही नहीं था कि पुलिस के एक्शन के कारण उनकी तफरीबाजी तकलीफ में तब्दील हो जाएगी। कम से कम आंदोलन की जगह को तफरीबाजी की जगह न समझें।
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इंडियागेट पुलिस एक्शन की सबसे निंदनीय घटना है मीडियाकर्मियों पर हमले, कई मीडियाकर्मियों को चोटें आई हैं और कई के सामान को पुलिस ने नष्ट किया है। सबसे खराब पक्ष है मध्यवर्ग युवाओं के मुँह से तालिबानी भाषा का निकलना।वे मांग कर रहे हैं बलात्कारी को सरेआम फांसी दो। ये लोग नहीं जानते कि जिन देशों में सीधे फांसी दी जाती हैं वहां औरत सबसे ज्यादा तकलीफ में है। अफगानिस्तान इसका आदर्श प्रमाण है।
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।दामिनी बलात्कार कांड के खिलाफ दिल्ली में चले 6दिवसीय आंदोलन का आरंभ स्वतःस्फूर्त्त ढ़ंग से हुआ था लेकिन धीरे धीरे इस पर केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के अ-नियोजित मंच ने कब्जा जमा लिया। यह मंच अराजकतावादी राजनीति की अभिव्यक्ति साबित हुआ है। खासकर इस आंदोलन के दौरान अंत में शाम को इंडिया गेट पर आज जो लाठीचार्ज हुआ उसकी सारी जिम्मेदारी आंदोलनकारियों के निर्णय न लेने की स्थिति ने पैदा की। किसी भी जेनुइन आंदोलन को ये लोग अराजकता में तब्दील करने में सफल रहे। जनतंत्र के लिए वे लोग खतरनाक हैं जो जनता को आंदोलन के दौरान अनाथ छोड देते हैं।
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केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के अ-नियोजित मंच ने इंडियागेट पर एक ही काम किया-जो तेरा है वो मेरा है।
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इंडियागेट पर पुलिस लाठीचार्ज और आंसूगैस के गोले छोड़ने के बाद सारा माहौल रणक्षेत्र में बदल गया है।इंडियागेट से लोग हटाए जा चुके हैं। कायदे से इस स्थिति से बचना चाहिए था। लेकिन केजरीवाल,रामदेव और संघ परिवार के लोगों के अनियोजित मंच ने निर्णय लेने में देरी की और पुलिस के हाथों आंदोलन का आज समापन करा दिया।
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इंडियागेट आंदोलन हिंसक और अराजक होने की ओर जा रहा है। इंडियागेट के एक तरफ शांतिपूर्ण आंदोलनकर्मी हैं दूसरी ओर हिंसक भीड़ है जो सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ कर रही है। पुलिस पर पथराव कर रही है।
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नई दिल्ली में नए किस्म की युवा राजनीतिक कतारबंदी उभरकर आई है ,यह कतारबंदी अन्ना आंदोलन के गर्भ से जन्मी है। इसमें कई रंगत के संगठन हैं इन संगठनों की सक्रियता प्रशंसनीय है लेकिन ये लोग आंदोलन आरंभ करके पीछे हटना नहीं जानते या सुचिंतित मंशा के तहत पीछे नहीं हटते।
युवा आंदोलन को संघर्ष के हित में आगे जाने के साथ पीछे हटने का राजनीतिक कौशल भी आना चाहिए। वरना युवा आंदोलन के नष्ट होने की संभावनाएं हैं।
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अभी कुछ देर पहले धर्मेन्द्र कुमार (विशेष पुलिस कमिश्नर दिल्ली )ने एक प्रेस कॉफ्रेंस में कहा है कि बलात्कार कांड के खिलाफ जो आदोलन चल रहा है उसकी तीनों मांगें मान ली गयी हैं , इसके बाद भी लोग आंदोलन करना चाहते हैं तो वे शांति से आंदोलन करें। शांति से एक स्थान पर बैठकर आंदोलन करें। कमिश्नर ने कहा कि वे आंदोलनकारियों को नहीं हटाएंगे।
आंदोलनकारियों में एक तबका उन लोगों का है जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा चुके हैं। ये लोग मांग कर रहे हैं बलात्कारियों को सीधे फांसी की सजा जब तक नहीं दी जाती तब तक वे आंदोलन करते रहेंगे। हम यही कहना चाहते हैं कानूनी कार्रवाई इंडियागेट पर नहीं होगी। गृहमंत्री के आश्वासन पर विश्वास करके आंदोलन को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
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युवाओं के आंदोलन के दबाब केन्द्र सरकार ने दिल्ली गैंग रेपकांड के संदर्भ में अधिकांश मांगे मान ली हैं। इसके बाद इन युवाओं को अपना आंदोलन खत्म कर देना चाहिए। उनको इंतजार करना चाहिए कि आगे क्या होता है।
वे जिस तरह से अघोषित ढ़ंग से इंडिया गेट पर जमा हैं। उससे उनके आंदोलन में से अब कुछ नया तत्व निकलने वाला नहीं है। उनकी सारी मांगें मान ली गयी हैं तो उनको अपना आंदोलन वापस ले लेना चाहिए। यदि वे आंदोलन वापस नहीं लेते हैं तो इस आंदोलन के पीछे सक्रिय राजनीतिक ताकतें अपने निहित स्वार्थों के लिए दुरूपयोग करने से बाज नहीं आएंगी।
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कहां सोए है टीवी चैनलवाले,
संजय निरूपम के स्मृति ईरानी को अपमानित करने वाले बयान पर सकारात्मक हस्तक्षेप करने वाले चैनलों से अपील है कि सुषमाजी पर दबाब बनाएं और भाजपानेत्री सुषमा स्वराज को बलात्कार की शिकार लड़की को जिंदा लाश कहने के लिए माफी मांगनी चाहिए। किसी भी नेता या नेत्री को स्त्री को अपमानित करने का हक नहीं है।
Girish Mishra ने लिखा- What Nirupam said was stupid but why was there no condemnation of Modi's utterance as regards Tharoor's wife and that of RSS's characterisation of Indira Gandhi?
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सोनिया गांधी ने देर से ही सही लेकिन सही कदम उठाया है वे प्रतिवादी युवाओं से मिली हैं, कायदे से प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करके युवाओं को बुलाना चाहिए और उनकी मांगों पर आश्वासन देना चाहिए। जागो मनमोहन जागो। इसके अलावा राष्ट्र के नाम सीधे संदेश देना चाहिए। इस तरह के मामलों पर अति सक्रिय होकर हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
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बलात्कार कांड पर युवाओं में जायज आक्रोश है और वे ठीक कर रहे हैं कि निरंतर आंदोलन कर रहे हैं और पीड़ित लड़की के लिए तुरंत न्याय की मांग कर रहे हैं। लेकिन बलात्कार की समस्या कानून की समस्या मात्र नहीं है। समाज में बलात्कार न हों इसके लिए जरूरी है कि हम इस समाज को ही बदलें। राजनीतिकतौर पर सजकता और सक्रियता बढ़ाएं। राजनीति से दूर न रहें बल्कि लोकतांत्रिक छात्र-युवा राजनीति में शिरकत करें।
इसके अलावा अपने परिवार के ढ़ाँचे को लोकतांत्रिक बनाएं,परिवार को लोकतांत्रिक बनाने से समाज भी लोकतांत्रिक बनेगा। परिवार को लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है परिवार में सभी सदस्य समान हों,कोई न छोटा होगा और बड़ा होगा। प्रत्येक सदस्य की स्वायत्तता और निजता का सम्मान किया जाय,साथ ही उसके विवेक पर विश्वास किया जाय। दबाब,हस्तक्षेप आदि से परिवार को पूरी तरह मुक्त किया जाए।
परिवार में किसी का वर्चस्व न हो।यहां तक कि माता-पिता का भी नहीं। सब मिलकर तय करें और प्रत्येक सदस्य की स्वायत्तता और भावनाओं का दिल से सम्मान करें। स्त्री के प्रति दुर्व्यवहार परिवार से आरंभ होता है। अतःपरिवार को बदलने की जरूरत है। परिवार बदलेगा तो समाज बदलेगा।
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भाजपानेत्री सुषमा स्वराज ने बलात्कार की शिकार लड़की को जिंदा लाश कहकर अपने मन में बैठे प्रतिक्रियावादी भावबोध की अभिव्यक्ति की है। प्रतिक्रियावादी भावबोध के अनुसार बलात्कार कलंक है और स्त्री कलंकित स्त्री है।फलतः वह समाज में बहिष्कृत है। जबकि सच यह है बलात्कारी कलंकित है और अपराधी है और उसका बहिष्कार किया जाना चाहिए। उसे जिंदा लाश कहा जाना चाहिए। पीड़िता तो निर्दोष और निष्कलंक है।वह इस समाज की जीती-जागती सदस्य है।
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प्रतिवाद को राजनीतिक लक्ष्यों से दूर रखें आंदोलनकारी युवा। सोनिया गांधी जब बोल रही हैं तो उनकी बात पर विश्वास किया जाना चाहिए और इंतजार करना चाहिए कि सरकार क्या करती है।
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कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने एक महिला के नाते बड़ी ही संजीदगी के साथ दिल्ली बलात्कार कांड की निंदा की है और शीघ्र एक्शन की मांग की है। सवाल यह है कि वे घर के बाहर निकलें और प्रदर्शनकारियों से मिलें। यह पत्र देकर एक्शन कराने का समय नहीं है। सरकारी बाधाओं से बाहर आकर मिलने और बयान देने का समय है।
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बलात्कार की घटनाएं रूकें और औरतों पर शारीरिक हमले न हों इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक तौर पर नार्मल सक्रिय माहौल बनाया जाय। एक्शन केन्द्रित माहौल अस्थायी होता है। आज की दो बड़ी बलात्कार की खबरें हैं जो टाइम्स ऑफ इण्डिया में बेव पर हैं।
1. Woman gang-raped, stripped naked in Tripura; seven arrested .
2.Three-year-old girl raped in Delhi playschool, owner's husband held
बलात्कार का मसला राष्ट्रीय मसला है यह स्त्री के प्रति समग्र नजरिए को बदलने की मांग करता है। भारत में जो लोग औरत को परिवार और परंपरा की बंदिशों में बांधे रखना चाहते हैं वे ही सबसे ज्यादा औरतों पर हमले करते हैं। औरत पर शारीरिक हमले से भी ज्यादा पीड़ादायक हैं वाचिक हमले।
औरत के सम्मान के लिए उसे परंपरा और परिवार के पुंस वर्चस्व से मुक्त करे समाज। साथ ही औरत पर शारीरिक और वाचिक हमले बंद किए जाएं।
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आश्चर्य की बात है कि बलात्कार कांड पर राहुल गांधी ने कोई बयान तक जारी नहीं किया।
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बलात्कार कांड की घटना के प्रतिवाद में हजारों युवाओं के बलात्कार विरोधी आक्रोश को जिस तरह टीवी चैनलों ने पॉजिटिव कवरेज दिया है उसने युवाओं के आक्रोश की मात्रा में इजाफा किया है। अपराध के खिलाफ समाचार चैनलों की इसी तरह आक्रामक भूमिका की भारत को जरूरत है।
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दिल्ली के इतिहास में यह विलक्षण दृश्य है कि कई दिनों से हजारों युवा बलात्कार कांड और दिल्ली में कानून-व्यवस्था के बिगडने के खिलाफ गुस्से का इजहार कर रहे हैं।
अभी भी हजारों युवा विजयचौक पर जमे हुए हैं। केन्द्र सरकार को संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। आज जिन अधिकारियों ने जनविरोधी एक्शन लिया है उनको सस्पेंड किया जाय।
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दिल्ली बलात्कार काड की पीड़ित लड़की की हालत में सुधार आ रहा है। आज उसने जूस पिया है और उसके चेहरे पर कोई निराशा नहीं है।
हम चाहते हैं कि वो जल्दी ठीक होकर सामान्य जीवनयापन करे। दिल्ली में औरतों का सुरक्षित जीवन सरकार सुनिश्चित करे।
औरतों के खिलाफ शोहदों की हरकतों को पुलिस सख्ती से रोके और शोहदों को पकड़ते ही थाने में बंद करने के पहले शहर में गधे पर बिठाकर घुमाया जाय जिससे इस तरह के अपराध के खिलाफ आमलोगों में सचेतनता बढायी जाय।
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आज दिल्ली में बलात्कार कांड के खिलाफ व्यापक जनरोष दिखाई दिया। हजारों युवाओं ने प्रदर्शन किया। मनमोहन सरकार ने इन युवाओं के खिलाफ पुलिस का निर्ममता के साथ दुरूपयोग किया है।
त्रासद पहलू है कि लाठीचार्ज,आंसूगैस के गोले ,पानी की बौछारें फेंककर सैंकड़ों युवाओं को घायल कर दिया गया।
कायदे से केन्द्रीय गृहमंत्री को इन आंदोलनकारी युवाओं से बाहर आकर मिलना चाहिए। इस तरह के मसले पर कमरों में नेताओं के द्वारा बैठना लोकतंत्र का अपमान है ।
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'The protest I participated in the morning was hijacked later in the afternoon by self-serving politicians and people who perhaps had other agendas to pursue,' Aseem Chhabra notes in this first person account of what happened:
The messages had been mixed from the beginning of the protests, following last week's shocking gang-rape of a 23-year-old young woman in a moving bus in south Delhi [ Images ].
Even during the quieter candlelight vigils at India [ Images ] Gate, there were loud voices of hysteria calling for death penalty for the alleged rapists, and disturbing demands like chemical castration, which would probably turn the Indian democracy into a State with Taliban [ Images ] form of justice.
But this whole week, while I was in Delhi, I was more than curious about the protests that were growing larger by the day at India Gate. The latest tragedy and growing cases of rape in and around Delhi and other parts of India called for major action -- greater police protection for women, faster legal responses to the crimes and, most important, a drastic change in Indian society where women are often treated as commodities, as second grade citizens to be tossed around by the men in their lives.
On Saturday the protestors had attempted to reach all the way up to Rashtrapati Bhavan [ Images ] and the Delhi police used teargas, water cannon and even a lathi-charge to disperse them. But still, on Sunday morning, when a friend sent out a tweet saying that protestors were gathering near Humayun's tomb, I decided to join the group.
At noon there were about 100 people gathered at the meeting point, mostly students from Delhi's Jawaharlal Nehru [ Images ] University -- my alma mater. Wrapped in jackets, sweaters and scarves, they were prepared with large signs and placards. The surprise for me was to meet two JNU professors, who were my peers at the university 31 years ago.
In half hour the group got bigger, as a busload of JNU students joined us and we started the march to India Gate on the flyover that leads to Dr Zakir Hussain [ Images ] Marg. The JNU Student Union president -- a member of the Students Federation of India, the student wing of the Communist Party of India-Marxist -- was there, along with many participants from the All India Students' Association and All India Progressive Women's Association -- both groups affiliated with the CPI-Marxist-Leninist.
My life had come full circle. Just as three decades ago, I was again on the streets of Delhi with left-wing student groups and surrounded by spirited slogans that had not changed over time. Another JNU professor handed me a small placard that said in Hindi that the death sentence and hanging were not the solution to increasing cases of rape in India.
Walking among a large number of red flags, and even a couple of Indian national flags, I heard the marchers yell out 'Lal Salaam', 'Inquilab Zindabad', 'Dilli police Hai-Hai', and 'Dilli police sharm karo. And there were calls for azaadi, women asking for freedom from patriarchy, and the desire to dress as they wanted to and whenever they wanted to without being questioned by society.
The Delhi police had reportedly imposed Section 144 of the Criminal Procedure Code, banning gatherings in the India Gate area, but we were able to walk peacefully all the way up to Delhi's central section.
We did see some police along the way, outside the Golf Club -- perhaps assuring security for Delhi's elite -- but the protest was peaceful. The protestors were spirited, somewhat angry after Saturday's clashes with the police and naturally about the issue of rape, but they were under control.
As we reached India Gate, I made it clear to a friend who was marching with me, along with his two European tourist friends, that I would leave the gathering if things turned violent. I had no plans to get arrested, or lathi-charged.
At India Gate, suddenly the picture became clearer. There was indeed a massive police presence, along with several television vans and large cameras. There were also many more protestors who had gathered.
In one such group I saw many protestors carrying placards that called for the death sentence and hanging of the alleged rapists in the gang rape case. I saw two young girls standing with placards that boldly stated the word 'castration'. And I wondered if they even knew the meaning of the word or what the act entails.
We stood along with our original group of protestors looking straight at Rajpath all the way up to Rashtrapati Bhavan. And although it was a cold foggy day, one thing was clear -- the police had completely shut down the entire Rajpath. It was a very surreal sight.
That is when I first heard a loud explosion, perhaps like a gunshot. It was followed by smoke at a distance. "That's teargas," I told the two Europeans, who started to run. Within seconds there was another explosion and I saw a smoking teargas shell land just five feet away from me.
And so I ran too, back to India Gate where things appeared a lot calmer, although there were other dispirited groups yelling slogans such as 'We Want Justice.' Some had decided to sit on the street right besides India Gate.
We heard another tear gas being shot towards the protestors and that was enough indication for us to leave the area altogether. I spent the rest of the afternoon at home following reports of more and more violence as the protestors were joined by Arvind Kejriwal, Baba Ramdev [ Images ] and then according to one media outlet youth groups affiliated with the Bharatiya Janata Party [ Images ] also showed up.
By the evening one police constable was fighting for his life and over 40 protestors were injured. Images from India Gate showed that what started off as a peaceful protest had turned the area into a war-like zone.
Bloggers and other folks on Twitter were trying to figure out which political groups were responsible for the protests turning violent.
I had joined the protest hoping something good would come out from the demands for a change in the police's policies and practices, and society at large.
I had naively believed that for the rape-related crisis to be resolved the young protestors would have walked along with the police, with the hope of eventually working out issues with the elected officials and the law enforcement personnel.
The protest as I participated in the morning was hijacked later in the afternoon by self-serving politicians and people who perhaps had other agendas to pursue.
The day ended with a wider gap between the authorities and the protestors, and I do not know if there is a middle ground to resolve the crisis.
Aseem Chhabra( जेएनयूएसयू के पूर्व पदाधिकारी)
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