रविवार, 30 दिसंबर 2012

दामिनी प्रकरण पर फेसबुक कवरेज का असर

दामिनी प्रसंग में हमने अनेक मांगें ,सुझाव और अनेक विचार रखे । इनमें अनेक मांगें और सुझाव केन्द्र सरकार के नेताओं ने माने हैं।अनेक सुझावों को मीडिया में प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया और यही विचारों का आदान-प्रदान फेसबुक लेखन की बड़ी उपलब्धि है। इस प्रसंग में उन सभी टिप्पणियों को यहां नए सिरे से पढ़ने की जरूरत है। 

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दामिनी का पार्थिव शरीर आज तड़के सुबह विशेष विमान के जरिए दिल्ली आ चुका है। हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मौजूद थीं। हम सब दामिनी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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औरतों पर अत्याचार थमें इसके लिए जरूरी है कि पुलिस फोर्स में खाली पड़े स्थानों को तत्काल भरा जाय। प्रत्येक थाने के प्रतिदिन के फोन रिकॉर्ड रखे जाएं। प्रत्येक थाने में स्त्री विरोधी मानसिकता के खिलाफ पुलिसकर्मियों को शिक्षित किया जाय।

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केन्द्र सरकार को औरतों पर बढ़ते हुए अत्याचारों को देखते हुए तुरंत एक नयी योजना घोषित करनी चाहिए जिसके तहत देश में औरतों के खिलाफ चल रहे उत्पीड़न के मुकदमों को विशेष अदालतों के हवाले करके तत्काल न्याय की व्यवस्था करनी चाहिए। इन अदालतों के अलावा महिला आयोगों को अधिकार संपन्न बनाया जाना चाहिए। महिला आयोगों के जरिए स्थानीय स्तर पर न्याय की व्यवस्था की जानी चाहिए और इसके लिए राज्य और केन्द्र महिला आयोगों को कानूनी और संवैधानिक अधिकार दिए जाने चाहिए।

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अभी खबर आई है कि बारासात( कोलकाता) में एक महिला के साथ गैंग रेप हुआ है और उसके बाद उसे अपराधियों ने जान से मार डाला है। यह घटना शाम को साढ़े 6बजे हुई है।

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बलात्कार के खिलाफ अमेरिका में सख्त कानून हैं और अपराधियों को दण्ड भी जल्दी मिलता है लेकिन वहां पर अभी तक बलात्कार थमे नहीं हैं। एक आंकड़ा देखे- अमेरिका में 1992-2000 के दशक के आंकड़ों के अनुसार एक साल में एक लाख हजार औरतों के साथ बलात्कार हुआ। तकरीबन एक लाख 10 हजार औरतों के साथ बलात्कार की कोशिश की गई।

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पोर्नोग्राफी में बलात्कार पूरी योजना के तहत होता है। इसमें प्रत्येक चरण, भाव-भंगिमा, आसन यानि कि क्रियान्वयन के सभी रूप तय होते हैं जो क्रमवार ढ़ंग से पूर्ण उत्तेजना उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। स्त्री के सामूहिक बलात्कार में पोर्नोग्राफी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 'डीप थ्रोट' कार्यक्रम आने के बाद थ्रोट रेप जैसी घटनाएँ और भी बढ़ी हैं। ऐसे उपक्रमों द्वारा पुरुष के इस विश्वास की पुष्टि होती है कि वह स्त्री को गहरे भेद सकता है, उसके बिल्कुल अंदर प्रवेश कर सकता है। पोर्नोग्राफी से उपजे असामान्य व्यवहारों ने औरतों के खिलाफ हिंसक अपराधों को जन्म दिया है। ऐसे कुकृत्य स्त्री के प्रति गुलाम मानसिकता व उन्हें प्रताड़ित करने की प्रवृत्ति से प्रेरित होते हैं।

हमने विगत आठ वर्षों में देखा है कि बलात्कार के दौरान कैमरे के इस्तेमाल में वृद्धि हुई है। कैमरे द्वारा उतारे गए बलात्कार के दृश्य त्वरित वेग से बाज़ार में उपलब्ध होते हैं। यह ही असली रेप है जो छुपे, नितांत एकायामी आनंद के रूप में सामने आता है। औरतों का उत्पीड़न हर जगह हो रहा है, गैर पारंपरिक रोजगार के क्षेत्र में, शिक्षा में, घर में। घर के भयप्रद, असुरक्षित, आज्ञाकारी परिवेश में महिलाएँ सबसे ज्यादा हिंसा की शिकार होती हैं। पोर्नोग्राफी का इस्तेमाल बच्चों पर भी किया जाता है ताकि उनका तीव्र अनुकूलन किया जा सके। ऐसा उन स्थानों पर अधिक होता है जहाँ दूसरी जगहों से आकर बस गए लोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए पास-पड़ोस के बच्चों व स्त्रियों पर वाचिक, शारीरिक हमले करते हैं।

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सामान्यतौर पर जो लोग और संगठन अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए स्त्री के परंपरागत रूप की हिमायत करते हैं और उसे परंपरागत दायरे में कैद रखना चाहते हैं वे मूलतः स्त्री को मातहत रखना चाहते हैं।

स्त्री को मातहतभाव से मुक्त करने के लिए जरूरी है कि माँ,बहन,पत्नी आदि संबंधों के आगे जाकर स्त्री को नागरिक की पहचान देने की जरूरत है। स्त्री को नागरिक की पहचान मिलने के साथ ही नागरिक हकों का बोध होता है।

हमारे परंपरापूजक लोग स्त्री को सब कुछ बनाना चाहते लेकिन नागरिक नहीं बनने देना चाहते। आज स्त्री को नागरिक पहचान देने की जरूरत है। आज स्त्रियां जो आंदोलन कर रही हैं वे नागरिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में ही बलात्कारकांड की जांच की मांग कर रही हैं।

हम स्त्री को पहले नागरिक मानें और उसके नागरिक हकों को परिवार से लेकर बाहर समाज तक लागू करें।

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क्या गऊ को माता मानने और पूजने से औरतों पर हो रहे जुल्म हंद हो जाएंगे ? क्या गऊमाता के संरक्षण और पालन-पोषण से भारतीय मूल्यों की रक्षा होती है ?

असल में गऊमाता की पूजा की आड़ में भारत में पितृसत्ता का वैचारिकतंत्र काम करता रहा है। आज भी गऊमाता के संरक्षण के नाम पर तमाम किस्म के वैचारिक पिछड़ेपन की संघ परिवार वकालत करता रहा है। गऊमाता के साथ जो लोग स्त्री की तुलना करते हैं वे वस्तुतः स्त्री को पशु से बेहतर अवस्था में नहीं रखते। धिक्कार है उनको जो गऊ को गऊ न कहकर गऊमाता कहते हैं और औरत को अपमानित करते हैं।

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ये निर्देश यदि मान लिए गए हैं तो फिर उसके इलाज के लिए सिंगापुर भेजे जाने पर सवाल खड़े क्यों कर रहे हैं मीडिया धुरंधर और तथाकथित समाजसेवक ? पीड़ित कहां इलाज कराए यह उसके परिवार का निजी फैसला है। उसको लेकर बतंगड़ मचाने की जरूरत नहीं है। इलाज कैसे हो और कहां हो यह भी प्राइवेसी में आता है।

Ajit Anjum:

''सभी न्यूज चैनलों ने आपसी सहमति से ये फैसला किया है कि हम उस लड़की के परिवार, उसके गांव, उसके अंतिम संस्कार की तस्वीरें नहीं दिखाएंगे . हम नहीं चाहते कि जिस परिवार की बेटी के साथ इतना दर्दनाक हादसा हुआ है , उसकी निजता का उलंघन हो . न्यूज चैनलों की आपसी सहमति के बाद बीईए ने एक गाइडलाइंस तैयार की है .....

1.No OB and teams at the funeral or home town or airport

2.do not show the funeral.

3. Do not show shots of home or family.

4. No shot of arrival of body.

5.no shots of transportation of body. And if course no chasing of the funeral van .

6. No interview with any relative .

7. Info about arrival of body and funeral should be given. However, location of funeral should not be given.

8. The above guidelines are exhaustive. There could be situations not covered in above points. In such cases, pl follow the guiding principle of protecting the IDENTITY , DIGNITY and PRIVACY of the girl.''

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केन्द्र सरकार यदि बलात्कार कांड पर सहानुभूति रखती थी तो उसमे मेट्रो के दरवाजे बंद क्यों किए ? जीन्यूज के एंकर ने सवाल उठाया है,एंकर कह रहा है जिस तरह इलाज के लिए पीड़िता को सिंगापुर भेजा उसी तरह न्याय के लिए दोषियों को सउदीअरब भेज दिया जाए।

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टाइम्स नाउ के अर्णव गोस्वामी ने स्त्री उत्पीडन के मसले को अ-राजनीतिक बनाने की असफल कोशिश की है। चैनल के संपादक और एंकर के नाते उनका यह कहना गलत है कि यह आंदोलन अ-राजनीतिक है।

इस आंदोलन में विभिन्न रंगत की राजनीतिक विचारधाराएं शामिल हैं, विभिन्न विचारधारा के संगठन शामिल हैं। इसमें अनेक महिला संगठन शामिल हैं इसके अलावा अनेक संगठन भी शामिल हैं। ऐसी स्थिति में चंतर-मंतर पर चल रहा आंदोलन अ-राजनीतिक नहीं है। यहां तक कि टाइम्स नाउ के पैनल में आम आदमी पार्टी के दो लोग इस समय टॉकशो में भाग ले रहे हैं। इससे भी बड़ी बात यह कि स्त्री के सवाल अ-राजनीतिक नहीं होते। स्त्री के सवाल राजनीतिक होते हैं।इनके राजनीतिक समाधान होने चाहिए।

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दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अचानक अभी जंतर-मंतर गयीं। उनका वहां जाना राजनीतिक गलती है। जंतर-मंतर पर लोग प्रतिवाद कर रहे हैं और वे शोक में डूबे हुए हैं। शीला दीक्षित को शोक ही व्यक्त करना है तो पीड़ित लड़की के घर जातीं और कांग्रेस के द्वारा आयोजित शोकसभा में जातीं।

दामिनी की मौत भारत के युवाओं के लिए बहुत बड़ा धक्का लगा है। भारत के युवा उसकी मौत में आकंठ ङूबे हुए हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली सरकार की इस घटना के बाद नींद गायब हो गयी है। कांग्रेसी नेताओं को इस घटना पर प्रतिवाद का कोई अधिकार नहीं है। वे प्रच्छन्न रूप से प्रशासनिक असफलता के जिम्मेदार हैं।

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दामिनी की बॉडी जब सिंगापुर से दिल्ली आए तो भारत सरकार और दिल्ली सरकार को अपने उच्च अधिकारियों और मंत्रियों को हवाई अड्डे पर श्रद्धांजलि देने के लिए भेजना चाहिए। साथ ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए ।

जिस समय अंतिम संस्कार हो उस समय सारे टीवी चैनल प्रतीकात्मक तौर पर कुछ मिनट के लिए अपने प्रसारण शोक मनाते हुए बंद करें। केन्द्र सरकार को दामिनी की मौत पर संभव हृो तो राजकीय शोक की घोषणा करनी चाहिए।

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जेएनयू के छात्रों ने दिल्ली बलात्कार कांड के खिलाफ जिस तरह अग्रणी कतारों में भूमिका अदा की है वह हमारे देश के छात्र आंदोलन की मूल्यवान संपदा है।

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इंग्लैंड और वेल्स में सन् 2010-11 में एक मिलियन औरतें घरेलू उत्पीडन और हिंसा की शिकार हुई हैं। पूंजीवादी समाज में बलात्कार असल में व्यवस्था की देन है। ब्रिटिश क्राइम ब्यूरो के अनुसार ब्रिटेन में सालाना 80हजार औरतें बलात्कार की शिकार हुई हैं।

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भारत में रेप के खिलाफ गुस्सा क्यों फूटा क्योंकि भारत में प्रति 54 मिनट पर एक बलात्कार होता है। प्रति 51 मिनट पर छेड़खानी की घटना ,प्रति 43 मिनट पर अपहरण की घटना , प्रति 26 मिनट पर औरत पर शारीरिक हमला और हर सातवें मिनट पर औरत के खिलाफ अपराध की घटना होती है। हमें शर्म आती है ऐसे लोकतंत्र और उसके शासकों पर जहां औरत अहर्निश हमलों की शिकार है। ये आंकड़े बताते हैं कि औरत की यातना को कानूनी सुधारों से रोकना संभव नहीं है। जरूरत इस बात की है समूचे समाज का दिलो-दिमाग बदला जाय।

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दामिनी की मौत का एक ही संदेश है कि परवर्ती पूंजीवाद में औरतें सुरक्षित नहीं हैं। पूंजीवाद को कानूनी थेगड़ियों के जरिए बचाया नहीं जा सकता।

दामिनी की मौत का प्रतिकार तब ही संभव है जब हमारे मन में परवर्ती पूंजीवाद के प्रति तीव्र घृणा और आक्रोश हो। दामिनी की मौत का अर्थ महज कानूनी सुधार करना नहीं है।

दामिनी की मौत परवर्ती पूंजीवाद में तिल-तिलकर मर रही स्त्री की मौत का प्रतीक है। वह अपनी मौत के साथ हमारे सामने पूंजीवादी तंत्र को नंगा कर गयी है। दामिनी की मौत के सामने पीएम से लेकर संसद तक सब बौने और बेमानी महसूस हो रहे हैं।

समूचे पूंजीवादी सिस्टम के प्रति घृणा व्यक्त हो रही है। परवर्ती पूंजीवाद के खिलाफ एक स्त्री की मौत पर इतनी तीव्र घृणा को मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया। असल में बलात्कार तो परवर्ती पूंजीवाद का सबसे महत्वपूर्ण बायप्रोडक्ट है। दामिनी तुम बार बार याद आओगी कि परवर्ती पूंजीवाद कितना बर्बर और नृशंस है।

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दामिनी मरकर अमर हो गई है। वह भारत के नागरिकों की आंखों में एक सपना है। यह सपना है उत्पीडनमुक्त स्त्री की जिंदगी का। वह मरकर हम सबके मन में प्रवेश कर गई है। उसने मरकर हम सबके मन में छिपे आक्रोश और सामाजिक परिवर्तन के जज्बे को जगा दिया है। उसकी मौत हमें प्रेरणा देती रहेगी। वह भावी स्त्रीउत्पीडन मुक्त भारत का स्वप्न है।

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दिल्ली बलात्कार कांड की शिकार लड़की का सिंगापुर में निधन हो गया। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

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आम जनता को दामिनी बलात्कार कांड के बाद नए सिरे अपने इलाके के सांसद-विधायक के सांस्कृतिकबोध की पड़ताल करनी चाहिए। चुने हुए प्रतिनिधियों का सांस्कृतिकबोध उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना राजनीतिकबोध । इनकी दबंगई को जब तक लोकतंत्र के कब्रिस्तान में दफन नहीं करते तब तक ये लोग रह-रहकर अपनी गंदीभाषा और पुंसवाद को अभिव्यक्त करते रहेंगे।

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आज ममता के दल की एक महिला सांसद ने पार्कस्ट्रीट बलात्कार कांड की शिकार महिला के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी की है। सवाल यह है कि ये सांसद इस मौके पर अपने अंदर छिपे मर्दवाद को क्यों व्यक्त कर रहे हैं ?

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स्त्री उत्पीडक राक्षस पुरूष के मन में रहता है। समाज में तो उसके क्लोन हरकतें करते नजर आ रहे हैं।

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भाजपा से लेकर माकपा, कांग्रेस से सपा तक तक सभी दलों के नेताओं के इनदिनों औरतों के बारे में घटिया बयान सामने आए हैं ये बयान बताते हैं किकि राजनेता किस तरह सड़ गए हैं।

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स्त्री पर शारीरिक हमले सत्ता के लोकतांत्रिक संस्थानों के पितृसत्तात्मक रवैय्ये से प्रश्रय पाते रहे हैं। अनेक मामलों में अदालतें भी पुंसवादी नजरिए से फैसले देती रही हैं। संसद से लेकर अदालत तक हालत यह है कि स्त्री न्याय के लिए सालों भटकती रहती है लेकिन उसे न्याय नहीं मिलता। आज सुप्रीमकोर्ट ने बलात्कार के मामले दो महीनों में निबटाने का आदेश दिया है। यह फैसला इस बात की सूटना भी है कि बलात्कार के मामलों पर अदालतें समय रहते फैसले नहीं कर रहीं। जो न्याय सोया हुआ है उसे जगाने के लिए अदालतों के बाहर भी जुलूस निकाले जाने चाहिए।

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लोकतंत्र और भारत के संविधान के तहत प्राप्त अधिकारों के आधार पर औरतों की बदहाल स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। लोकतंत्र की आयरनी यह है कि इसमें पुंसवाद का स्वतः अंत नहीं होता। लोकतंत्र में समानता के दावे के बाद भी पितृसत्ता बनी रहती है।लोकतंत्र में स्त्री की सजगता के बिना लिंगभेद और भी गहरा होता है।

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स्त्री की सुरक्षा के लिए कानूनी संशोधन जरूरी हैं लेकिन इसके साथ ही स्त्री के प्रति घर से लेकर बाहर तक नजरिए को बदलने की जरूरत है। स्त्री को हम व्यक्ति और नागरिक के रूप में देखें। स्त्री को कानूनों के साथ नागरिक के रूप में तब्दील करने की जरूरत है। हम स्त्री को नागरिक के रूप में नहीं देखते। स्त्री को नागरिक के रूप में देखें और मानें तो सारे समाज में परिवर्तन की लहर सीधी दिशा में जाती नजर आएगी। कानूनोंसे औरत की पहचान नहीं बनती।

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मीडिया में मर्दानगी का किस तरह विचारधारात्मक महिमामंडन होता है इसे देखना हो तो आज आप प्रत्येक चैनल पर हिन्दी सिनेमा के महामर्द सलमान खान का जन्मदिन का महाकवरेज देखें। चैनलों को इस तरह के कार्यक्रमों से घिन क्यों नहीं आती ?

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स्त्री की सुरक्षा के लिए कानूनी संशोधन जरूरी हैं लेकिन इसके साथ ही स्त्री के प्रति घर से लेकर बाहर तक नजरिए को बदलने की जरूरत है। स्त्री को हम व्यक्ति और नागरिक के रूप में देखें। स्त्री को कानूनों के साथ नागरिक के रूप में तब्दील करने की जरूरत है। हम स्त्री को नागरिक के रूप में नहीं देखते। स्त्री को नागरिक के रूप में देखें और मानें तो सारे समाज में परिवर्तन की लहर सीधी दिशा में जाती नजर आएगी। कानूनोंसे औरत की पहचान नहीं बनती।

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प्रियदर्शन (सीनियर न्यूज एडीटर एनडीटीवी) ने एनडीटीवी इंडिया चैनल पर अभी टीवी टॉकशो में कहा कि देश में मर्दों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत ,हमें यह समझना होगा कि औरत बदल रही है। हमें स्त्री के बारे में पुरानी धारणा से बाहर निकलना होगा।

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कांग्रेसी सांसद अभिजीत मुखर्जी के स्त्रीविरोधी बयान दिए जाने और बाद में माफी जाने के साथ एक चीज साफ हो गई है कि कांग्रेस के अंदर हरियाणा से लेकर पश्चिम बंगाल तक सांसदों की एक ऐसी लॉबी है जो औरत के प्रति आधुनिक नजरिया नहीं रखती बल्कि यह कहना सही होगा कि कांग्रेस के नेता और नेत्रियां स्त्री को घर की चौखट के बाहर राजनीतिक प्रतिवाद करते हुए देखना नहीं चाहते। उनके लिए सोनिया गांधी राजनीति करे तो जायज मध्यवर्ग की लड़कियां अपने हकों के लिए संघर्ष करें जो ये लोग औरतों की खिल्लियां उडाते हैं।

कायदे से औरतों के खिलाफ जो सांसद -विधायक अपमानजनक बयान दे उसकी संसद या विधानसभा सदस्यता तत्काल प्रभाव से खारिज कर दी जानी चाहिए। सांसदों-विधायकों और नेताओं में जो भी स्त्रीविरोधी बयान दे उसे मतदान करने के अधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए।

नेताओं-बुद्धिजीवियों और तथाकथित गणमान्य नागरिकों ने स्त्रियों के खिलाफ बोलने-लिखने का फैशन बनाया हुआ है। स्त्री के खिलाफ लिखना और बोलना अपराध घोषित किया जाय और इसके लिए सटीक कानून बनाया जाय।

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भारत की राजनीतिक बिडम्बना है यहां रेप के खिलाफ जितना तेज प्रतिवाद दिख रहा है वैसा तेज प्रतिवाद बैंकिंग बिल के पास होने के खिलाफ नजर नहीं आया। देश के लिए स्त्री के सम्मान और सामाजिक सुरक्षा के सवाल जितने महत्वपूर्ण हैं उतना ही देश की आर्थिक बदहाली और नव्य आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ जंग के सवाल भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन त्रासदी है हमारे समाज में अभी तक कानून व्यवस्था के सवालों से आगे जाकर राजनीतिकचेतना विकसित नहीं हो पाई है।

स्त्री के हित हों या बैंकिंग बिल के खिलाफ संघर्ष हो, इसके लिए सटीक राजनीतिकचेतना के लिए नागरिकचेतना का विकास करने की जरूरत है। स्त्री पर हो रहे हमलों के खिलाफ संघर्ष को नागरिकचेतना निर्मित करने के स्तर तक ले जाना जरूरी है।

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एनडीटीवी इंडिया ने सुभाष तोमर की मौत के चश्मदीद गवाह की बातों पर यकीन कर लिया है और वह बार बार इस गवाह को पेश करके साफ कर देने पर आमादा है कि चश्मदीद गवाह का सत्य परमसत्य है।

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