बुधवार, 18 मार्च 2015

मुगलों की पहली देन


संघ परिवार के लोग आए दिन मुगलों के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं और समसामयिक जीवन में हिन्दू मुसलमानों के बीच में वैमनस्य पैदा करने के लिए अतीत की बुराईयोंका खूब पारायण करते हैं। हमारा मानना है भारत में धर्मनिरपेक्ष वातावरण बनाने केलिए अतीत की सकारात्मक उपलब्धियों पर नजर रखें तो बेहतर होगा। मुगल शासन की भारतको दस बड़ी देन हैं। इनका जिक्र इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने किया है। मुगलशासन कीपहली बड़ी देन है ,'' बाहरी दुनिया केसाथ संबंध –स्थापन,भारतीय नौशक्ति का संगठन और समुद्रपार विदेशों में वाणिज्य।''
सरकार के अनुसार ''आठवीं शताब्दी मेंनवजाग्रत हिन्दूधर्म अपने घर को संभालने में लग गया । उसने हिन्दू समाज को नए रुपमें संगठित करके उसे अति कठिन बंधनों से जकड़ दिया,जिससे विदेशी का संपूर्णबहिष्कार हुआ और समाज के अंगों में नवीनता का संयोग या किसी प्रकार का परिवर्तन मात्र ही पाप और आचारभ्रष्टतासमझी जाने लगी। उस समय हिन्दू समय 'अचलायनी' बन गया,और उसके अपने देश की भौगोलिक परिधि के अंदर ही अपनी दृष्टि कोइस तरह आबद्ध करके रखा,मानो भारत के बाहर कोई देश ही नहीं है । ''


किंतु मुसलमानों के भारत जीतने के बाद भारतवर्षकूप-मंडूक बनकर नहीं रह सका और अन्यान्य देशों के साथ फिर उसका संबंध औरआदान-प्रदान जारी हुआ । विश्व के विभिन्न देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित हुए। उस समय बोखारा,समरकंद बलख औरखुरासान,खारिजम और फारस के देशों के साथ नियमित व्यापार होता था। उस समय अफगानिस्तानदिल्ली-साम्राज्य का सूबा था। बोलनघाटी से हर साल भारतीय मालों से लदे 14हजार ऊँटकंधार और फारस जाया करते थे।मछलीपट्टन बंदरगाह से प्रतिवर्ष असंख्य जहाजसिंहल,सुमात्रा,जावा,स्याम,चीन यहां कि जंजीबार आदि देशों में जाया करते थे। इससेभारत को उदार बनाने में मदद मिली,हिन्दूधर्म की रुढ़ियां कमजोर हुईं।

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