गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

देवीवाले का बचपन

      
चपन तो जीवन का इंजन है । बचपन में कोई पंडित नहीं होता। बचपन की कोई जाति नहीं होती ,धर्म भी नहीं

होता। भूरा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । भूरा जन्म के समय बहुत गोरा और मोटा था। भूरा की नानी ने जन्म

के समय उसका रंग देखकर उसी क्षण उसका नाम भूरा रख दिया । संयोग की बात थी की मेरी गली में एक

बहुत सुंदर कुत्ता था जो गोरा था जिसे भूरा कहते थे,मोहल्ले के सारे लोगों का वह प्यारा था, लगता है नानी को भी वह अच्छा लगा हो!


भूरा की विलक्षण बात यह थी कि वह हँसते हुए पैदा हुआ था, माँ कहती थी कि यह विलक्षण लग रहा था कि कोई बच्चा जन्मते ही हँसने लगे। हँसमुख मिज़ाज भूरा को जन्मना मिला। भूरा के मज़े थे जन्म लेते ही नानी ने उसका नाम भूरा रख दिया।

भूरा का समूचा परिवेश मंदिरों, देवालयों और समर्थ राजनीतिकर्मियों से भरा था। मथुरा के जिस वातावरण में भूरा का जन्म हुआ वहाँ धर्म और तीर्थ के अलावा जो चीज़ सबसे प्रखर थी वह थी शहरीजनों की प्रखर सामाजिक सजगता।

आमतौर पर मथुरा का नाम सुनते ही मंदिर, पंडे, पुजारी,यमुना, घाट और पेड़े दिमाग़ में कौंधने लगते हैं। लेकिन मथुरा का माहौल इसके अलावा जिस चीज़ में डूबा हुआ था वह था राजनीतिक माहौल। कांग्रेस और जनसंघ की राजनीति से बारह महीने माहौल गरमाया रहता था। मथुरा में बचपन में मैंने जिस तरह की राजनीतिक बहसें और राजनीतिक गर्मी को महसूस किया है उससे यही लगता था कि मथुरा धार्मिक शहर नहीं राजनीतिक शहर है ,पर्यटन का केन्द्र है, लोग वहाँ घूमने के लिए आते थे, आनंद मनाने आते थे,धर्म या तीर्थयात्रा तो बहाना था असल चीज़ थी आनंद प्राप्त करना । आनंद की अनुभूति धर्म की मनोदशा से मुक्त करती है। आनंद में दाख़िल होते ही धर्म ग़ायब हो जाता है ।




जब भी चैत्र शुक्ला त्रयोदशी आती भूरा का जन्मदिन बड़े उत्साह से मनाया जाता । भूरा की बुआ और उसके बच्चे अतिथि होते, पड़ोस में रहने वाले बच्चे भी बुलाए जाते और उन सबको दोपहर का भोजन कराया जाता। मज़ेदार बात यह थी कि भूरा के जन्मदिन पर कभी मिठाई नहीं ख़रीदनी पड़ी। इसका प्रधान कारण था भूरा के परिवार का देवी का मंदिर था, चूँकि नवरात्रि के चार दिन बाद ही भूरा का जन्मदिन पड़ता था अत: मंदिर पर चढ़ने वाली वैविध्यपूर्ण मिठाइयाँ सबको खाने को ख़ूब मिलती थीं । इसके बावजूद भूरा को श्रीखंड पसंद थी तो घर में सबके लिए विशेष रूप से श्रीखंड ज़रूर बनती। घर में अजीब स्थिति थी भूरा के ताऊ के दो लड़के भी थे, लेकिन इन दोनों का जन्मदिन नहीं मनाया जाता था।
भूरा पर उसकी दादी भी बेहद मेहरबान थी और बेइन्तहा प्यार करती थी। भूरा परिवार में पहला बालक था जिसका जन्मदिन मनाया जाता था। बाक़ी किसी भी परिवारीजन का जन्मदिन नहीं मनाया जाता । पूरे परिवार में भूरा का ही जन्मदिन क्यों मनाया जाता था इसका किसी के पास संतोषजनक उत्तर न था ।

भूरा की माँ देखने में बेहद सुंदर और प्रखर बुद्धिमती थी लेकिन वो बोल सुन नहीं पाती थी। भूरा की मॉं को इस बात का गर्व था कि उसकी शादी पढ़े -लिखे लड़के से हुई है और वह ऐसे ख़ानदान से आती थी जो शिक्षित था।
भूरा का जन्म सुबह साढ़े चार बजे घर में हुआ ,उस समय मॉं की उम्र मुश्किल से तेरह - चौदह साल की थी। बच्चे को जन्म देते समय भूरा की मॉं इतनी छोटी थी कि वह जानती तक नहीं थी कि यह सब क्या हो रहा है । भूरा की मॉं बहुत ही स्वाभिमानी और स्वावलम्बी थी। वह पढ़ना लिखना नहीं जानती थी किंतु सामाजिक जीवन में उसकी बहुत गहरी दिलचस्पी थी, भूरा के पिता सामाजिक ज़िंदगी से बेख़बर रहते थे , जबकि मॉं उतनी ही गहराई में जाकर सामाजिक ज़िंदगी में रस लेती थी , शामिल होती थी, वह स्वभाव से एकदम निडर और साफ़गोई पसंद थी। ख़ुशामद करने की उसे आदत नहीं थी, उसे अपने पिता से अनेक गुण विरासत में मिले थे। यह भी कह सकते हैं कि भूरा के जीवन में आधुनिक संस्कार नानी -नाना के यहाँ से आए । भूरा के नाना और दोनों मामा एकदम आधुनिक थे, मथुरा जैसे समाज में चौबे होकर आधुनिक नज़रिए से सोचना दुर्लभ चीज़ थी, बहुत कम चौबे थे जो आधुनिक और मार्क्सवादी थे।

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