गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

गजेन्द्र की आत्महत्या से उठे सवाल


    एक व्यक्ति ने आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान ,रैली के दायरे में ही  जंतर- मंतर पर सरेआम पेड़ पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या के गर्भ से अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं। गजेन्द्र की आत्महत्या से यह संदेश गया है कि किसान या आम आदमी की जिंदगी उतनी खुशहाल नहीं रह गयी है जितना मीडिया के जरिए प्रचार किया जा रहा है। आम आदमी की जिंदगी लगातार असंख्य परेशानियों से घिरती जा रही है। कितना भयानक दृश्य है कि जो व्यक्ति सामूहिक लड़ाई का अंग बनकर रैली में भाग लेने आया था उसके मन की थाह किसी के पास नहीं थी, वह अपनी जेब में आत्महत्या का पुर्जा लिखकर लाया था। उसने अपने किसी भी संगी-साथी को भनक तक नहीं लगने दी कि वह किस तकलीफ में है। वह सामूहिक जंग में भी  एकाकी और पराएपन में कैद था।  
      गजेन्द्र का रैली में सरेआम फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेना और रैली में शामिल हजारों लोगों का उसको देखते रहना,लंबे समय तक रैली के आयोजकों का उसकी स्थिति की ओर ध्यान न देना इस बात का द्योतक है कि हम घनघोर अमानवीय समय और अमानवीय भावबोध में डूबे नेताओं और संगठनों के बीच में जी रहे हैं। हमारा समाज अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं की हृदयहीन अमानवीय दशा में जीने को अभिशप्त है। मेरे लिए बेहद कष्ट की बात यह है कि 'आप' रैली में यह घटना सरेआम घटती है लेकिन किसी की आंखों में आंसू तक नहीं निकले! हमारे नेताओं के आंसू क्यों सूख गए हैं ? रैली में शामिल जनता की आंखों में आंसू क्यों नहीं थे ?  किसी किसान की आत्महत्या या किसी व्यक्ति की हत्या को देखकर हम द्रवित क्यों नहीं होते ? हम इतने अमानवीय कैसे हो गए हैं ?
  हम माँग करते हैं पुलिस की चूक के लिए दिल्ली के पुलिस प्रमुख को तुरंत हटाया जाय। केन्द्रीय गृहमंत्री इस्तीफ़ा दें। मोदी सरकार अपनी सामूहिक और मंत्री की निजी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। बेशर्मी की हद है कि गृहमंत्री से मोदी ने अभी तक इस्तीफ़ा नहीं माँगा है,  पुलिस के निकम्मेपन के लिए पुलिस मुखिया को सस्पेंड नहीं किया गया है। मृतक को श्रद्धांजलि देने की मोदी को फुर्सत नहीं है। वे अस्पताल तक देखने नहीं गए।गृहमंत्री नहीं गए। मोदी सरकार की यह हृदयहीनता निंदनीय है।
      सवाल उठता है हमारे किसी भी कैमरामैन के फांसी का लाइव दृश्य लेते समय हाथ क्यों नहीं कांपे ? उसने कैमरा फेंककर मरने वाले को बचाने की कोशिश क्यों नहीं की ? क्या पेशागत दायित्व यही शिक्षा देता है कि मनुष्य को मरने दो तुम अपना काम करो। यह तो स्वार्थियों का तर्क है, अ-सामाजिक तर्क है।  
     आम आदमी पार्टी और ख़ासकर अरविंद केजरीवाल जवाब दें कि उनकी रैली में एक व्यक्ति फांसी लगाता है तो उनकी क्या कोई सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी नहीं हैं ?  वे सोचें कि उनकी उन्मादी प्रचार शैली आम आदमी को राहत देती है या फिर परेशानियों और बेचैनी में ठेलती है ?

      गजेन्द्र ने सरेआम फांसी लगाकर केजरीवाल एंड कंपनी को सरेआम नंगा कर दिया है और सीधे संदेश दिया है कि यह पार्टी हृदयहीनों का दल है। कल से लेकर आज तक मृतक के परिवार किए आर्थिक मदद की घोषणा न तो दिल्ली सरकार ने की है और न मोदी की केन्द्र सरकार ने की है। मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह केन्द्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे तुरंत आर्थिक सहायता राशि की घोषणा करें । गजेन्द्र की फांसी के लिए ये दोनों भी जिम्मेदार हैं। यदि समय रहते प्रयास किया गया होता तो गजेन्द्र को बचाया जा सकता था।  

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