शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अल -शबाब के केन्या हिंसाचार के मायने


केन्या में अल-शबाब द्वारा किया गया गरिस्सा विश्वविद्यालय  नृशंस हत्याकांड निंदनीय है। इस घटना के जितने विवरण और ब्यौरे मीडिया में आ रहे हैं, उनसे अल-शबाब की आतंकी हरकतों का संकेत मात्र मिलता है। अल-शबाब के हमले में 147 लोग मारे गए इनमें अधिकतर लड़कियां हैं.तकरीबन 20 पुलिस और सुरक्षाकर्मी भी मारे गए हैं। यह हमला जिस तरह हुआ है उसने सारी दुनिया के लिए संकेत दिया है कि आतंकी हमेशा सुरक्षा की दृष्टि से  कमजोर इलाकों पर ही हमले करते हैं। इन हमलों के पीछे अल-शबाब की साम्प्रदायिक मंशाएं साफ दिख रही हैं, उनके निशाने पर गैर-मुस्लिम छात्र थे।
     उल्लेखनीय है यह संगठन केन्या में गैर-मुस्लिमों पर निरंतर हमले करता रहा है और इसे सोमालिया के  अल-कायदा के हिंसक हमलों के खिलाफ इस्तेमाल करने के मकसद से 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ की शांतिसेना की मदद के लिए शामिल किया गया था। अल-शबाब को अफ्रीकी यूनियन सेना की मदद से मुख्य सघन आबादी वाले इलाकों में तैनात किया गया और  उसके वर्चस्व का विस्तार किया गया।  खासकर केन्या,सोमालिया और उगांडा में उसके नेटवर्क का विस्तार करने में संयुक्त राष्ट्रसंघ शांति सेना और अफ्रीकी यूनियन सेना की अग्रणी भूमिका रही है। यह संगठन कई बार आम जनता पर आतंकी हमले कर चुका है। खासकर गैर-मुस्लिमों पर हमले करने में इसकी अग्रणी भूमिका रही है।
   अल-शबाब का गरिस्सा विश्वविद्यालय में निरीह छात्रों पर हमला करने के पीछे क्या मकसद था यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है लेकिन इस घटना ने समूचे केन्या को हिलाकर रख दिया है, उल्लेखनीय है कुछ दिन पहले पाकिस्तान में इसी तरह का आतंकी हमला स्कूली बच्चों पर हुआ था। पैटर्न साफ है कि आतंकी संगठन शिक्षा संस्थानों पर हमले करके आम जनता में दहशत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में स्कूल में काम करने वाली नन पर हमला और बलात्कार उसी पैटर्न का अंग है।

      केन्या के जिस इलाके , गरिस्सा में यह हमला हुआ है वह बेहद गरीब और अभावग्रस्त है। यहां आमलोगों के पास कृषि आधारित काम-काज के अलावा कोई काम नहीं है। पशुपालन और कृषि ही उनकी आजीविका का आधार है, गरिस्सा वि वि में तकरीबन 900छात्र रहते हैं और जिस समय(3अप्रैल2015) शाम को पांच बजे यह आतंकी हमला हुआ उस समय विश्वविद्यालय में हलचल थी।  इनमें से 147 लोग घटनास्थल पर ही मारे गए ।  गरिस्सा विश्वविद्यालय में सभी छात्र 6 डोरमेट्री में रहते हैं। हमलावर आतंकी चुन-चुनकर ईसाईयों को खोज रहे थे। गरिस्सा विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष कॉलिन वतनगोला ने कहा कि वह जब नहा रहा था तब उसने अचानक कैम्पस में गोलियां चलने की आवाजें सुनीं। गोलियों की आवाजें सुनने के साथ छात्रों ने अपने कमरे अंदर से बंद कर लिए,अध्यक्ष ने भी अंदर से कमरा बंद कर लिया था।गोला ने कहा  हम सिर्फ जूतों  और गोलियों की आवाजें सुन रहे थे,बीच बीच में अल-शबाब जिंदाबाद के नारे सुन रहे थे।
  अल-शबाब के आतंकियों ने बंदूक की नोंक पर जबरिया डोरमेट्री खुलवायीं और एक-एक छात्र से पूछा कि  कौन मुस्लिम है और कौन ईसाई है ? जिस छात्र ने अपने को ईसाई कहा उसे वहीं अलग करके गोलियों से भून दिया गया। छात्रसंघ के अध्यक्ष ने कहा प्रत्येक गोली के चलने पर उसे यही महसूस हो रहा था कि ये गोलियां अब मुझे भी लग सकती हैं। इस घटना के बाद बाकी बचे सभी छात्र गंभीर मानसिक यंत्रणा और आतंक की पीड़ा से गुजर रहे हैं। सारे केन्या में मातम फैला हुआ है।
      केन्या के आतंकी हमले का यही सबक है कि हर कीमत पर सभी धर्म के मानने वालों में प्रेम और सद्भाव बनाए रखें। भारत में जो लोग ईसाईयों पर हमले कर रहे हैं वे असल में उस अंतर्राष्ट्रीय आतंकी शिविर के मनसूबों को पूरा कर रहे हैं जो आतंकी कहलाते हैं और अपने को मुसलमानों का रखवाला भी कहते हैं। आतंकी हरकत चाहे वे किसी भी रुप में हो उसकी हम सबको एकजुट भाव से निंदा करनी चाहिए। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि समुदायों में हर हाल में सद्भाव बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है ।








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