आम तौर पर जो लोग कलकत्ता या
प.बंगाल में घूमने जाते हैं तो उनको एक भिन्न किस्म का का सामाजिक परिवेश नजर आता
है। कहने को पश्चिम बंगाल भारत में है लेकिन भारत से भिन्न भी है। पश्चिम बंगाल की
भिन्नता है धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली का वर्चस्व। धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली का गुण है कि वह राजनीतिक सचेतन, सहज,स्वाभाविक,मानवीय
और संवेदनशील होती है। इसमें 'स्व' के प्रति आलोचनात्मक विवेक प्रबल
होता है।
आजादी के साथ ही पश्चिम
बंगाल हिन्दू-मुसलिम सामाजिक विभाजन की आग में जल रहा था। भारत-विभाजन का सबसे
तीव्र असर यहां पड़ा था.बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे, इन दंगों ने यहां के जनमानस
को अंदर तक पीड़ित किया था। उस पीड़ा का समाधान करने में धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली की
महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बंगाल से हमें यह जीवनशैली सीखनी चाहिए। साम्प्रदायिक
मनोदशा से लड़ने का आज भी यह सबसे कारगर अस्त्र है।
प.बंगाल में धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली के
निर्माण में आम जनता और बुर्जुआदलों के अलावा कम्युनिस्टों की महत्वपूर्ण भूमिका
रही है। कम्युनिस्टों की भूमिका न बिना धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली के विकास की कल्पना
नहीं की जा सकती। यह एक सच है कि आम जनता
में साम्प्रदायिक सद्भाव को प्रधान एजेण्डा बनाने में कम्युनिस्टों की निर्णायक भूमिका
रही है। वे साम्प्रदायिक सद्भाव के संदेशवाहक के तौर पर राज्य में अग्रणी कतारों
में रहे हैं,आम जनता के जीवन से साम्प्रदायिक भेद कैसे खत्म हुआ होगा यह बात आज की
युवा पीढ़ी के लिए समझना बहुत ही मुश्किल है ।
भारत-विभाजन क्यों और कैसे
हुआ यह सवाल आज बेमानी है,कौन इसके लिए जिम्मेदार था,यह सवाल भी बेमानी है। भारत
विभाजन के समय कम्युनिस्टों का नजरिया सही नहीं था,वह गलत उसूलों पर आधारित
था,इसको बाद में कम्युनिस्ट पार्टी ने भी माना। लेकिन भारत विभाजन के कारण जो
साम्प्रदायिक भेदभाव,हिंसाचार और घृणा समाज में फैली थी उसको खत्म करने के मामले
में कम्युनिस्टों ने उस दौर में धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ मिलकर कंधे से कंधा
मिलाकर काम किया । उस दौर को लेकर कम्युनिस्टों ने कुछ सबक भी हासिल किए जिनको
व्यवहार में लागू किया गया।
पहला सबक यह था कि आम जनता
में जड़ें मजबूत बनानी हैं तो अंतर्राष्ट्रीयतावाद के जंजाल में फंसने की बजाय
राष्ट्रीय परंपराओं को समझना होगा, राष्ट्रीयता की भावना को पुख्ता बनाना होगा।
कौमी परंपरा की नए सिरे से खोज करनी होगी। देश में और खासकर पश्चिम बंगाल में
जनाधार बनाने के लिए कौमी परंपरा का निर्माण करना होगा। यही वह प्रस्थान बिंदु है
जहां से कम्युनिस्टों का रुपान्तरण आरंभ होता है। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सही
लिखा है '' पिछली बातों के लिए अंधी भक्ति बुरी होती
है । साथ ही उनके लिए नफ़रत भी उतनी ही बुरी है। उसकी वजह है कि इन दोनों में से
किसी पर भविष्य की बुनियाद नहीं रखी जा सकती। वर्तमान का और भविष्य लाजिमी तौर से
भूतकाल से जन्म होता है और उन पर उसकी छाप होती है। इसको भूल जाने के मानी हैं
इमारत को बुनियाद से काट देना ।उसके मानी हैं इन्सान पर असर रखने वाली एक सबसे
बड़ी ताकत को भुला देना। राष्ट्रीयता असल में पिछली तरक्की ,परंपरा और अनुभवों की
एक समाज के लिए सामूहिक याद है। '' कम्युनिस्टों ने इस
''सामूहिक याद'' को नए
सिरे से अर्जित किया ।
सवाल यह है कि क्या
राष्ट्रीयता की पुरानी यादों के सहारे समाज का विकास संभव है ? पुरानी सामूहिक यादों ने विरेचन का काम किया। समाज से साम्प्रदायिक
विद्वेष को खत्म किया। पुरानी सामूहिक यादों को कम्युनिस्टों सामाजिक दुश्मनी को
खत्म करने के औजार के रुप में इस्तेमाल किया। मिश्रित संस्कृति और सभ्यता के रुपों
की नए सिरे खोज आरंभ की। उसका ही यह सुफल है कि कोलकाता साम्प्रदायिक प्रदूषण से मुक्त महानगर बन पाया। आजादी
के बाद देश के बाकी हिस्सों में साम्प्रदायिक
ताकतें फली-फूली हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में आरएसएस और उसके सहयोगी को संगठनों को
जनाधार नहीं मिला, मुस्लिम लीग जनविहीन हो गयी। आम बंगाली के मन से साम्प्रदायिक
विद्वेष क्रमशः खत्म होता चला गया।
यह वामदलों के प्रयासों
का ही सुफल है कि आज समूचा बंगाल साम्प्रदायिकचेतना से मुक्त है।आजादी के बाद
साम्प्रदायिक विभाजन की तमाम कोशिशें हुई
हैं लेकिन इस राज्य में वे सभी विफल रही हैं। वामदलों के प्रयास का ही यह सुफल है कि आम जीवनशैली में धर्मनिरपेक्षीकरण की
प्रक्रिया तेजगति से चली है। आम जीवन में धर्मनिरपेक्षता एक ताकतवर विचार के रुप
में काम करता रहा है। यह स्थिति तब है जबकि देश के विभिन्न इलाकों में
साम्प्रदायिकता की आंधी चलती रही है। मसलन्,राममंदिर रथयात्रा,बाबरी मसजिद
विध्वंस, इंदिरा गांधी की हत्या और सिख जनसंहार, गुजरात का बर्बर जनसंहार आदि बड़ी
घटनाएं पश्चिम बंगाल की मनोदशा को प्रभावित करने में असफल रही हैं। यह साधारण बात
नहीं है।
आमतौर पर पश्चिम बंगाल की जीवनशैली का धर्मनिरपेक्ष
ताना-बाना है। धर्मनिरपेक्षता यहां वोटबैंक राजनीति तक सीमित नहीं है बल्कि एक
विकसित आधुनिक जीवनशैली है। धर्मनिरपेक्ष आधुनिक जीवनशैली की परिकल्पना को वामदलों
ने आम जनता की मदद से साकार किया है। आज सारे देश में जातिगत विद्वेष और जातिगत
गोलबंदियां हैं,लेकिन पश्चिम बंगाल इससे
एकदम अछूता है। जाति-उत्पीडन यहां एकसिरे
से नदारत है। धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली जब निर्मित होगी तो जातिवाद कमजोर होगा, जाति
की पहचान कमजोर होगी। पश्चिम बंगाल में जाति की पहचान कमजोर हुई है और जातीयता या
नैशनेलिटी की पहचान पुख्ता हुई है। राज्य में जब भी भेदकारी ताकतों ने सिर उठाने
की कोशिश की है उसका आम जनता ने ''हम सब बंगाली हैं'' की एकजुट धर्मनिरपेक्ष भावना के साथ सामना किया है। वामदलों ने
राष्ट्रीयनेताओं की परंपराओं को अपनाया और उनका व्यवहार में पालन किया। इसके चलते
वामदलों ने अपने लिए नए सिरे से राष्ट्र की खोज की।
एक जमाना था जब कम्युनिस्ट हर बात में
अंतर्राष्ट्रीयतावादी भावनाओं को व्यक्त करते थे लेकिन आजादी के बाद क्रमशः उनमें
यह समझ बनी कि देश के विकास के लिए राष्ट्रीयताबोध का पुख्ता बोध का होना जरुरी
है। उन्होंने राष्ट्रीय महापुरुषों की इज्जत करना सीखा और उनकी शिक्षाओं का
प्रचार-प्रसार किया। राष्ट्रीयता और कम्युनिस्ट पार्टी की अंतर्कियाओं को बुर्जुआ
परंपराओं और नजरिए ने क्रमशःप्रभावित किया। यह भी कह सकते हैं बंगाली लिबरल
परंपराओं ने कम्युनिस्ट कतारों को सीधे प्रभावित किया। इस क्रम में बंगाली समाज की
मान्यताओं और परंपराओं के साथ अंतर्क्रियाएं भी आरंभ हुईं,फलतः कम्युनिस्टों ने बंगाली
परंपराओं और रिवाजों को समझना और सामंजस्य बिठाना सीखा । खासकर खुले दिमाग की
बंगाली और भारतीय मनोदशा ने कम्युनिस्टों में लिबरल आचार-व्यवहार के प्रति आकर्षण
पैदा किया।देशज संस्कृति,जातीय परंपरा, खुला दिमाग और विवेकवाद ये चार चीजें
कम्युनिस्टों को बंगाली समाज से विरासत में मिलीं और इसका कम्युनिस्टों ने आम जनता
में जमकर प्रचार किया इससे समूचे समाज में धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली निर्मित करने में
मदद मिली।
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