रविवार, 6 सितंबर 2009

वर्चुअल संवाद महज खेल है संवाद नहीं

यूजर जब भी नेट पर लि‍खता है, अथवा कि‍सी लेखक के लि‍खे पर प्रति‍क्रि‍या व्‍यक्‍त करता है तो वह संवाद नहीं करता बल्‍कि‍ खेल खेलता है। नेट के वर्चुअल पन्‍ने पर लि‍खे संदेश ,लेख या टि‍प्‍पणी को जब आप पढ रहे होते हैं तो आप अकेले नहीं पढ रहे होते हैं, आप जब प्रति‍क्रि‍या व्‍यक्‍त कर रहे होते हैं तो एक ही साथ अनेक लोग प्रति‍क्रि‍या व्‍यक्‍त कर रहे होते हैं। ऐसे में यूजर के सामने कोई नहीं होता सि‍र्फ एक वर्चुअल पन्‍ने पर लि‍खा संदेश होता है जि‍सके साथ वह प्रति‍क्रि‍याओं का आदान प्रदान करता है। प्रभाष जोशी ,राजेन्‍द्र यादव,नामवर सिंह आदि‍ कि‍सी के भी बारे में पढें या लि‍खें,यह संवाद नहीं खेल है। वैसे ही जैसे आप नेट पर गेम खेलते हैं। जैसे नेट पर गेम खेलते हुए एक नहीं हजारों यूजर एक ही साथ खेलते हैं,आप भी खेलते हैं। नेट संवाद वर्चुअल बहुस्‍तरीय खेल है। ऐसे में आप वर्चुअल पन्‍ने को सम्‍बोधि‍त करते हैं,कि‍सी व्‍यक्‍ति‍ को नहीं। आप इसी पन्‍ने के साथ खेल रहे होते हैं। यह ऐसा संवाद है जि‍समें दो नहीं दो से ज्‍यादा लोग एक ही साथ संवाद कर रहे होते हैं। यहां सारा खेल वर्चुअल पाठाधारि‍त होता है। इस खेल में भाग लेने वालों को अपने ऑनलाइन व्‍यक्‍ति‍त्‍व को 'नाम' के पीछे छि‍पाना होता है। यह 'नाम' सही,गलत,असली,नकली कुछ भी हो सकता है। हमारे तमाम युवा जोश में अनाप-शनाप टीका-टि‍प्‍पणी करते हैं, वे समझते हैं वे कि‍सी से साक्षात कह रहे हैं,जबकि‍ वे साक्षात कि‍सी से नहीं कहते बल्‍कि‍ वर्चुअल पन्‍ने से कह रहे होते हैं,वे सोचते हैं, उन्‍होंने साक्षात कि‍सी को गाली दे दी,लेकि‍न वे साक्षात कि‍सी व्‍यक्‍ति‍ को नहीं वर्चुअल पन्‍ने के सामने राय जाहि‍र कर रहे होते हैं। नेट गेम के तो कुछ नि‍यम भी हैं, मानवीय वर्चुअल संवाद खेल का कोई नि‍यम नहीं है। यह नि‍यमरहि‍त संवाद है। इसमें संवाद के औपचारि‍क नि‍यमों का भी पालन नहीं होता। क्‍योंकि‍ यह वर्चुअल संवाद है। इस संवाद में भाग लेने वाला कि‍सी एक वि‍षय,एक क्षेत्र तक सीमि‍त नहीं रहता, वह इधर-उधर वि‍चरण करता है, इधर उधर की हांकता। वर्चुअल संवाद की लगाम उसके हाथ में होती है जि‍सके पास पाठ के नि‍यंत्रण की चाभी होती है। यूजर के हाथ में इसकी चाभी नहीं होती,आमतौर पर संवाद करने वालों के हाथ में संवाद का नि‍यंत्रण होता है,नेट में ऐसा नहीं होता,नेट संवाद का नि‍यंत्रक वह है जि‍सके हाथ में पाठ का नि‍यंत्रण है। यह ऐसा संवाद है जो आर्थि‍क उत्‍पादन करता है। इस संवाद में यूजर का प्रत्‍यक्ष अप्रत्‍यक्ष पैसा खर्च होता है, संवाद को संप्रेषि‍त करने वाले सर्चइंजन मालि‍कों से लेकर नेट सेवा प्रदाता तक सभी को इससे बेशुमार लाभ होता है,यह लाभ छनकर नीचे तक आता है,इस अर्थ में नेट संवाद उत्‍पादक होता है। नेट संवाद में उम्र,जाति‍,धर्म,नस्‍ल ,सामाजि‍क हैसि‍यत आदि‍ का कोई महत्‍व नहीं है। इसके बावजूद संवाद में भाग लेने वाले यूजर हमेशा उम्र जाति‍,धर्म,नस्‍ल,रंग, आदि‍ के सवाल वैसे ही उठाते हैं जैसे वे वाचि‍क संवाद या लेखन में उठाते हैं। मजेदार बात यह है कि‍ नेट संवाद में लिंग भी नहीं होता। आप यदि‍ संवाद करने बाले को नाम से 'स्‍त्री' या 'पुरूष' के रूप में सम्‍बोधि‍त करते हैं तो यह सही नहीं है,सुवि‍धा के लि‍ए करते हैं तो कोई बात नहीं है। वरना वर्चुअल पन्‍ने पर कोई लिंग नहीं होता खाली संदेश होता है,आप संदेश को सम्‍बोधि‍त करते हैं। वर्चुअल में जो भी बातें करने आया है उसे मरना ही है,वह जीवि‍त नहीं होता। लि‍खते ही आप मर जाते हैं। खाली लि‍खा ही बचता है। वह भी जब पाठ का मालि‍क हटा देता है तो वह भी मर जाता है। सुवि‍धा के लि‍ए 'ऑनलाइन' जो है वह 'ऑफ लाइन' से भि‍न्‍न है। आप जैसा ऑनलाइन व्‍यवहार करते हैं ,ऑफ लाइन वैसा व्‍यवहार नहीं करते। इन दोनों में बुनि‍यादी अंतर है। ऑनलाइन आप कि‍सी से नहीं मि‍लते,सि‍र्फ वर्चुअल पन्‍ने से संवाद रूपी खेल खेलते हैं। इस खेल का सेतु है वेबसाइट। यह वर्चुअल जगह है। ठोस जगह नहीं है। यहां कोई नहीं है। बोलने वाला और सुनने वाला कोई नहीं है, यहां महज वर्चुअल संवाद है। 'ऑनलाइन' में शामि‍ल व्‍यक्‍ति‍ की इमेज पाठ से बनती है,पाठ के बाहर से नहीं,लेकि‍न यथार्थ इमेज के साथ इसका कोई मेल नहीं है। आप कुछ भी कहना चाहेंगे तो आपको कम्‍प्‍यूटर चाहि‍ए,इंटरनेट कनेक्‍शन चाहि‍ए। एक जगह चाहि‍ए,एक पता चाहि‍ए,संपर्क सूत्र चाहि‍ए और यह सब चाहि‍ए वर्चुअल स्‍थान में। इस अर्थ में वर्चुअल संवाद मंहगा है,इसके लि‍ए पैसा चाहि‍ए। यह सारी प्रक्रि‍या वर्चुअल वातावरण में चल रही है। यथार्थ वातावरण में नहीं। वर्चुअल पन्‍ने पर बन रही लेखकों की पहचान के साथ ही नेट यूजर अपनी पहचान भी जोडता है, इस या उसके बारे में अपनी राय व्‍यक्‍त करता है।

[देशकाल डॉट कॉम पर 6 सि‍तम्‍बर 2009 को प्रकाशि‍त )

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