शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

हाईटेक औरत का गहना है वि‍श्‍वास

मैत्रेयी पुष्‍पा बड़ी लेखि‍का हैं। उनका लि‍खा वजनदार होता है। लेकि‍न जि‍स तरह से उन्‍होंने 'देशकाल' पर एक लेख में प्रति‍क्रि‍या दी है। वह स्‍वीकार्य नहीं है। उन्‍होंने जो बातें कही हैं, वह औरत ,स्‍त्री वि‍मर्श ,स्‍त्रीभाषा और स्‍त्रीवाद के संदर्भ में पुंसवादी हैं। संयम, बंदि‍श, उपदेश, भवि‍ष्‍य,इति‍हास,मूल्‍य,मान-मर्यादा,परंपरा,रीति‍-रि‍वाज , सुकून, स्‍थास्‍थ्‍य, अकलमंदी, बुद्धि‍मानी इत्‍यादि‍ पदबंध औरत के सामने आकर दम तोड़ देते हैं। औरत की दुनि‍या अनुभूति‍ की दुनि‍या है। उसके यहाँ सारे फैसले अनुभूति‍ के आधार पर ही लि‍ए जाते हैं। अनुभूति‍ की कसौटी पर ही वह सारी दुनि‍या को कसकर देखती है।
ज्ञान,वि‍वेक,मूल्‍य,मान-मर्यादा आदि‍ पदबंधों से औरत को कोई लेना देना नहीं है। ये पुंसवादी वि‍मर्श और स्‍त्री को पुंसवादी घेरे में बांधने वाले पदबंध हैं। जि‍स वि‍ज्ञापन की भाषा का मैत्रेयी जी ने अपने लेख में जि‍क्र कि‍या है वह वि‍ज्ञापन है और वि‍ज्ञापन की भाषा उसकी शब्‍दरचना में नहीं होती। उसके अन्‍तर्नि‍हि‍‍त संदेश में होती है। यहां संदेश या सूचना गोली की है, आनंद की नहीं। मैत्रेयी जी की उपदेश और शापग्रस्‍त भाषा समूचे लेख में छायी हुई है। यह भाषा स्‍त्री को अब तक दण्‍डि‍त करती रही है। मैत्रेयी जी का मानना है ''नई तकनीक ने बहुत सारी सुविधाएं दीं-मोबाइल फोन, रसोई के साधन, सफाई के लिए डिटर्जेंट। सचमुच यह औरत की दुनिया में क्रांति है।'' यानी औरत को कैसी होना चाहि‍ए और क्‍या करना चाहि‍ए ,औरत की तथाकथि‍त क्रांति‍कारी दुनि‍या क्‍या है ? उपरोक्‍त पंक्‍ति‍यां बहुत साफ हैं,कि‍सी व्‍याख्‍या की जरूरत नहीं है। एक बडी लेखि‍का के मुँह से इस कदर मर्द भाषा तकलीफ देती है। यह स्‍त्री के असम्‍मान की भाषा है। यह ऐसी भाषा है जि‍सका स्‍त्री के यथार्थ से कोई लेना देना नहीं है। वे जि‍स गोली और उसकी भाषा को लेकर परेशान हैं,काश वह गोली प्रत्‍येक औरत के पास होती।
औरतें अनचाहे गर्भ के कारण आज भी सबसे ज्‍यादा तकलीफ उठाती हैं। यहां तक कि‍ प्रति‍वर्ष हजारों औरतें मर जाती हैं। लाखों औरतों को गर्भपात के चक्‍कर में अनेक नीम हकीमों के हाथों स्‍थायी बीमारि‍यों को अपने शरीर में लेकर घर लौटना होता है। औरत प्‍यार करे, कैसे करे, प्‍यार करे या नहीं करे,बच्‍चा धारण करे या न करे,बॉयफ्रेंड रखे या न रखे, हम कौन हैं जो उसे सलाह दे रहे हैं। हमारा सलाह देना ही स्‍त्री के जीवन में हस्‍तक्षेप है। हम उसकी स्‍वायत्‍तता और स्‍वतंत्रता को शक की नि‍गाह से क्‍यों देखते हैं। औरत को स्‍वतंत्रता खैरात में नहीं मि‍ली है,यह कि‍सी की दया का परि‍णाम भी नहीं है। दि‍न-प्रति‍दि‍न की कुर्बानि‍यों के बाद औरत को स्‍वतंत्रता की थोडी सी संभावनाएं दि‍ख रही हैं उन्‍हें भी हम सहन नहीं कर पा रहे हैं। मैत्रेयी पुष्‍पा ने लि‍खा है ' हाईटेक शताब्दी की युवतियों की ट्रेजैडी यही है'। औरतों के बारे में खासकर हाईटेक औरतों के बारे में यह स्‍टीरि‍योटाईप समझ मैत्रेयीजी को कहां से मि‍ली ? क्‍या उनकी जैसी बड़ी लेखि‍का जि‍सकी औरत के मन पर वि‍द्वत्‍ता की हद तक पकड़ है। उल्‍लि‍खि‍त नि‍ष्‍कर्ष सही है।यह एकदम तथ्‍यहीन है। पहली बात यह कि‍ हाईटेक औरत स्‍वच्‍छंद,उच्‍छृंखल और गर्भपात की शि‍कार नहीं है। यह नि‍ष्‍कर्ष हाइटेक औरत के तथ्‍य और सत्‍य से मेल नहीं खाता। हाइटेक औरतें कैसी होती हैं और क्‍या करती हैं,कैसे शाम गुजारती हैं,कैसा और कि‍तना परि‍श्रम करती हैं,वे कि‍तना अपने लि‍ए समय नि‍काल पाती हैं,यह सब कुछ देखने के लि‍ए थोड़ा सा समय नि‍कालकर बंगलौर या हैदराबाद अथवा अमेरि‍का के कि‍सी हाईटेक हब में चले जाएं तो शायद ऐसा नहीं सोचेंगे।
असल में मैत्रेयी जी का औरत पर वि‍श्‍वास ही नहीं है। वि‍श्‍वास के अभाव के कारण ही वे हाईटेक औरत को संदेह की नजर से देखती हैं। मैत्रेयी जी प्रच्‍छन्‍नत: यही कह रही हैं कि‍ हाईटेक औरतों के पास सेक्‍स करने के अलावा और कोई काम नहीं है। सेक्‍स करने के लि‍ए हाईटेक होने जरूरत नहीं है। सेक्‍स तो बगैर हाईटेक हुए ही सदि‍यों से चला आ रहा है। इससे भी बड़ी समस्‍या है कि‍ वे नैति‍कता के पैमाने पर रखकर औरत की ग‍ति‍वि‍धि‍यों को देख रही हैं। नैति‍कता औरत की सबसे मजबूत बेड़ी है। इसे जि‍तना जल्‍दी औरतें तोड़ दें उतना ही अच्‍छा है। गर्भनि‍रोधक गोलि‍यां परि‍वार नि‍योजन के अनेक उपायों में से एक उपाय है। इससे ज्‍यादा कुछ भी नहीं। परि‍वार नि‍योजन के उपायों का सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल परंपरागत औरतें करती हैं। गर्भनि‍रोधक गोलि‍यां हों अथवा गर्भ गि‍राने वाली गोलि‍यां हों इन सबने औरत को कष्‍ट दि‍ए हैं। लेकि‍न औरत के जीवन की सबसे बड़ी वि‍पत्‍ति‍ से मुक्‍ति‍ दि‍लाने में मदद की है। औरत को 'संयम','स्‍वतंत्रता', 'गुलामी' आदि‍ कुछ भी नहीं चाहि‍ए उसे सि‍र्फ अपने मन की करने दो, औरत पर वि‍श्‍वास करो।वह गलती करेगी तो दुरूस्‍त भी कर लेगी। लेकि‍न संदेह और अवि‍श्‍वास की नजर से औरत को नहीं देखा जाना चाहि‍ए। औरत खरगोश नहीं है। उसके पास अपना वि‍वेक है हमें उस पर वि‍श्‍वास करना चाहि‍ए। औरत को हमारा समाज अवि‍श्‍वास और संदेह के कारण खोता रहा है। अवि‍श्‍वास के आधार पर औरत से संवाद संभव नहीं है। अवि‍श्‍वास और संदेह करने वालों को औरत अपने मन के पास फटकने नहीं देती। गर्भनि‍रोधक गोलि‍यॉं या परि‍वार नि‍योजन के उपाय औरत पर मनुष्‍य की आस्‍था को पुख्‍ता बनाते हैं। हमें औरतों को 'पुरूषों को चलाने' की चालाकि‍यों के बुढ़ि‍या पुराण के नजरि‍ए से भी नहीं देखना चाहि‍ए।
औरत है ,उसका स्‍वतंत्र अस्‍ति‍त्‍व है। स्‍वायत्‍त संसार है। उसे उपदेश की नहीं हमारे वि‍श्‍वास की जरूरत है,वह कुछ भी करे हमें उस पर वि‍श्‍वास करना चाहि‍ए। वह हमारी है। हम अवि‍श्‍वास और संदेह व्‍यक्‍त करके उसे परायी न बनाएं। औरत के प्रति‍ पराएभाव ने उसे समाज का हि‍स्‍सा ही नहीं बनने दि‍या।औरत के प्रति‍ संशय की नहीं वि‍श्‍वास की जरूरत है।वह भोली,मासूम,नादान,चालाक कुछ भी नहीं है वह तो औरत है उसके पास मन है, दि‍ल है और दुनि‍या को बदलने की आकांक्षा है हमें सि‍र्फ अपना वि‍श्‍वास उसे देना है उपदेश नहीं।हम सि‍र्फ यही कहें स्‍त्री कुछ भी करे हम उसके साथ हैं। औरत को आज के दौर में हमारा वि‍श्‍वास चाहि‍ए। उस पर अवि‍श्‍वास करने वाली बातें उसे आहत करती हैं। हमें इससे बचना चाहि‍ए।

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