कूपमंडूक विचारकों को वैश्वीकरण अभी तक समझ में नहीं आया है। वे यह देखने में असफल हैं कि भारत का बुनियादी आर्थिक नक्शा बदल चुका है। कूपमंडूक विचारकों में कठमुल्लापन इस कदर हावी है कि उनकी कूपमंडूकता के समाने विनलादेन भी शर्मिंदा महसूस करता है। भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण को औचक और कूपमंडूक भाव से कभी समझा नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विगत एक साल में अर्थव्यवस्था का जो नक्शा तैयार किया है उसको वस्तुगत रूप में देखें तो भारत की तस्वीर आगामी दशक में काफी हद तक बदल जाएगी। इस बदली तस्वीर को हमें पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर देखना होगा। कॉमनसेंस और कठमुल्लेपन से भूमंडलीकरण और नव्य आर्थिक उदारीकरण समझ में नहीं आएगा। भविष्य में भारत का प्रधानमंत्री कोई भी बने लेकिन देश में बड़े आर्थिक परिवर्तनों का आधार मनमोहन सिंह ने रख दिया है और यह काम बड़े ही कौशल और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए किया है। विगत एक साल में मनमोहन सरकार ने अमेरिका,चीन,रूस, फ्रांस,जापान,दक्षिण कोरिया, मलेशिया,संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों के साथ 250 से ज्यादा द्विपक्षीय समझौते किए हैं। इन समझौतों के कारण आगामी दशक में भारत की अर्थव्यवस्था में जबर्दस्त परिवर्तन होगा। महाशक्तियों और विकसित देशों के साथ परमाणु ऊर्जा,अंतरिक्ष,परिवहन,संचार आदि के क्षेत्रों में किए गए समझौते बेहद महत्वपूर्ण हैं। मसलन अमेरिका,रूस,फ्रांस चीन ,कनाडा के साथ परमाणु ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में किए गए समझौतों का दूरगामी असर होगा। मसलन रूस के साथ हुए समझौते के अनुसार रूस दो नए परमाणु रिएक्टर लगाएगा और लडाकू विमान के डिजायन निर्माण में मदद करेगा। आगामी 5 सालों में 3 स्थानों पर 18 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर लगाए जाने की महत्वाकांक्षी योजना की भी घोषणा की गई है। इसके अलावा 20 बिलियन डॉलर के दुतरफा व्यापारिक समझौते भी हुए हैं। फ्रांस विभिन्न प्रकल्पों में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा। चीन ने आगामी 5 सालों में विभिन्न क्षेत्रों में दुतरफा व्यापार के क्षेत्र में 100 बिलियन डॉलर के निवेश का समझौता किया है। चीन ने ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों 16 बिलियन डॉलर के 48 समझौते किए हैं। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अकेले फ्रांस 9,900 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए संयंत्र मुहैय्या कराएगा।
इसके अलावा फ्रांस के साथ अन्य क्षेत्रों में 12बिलियन डॉलर का,जापान के साथ 20 बिलियन डॉलर, कनाडा के साथ 15 बिलियन डॉलर का समझौता हुआ है। विगत वर्ष राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल की यात्रा के समय संयुक्त अरब अमीरात के साथ 100 बिलियन डॉलर के दुतरफा व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। इसमें 43 बिलियन का मौजूदा व्यापार शामिल नहीं है। यह भी अनुमान है कि सन् 2010-11 में कृषि उत्पादन भी बढेगा। सन् 2010-11 में 4.4 फीसदी कृषि उत्पादन का लक्ष्य है। जबकि 2008-09 में 1.2 प्रतिशत ही कृषि उत्पादन हुआ था। इसी तरह चीनी और रूई का उत्पादन भी बढ़ेगा। भारत में जहां एक ओर तेजी से विकास हो रहा है। उत्पादन बढ़ रहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश बढ़ रहा है। विश्व बाजार में रूई और चीन के दाम बढ़े हैं मसलन चीनी को ही लें,सन् 2010-11 में चीन का उत्पादन 250 लाख टन होने की संभावना है जबकि 2009-10 में 188 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। चीनी की विश्व बाजार में बड़ी मांग है। उद्योगों में उत्पादन की गति तेज है और औद्योगिक उत्पादन का लक्ष्य 10 प्रतिशत से ऊपर रखा गया है। विगत अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन 10.8 प्रतिशत था और अनुमान है यह आंकड़ा बढ़ेगा। इसी तरह मशीनों के उत्पादन में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उपभोक्ता मालों का उत्पादन 31 फीसदी बढ़ा है। खान उत्खनन और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। कारपोरेट कंपोजिट इंडेक्स बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गया है। जो कि पहले 6.9 फीसद था। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद दर 9 प्रतिशत से ऊपर जा सकती है। आयात और निर्यात दोनों में वृद्धि हुई है। निर्यात में 26.7 प्रतिशत और आयात में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अभी निर्यात की तुलना में विदेशों से आयात ज्यादा हो रहा है। यह चिंता का क्षेत्र है।
दूसरी ओर समानान्तर अर्थव्यवस्था या काले धन की संस्कृति का भी विकास हुआ है। एक अनुमान के अनुसार प्रति 24 घंटे में भारत 240 करोड़ रूपये खोता जा रहा है। सन् 1948-2008 की अवधि के दौरान भारत से लगभग 9.7 लाख करोड़ रूपये अवैध पूंजी के रूप में विदेशी बैंकों में जमा कराए गए हैं। इसमें 5.7 लाख करोड़ रूपये तो 2000-08 की अवधि में जमा कराए गए हैं। ये सारी जानकारी ‘ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी-जीएमआई ’ की एक रिपोर्ट में दी गयी है। रिपोर्ट का शीर्षक है- ‘द ड्राइवर्स एण्ड डायनामिक्स ऑफ इल्लिसिट फाइनेंशियल फ्लोज फ्रॉम इण्डियाः1948-2008’। इस अवैध काले धन पर यदि आयकर आदि करों की राशि जोड़ दी जाए तो यह रकम 21 लाख करोड़ रूपये बैठेगी। यह सारा कालाधन है। यदि इस धन को भारत रोक देता तो 230.6 अरब डॉलर के विदेशी ऋण को चुका पाता। इसमें यदि तमाम किस्म की तस्करी आदि का धन भी जोड़ लिया जाए तो यह पूंजी 500 अरब डॉलर से ऊपर बैठेगी। मूल बात यह है कि आर्थिक उदारीकरण लागू किए जाने के बाद से विकास हुआ है साथ में विकास के नाम पर सार्वजनिक संपत्तियों की लूट भी हुई है। क्योंकि विदेशों में जमा अधिकांश कालाधन 1991 के बाद ही जमा किया गया है। कालेधन के विशेषज्ञ अर्थशास्त्रियों का मानना है भारत की 72 फीसदी काली पूंजी विदेशों में जमा है और भारत में मात्र 28 फीसदी है। अवैध कालेधन का समूचा आकार 640 बिलियन डॉलर से ज्यादा का आंका गया है। आने वाले दशक में यह आंकड़ा बढ़ेगा। नव्य उदार अर्थशास्त्र में काले धन पर नकेल लगाने का कोई नियम अभी तक सामने नहीं आया है। केन्द्र सरकार विदेशों में भारतीयों के जमा काले धन को वापस लाने के मामले में कोई ठोस कदम उठाती नजर नहीं आ रही है।
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