हिन्दी की दुनिया तेजी से बदल रही है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के शब्दों में कहें तो हिन्दी अब नई चाल में ढ़ल रही है। नई चाल में हिन्दी कैसे ढ़ल रही है। इसके बारे में अभी हमने सोचना आरंभ नहीं किया है। हमें हिन्दी के बदले मानकीकरण को गौर से देखना चाहिए। हाल ही में भारत में ‘W3C ’ नामक कंपनी ने अपना मुख्यालय खोला है। इस कंपनी का काम होगा बेव पर भारत की संविधान स्वीकृत 22राजभाषाओं के मानकीकरण के काम की निगरानी करना। यह काम भारत सरकार के सूजचना तकनीकी विभाग के सहयोग से किया जाएगा।
इसके पहले भारत सरकार ने आईसीएएनएन यानी ‘दि इंटरनेट कारपोरेशन फॉर एसाइननेम्स एंड नम्बर्स ’ में भारतीय भाषाओं में डोमेन नेम दर्ज करने का आनेदन किया है। भारत सरकार ने सात भाषाओं में डोमेन नेम दर्ज करने का अनुरोध किया है। ये भाषा हैं- हिन्दी,बांग्ला,पंजाबी,उर्दू,तमिल,तेलुगू और गुजराती। अभी स्थिति यह है कि हिन्दी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरे नम्बर की भाषा है। बांग्ला का आठवां स्थान है। लेकिन इंटरनेट पर इस्तेमाल होने वाली 10 सर्वोच्च भाषाओं में भारत की एक भी भाषा का नाम नहीं है।
भाषावार स्थिति इस प्रकार है- अंग्रेजी 464 मिलियन,चीनी 321 मिलियन,स्पेनिस 131 मिलियन,जापानी 94 मिलियन ,फ्रेंच 74 मिलियन,पोर्तुगीज 73 मिलियन,जर्मन 65 मिलियन, अरबी 41 मिलियन ,रशियन 38 मिलियन और कोरियन भाषा का 37 मिलियन यूजर इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर 10 भाषाओं के इंटरनेट पर 1,338 मिलियन यूजर हैं। बाकी भाषाओं के 259 मिलियन यूजर हैं। सारी दुनिया में 1,596 मिलियन भाषायी यूजर हैं।
इसी तरह अनुवाद उद्योग पर नजर डालें तो वयापक असंतुलन नजर आएगा। सबसे ज्यादा जिन 20 भाषाओं की रचनाओं का अनुवाद हो रहा है ,वे हैं-अंग्रेजी,फ्रेंच,जर्मन, रशियन, इटालियन, स्पेनिश, स्वीडिश,लैटिन,डेनिश,डच,चेक,एनशिएंट ग्रीक,जापानी,पोलिश, हंगेरियन, अरबी,नॉर्वेजियन, पोर्तुगीज,हिब्रू, चीनी।
इन भाषाओं का जिन भाषाओं में अनुवाद हो रहा है वे हैं जर्मन,स्पेनिश, फ्रेंच,जापानी, अंग्रेजी, डच, पोर्तुगीज,पोलिस,रशियन,डेनिश,इटालियन,चेक,हंगेरियन,फिनिस, नॉर्वेजियन, स्वीडिश, मॉडर्न ग्रीक,बल्गेरियन,कोरियन और स्लोवाक।
भारतीय भाषाओं के नेट पर अवरूद्ध विकास के कुछ कारण हैं। मसलन अभी भारत में पीसी साक्षरों की संख्या मात्र 62 मिलियन यानी कुल शहरी आबादी का यह मात्र 26 प्रतिशत है। सर्वोच्च चार बड़े महानगरों में इंटरनेट 21प्रतिशत आबादी तक ही पहुँच पाया है। इसके बाद के चार महानगरों में 21 प्रतिशत आबादी तक पहुँच पाया है। नैर महानगरों में 23 प्रतिशत आबादी तक पहुँच पाया है। पांच से एक लाख की आबादी वाले इलाकों में 16 प्रतिशत तक ही पहुँच पाया है। 5 लाख की आबादी वाले टाउन में मात्र 4 प्रतिशत तक ही इंटरनेट पहुँच पाया है। स्थानीय भाषा के प्रयोग के लिहाज से चीन,जापान और कोरिया सबसे ऊपर आते हैं। भारत में अधिकांश लोग जानते ही नहीं हैं कि स्थानीय भाषा में सॉफ्टवेयर कहां मिलता है।
एक सर्वे के अनुसार भारत के महानगरों के 35 प्रतिशत इंटरनेट यूजर नहीं जानते कि ऑनलाइन भारतीय भाषाओं का सॉफ्टवेयर कहां पर मिलता है। गैर महानगरीय यूजरों में यह संख्या 53 प्रतिशत तक बढ़ गयी है।
भारत में आमतौर पर रोमन लिपि में लिखने की आदत बढ़ती जा रही है। इस समस्या से भी भारतीय भाषाओं को जल्दी ही मुक्ति मिल जाएगी। ‘दि वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्टियम ने 7 सितम्बर 2010 को यह फैसला लिया है कि नेट पर एशिय़ाई भाषाओं के बहुभाषी स्पीच सिस्टम को आरंभ कर दिया जाएगा। इस सिलसिले में चीन,भारत और ग्रीस में वर्कशॉप भी हो चुकी हैं।
इसी क्रम में भारत में ‘स्पीच सिंथेसिस मार्कप लैंग्वेज ( एसएसएमएल 1.1) की व्यवस्था लागू होने जा रही है। इसके तहत आवाज के नियंत्रण,उच्चारण,ध्वनि के वोल्यूम और स्तर को नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे भाषा के सटीक उच्चारण को समझने में मदद मिलेगी।
साइबर संस्कृति के संदर्भ में यदि एशिया को देखें तो व्यापक भाषायी असंतुलन नजर आएगा। यह माना जा रहा है कि आने वाले एक बिलियन से ज्यादा इंटरनेट यूजर एशियाइ देशों से आएंगे। लेकिन इंटरनेट पर इस इलाके की भाषाओं का कंटेंट बहुत कम है। इंटरनेट के सकल कंटेंट का मात्र 13.83 प्रतिशत ही एशियाई भाषाओं में है। यह सामग्री सिर्फ चीन,कोरिया और जापान जैसे विकसित देशों की है। इनके अलावा सभी एशियाई देशों का इंटरनेट पर सन् 2011 तक मात्र 0.03 प्रतिशत रहेगा। उम्मीद है कि एशियाई भाषाओं का ऑनलाइन कंटेंट बढ़कर 14.69 प्रतिशत हो जाएगा। अभी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की भाषाओं का कंटेंट कुल मिलाकर 10 मिलियन पन्ने है। जबकि सारी दुनिया के नेट यूजरों में एशिया की संख्या 41.3प्रतिशत है। यह संख्या सन् 2012 तक बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगी। इसके बाबजूद सच यह है कि एशिया में इंटरनेट की पहुँच मात्र 17.2 प्रतिशत तक ही हो पायी है। इसके विपरीत पश्चिम देशों में इंटरनेट का विकास सर्वोच्च स्तर तक पहुँच गया है। पश्चिमी देशों में 73.1 प्रतिशत आबादी इंटरनेट के दायरे में है। अब इन देशों में इंटरनेट के विकास की बहुत कम संभावनाएं बची हैं।
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