फेसबुक और दूसरे सोशल नेटवर्क पर आकर्षक और प्रासंगिक विषयवस्तु की समस्या बनी हुई है। हिन्दी वाले सोशल नेटवर्क पर ज्यादातर व्यक्तिगत खोजखबर लेने ,हंसी -मजाक करने, रसभरी बातें करने,अतीत का स्मरण करने ,दैनंदिन जीवन की बातें करने में खर्च कर रहे हैं।यह उनका मतवाला भाव है। हिन्दी भाषी राज्यों में जिस तरह का सांस्कृतिक,विचारधारात्मक और राजनीतिक वैविध्य है उसके दर्शन सोशल नेटवर्क पर अभी नहीं हो रहे। खासकर फेसबुक पर हमारे हिन्दीभाषी राज्यों के जीवन की विविधता और दैनंदिन जीवन की चुनौतियां नजर नहीं आ रही हैं।
सोशल नेटवर्क की सफल अंतर्वस्तु की रणनीति पर अभी कोई सुसंगत चर्चा भी हम नहीं कर पाए हैं। मसलन फेसबुक और ऐसी ही सोशल नेटवर्क का किस तरह बेहतर इस्तेमाल किया जाए। इसके बारे में भारत के व्यापारी भी ज्यादा नहीं जानते और यदि जानते भी हों तो ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते। हिन्दी में अभी इक्का-दुक्का किताब प्रकाशक हैं जो अपनी किताबों के प्रचार-प्रसार के लिए फेसबुक का बड़े असुंदर ढ़ंग से इस्तेमाल कर रहे हैं। वे किसी पेशेवर व्यक्ति की अपने काम में मदद भी नहीं ले रहे हैं।
सोशल नेटवर्क की अंतर्वस्तु को दुरूस्त करने के लिए कुछ निम्न प्रस्ताव हैं जिन पर आप काम कर सकते हैं और चाहें तो इसमें कुछ और भी जोड़ सकते हैं। सोशल वेब को अपको अपने ब्राँण्ड के अनुरूप बनाना चाहिए। जिस तरह का व्यक्ति है, उसके जिस तरह के विचार, मूल्यबोध, व्यवहार और विचारधारा है उसके अनुरूप बनाना चाहिए। अथवा जिस तरह का ब्राँण्ड है उसकी प्रकृति के अनुकूल सोशल वेब को बनाया चाहिए।
हिन्दी में मनमानापन चल रहा है। ज्यादातर हिन्दीवाले अपने विचार,मूल्य,आदत, संस्कार आदि के अनुकूल सामग्री कम परोस रहे हैं। मसलन जो पत्रकार हैं उनकी सोशल वेब पर खबरें और सामयिक विचारों पर उनका लिखा कम से कम है। वे अपनी निजी मेहनत नहीं कर रहे। वे अन्य की सामग्री एकत्रित करके प्रसारित कर रहे हैं। इससे सही ब्राँण्डिंग नहीं हो पाती। इससे उनकी पेशवर क्षमता या कौशल को भी हम नहीं देख पाते हैं।
मसलन हमारे जेएनयू के दोस्तों ने फेसबुक पर अपना ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप में सभी ज्ञानी लोग हैं। लेकिन वे इस ग्रुप के बहाने जेएनयू की और भी सुंदर बाँण्डिंग कर सकते थे लेकिन अभी तक नहीं कर पाए हैं। वे एक खास किस्म के नाँस्टेल्जिया में जी रहे हैं और जेएनयू के ढ़ावे से लेकर इधर-उधर के मृतप्रसंगों पर टिप्पणियां कर रहे हैं। मेरी राय में इतने समर्थ और ज्ञानी लोगों से वेब सोशल नेटवर्कसमाज कुछ और ही अपेक्षाएं रखता है। यही दशा हमारे अन्य फेसबुक पर सक्रिय दूसरे अनेक दोस्तों की है। हिन्दी में इंटरनेट उन्नति करे इसके लिए पहली अनिवार्य शर्त है कि वेब लेखक हिन्दी में लिखें। हिन्दी के यूनीकोड फॉण्ट का इस्तेमाल करना करें। अभी अधिकांश यूजर चैट से लेकर टिप्पणियां लिखने तक रोमन लिपि में हिन्दी लिखते हैं। यह हिन्दी के भविष्य के लिहाज से दुखद स्थिति है।जो हिन्दीभाषी नहीं हैं और हिन्दी से इतर भाषा में जिनका पठन-पाठन हुआ है वे सुविधानुसार रोमन लिपि में लिखें तो समझ में आता है। लेकिन जो हिन्दी भाषी हैं उन्हें तो हिन्दी के यूनीकोड फॉण्ट में लिखने की आदत डालनी चाहिए। अपने कम्प्यूटर या लैपटॉप में हिन्दी फॉण्ट डाउनलोड करना चाहिए। यही बात अन्य भाषाभाषियों पर भी लागू होती है वे अपनी भाषा में यूनीकोड फॉण्ट का इस्तेमाल करें।
पिछले दिनों हमारे दोस्त सुहेल हाशमी ने एक संदेश दिया कि फेसबुक पर उर्दू भाषा में अभिव्यक्ति की सुविधा होनी चाहिए। मैं इस कॉज के साथ हूँ। आज स्थिति यह है कि उर्दू माइक्रोसॉफ्ट के पैकेज का हिस्सा है। विण्डोज विस्टा और माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2007 के लैंग्वेज इंटरफेस पैक में उपलब्ध है। उर्दू को आसानी से डाउनलोड भी कर सकते हैं। लेकिन सवाल है लिखने का। फेसबुक पर उर्दू लिखने का काम उर्दूभाषियों का है। कहने का अर्थ है कि सोशल वेब पर आप अपनी स्वयं ब्राँण्डिंग ठीक से करें। दूसरी बात यह कि सोशल वेब पर लेखन सरल,रंगीन, खिलंदडी,कल्पनाशील होना चाहिए।
सोशल वेब पर लिखते समय यह भी ध्यान रहे कि आप जब भी लिखें या उसका व्यापार के लिए इस्तेमाल करें तो वह आपके नाम से,वेब से ही अभिव्यंजित हो। वहां पर आने वालों के लिए प्रासंगिक सूचनाएं उपलब्ध हों। संभावित कलैण्डर उपलब्ध हो।
वेब पर आपका कोई अनुसरण क्यों करे ? आपको पसंद क्यों करे ?इसके लिए जरूरी है आप उसमें यह एहसास पैदा करें कि आप उसे कुछ देंगे। आपके पास आने से उसे कुछ मिलेगा। बतखोरी करना अच्छी बात है लेकिन महज बतखोरी को सर्जनात्मकता नहीं कहते। सोशल वेब पन्नों पर कुछ न कुछ प्रासंगिक लिखा जाए। प्रत्येक यूजर अपने हिसाब किसी न किसी प्रासंगिक समस्या, अनुभव, साहित्य,विचार,बाजार,पास-पड़ोस, कस्बा, गांव आदि के बारे में लिखे।
वेब भावों,विचारों,अनुभूतियों,वस्तुओं आदि के बारे में संप्रेषण का शक्तिशाली मंच है। यूजर को कोशिश करना चाहिए कि वह अधिकांश समय ऐसे संदेश लिखे जो ज्यादातर लोगों के काम के हों।मसलन हम संस्कृति,व्यवहार,संस्कार आदि को लेकर संवाद के विभिन्न स्तरों और परतों को खोल सकते हैं।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है और वह स्वयं को जिंदा रखने और अपना विकास करने में इसलिए सफल रहा है क्योंकि उसने समस्याओं और सवालों के समाधान खोजे हैं। सोशल वेब के यूजरों की जिम्मेदारी बनती है कि यूजरों के सवालों और समस्याओं के समाधान की दिशा में प्रयास करें।
एक अच्छी अंतर्वस्तु कभी नकली नहीं होती। अच्छी अंतर्वस्तु को आप संचित करते हैं। फैंकते नहीं हैं। एक अच्छी अंतर्वस्तु ईमानदार और मानवीयभावों को अभिव्यक्त करती है। हम उसका पीछा करते हैं। उसे लेकर व्यस्त रहते हैं। समाज बनाते हैं। इससे ही सोशल मीडिया बनता है।
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