सोमवार, 15 दिसंबर 2014

रायपुर साहित्य मेला के बहाने लिबरल बनने की चाह



   रायपुर साहित्य मेला में आना कई मायनों में सार्थक रहा, यह मेला असल में भाजपा के अंदर चल रही लिबरल राजनीतिक प्रक्रिया के अंग के रुप में देखा जाना चाहिए। भाजपा की आंतरिक संरचनाओं में लिबरल बनाम हिन्दुत्व के अंतर्विरोधों को सहज ही देखा जा सकता है। यह एक सच्चाई है कि छत्तीसगढ़ सरकार का हाल की कई अमानवीय - जनविरोधी घटनाओं के कारण आम जनता से अलगाव बढा है। जिस दिन (१२-१४ दिसम्बर २०१४) साहित्यमेला आरंभ हुआ उस दिन (१२ दिसम्बर) विभिन्न विरोधी राजनीतिक दलों ने रमन सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करते हुए जुलूस निकाले, कांग्रेस ने साहित्यकारों से साहित्य मेला में न जाने की अपील की। लेकिन इसके बावजूद यह मेला हुआ। स्थानीय साहित्यकारों को भी इस सम्मेलन में सक्रिय रुप से भाग लेते देखा गया। एक बुज़ुर्ग साहित्यकार ने केदारनाथ सिंह के रवैय्ये की तीखी आलोचना भी की, उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार का दिल्ली स्थित जनसंपर्क अधिकारी केदारजी के घर मुख्यमंत्री का निमंत्रण पत्र लेकर गया था उन्होंने आने के बारे में अपनी स्वीकृति भी दी,इसके बाद ही निमंत्रण पत्र से लेकर अन्य सभी प्रचार सामग्री  में उनका नाम दिया गया। स्थानीय लेखकों से बातें करके यह भी पता चला कि भाजपा सरकार का इस कार्यक्रम में कोई हस्तक्षेप नहीं था, स्थानीय लेखकों की मदद से ही सारा कार्यक्रम तय किया गया था । तीन दिन चले कार्यक्रम में कहीं पर भी कोई भाजपा या संघ का नेता नजर नहीं आया, समूचे कार्यक्रम को पेशेवर लोगों के जरिए संचालित किया गया, बाहर से आए लेखकों को बेहतरीन होटलों में रखा गया और सम्मानजनक ढंग से आदर-सत्कार किया गया। चूँकि यह हिन्दी के लेखकों का मेला था इसलिए राज्य सरकार ने राज्य के कॉलेज शिक्षकों को मेले में भाग लेने के लिए तीन दिन का अवकाश देकर बेहतर मिसाल क़ायम की। इन शिक्षकों के रहने आदि की भी व्यवस्था की गयी। दिलचस्प बात यह रही कि समूचा शहर साहित्यमेला की प्रचार सामग्री से पटा पडा था, हर जगह साहित्यकारों के नाम की सूचना सुंदर ढंग से दी गयी थी। मुश्किल यह थी कि जिस स्थान पर ( पुख़ौती मुक्तांगन, नया रायपुर ) यह मेला आयोजित किया गया था वह शहर से तक़रीबन २५किलोमीटर दूर था, पहले दो दिन कार्यक्रम में कम दर्शक थे लेकिन तीसरे दिन शहर के विभिन्न इलाक़ों से मुफ़्त बस सवारी की व्यवस्था करके सैंकडों लोगों को साहित्यमेला स्थल तक लाने में राज्य प्रशासन सफल रहा । इससे यह भी पता चला कि रायपुर में मेलाप्रेमी-साहित्यप्रेमी जनता भी है। जो लोग शहर के विभिन्न इलाक़ों से यहाँ आए उनमें मध्यवर्ग के मराठी भाषी और आसपास के गाँवों के लोग ज़्यादा थे। 
              

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...