एमएफ हुसैन का इंतकाल कलाजगत की अपूरणीय क्षति है। 10जून 2011 को उन्हें दक्षिण लंदन के ब्रुकबुड कब्रिस्तान में दफना दिया गया। उनकी यह अंतिम इच्छा थी कि वे जहां मरें वहीं दफनाए जाएं। भारत सरकार ने उन्हें भारत लाकर दफनाने का अनुरोध किया था जिस पर उनके बेटा-बेटी विचार भी कर रहे थे ,लेकिन अंत में हुसैन की इच्छा के अनुरूप ही उनका अंतिम संस्कार लंदन में ही किया गया।
हुसैन जबतक जिंदा रहे कलाकारों और कलाभोक्ताओं को बार-बार नए सवालों की ओर आकर्षित करते रहे। वे हमेशा एक नए विषय को उठाते और उस पर कलाजगत से लेकर आम आदमी तक चर्चा होती। वे जहां जाते वहां आलोचनात्मक वातावरण की सृष्ठि करते। उनकी इसी सर्जक शक्ति ने उन्हें महान कलाकार बना दिया। वे पेंटर थे साथ ही बहुत बड़े विचारक भी थे। उन्हें बंदिशें और सीमाएं परेशान करती थीं। अपनी पेंटिंग के बहाने उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक बंदिशों और संकीर्णताओं के खिलाफ राय बनायी। रंगों को उन्होंने तहजीब में तब्दील किया। कला के सामाजिक सरोकारों के दायरों में रद्दोबदल किया और कलाओं को सम-सामयिक आंदोलनों से जोड़ा।
एमएफ हुसैन की चंद पेंटिंग पर हिन्दू फंडामेंटलिस्टों की आपत्तियों के अलावा हुसैन की अधिकांश पेंटिंग ऐसी हैं जिनके बारे में फंडामेंटलिस्टों ने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। इससे एकबात पता चली कि फंडामेंटलिस्टों को सीमित कलाज्ञान है। वे कलाओं की नीति-उपदेशकों की तरह आलोचना करते हैं।कलाओं को नीति और उपदेशों से नहीं समझा जा सकता।कला जीवन की हूबहू छबि नहीं है।
एमएफ हुसैन ने अपनी कला से भारत की सोई हुई आत्मा को जगाया है। उनकी कला भारत को जानने,जुड़ने और उसके लिए कुछ करने का ज़ज्बा पैदा करती है। यही वजह है कि वे मरकर भी सबसे ज्यादा चर्चा के केन्द्र में हैं। हुसैन ने जीवन के अछूते और गुमनाम विषयों को अभिव्यक्ति देकर कला और जीवन के नए संबंधों को जन्म दिया है। उनकी कला में भारत बोलता है। एमएफ हुसैन की कलाकृतियों में उनके मन का हिन्दुस्तान बसता है। वे मर गए हैं लेकिन अपने सपनों का भारत धरोहर में दे गए हैं। मुझे बेलिस्की के शब्द याद आ रहे हैं। बेलिंस्की ने लिखा था-"हमारे युग की कला क्या है ? न्याय की घोषणा,समाज का विश्लेषण,परिणामतः आलोचना।विचारतत्व अब कलातत्व तक में समा गया है।" हुसैन की कला पर ये शब्द खरे उतरते हैं।
एमएफ हुसैन का अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुरूप हुआ।यह उनके जीवन की आखिरी बड़ी उपलब्धि थी। इस पर किसी शायर का शेर है -"ख़बर उनको हुई होगी, अजब क्या वे चले आएँ।जनाजा ले चलो सूएमज़ार आहिस्ता-आहिस्ता।।"
एमएफ हुसैन की विदेश में मौत का एक ही सबक है कि जो संगठन या व्यक्ति कलाओं और कलाकारों के प्रति विद्वेष पैदा करें,हमले करें,आतंक पैदा करें,उन्हें आजीवन जेल में बंद किया जाना चाहिए। कलाओं और कलाकारों का समाज में सम्मान करने की जरूरत है। समाज उनके लिए है, कलाविरोधी गुण्डों के लिए नहीं। क्या सरकार इस दिशा में कानून बनाएगी ?
धर्मनिरपेक्ष कला और कलाकारों को हिन्दुत्ववादी संगठन समय -समय पर कलंकित करते रहे है।इससे सारी दुनिया में भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की धज्जियां उड़ी हैं। एमएफ हुसैन का भागकर विदेश जाना और वहां शरण लेना धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की असमर्थता का संकेत है। सवाल यह है हिन्दुत्ववादी संगठन धर्मनिरपेक्ष कलाओं से घृणा क्यों करते हैं ? क्या यह देशभक्ति है ?
उनकी मौत पर फंडामेंटलिस्टों की भूमिका को लेकर सवाल खड़े करना गढ़े मुर्दे उखाड़ना नहीं है।समस्या इससे भी ज्यादा गहरी है और हुसैन का हमारे देश में वापस न लौटना ,शर्म की बात है, जो लोग काले धन को विदेश से वापस लाना चाहते हैं वे अपने सोने की खान जैसे कलाकार को वापस नहीं लाना चाहते थे। वे धन से प्यार करते हैं कलाओं-कलाकारों से नहीं। सवाल यह है कलामें नग्नता पर बात करो, किसी को मारोगे क्यों,अपमानित क्यों करोगे,पेंटिंग क्यों तोडोगे, सवाल उठता है क्या खजुराहो को तोड़ देंगे हम ? क्या लिंग और योनि पूजा पर पाबंदी लगा देंगे ? फंडामेंटलिस्ट जानते नहीं हैं कलाओं और भारतीय परंपरा को।
एमएफ हुसैन की विदेश में मृत्यु भारत की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रशक्ति की सबसे बड़ी असफलता है। विचारणीय सवाल है कि हुसैन को अपने देश वापस लाने में सरकार असमर्थ क्यों रही ? हुसैन के मन में सुरक्षा का भरोसा पैदा क्यों नहीं कर पाई ?
हुसैन की जिन विवादास्पद पेंटिंग पर हंगामा हुआ उस उन्होंने कहा था कि मेरा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं था और किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं माफी मांगता हूं। इसके बाबजूद हिन्दू फंडामेंटलिस्ट संगठनों ने अपनी फासिस्ट हरकतें बंद नहीं की,जगह-जगह उनकी पेंटिंगों पर हमले किए ,उन पर सैंकड़ों मुकदमे देश के विभिन्न शहरों में दायर कर दिए। उनकी जिंदगी को पूरी तरह असुरक्षित बना दिया और परिणामतः उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा। हुसैन चले गए लेकिन जिन कलाओं ने उन्हें महान बनाया,हमारे कलाजगत को महान बनाया ।ऐसी सैंकड़ों-हजारों कलाकृतियां धरोहर में दे गए हैं। ये कलाएं हुसेन को हमेशा लोगों के दिलो-दिमाग में उन्हें जिंदा रखेंगी । वे नहीं हैं, लेकिन हैं। वे अपनी कलाओं में भारत की सभ्यता और संस्कृति का एक नया नजरिया देकर गए हैं। नए धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना सौंपकर गए हैं।
हमारी तहजीब यह नहीं सिखाती कि किसी दिवंगत की लानत मलामत की जाय मगर यह प्रश्न क्या अनुत्तरित ही रहेगा कि उन्होंने हिन्दुओं के लिए मां के आदरणीय स्थान पर विराजती देवी सरस्वती के नग्न सौन्दर्य का उद्घाटन किया तो फिर किसी इस्लामी सौन्दर्य को वैसा क्यों नहीं उकेरा ?
जवाब देंहटाएंसृष्ठि=सृष्टि
एम . एफ हुसैन के निधन पर गहरा शोक / आपके विचारों से सहमत हो पाना कभी कभी बहुत कठिन हो जाता है / मुझे लगता है कि हमारे देश में धर्म निरपेक्षता की बात करना अपने आप में एक बौद्धिक जुगाली के अलावा कुछ नहीं है/ जहाँ तक कला और कलाकार की बात है हमारे देश में आज भी उनका सम्मान किया जाता है पर कला के नाम पर किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना कहाँ तक जायज है ? अपनी मातृभूमि से सच्चे प्यार करने वाले लोग धमकियों के चलते अपना वतन नहीं छोड़ते / ईश्वर उनकी आत्मा को असीम शांति प्रदान करे /
जवाब देंहटाएंऐसी बौद्धिक कीचड़ का महिमामंडन करना अपने आप में दुर्भज्ञता पूर्ण है ,, इस जैसे समाज के दुश्मन पृथिवी पर बोझ के समान होते ह्न । जितना जल्द हो इनके पाप कर्मों से इस धरा को मुक्त करा देना चाहिए
हटाएंjagdishvar ji jis dhar ke ham sabhi qayakl hain. is lekh me bhi badastur hai.
जवाब देंहटाएंkabhi meine mahalla par likha tha. comment karne wale is link par zaroor jayen
http://mohallalive.com/2010/03/06/shahroz-writeup-on-husain-taslima-and-rushdi-controversy/
jagadishwar ji hame maqbool fida hussain ki maut ka gehra dukh hai,par jo baatein apne apne blog me likhin hain woh ek anargal pralaap hai. kaise koi vyakti kisi ke bhi mata pita ki nangi tasweer bana sakta hai,aapne saayad sanvidhan nahi parha hai, kisi ke bhi dharm ko apmanit karne ke kaaran aapko bhi jail ho sakti hai. dusri baat linga aur yoni pujan ki, kisi bhi pandit se jakar puchiyega ki shivalinga ki puja kyon hoti hai to woh aapko iska rahasya bata dega. linga aur yoni ke milan se hi saare sansar ki utpati hui hai isliye ye parmatma ka prateek hai, isme nagnata kuch nahi hai. kya maqbool fida hussain me itni himmat thhi ki woh islam ke paigambaro aur baaki logo ke nagna chitra bana sakte. m.f. hussain ka dohra charitra tab ujagar hua jab unhone hazrat fatima, apni maa ke sabhya chitra banaye par hindu devi devtaon ke nagna chitra banaye. aur aap ktne logo ko jail me bhejiyega, 100 crore log jo hindu hain apne devi devtaon se pyaar karte hain,unhe apne maa baap maante hain, bas aap jaise kuch buddhijivi jinki sankhya hazaro me hai apne dharm ko hi gaali dete hain. aap kya apne mata pita ki nagna tasweer banaye jaane ka virodh nahi karenge,ya koi aapko hastmaithun karte dikhaye to kya aap use shabasi denge aur kahenge ki tumne kala ka maan barhaya hai. asal me mere vichar se apko hindu dharm se vishesh chirh hai, aur dosh aapka nahi hai, aap jaise hazarro professors hain jo jis desh me rehte hain usi ki jaro ko khokla karte hain. mere vichar se aap ko left ka samarthan prapta hai.
जवाब देंहटाएंjis kisi vyakti ne bhi ab tak maqbool fida hussain ki painting nahi dekhi hai,woh jaakar dekh sakta hai internet par ki m.f. hussain saab dohre charitra ke vyakti thhe. unhone mata laxmi ki nagna tasweer banayi hai jo ganesh ji ke maathe par khari hain, bharat mata ki nagna tasweer banayi, ek picture hai jiska naam hai rape of india, ek tasweer me bhagwaan shriram aur mata sita kaam kreera me rat hain aur hanuman ji unhe dekh rahe hain. ek photo me hanuman ji ke hriday me nagna ramsita khare hain, aur mata saraswati ki nagna tasweer hai, ek tasweer me mata durga ko apne vahan singha ke saath sambhograt dikhaya gaya hai. aur aisi kai tasweerein hain. in sab ko dekh kar kis hindu vyakti ka khoon nahi khaulega, aur jiska na khaule woh napunsak hai. kya is desh ke 100 crore log bjp aur rss ke member hain, jo aisi tasweeron ka virodh karte hain. kamaal hai jagdishwar saab maanta hoon aapki chaturai ko jo bhi apne swabhimaan ke ke liye khara ho use rss aur bjp ka member bata do. kya apne dharm aur devi devtaon se prem karna apradh hai. jagadishwar sir apne tarah ke iklaute professor nahi hain, asal me aise logo ki ek biradri hai aur inlogo ka garh hai jawaharlal nehru university jahaan par hindu dharma se nafrat karna sikhaya jaata hai, aur marxwaad ki shiksha di jaati hai. yakeen na ho to jnu ke campuss me ghum kar aaiye, wahaan hazaron aise log milenge jo apne dharma ko khul ke gaali denge.
जवाब देंहटाएंमकबूल फिदा हुसैन अपनी विवादास्पद पेंटिंग को लेकर माफी मांग चुके हैं और ये पेंटिंग जब बनी थीं और सार्वजनिक की गई थीं उस समय कोई विवाद नहीं हुआ था। विवादास्पद पेंटिंग पर सारा विवाद इधर के सालों में हुआ है। मकबूल फिदा हुसैन ने चंद विवादास्पद पेंटिंगों के अलावा हजारों चित्र बनाए हैं।
जवाब देंहटाएंदूसरी बात नग्नता और धार्मिक भावनाओं के आहत होने की तो कोई भी कलाकार किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं रचता। भारत में नग्नता मसला नहीं है। भारत में प्रत्येक देवी-देवता की मूर्ति नग्न ही बनती है। लिंगपूजा और योनिपूजा की सामाजिक परंपरा है। खजुराहो से लेकर कोणार्क के सूर्यमंदिर तक भित्तीचित्रों में नग्नचित्र मिलते हैं। मुश्किल यह है कि हम कलाओं को पढ़ने के तरीकों से वाकिफ नहीं हैं। मकबूल फिदा हुसैन ने किसी के माता-पिता की नंगी तस्वीर नहीं बनायी। कला आलोचना को व्यक्तिगत बनाना समीक्षा का घटिया तरीका है। दूसरी बात कलाएं आहत नहीं करतीं यदि ऐसा है तो कालिदास के कुमारसंभव की तो हिन्दू फंडामेटलिस्ट होली जलाएंगे क्योंकि उसमें शिव-पार्वती के रतिप्रसंगों का शानदार चित्रण है। वह महाकाव्य है। असल में कलाओं को पढ़ने के तरीके जानने चाहिए। जीवन को हम जैसे देखते हैं यदि कलाओं को भी वैसे ही देखेंगे तो अर्थ का अनर्थ होगा और मकबूल फिदा हुसैन के प्रसंग में आपलोगों ने यही किया है।
यह post लिखने वाला उतना ही धर्मनिरपेक्ष है,जितना की गंदी चित्र बनाने वाला मकबुल फिदा हुसैन था।
जवाब देंहटाएं