बुधवार, 15 जून 2011

सबसे महंगे ब्रॉण्ड का राजनीतिक पराभव


      बाबा रामदेव का अनशन अंततः खत्म हो गया ,उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा ,उनकी शारीरिक अवस्था लगातार खराब होती गयी । इससे आयुर्वेदिक चिकित्सा की बजाय अंग्रेजी चिकित्सा के प्रति आम लोगों की आस्था गहरी होगी। धन्य हैं बाबा जो अनशन तोड़ने अपने अस्पताल नहीं ले जाए गए।उनका इलाज करने वाले डाक्टर एलोपैथी के हैं। क्या आयरनी है आयुर्वेद के महारथी के अनशन की ?
हम तो यही चाहते थे कि बाबा रामदेव और उनके भक्त तब तक क्रमिक अनशन करते जब तक सारा काला धन विदेश से वापस नहीं आ जाता। बाबा को बर्मा (म्यांमार) की नेत्री आंग शांग सू ची की तरह लंबा अनशन करना चाहिए और योग शिविर को अन्य लोगों को चलाना चाहिए था लेकिन अफसोस की बात है वे ऐसा नहीं कर पाए। बाबा सोच रहे थे वे अनशन करेंगे और तत्काल परिणाम सामने आ जाएगा। राजनीति में ऐसा नहीं होता। बाबा के अनशन के समर्थन में आरएसएस के लोग सबसे ज्यादा हल्ला कर रहे हैं। क्या संघ परिवार अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सार्वजनिक करेगा ?
 एक सवाल यह भी उठा है कि जेपी आंदोलन की तरह लाखों की भीड़ कभी इन नेताओं (अन्ना-बाबारामदेव) पीछे क्यों नहीं देखी गयी? क्यों नहीं ये लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ उड़ीसा से लेकर महाराष्ट्र तक,बिहार से लेकर दिल्ली तक एक भी लाखों की जनरैली कर पाए?बाबा रामदेव योगशिविर के नाम पर लोग लाए थे।यह संघर्ष की लामबंदी नहीं थी।
इधर जो बाबा रामदेव नाटक चल रहा है उस पर चकबस्त का शेर है- "मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी। तुम्हारे नामसे दुनियाको शर्म आएगी।।"
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के पीछे की जनता की भीड़ पर बहुत जोर दिया है मीडिया ने।असल में बाबा के यहां जनता नहीं योग शिविर वाले लोग आए थे। और अन्ना के साथ में वे लोग ज्यादा थे जो विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों में काम करते थे। इनमें सैंकड़ों वेतनभोगी स्वयंसेवी होलटाइमर काम करते हैं। जनता कम थी दोनों के यहां।
आयरनी यह है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के आडवाणी तक ,मोहन भागवत से अन्ना हजारे तक किसी ने भी बाबा रामदेव का अनशन तुड़वाने की कोशिश नहीं की। केन्द्र सरकार ने भी पल्ला झाड़ लिया। आखिर बाबा रामदेव के प्रति इस तिरस्कार या उपेक्षा भावना का कारण क्या है ?क्या बाबा रामदेव के राजनीतिक अंत की सूचना है ?
दूसरी आयरनी यह है कि हमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर विश्वास नहीं है एक बाबा पर विश्वास है। इससे पता चलता है कि हम अभी मध्यकाल में हैं। मनमोहन सिह ने इसबार के शासन की बागडोर हाथ में लेते ही कालेधन को एजेण्डा बनाया है ,थोड़ा वेब पन्नों की सैर करें बाबा भक्त तो उसका अंदाजा लग जाएगा।
बाबा रामदेव का अनशन खत्म हो गया ,लेकिन अपनी निशानियां छोड़ गया।बाबा रामदेव वायदे के अनुसार अनशन तोड़ देते तो कम से कम राजबाला की जिंदगी को तबाही से बचाया जा सकता था। पुलिस-आंदोलनकारियों की भगदड़ में कोई चीज उसकी पीठ पर गिरी जिसने अपूरणीय क्षति की है। इसके लिए बाबा ,आंदोलनकारी और पुलिस तीनों जिम्मेदार हैं, सरकार को तुरंत बड़ी आर्थिक क्षतिपूर्ति की घोषणा करनी चाहिए और बाबा को भी। बाबा रामदेव के अनशन के दौरान ग्लूकोज का इस्तेमाल क्या आमरण अनशन के नियमों का पालन है ? बाबा ने कोई आयुर्वेदिक पेयपदार्थ क्यों नहीं लिया ? क्या ग्लूकोज आयुर्वेदिक है ?
बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ा।  श्रीश्री रविशंकर आदि संतों के कहने से तोड़ा। इस पर दाग़ का शेर है- "ख़ातिरसे या लिहाजसे मैं मान तो गया। झूठी कसमसे आपका ईमान तो गया।।''
केन्द्र सरकार ने कालेधन को देश में वापस लाने की मांग को लिखित रूप में मान लिया है। बाबा को उस आश्वासन के लागू किए जाने का इंतजार करना चाहिए। लाठीचार्ज में 32 लोग घायल हुए थे और वे सकुशल घर पर हैं,एक की हालत अभी भी गंभीर बनीहुई है। इसके बाबजूद बाबा रामदेव ने अनशन जारी क्यों कर रखा ? बाबा कौन सा सौदा पटाना चाहते हैं ?बाबा रामदेव और श्री श्रीरविशंकर में क्या बातें हुईं उनका विस्तृत ब्यौरा जारी किया जाना चाहिए। श्रीश्री रविशंकर ने केन्द्रीयमंत्री वीरप्पा मोइली से जो बातें की हैं उनके पूरे विवरण जारी किए जाएं,बाबा रामदेव से जो सरकारी प्रतिनिधि बात करे उसका लाइव टेलीकास्ट दिखाया जाना चाहिए। बाबा और सरकार की विश्वसनीयता की परीक्षा के लिए यह जरूरी है।
बाबा रामदेव पर मुझे दाग़ का एक शेर याद आ रहा है। शेर है-" इतनी ही तो बस कसर है तुममें,कहना नहीं मानते किसीका।।"
बाबा रामदेव और उनकी समृद्धियों का संसार जिस गति से बढ़ा है उस गति से मेहनत से इतना पैसा नहीं कमाया जा सकता। बाबा रामदेव ने जो अरबों-खरबों की संपत्ति अर्जित की है उसे क्या मेहनत की कमाई कहेंगे ?गोरखधंधे की आय कहेंगे ?हवाला का पैसा ?या कारपोरेट जगत की संघ परिवार को दी गई सौगात कहेंगे ? या पुण्य की लक्ष्मी ?इस पर साकिब का शेर है- "चमन न देख नशेमनको देख ए बुलबुल।बहार ही में कभी आग भी बरसती है।।"
बाबा रामदेव के बारे में यह जानते हुए कि वह संघ परिवार के एजेण्डे पर काम कर रहा है और उनका आदमी है,उसे जिस तरह सरकार ने अति सम्मान दिया वैसा यह सरकार किसी मजदूरनेता को नहीं देती। इससे ही पता चलता है कि केन्द्र सरकार का संघ से मोर्चा लेना नकली जंग है ।वह धर्मनिरपेक्षता की पक्षधर है तो उसे मजदूर-किसान नेताओं का सम्मान करना चाहिए,धर्मगुरूओं का नहीं।बाबा रामदेव टाइप लोगों पर जोश मलीहाबादी का शेर है- "जो डरकर नारेदोजख़से ख़ुदाका नाम लेते हैं। इबादत क्या वोह खाली बुजदिलाना एक खिदमत है।।"आगे एक अन्य शेर में जोश मलाहाबादी ने लिखा है- "इबादत करते हैं जो लोग जन्नतकी तमन्नामें। इबादत तो नहीं है,इक तरहकी वोह 'तिजारत' है।।"
बाबा रामदेव के बारे में टीवी कैम्पेन के अलावा प्रशानिक कदम उठाने की जरूरत है और सख्ती के साथ उन सभी आर्थिक दानदाताओं की भी पहचान की जाए जिन्होंने अपनी संपत्ति बाबा को दी है। वे कौन लोग हैं जो बाबा के व्यापार में पार्टनर हैं उनके नाम बताए जाएं ।कांग्रेस के मंत्रियों-सांसदों-विधायकों के नाम बताए जाएं जो बाबा रामदेव के शिविरों में जाते रहे हैं ।

हम अच्छे भले अपने कामों में व्यस्त थे कि बाबा रामदेव ने कारपोरेट मीडिया के जरिए हंगामा खड़ा कर दिया।बाबा के अनशन के कष्ट पर 'चकबस्त' का शेर है- " राहतसे भी अज़ीज़ है राहतकी आरजू। दिल ढूँढ़ता है सिलसिलये इन्तज़ारको।।"
( सिलसिलये यानी प्रायश्चित)
पण्डित ब्रजनारायण 'चकबस्त'बड़े शायर थे, हमारे फेसबुक के अनेक दोस्त और बाबा रामदेव हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवादी हैं,राष्ट्रवाद ज़हर है। 'चकबस्त' ने राष्ट्रवाद से देशप्रेम को अलगाते हुए लिखा- " फ़िदा वतनपै जो हो,आदमी दिलेर है वोह। जो यह नहीं तो फ़क़त हड्डियों का ढ़ेर है वोह।।
कांग्रेस का आरएसएस के खिलाफ खुलकर आना धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए शुभलक्षण है।लेकिन कांग्रेस को पहले सफाई देनी होगी कि उसने बाबा रामदेव की अकूत संपत्ति के मामले पर आज तक कभी कोई एक्शन क्यों नहीं लिया ?
संघ परिवार से जुड़े लोग कुछ ऐसे संगठन भी चलाते हैं जो नियोजित हिंसा करते हैं। पेमेंट लेकर हिंसा करते हैं।इस तरह के लोग हमेशा के लिए जेल में बंद करके क्यों नहीं रखे जाते ? कारपोरेट मीडिया उन्हें सैलीब्रिटी की तरह क्यों पेश करता है ?ऐसे लोगों को राजनीतिक सम्मान क्यों दिया जाता है ?आरएसएस सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करता है लेकिन उसके द्वारा संचालित सभी संगठन हिन्दुत्ववादी फंडामेंटलिस्ट राजनीति करते हैं। शिक्षा से लेकर संस्कृति,आईएएस से लेकर क्लर्कों तक संघ परिवार का विशाल संगठन है। संघ का नया चेहरा हिन्दू आतंकी का है,क्या हिन्दू आतंकवाद से देश तरक्की कर सकता है ?



आरएसएस अपने सांस्कृतिक प्रचार के जरिए अबोध और छोटे बच्चों को निशाना बनाता है। उनमें राष्ट्रवाद,हिन्दुत्व और जाति अहंकार की विचारधारा का प्रचार करता है।गरीब, निम्नमध्यवर्ग और मध्यवर्ग के युवा हमेशा निशाने पर होते हैं।यह सांस्कृतिक टकराव का काम है। इस प्रसंग में हमें मीडिया की भूमिका और प्राथमिकताओं पर ध्यान देना चाहिए।
    मसलन् कारपोरेट मीडिया ने पोस्को आंदोलन को जिस तरह हाशिए पर रखा है और बाबा-अन्ना पर सारी शक्ति खर्च की है उससे मीडिया की जनविरोधी विचारधारा नंगी हुई है। कालाधन और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम नव्य उदार नीतियों की कड़ी की हिस्सा है जबकि पोस्को का किसान आंदोलन सीधे नव्य आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के विरोध का प्रतीक है।केन्द्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय सीधे इस प्रकल्प के लिए क्लीयरेंस दे चुका है। एकतरफ कांग्रेस की केन्द्र सरकार पोस्को प्रकल्प की अनुमति दे रही है दूसरी ओर किसानों के साथ हमदर्दी का नाटक भी कर रही है।
केन्द्र सरकार ने इस प्रकल्प के लिए अनुमति क्यों दी ? कांग्रेस पार्टी सारे कलेश राज्य सरकार के मत्थे मड़कर चुपचाप तमाशा देख रही है ? कायदे से राहुल गांधी को इस इलाके में जाकर किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए।इन दिनों विदेशी कंपनियों को बुलाने पर बड़ा जोर है इस पर मज़ाज़ का शेर है -" मुनासिब है अपना रास्ता ले।वोह कश्ती देख साहिलसे लगी है।।"
बाबा रामदेव के आमरण अनशन और उसके बाद के लाठीचार्ज को टीवी चैनलों ने रियलिटी टीवी शो के फॉरमेट में पेश करके बाबा रामदेव से सबसे ज्यादा लाभ उठाया और बाबा की सबसे ज्यादा क्षति की। बाबा की योगी की इमेज को व्यापारी की इमेज में तब्दील कर दिया।बाबा अंततः योग के ब्रॉड एम्बेसडर हैं और सबसे महंगे ब्रांड भी।                 










4 टिप्‍पणियां:

  1. Anshn aur bhrshtachar ke virruddh khade logon ki sahi pahchan jaruri hai. Mediya sabse jyada gumrah kar raha hai. Sachmuch ke aandolan hashiye par hai. Behad chintajanak sthiti hai.Mahatwapurna jankari ke liye aabhar.

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  2. ‘कांग्रेस का आरएसएस के खिलाफ खुलकर आना धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए शुभलक्षण है।’
    ... और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियों से हाथ मिलाना धर्मनिरपेक्षता!!!!! पता नहीं आप जैसे तथाकथित समाजवादी देश को किस राह पर ले जाना चाहते हैं। जिस आर एस एस को हिंदुवादी बता रहे हैं वे देशप्रेमी तो हैं, किसी दूसरे देश से अपने निर्देश नहीं ले रहे हैं।

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  3. रंगनाथ के शब्द उधार लेकर फिर कहना होगा कि बहुत ही दयनीय आपके दोनों लेख. सौ बात की एक बात ये है कि मनमोहन सिघ और कोंग्रेस और बाकी राजनैतिक दल गुंडई और भ्रस्टाचार के अड्डे बने हुए है. और देश के लोग गले तक डूबे है. हर आम भारतीय को, जिसमे बाबा रामदेव भी शामिल है, इस गन्दगी के खिलाफ बोलने का, धरने देने का, मूल अधिकार है. आप इस मूल अधिकार को खारिज करना चाहते है. रामदेव की राजनीतीक समझ कच्ची हो सकती है, वो कम पढ़े लिखे है, अपनी खुद की बौनी आकंशायें हो सकती है. फिर भी उन्हें सरकार पर सवाल उठाने का पूरा हक है. अपनी बात कहने का भी. ठीक वैसे ही जैसे कश्मीर पर बोलने के लिए अरुंधती को है, अपनी अलग राय जो सरकार और मजोरिटी से अलग है रखने का हक है. विचारधारा के चश्मे से आज़ादी के मानदंड नहीं बदलते. अपने विरोधियों के लिए भी ठीक वही स्वतंत्रा होनी चाहिए जो हम अपने लिए चाहते है. रात को लोगो पर पुलिसिया हमला हर हाल में निदनीय है.

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