बाबा रामदेव को कल पुलिस ने रामलीला मैदान के अनशन स्थल पर जाकर गिरफ्तार कर लिया। बाबा की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को जमकर लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़े। बाबा की कानूनभंजक राजनीति का इससे बेहतर अंत नहीं हो सकता था।बाबा रामदेव के आंदोलन का पहला निष्कर्ष है कि यह नकली और नियोजित आंदोलन था। दूसरा, किसी आंदोलन के संदर्भ में संचार क्रांति के टांय-टांय फिस्स के आदर्श के रूप में इस घटना को जाना जाएगा। तीसरा. पापुलिज्म और फेकनेस बहुत ज्यादा समय तक बने नहीं रहते। चौथा,फेक और नेक में हमें अंतर करने की समझ पैदा करनी चाहिए।पांचवां, संघ परिवार अपनी राष्ट्रतोड़क-अराजक राजनीति में प्रच्छन्न ढ़ंग से सक्रिय है। छठा, सत्ता यदि साम्प्रदायिक ताकतों के प्रति सख्ती से पेश आए तो वे भाग खड़े होते हैं। सातवां,बाबा के 50 हजार के जमावड़े को पुलिस ने जिस कौशल से मात्र डेढ़ घंटे में रामलीला मैदान से भगा दिया उससे यह भी पता चलता है कि बाबा आंदोलन के नाम पर सरल-सीधे लोगों को ,बहला-फुसलाकर ले आए थे। इन लोगों ने कोई खास प्रतिवाद नहीं किया।आठवां, दिल्ली पुलिस ने इतने बड़े जमाबड़े को न्यूनतम लाठीचार्ज-आंसूगैस के गोले छोड़कर घटनास्थल से हटाकर भीड़ नियंत्रण की नयी मिसाल कायम की है।
हम अपने ब्लॉग पर पहले भी बाबा के बारे में विस्तार से लिख चुके हैं। वे सभी लेख यहां उपलब्ध हैं। यहां पर हम अपने फेसबुक वॉल पर लिखी टिप्पणियों को दे रहे हैं। ये टिप्पणियां कुछ महत्वपूर्ण सवालों को उठाती हैं। --
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काले धन का मामला बेहद जटिल है,इस पर यही कहना है- "नाड़ी छूअत वैद्यके पड़े फफोले हाथ।।"
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बाबा रामदेव की मांग है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश से निकाल दें। तब मोबाइल,इंटरनेट,कार, जहाज और उनके विदेश में बने आश्रमों का प्रबंध कौन करेगा ?दवाएं कहां से आएंगी ? बाबा के भक्तों से अपील है वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामान और सेवाओं का इस्तेमाल तत्काल बंद कर दें।
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बाबा रामदेव यदि यह मानते हैं कि उनका कोई साम्प्रदायिक एजेण्डा नहीं है तो वे संत का बाना त्यागकर एक नागरिक के बाने में आकर राजनीति करें ? संघ परिवार ने धर्म और राजनीति के मेल पर जोर दिया है और बाबा एक धार्मिक संत के नाते ,संतों के साथ वैसे ही आंदोलन कर रहे हैं,जैसे राममंदिर आंदोलन के समय चलाया था संघ परिवार ने।
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सवाल यह है कि सॉफ्ट हिन्दुत्व की लाइन के तहत बाबा को कांग्रेस पटाने में क्यों लगी है ? बाबा से मिलने क्यों भेजा मंत्रियों को ? हम मांग करते हैं कि बाबा और उनके सानिध्य में चलने वाले ट्रस्टों की संपत्तियों की जांच की जाए।
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कहो ना प्यार है , मनमोहन दौर की नूरा कुश्तियों का दंगल जिंदाबाद।नव्य -उदारीकरण में लड़ाईयां भी वे ही तय करते हैं जो नव्य उदारपंथी नीतिकार हैं।कितना लड़ोगे,कैसे लड़ोगे,कितना बोलोगे,कहां बोलोगे,सब कुछ तय है। अमेरिकी राजनीति का यह लोकतंत्र को बंधक बनाने वाला नया मॉडल है।मनमोहन सरकार अन्ना हजारे के साथ पहला प्रयोग कर चुकी है,उसमें सफल रही,अब बाबा के साथ भी यह प्रयोग सफल रहा।बेबकूफ बनी जनता ।
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हमने पहले भी कहा था अब फिर से दोहरा रहे हैं,यह बाबा रामदेव की मनमोहन सेवा है।सब कुछ तय था। नाटक तय,अभिनय,तय,स्क्रिप्ट भी तय,आदि तय और अंत भी तय था। अब खाली थोड़ी-बहुत नाटकीयता के साथ प्रेस कॉफ्रेंस होगी या प्रेस रिलीज,फिर बाबा रामदेव अपने आश्रम चले जाएंगे कपाल भारती करने और जनता अपना कपाल फोड़े ?
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कांग्रेस की कालेधन को देश में वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे काले धन के संरक्षण के लिए द्वि-दलीय व्यवस्था की ओट मैं दो फ्रंट बनाए हुए हैं और काला-धन नामक ड्रामा खेल रहे हैं यह शो 3 दशक से चल रहा है।वरना क्या बात अमेरिका अपना काला धन निकालकर ले गया स्विस बैंकों से हम नहीं ला पाए ?
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बाबा रामदेव-अन्ना हजारे टाइप आंदोलनों का संबंध मीडिया के उन्मादित कवरेज के साथ है। उन्मादित कवरेज में दर्शक का विवेक बंधक बना लिया जाता है। मीडिया इमेजों के जरिए आम जनता को नचाया जाता है। यह बिलकुल मनमोहन देसाई की अमिताभ बच्चन फिल्मों की तरह है। अमिताभ बच्चन की फिल्मों की सफलता का रहस्य था कि दर्शक 3 घंटे सोचता नहीं था,बंधा रहता था। यही हाल मीडिया के उन्मादित अभियान का है।
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बाबा रामदेव पर जो मुग्ध हैं उनके इस भाव को मीडिया ने बनाया है। इसे हम मीडिया में ज्ञात-अज्ञात की नजरों से देखेंगे तो ठीक समझ पाएंगे। बाबा रामदेव मीडिया का सबसे बड़ा ब्राँण्ड है। सबसे महंगा भी ।संपत्ति भी वह सब ब्राँण्डों से ज्यादा कमाता है।वो संत नहीं ब्राँण्ड हैं।
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उपभोक्तावाद का प्रचार वस्तुओं के उपभोग पर बल देता है। उसकी विचारधारा छिपाता है। बाबा के मामले में भ्रष्टाचार पर बात करो,विचारधारा पर नहीं। हमें वस्तुओं का आनंद पसंद है ,लेकिन विचारधारात्मक प्रभाव के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं। विचारधारा छिपाओ और वस्तु को बेचो।बाबा के लिए भ्रष्टाचार एक वस्तु है जिसकी वे ब्राँण्डिंग कर रहे हैं.जैसे कोई कार की करता है।
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काला पैसा विदेश से वापस लाना देशसेवा है। जो देश छोड़कर आप्रवासी होगए हैं बाबा उनको यहां संपत्ति सहित लाना क्यों नहीं चाहते ?
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बाबा रामदेव का अनशन तय था कि कब तक चलेगा और कब वापस लिया जाएगा। यह बात बाबा रामदेव के बांए हाथ आचार्य बालकृष्ण की लिखी चिट्ठी में लिखी है,इसमें लिखा कि अनशन 4-6जून के बीच खत्म हो जाएगा। यह चिट्ठी आंदोलन के पहले दी गयी ।सरकार ने खुलासा किया है यह।स्टार न्यूज पर खबर देखें। नकली देशभक्त ऐसे ही होते हैं।
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आज रात 12.30 बजे बाबा रामदेव को रामलीला मैदान में पकड़ने की कोशिश की।उनको दी गयी योग शिविर की अनुमति को रद्द कर दिया है। बाबा को उनके समर्थक घेरे हुए हैं। पुलिस-जनता में मुठभेड़ चल रही है।
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बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण अचानक मंच से गायब हो गए हैं। माइक काट दिया है। बाबा गायब हैं।पुलिस ने चारों ओर से पुलिस का घेरा कड़ा कर दिया गया है।पत्थरबाजी भी हो रही भी हो रही है।
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सवाल यह है कि सब कुछ जानते हुए दिल्ली पुलिस ने रामलीला मैदान का योगशिविर के नाम पर अनशन आरंभ करने के इस्तेमाल क्यों होने दिया ? जबकि पहले से खबरें आ रही थीं कि बाबा योग शिविर नहीं अनशन करेंगे।
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बाबा रामदेव गिरफ्तार हो गए हैं। रामलीला मैदान में लाठीचार्ज-आंसूगैस के गोले चले हैं। पचासों लोग घायल हुए हैं। बाबा अपनी जनता को असहाय और नेतृत्वविहीन छो़ड़कर पुलिस के कब्जे में हैं।
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बाबा रामदेव का आंदोलन आरंभ हुआ जिस जोश के साथ समाप्त भी वैसे ही हुआ। पुलिस और भक्तों को झूठ क्यों बोला बाबा ने ? बाबा आंदोलन करते अनुमति लेते और करते,अनुमति नहीं मिली तो कानूनभंग करके करते,लेकिन करते। योगशिविर की आड़ में लोगों को इकट्ठा करना और फिर पुलिस से पिटवाना उनके नेतृत्व की कायरता और दिशाहीनता का संकेत है।
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बाबा रामदेव के अनुयायियों पर पुलिस का लाठीचार्ज निंदनीय है। लेकिन हमें तथ्य और सत्य दोनों को देखना चाहिए। बाबा ने योग शिविर के लिए अनुमति लेकर असत्य क्यों बोला ? एक सन्यासी का असत्य बोलना महापाप की कोटि में आता है। बाबा आंदोलन के लिए अनुमति मांगते और संघर्ष करते समझ में आता है।
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बाबा रामदेव ने पुलिस को कहा कि वो योग शिविर लगाना चाहते हैं 20 दिन का और 4हजार लोग आएंगे। लेकिन ये दोनों ही बातें असत्य कहीं बाबा ने। उनके जमावड़े में कोई योगशिविर नहीं था योग तो बहाना था,जनता 50 हजार से ज्यादा थी,पुलिस ने पहले ही दिन दोपहर को बाबा को पत्र दिया कि क्यों न अनुमति रद्द कर दी जाए।बाबा ने जबाव नहीं दिया। वे खेल खेल रहे थे संघ का।
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बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन के लिए वैसे ही असत्य का सहारा लिया जिस तरह बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय संघ परिवार ने लिया था। इन दोनों में भावुक उत्तेजना साझा तत्व है। आम लोगों को भावुक बनाओ,और फिर अन्य एजेण्डे पर काम करो।बाबा की मंशाएं क्या थीं ? बाबा ने सरकार से लिखित आश्वासन मिलने के बाद आंदोलन तत्काल समाप्त क्यों नहीं किया ?
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बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन के लिए वैसे ही असत्य का सहारा लिया जिस तरह बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय संघ परिवार ने लिया था। इन दोनों में भावुक उत्तेजना साझा तत्व है। आम लोगों को भावुक बनाओ,और फिर अन्य एजेण्डे पर काम करो।बाबा की मंशाएं क्या थीं ? बाबा ने सरकार से लिखित आश्वासन मिलने के बाद आंदोलन तत्काल समाप्त क्यों नहीं किया ?
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बाबा रामदेव ने पापुलिज्म और अराजक राजनीति का जो घोल तैयार किया उसकी यही परिणति हो सकती थी।
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बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों का समय ठीक वही है जिस समय 2 जी स्पेक्ट्रम और कॉमनवेल्थ गेम के करप्शन पर बड़े लोग सींखचों में जा रहे हैं। बाबा रामदेव ने जिस भाव से अपना आंदोलन आरंभ किया है और अन्ना हजारे,आरएसएस आदि ने उनका समर्थन किया है उससे शक है कि दूरसंचार कंपनियां सरकार पर दबाब डालने के लिए बाबा,अन्ना और आरएसएस का इस्तेमाल कर रही हैं ?
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काश !बाबा रामदेव सच्चे योगी होते और संघ परिवार के लोग किसी तपे-तपाए तांत्रिक से मंत्र यज्ञ कराते,वो मंत्रजप करता,बाबा योगी रूप में उड़कर जाते और स्विस बैंक से कालेधन की तिजोरी उठाकर ले आते !कहां है वे संत-महंत-तांत्रिक-पंडित जो आए दिन मंत्रशक्ति के नाम पर जनता को ठगते रहते हैं ? क्या कोई मंत्र है जिसके जप से कालाधन वापस भारत आ जाए ?
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संत के पैसा जो चंदा आता है वो पुण्य की कमाई का होता है ?
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क्या सुंदर दृश्य है माओवादी+आरएसएस +स्वयंसेवी संगठन + सिविल सोयायटी+भाजपा अब जो बाकी हैं वे भी धीरे धीरे संत के साथ आ ही जाएंगे। कालेधन को विदेश से वापस लाने में संघ परिवार कितना 'सक्रिय' है यह बात तो एनडीए सरकार के 6 साल के शासन में समझ में आ गयी थी ,उस समय विदेशों में कालाधन ज्यादा जमा हुआ है बाबा,जरा संघवालों से पूछो वे उस समय चुप क्यों थे ?
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कल्पना करें बाबा रामदेव प्रधानमंत्री होते ,और मनमोहन सिंह संत होते ,मनमोहन सिंह -सोनिया आमरण आमरण अनशन पर इन्हीं मांगों को लेकर बैठ गए होते तो बाबा रामदेव विदेशों में जमा कालाधन कैसे वापस लाते ?जरा बाबा के भक्त जबाव दें ?
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बाबा रामदेव और उनका योगशास्त्र मूलतः मर्दानगी का शास्त्र है। नव्य़ आर्थिक उदारीकरण के दौर में योग को हठात महान कला साबित करने में सक्रिय कारपोरेट घरानों ने चालाकी के साथ स्त्री के वैभव और अधिकारों के विकल्प के रूप में बाबा रामदेव को मर्दानगी के नायक के रूप में इस्तेमाल किया है। योग की विचारधारा मूलतःपुंसवाद और पितृसत्ता की पोषक है। हम अपने पुराने ग्रंथों को पढ़ें तो सहज ही पता चल जाएगा।
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बाबा रामदेव को योग योद्धा कहते हैं। वे योग और भाववाद के हिमायती हैं। योग ने भौतिकवाद के खिलाफ भाववाद की विचारधारा के विकास का काम किया है। बाबा रामदेव का समस्त योग स्कूल आम जनता में भाववाद का प्रचार करता है। नव्य आर्थिक उदारीकरण के लिए बाबा सबसे उपयुक्त महापुरूष हैं क्योंकि बाबा भौतिकवाद के खिलाफ भाववाद का प्रचार करते रहे हैं। यही वजह है कि नव्य उदारपंथी देशी-विदेशी सभी कारपोरेट घराने और राजनीतिक दलों के नेता उनकी सेवा में खड़े हैं।
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बाबा रामदेव के योग-प्राणायाम उद्योग का टर्नओवर पन्द्रह हजार करोड़ रूपये साल का है। उद्योगपति बाबा के खेल ने आम लोगों में स्वास्थ्य की बदहाल दशा के कारण अपील पैदा की है। इस अपील को संघ परिवार अपने राजनीतिक हितों को विस्तार देने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है।
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बाबा रामदेव की बातें निराली हैं,अदा भी निराली है,मांगें भी निराली हैं। हम चाहते हैं कि बाबा रामदेव का सपना पूरा हो व्यवस्था बदले,बस बाबा हमारी तीन मांगों को अपनी लिस्ट में शामिल कर लें।1.भारत के सभी अरबपतियों की संपत्ति और कारखानों का राष्ट्रीयकरण,2.विदेश से पैसा लेने वाले राजनीतिक दलों और स्वयंसेवी संगठनों पर पाबंदी ,3-बंद कल-कारखाने खोलने के लिए पहल और भूमिहीन किसानों में तेजी से भूमि सुधार लागू किए जाएं।
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बाबा रामदेव ने बड़े भोले मन से कहा है सत्ता नहीं,व्यवस्था परिवर्तन चाहता हूँ। सवाल यह है कैसे ?किस नजरिए से और क्यों ? व्यवस्था बदलने की जंग में पहला मुद्दा गरीबी है या काला धन ? मजदूर-किसान का मोर्चा होगा या संघ परिवार और उनके लगुओं-भगुओं का ? व्यवस्था परिवर्तन के पहले सभी मतों के धर्माचार्यों-धर्मपीठों-ईसाई संपदा आदि धार्मिक संपदा को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए ? कालेधन और भ्रष्टाचार का एक अंश मंदिरों-संयासियों के पास भी जाता है।
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ओबामा ने स्विटजरलैंड की बैंकों में जमा काले 4हजार करोड़ डॉलर निकाले,लेकिन उससे अमेरिकी जनता की मंदी कम नहीं नहीं हुई।उलटे उसने कारपोरेट घरानों को सहायता दी। सवाल यह है कि जो धन घर में है और काला -सफेद है, क्या बाबा उसके निकाले जाने के पक्ष में हैं ? 80हजारकरोड़ रूपये बैंकों के भारत के धनियों के पास डूबे पड़े हैं,बाबा उसकी वसूली को मसला क्यों नहीं बनाते ?
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अन्ना हजारे-बाबा रामदेव फिनोमिना वस्तुतः देश की जनता में साम्राज्यवाद विरोधीचेतना के विलोप का कार्य कर रहे हैं। भ्रष्टाचार-कालेधन का मसला अमीरों का मसला है। गरीबों के मसले हैं भूमि,भोजन ,रोजगार,और मकान । इनमें से किसी मसले में इन दोनों महापुरूषों की कोई दिलचस्पी नहीं है। भ्रष्टाचार-कालेधन का संकट सत्ता और अमीरों का संकट है।
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जिन मांगों पर बाबा अनशन करने जा रहे हैं। उनमें से कुछ के बारे में सरकार कहने जा रही है- हम काले धन को वापस लाने के लिए कड़े कानून बनाएंगे। नया कानून बनाने के लिए मसौदा समिति बनाएंगे। करप्शन के खिलाफ यू एन कन्वेंशन को मानेंगे,काला धन वालों को कड़ी सजा के रूप में सजा-ए-मौत का भी प्रावधान होगा। 15 अगस्त तक लोकपाल बिल पास हो जाएगा। अनशन कुछ दिन चलेगा क्योंकि तैयारियों के लिए पेमेंट हो चुका है।
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बाबा रामदेव का अनशन एक मजेदार मेला है। रामलीला मैदान के 2.5 लाख स्क्वेयर फुट के एरिया में शानदार पंडाल लगाया गया है,इसमें 1000हजार सिलिंग फेन लगाए गए हैं।50 एम्बुलेंस रखी हैं। एंटेसिव केयर यूनिट स्थापित की गई है। एक हजार टॉयलेट बनाए गए हैं। 5लाख लीटर पानी का इंतजाम किया गया है,अनशन के दौरान योग कैंप चलेंगे।विलीबोर्ड बनाए गए हैं। कोई कह सकता है कि इस अनशन में कोई कष्ट होगा ? यानी मजे में संघर्ष।
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बाबा रामदेव की मांग यदि यह होती कि सारे देश में भूमिसुधार कार्यक्रम लागू किया जाए और वे अनशन पर बैठते तो क्या सरकार मनाने जाती ? या फिर बाबा रामदेव की मांगों पर लालकृष्ण आडवाणी या वामनेतागण अनशन पर बैठ जाते तो क्या मंत्रियों का झुंड मिलने जाता ?
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बाबा रामदेव अनशन करेंगे।अन्ना हजारे ने आमरण अनशन किया था।सरकार अनशन पर सब तरह की व्यवस्था करेगी। रामलीला मैदान के आसपास पूरा रोशनी-मेला-ठेला -दुकानें-भजन-कीर्तन-जागरण-खाने-पीने की दुकानें-लैट्रीन -बाथरूम सब होगा,सिर्फ एक चीज की गारंटी करनी है बाबा को वहां किसी राजनीतिक दल का नेता अनशन न करे। अन्ना हजारे से भी यही उम्मीद थी उन्होंने माना। यानी राजनीति हो बिना राजनीतिज्ञ और दल के। इसीलिए यह मित्र संघर्ष है।
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बाबा रामदेव और मनमोहन मंडली में वर्गीय मित्रता है और बाबा रामदेव का संघर्ष मित्र संघर्ष है।यही वजह है कि 4 मंत्री बाबा को मनाने एयरपोर्ट गए थे।
इसी सोच के कारण तो हमारा देश तरक्की नहीं कर सका। अफ़सोस तो यही होता है कि हमारे बुद्धिजीवी भी कुंठित और भ्रष्ट है>॥
जवाब देंहटाएंआपकी इसी ट्विस्टेड और टिल्टड सोच का परिणाम है कि आज कथित बुद्धिजीवी लोकजीवन से धकिया कर अलग कर दिए गए हैं - निहत्थों पर नृशंस बर्बर कार्यवाही आपके सवेदना तंतुओं को झंकृत नहीं करती?
जवाब देंहटाएंबस बंद कमरे में आर्म चेयर क्रिटिसिज्म करते रहना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ बन गया है आप सरीखे बुद्धिजीवियों का ..
यह अहंर्निश सिनिसिज्म क्या मनुष्यत्व /मनुष्यता का द्योतक है ?
कुछ तो शर्म करिए ......
जवाब देंहटाएंमित्र, यही तो खेद है कि आपने अपने मन की बात लिखने वाली टिप्पणियाँ तो लेख का हिस्सा बना कर पेश कर दी लेकिन असहमति की छोड दी । यही तो सत्यव्रत चतुर्वेदी कर रहे हैं । बुद्धिजीवी भी बनते हैं और देशभक्तों के खिलाफ़ भी । अंग्रेज़ी दासता के युग की भी यही कहानी थी ।
जवाब देंहटाएंअरविन्दजी, बाबा रामदेव के अनशन को तोड़ने के लिए जिस तरह पुलिस कार्यई की गयी उसकी हम निंदा करते हैं। बाबा रामदेव से मतभेद हैं। लेकिन मसले से नहीं। फेसबुक पर जो मेरी टिप्णियां थीं वे ही यहां दी हैं। लेकिन मतभेद वाली टिप्पणियां फेसबुक पर पढ़ सकते हैं। बाबा के आंदोलन का मकसद कुछ और है यह सब जानते हैं।
जवाब देंहटाएंचतुर्वेदी जी, हमें बाबा रामदेव और उनके मकसद से कोई सरोकार नहीं है, हमारे लिए मुद्दा अहम है और हम अपना ध्यान उस मुद्दे से हटाने का प्रयास कर रहे हैं इन अनर्गल टिप्पणियों से॥
जवाब देंहटाएंit is not fare attitude about ramlila ground incident (charan lal agra)
जवाब देंहटाएंLoktantra bnam bheedtantra ko sahi pariprekshya me smjhna jaruri hai. Kewal mudde ko hi nhi uske peeche chhipi mansha ko v smjhna chahiye.Kala dhan, Bhrshtachar aadi bivinn smasyaon ko uthakr nayak bnane walon ke wyktitwagat antarwirodo ko adekha nhi kiya ja skta hai.
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