(बाबा ने यह कविता आपातकाल के प्रतिवाद में लिखी थी।)
खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो
प्रजातंत्र को कौन पूछता,तुम्हीं बड़ी हो
डर के मारे न्यायपालिका काँप गई है
वो बेचारी अगली गति-विधि भाँप गई है
देश बड़ा है,लोकतंत्र है सिक्का खोटा
तुम्हीं बड़ी हो,संविधान है तुम से छोटा
तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का ,तुम्हीं बड़ी हो
खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो
गांधी -नेहरू तुम से दोनों हुए उजागर
तुम्हें चाहते सारी दुनिया के नटनागर
रूस तुम्हें ताकत देगा,अमरीका पैसा
तुम्हें पता है ,किससे सौदा होगा कैसा
ब्रेजनेव के सिवा तुम्हारा नहीं सहारा
कौन सहेगा धौंस तुम्हारी ,मान तुम्हारा
हल्दी.धनिया, मिर्च,प्याज सब तो लेती हो
याद करो औरों को तुम क्या-क्या देती हो
मौज,मजा,तिकड़म,खुदगर्जी,डाह,शरारत
बेईमानी,दगा,झूठ की चली तिजारत
मलका हो तुम ठगों-उचक्कों के गिरोह में
जिद्दी हो,बस ,डूबी हो आकंठ मोह में
यह कमजोरी ही तुमको अब ले डूबेगी
आज नहीं तो कल सारी जनता ऊबेगी
लाभ-लोभ की पुतली हो,छलिया माई हो
मस्तानों की माँ हो,गुंडों की धाई हो
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है प्रबल पिटाई
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है 'इन्द्रा' माई
बन्दूकें ही हुईं आज माध्यम शासन का
गोली ही पर्याय बन गई है राशन का
शिक्षा केन्द्र बनेंगे अब तो फौजी अड्डे
हुकुम चलाएँगे ताशों के तीन तिगड्डे
बेगम होगी,इर्द गिर्द बस गूल्लू होंगे
मोर न होगा ,हंस न होगा,उल्लू होंगे
प्रजातंत्र को कौन पूछता,तुम्हीं बड़ी हो
डर के मारे न्यायपालिका काँप गई है
वो बेचारी अगली गति-विधि भाँप गई है
देश बड़ा है,लोकतंत्र है सिक्का खोटा
तुम्हीं बड़ी हो,संविधान है तुम से छोटा
तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का ,तुम्हीं बड़ी हो
खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो
गांधी -नेहरू तुम से दोनों हुए उजागर
तुम्हें चाहते सारी दुनिया के नटनागर
रूस तुम्हें ताकत देगा,अमरीका पैसा
तुम्हें पता है ,किससे सौदा होगा कैसा
ब्रेजनेव के सिवा तुम्हारा नहीं सहारा
कौन सहेगा धौंस तुम्हारी ,मान तुम्हारा
हल्दी.धनिया, मिर्च,प्याज सब तो लेती हो
याद करो औरों को तुम क्या-क्या देती हो
मौज,मजा,तिकड़म,खुदगर्जी,डाह,शरारत
बेईमानी,दगा,झूठ की चली तिजारत
मलका हो तुम ठगों-उचक्कों के गिरोह में
जिद्दी हो,बस ,डूबी हो आकंठ मोह में
यह कमजोरी ही तुमको अब ले डूबेगी
आज नहीं तो कल सारी जनता ऊबेगी
लाभ-लोभ की पुतली हो,छलिया माई हो
मस्तानों की माँ हो,गुंडों की धाई हो
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है प्रबल पिटाई
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है 'इन्द्रा' माई
बन्दूकें ही हुईं आज माध्यम शासन का
गोली ही पर्याय बन गई है राशन का
शिक्षा केन्द्र बनेंगे अब तो फौजी अड्डे
हुकुम चलाएँगे ताशों के तीन तिगड्डे
बेगम होगी,इर्द गिर्द बस गूल्लू होंगे
मोर न होगा ,हंस न होगा,उल्लू होंगे
सुंदर रचना। पर अंतिम पंक्ति में मोर न होगा होना चाहिए।
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