पिछले दिनों मध्यवर्ग के जितने भी पढ़े-लिखे-ज्ञानी-गुणी लोगों से मिला हूँ,सब एक ही बात कहते मिले मोदीजी आए हैं तो सब अच्छा होगा! जल्दी विकास होगा! मोदीजी यह कर देंगे!वह भी कर देंगे! मैंने यह भी पाया कि मध्यवर्ग के लोग मोदी भक्ति का बखान करते –करते कुछ ही देऱ में भाव-विभोर और तर्कहीन हो जाते हैं ! मैं अमूमन भक्तों की प्रशंसाएं आनंद के साथ सुनता हूँ ! उनसे जब भी यह पूछता हूँ मोदीजी यह सब कैसे कर देंगे ? किन नीतियों के आधार पर कर देंगे तो कुछ ही क्षण बात प्रशंसक निरुत्तर हो जाते हैं! मोदी प्रशंसक मोदी से बहुत आशाएं लगाए बैठे हैं, लेकिन वे यथार्थ को देखना नहीं चाहते।मैंने कहा कि मोदी को तो यथार्थ देखकर काम करना पड़ेगा और यथार्थ तो वह सब नहीं कहता जो आप कह रहे हैं ,यह सुनकर प्रशंसक नाराज हो जाते हैं ! कहने लगते हैं आप तो हमेशा मोदी की खामियां बताते हैं, मैंने साफ कहा कि मैं खामियों की बात नहीं कर रहा , यथार्थ की बात कर रहा हूँ, प्रशंसक बोले मोदीजी में यह ताकत है कि वे यथार्थ को बदल देंगे !
जैसाकि अपना भी स्वभाव है अपन को प्रशंसकों में मजा आता है,वे चाहे मोदी के हों या मनमोहन सिंह-सोनिया के हों या कम्युनिस्ट हों ! प्रशंसकों से मिलने से अविवेकवाद की परतें और दायरे समझने में मदद मिलती है यही वजह है मैं प्रशंसकों से मिलना पसंद करता हूँ। प्रशंसकों से मिलकर मुझे ईश्वर भक्ति के दायरों का प्रसार भी नजर आता है ! मुझे वे क्षेत्र भी नजर आते हैं जहां पर नायकों की सृष्टि और मृत्यु होती रही है!
भारत की मध्यवर्गीय जनता में नायकों की खोज करने की अद्भुत क्षमता है, यह ऐसा मध्यवर्ग है जिसका अपनी क्षमता से ज्यादा नायक की क्षमता पर भरोसा है! अपने विवेक से ज्यादा नायक के विवेक पर विश्वास है! इसके लिए नायक महज नायक नहीं बल्कि सब चीजों की रामबाण दवा है ! यह इसी अर्थ में परनिर्भर और पराश्रित वर्ग है। इस वर्ग के जरिए मोदीजी हों या कोई और जी हों शक्तिशाली भारत का निर्माण नहीं कर सकते ! परनिर्भर-पराश्रित मध्यवर्ग कभी ताकतवर देश नहीं बना सकता।
जिस देश का शिक्षित मध्यवर्ग आज भी नायक खोजता हो!संत खोजता हो! भगवान खोजता हो! कंठी-ताबीज खोजता हो ।वह वर्ग देश को ताकतवर नहीं बना सकता ! जिस वर्ग को मोदी और पीके में समाधान दिखते हों उस वर्ग की रक्षा कोई नहीं कर सकता,वह वर्ग तो अभिशप्त है नायकों के मोहपाश में बंधे रहने के लिए !
सवाल यह है भारत का मध्यवर्ग नायक क्यों खोजता है ? यथार्थ में प्रवेश करना क्यों नहीं चाहता ? मध्यवर्ग के यथार्थ से अलगाव का मोदी की प्रचार मशीनरी ने जमकर दोहन किया है। मध्यवर्ग की विशेषता है कि वह समस्याओं के जटिल समाधान या जटिल विश्लेषणों में जाना नहीं चाहता, समस्या आई तो मंदिर की ओर भागता है,नेता के पास भागता है,दलाल की तलाश करता है,जिससे वह जल्दी टेंशन फ्री हो जाय। बहुत देर तक टेंशन में रहने की मध्यवर्ग को आदत नहीं है, यदि टेंशन जल्दी खत्म नहीं होती तो कोई नशा कर लेता है और टेंशन से मुक्त कर लेता है। वह किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या से उलझना नहीं चाहता,हर चीज का रेडीमेड समाधान चाहता है,समस्या का समाधान यदि मोदी दे रहे हैं तो वे नायक हैं,अन्ना हजारे दे रहे हैं तो वे नायक हैं,केजरीवाल दे रहे हैं तो वे नायक हैं! वह ठहरकर सोचना नहीं चाहता कि जिसको वह नायक मान रहा है क्या उसके पास समाधान है ? वह किसी भी नायक से नीति की बातें नहीं करता, हाल के वर्षों में हमने देखा कि मध्यवर्ग के लोग पागलपन की हद तक अन्ना-केजरीवाल-मोदी आदि के दीवाने थे, वे तर्क नहीं समाधान देख रहे थे, वे नीति पर नहीं मीडिया के शानदार कवरेज पर बातें कर रहे थे, वे अधीर हैं और जल्दी में हैं,उनके पास सोचने-समझने का समय नहीं है ,वे तुरंत रिजल्ट चाहते हैं! वे ऐसे नायक में अगाध विश्वास करते हैं जिसके पास तुरंत रिजल्ट देने की जादुई क्षमता हो ! काश, नायक रेडीमेड समाधान दे पाते !
जैसाकि अपना भी स्वभाव है अपन को प्रशंसकों में मजा आता है,वे चाहे मोदी के हों या मनमोहन सिंह-सोनिया के हों या कम्युनिस्ट हों ! प्रशंसकों से मिलने से अविवेकवाद की परतें और दायरे समझने में मदद मिलती है यही वजह है मैं प्रशंसकों से मिलना पसंद करता हूँ। प्रशंसकों से मिलकर मुझे ईश्वर भक्ति के दायरों का प्रसार भी नजर आता है ! मुझे वे क्षेत्र भी नजर आते हैं जहां पर नायकों की सृष्टि और मृत्यु होती रही है!
भारत की मध्यवर्गीय जनता में नायकों की खोज करने की अद्भुत क्षमता है, यह ऐसा मध्यवर्ग है जिसका अपनी क्षमता से ज्यादा नायक की क्षमता पर भरोसा है! अपने विवेक से ज्यादा नायक के विवेक पर विश्वास है! इसके लिए नायक महज नायक नहीं बल्कि सब चीजों की रामबाण दवा है ! यह इसी अर्थ में परनिर्भर और पराश्रित वर्ग है। इस वर्ग के जरिए मोदीजी हों या कोई और जी हों शक्तिशाली भारत का निर्माण नहीं कर सकते ! परनिर्भर-पराश्रित मध्यवर्ग कभी ताकतवर देश नहीं बना सकता।
जिस देश का शिक्षित मध्यवर्ग आज भी नायक खोजता हो!संत खोजता हो! भगवान खोजता हो! कंठी-ताबीज खोजता हो ।वह वर्ग देश को ताकतवर नहीं बना सकता ! जिस वर्ग को मोदी और पीके में समाधान दिखते हों उस वर्ग की रक्षा कोई नहीं कर सकता,वह वर्ग तो अभिशप्त है नायकों के मोहपाश में बंधे रहने के लिए !
सवाल यह है भारत का मध्यवर्ग नायक क्यों खोजता है ? यथार्थ में प्रवेश करना क्यों नहीं चाहता ? मध्यवर्ग के यथार्थ से अलगाव का मोदी की प्रचार मशीनरी ने जमकर दोहन किया है। मध्यवर्ग की विशेषता है कि वह समस्याओं के जटिल समाधान या जटिल विश्लेषणों में जाना नहीं चाहता, समस्या आई तो मंदिर की ओर भागता है,नेता के पास भागता है,दलाल की तलाश करता है,जिससे वह जल्दी टेंशन फ्री हो जाय। बहुत देर तक टेंशन में रहने की मध्यवर्ग को आदत नहीं है, यदि टेंशन जल्दी खत्म नहीं होती तो कोई नशा कर लेता है और टेंशन से मुक्त कर लेता है। वह किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या से उलझना नहीं चाहता,हर चीज का रेडीमेड समाधान चाहता है,समस्या का समाधान यदि मोदी दे रहे हैं तो वे नायक हैं,अन्ना हजारे दे रहे हैं तो वे नायक हैं,केजरीवाल दे रहे हैं तो वे नायक हैं! वह ठहरकर सोचना नहीं चाहता कि जिसको वह नायक मान रहा है क्या उसके पास समाधान है ? वह किसी भी नायक से नीति की बातें नहीं करता, हाल के वर्षों में हमने देखा कि मध्यवर्ग के लोग पागलपन की हद तक अन्ना-केजरीवाल-मोदी आदि के दीवाने थे, वे तर्क नहीं समाधान देख रहे थे, वे नीति पर नहीं मीडिया के शानदार कवरेज पर बातें कर रहे थे, वे अधीर हैं और जल्दी में हैं,उनके पास सोचने-समझने का समय नहीं है ,वे तुरंत रिजल्ट चाहते हैं! वे ऐसे नायक में अगाध विश्वास करते हैं जिसके पास तुरंत रिजल्ट देने की जादुई क्षमता हो ! काश, नायक रेडीमेड समाधान दे पाते !
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