मदनमोहन मालवीय के नजरिए पर समग्रता में विचार करें तो पाएंगे कि वे दुनिया की तमाम चीजों को धर्म के नजरिए से देखते थे और यही वह चीज है जो संघ परिवार और मोदी सरकार को सबसे ज्यादा अपील करती है। इसके कारण ही उनको मोदी सरकार ने ''भारत रत्न'' दिया है। आधुनिकसमाज के निर्माण के लिए धर्म का नजरिया विकास में कम फंडामेंटलिज्म और साम्प्रदायिकता के विकास में ज्यादा मदद करता है। यही वह नजरिया है जिसके कारण वे हिन्दुत्ववादी संगठऩों के मंचों तक चले गए । मालवीयजी के नजरिए को समझने के लिए उनका लिखा एक संपादकीय है ''देशभक्ति का धर्म'',यह संपादकीय उनके समूचे नजरिए पर व्यापक रोशनी डालता है।
मालवीयजी की मुश्किल यह है कि वे आधुनिक समाज की समस्त समस्याओं की जड़ धर्मविमुखता को मानते हैं। मालवीयजी ने लिखा है '' जो लोग शुद्ध मन से प्राणियों का परम कल्याण चाहते हैं,उनको उचित हैकि वे उनको धर्म का उपदेश दें और उन्हें धर्म के मार्ग में लगावें।सुख का मूल धर्मही है। मनुष्यों का परम धन धर्म ही है। संसार की समस्त सम्पत्ति और भोग-पदार्थ मिलकर मनुष्य को सुख नहीं दे सकते,जो धर्म देता है। '' वास्तविकता यह है कि धर्म के मार्ग पर चलकर विभ्रम पैदा होते हैं। दिशाहीनता ,अनालोचनात्मकता और अ-राजनीतिक नजरिया बनता है जिससे फासिस्ट राजनीति को बल मिलता है। अकर्मण्यताबोध पुख्ता होता है। अंधविश्वासों में आस्था बनी रहती है।जबकि सामाजिक विकास के लिए इन सबसे मुक्ति प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। मालवीयजी यह समझने मेंअसमर्थ रहे कि आधुनिक भारत को धर्म के आधार खड़ा नहीं कर सकते। आधुनिक समस्याओं के समाधान धर्म के पास नहीं है। धर्म की शरण में जाकर सामाजिक समस्याओं से ध्यान हटाया जा सकता है लेकिन समस्याओं के समाधान नहीं तलाशे जा सकते।
मालवीयजी का मानना था '' मनुष्यों पर,देश व समाज में,जितनी विपत्तियां आती हैं उनका मूल कारण धर्म से विमुख होना ही होता है। '' संघ परिवार के मालवीयजी के प्रति आकर्षित होने का मूलाधार यही नजरिया है, जिसके जरिए आजकल के युवाओं के बीच में मालवीयजी की आड़ में हिन्दुत्ववादी एजेण्डे का आसानी से प्रचार किया जा रहा है।
मालवीयजी की मुश्किल यह थी कि वे आधुनिक समाज को वैज्ञानिक या समाजवैज्ञानिक नजरिए से देखने में पूरी तरह असमर्थ थे। हमें गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए कि मालवीयजी को मोदी सरकार ने भारत रत्न आखिरकार क्यों दिया ? क्या इसलिए कि उनका स्वाधीनता संग्राम में योगदान था ?या उन्होंने काशी हिन्दू वि.वि. की स्थापना की ? जी नहीं, इस तरह के काम अनेक लोगों ने उस दौर में किए हैं और मालवीयजी से ज्यादा कुर्बानियां भी दी हैं, मालवीयजी को संघ का नायक बनाने में जो चीज मदद कर रही है वह है उनका धार्मिक नजरिया, हर समस्या की जड़ में धर्म को देखना और हर समस्या का धर्म में ही समाधान खोजना। यही वह बिंदु है जहां पर संघ और सरकार एकमत हैं।यही वह आधुनिक विचारों की लड़ाई की जगह है जहां पर हमें सोचना होगा कि देश का विकास कैसे करें और किनके विचारों की रोशनी में करें, कम से कम मालवीयजी के विचार आधुनिक शक्तिशाली भारत का निर्माण करने में हमारी मदद नहीं करते।अभी तक जितने भी लोगों को भारत रत्न दिया गया उनके नजरिए का आधार धर्म नहीं था।
मालवीयजी की मुश्किल यह है कि वे आधुनिक समाज की समस्त समस्याओं की जड़ धर्मविमुखता को मानते हैं। मालवीयजी ने लिखा है '' जो लोग शुद्ध मन से प्राणियों का परम कल्याण चाहते हैं,उनको उचित हैकि वे उनको धर्म का उपदेश दें और उन्हें धर्म के मार्ग में लगावें।सुख का मूल धर्मही है। मनुष्यों का परम धन धर्म ही है। संसार की समस्त सम्पत्ति और भोग-पदार्थ मिलकर मनुष्य को सुख नहीं दे सकते,जो धर्म देता है। '' वास्तविकता यह है कि धर्म के मार्ग पर चलकर विभ्रम पैदा होते हैं। दिशाहीनता ,अनालोचनात्मकता और अ-राजनीतिक नजरिया बनता है जिससे फासिस्ट राजनीति को बल मिलता है। अकर्मण्यताबोध पुख्ता होता है। अंधविश्वासों में आस्था बनी रहती है।जबकि सामाजिक विकास के लिए इन सबसे मुक्ति प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। मालवीयजी यह समझने मेंअसमर्थ रहे कि आधुनिक भारत को धर्म के आधार खड़ा नहीं कर सकते। आधुनिक समस्याओं के समाधान धर्म के पास नहीं है। धर्म की शरण में जाकर सामाजिक समस्याओं से ध्यान हटाया जा सकता है लेकिन समस्याओं के समाधान नहीं तलाशे जा सकते।
मालवीयजी का मानना था '' मनुष्यों पर,देश व समाज में,जितनी विपत्तियां आती हैं उनका मूल कारण धर्म से विमुख होना ही होता है। '' संघ परिवार के मालवीयजी के प्रति आकर्षित होने का मूलाधार यही नजरिया है, जिसके जरिए आजकल के युवाओं के बीच में मालवीयजी की आड़ में हिन्दुत्ववादी एजेण्डे का आसानी से प्रचार किया जा रहा है।
मालवीयजी की मुश्किल यह थी कि वे आधुनिक समाज को वैज्ञानिक या समाजवैज्ञानिक नजरिए से देखने में पूरी तरह असमर्थ थे। हमें गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए कि मालवीयजी को मोदी सरकार ने भारत रत्न आखिरकार क्यों दिया ? क्या इसलिए कि उनका स्वाधीनता संग्राम में योगदान था ?या उन्होंने काशी हिन्दू वि.वि. की स्थापना की ? जी नहीं, इस तरह के काम अनेक लोगों ने उस दौर में किए हैं और मालवीयजी से ज्यादा कुर्बानियां भी दी हैं, मालवीयजी को संघ का नायक बनाने में जो चीज मदद कर रही है वह है उनका धार्मिक नजरिया, हर समस्या की जड़ में धर्म को देखना और हर समस्या का धर्म में ही समाधान खोजना। यही वह बिंदु है जहां पर संघ और सरकार एकमत हैं।यही वह आधुनिक विचारों की लड़ाई की जगह है जहां पर हमें सोचना होगा कि देश का विकास कैसे करें और किनके विचारों की रोशनी में करें, कम से कम मालवीयजी के विचार आधुनिक शक्तिशाली भारत का निर्माण करने में हमारी मदद नहीं करते।अभी तक जितने भी लोगों को भारत रत्न दिया गया उनके नजरिए का आधार धर्म नहीं था।
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