दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम जनता के सामने तीन रास्ते हैं क्रेजी (आम आदमी पार्टी),लेजी(कांग्रेस) और भोगी (भाजपा) । अरविंद केजरीवाल ने आम जनता को क्रेजी बनाया है यही उसका लोकतंत्र में सबसे बड़ा योगदान है। वह इस अर्थ में मूल्यवान है कि उसने ईमानदारी को फिर से मूल्यवान बनाया है। आमलोग ईमानदार की इज्जत करने लगे हैं,जबकि केजरीवाल के राजनीति में आने के पहले ईमानदारी को राजनीति में सबसे बोगस प्रवृत्ति के रुप में देखा जाता था। कांग्रेस की नीतियों का यह सबसे बुरा साइड इफेक्ट था। लोकतंत्र में ईमानदार नेता की आवाज हो,जनता उस पर विश्वास करे और आम जनता में ईमानदारी के प्रति कुर्बानी का जज्बा हो,यह प्रवृत्ति नए सिरे पैदा करने में केजरीवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
केजरीवाल की पहचान अराजकतावादी के रुप में नहीं एक ईमानदार नेता के रुप में होनी चाहिए। उसने ईमानदारी को आम जनता का नए सिरे से मूल्य और आदत बनाने का काम किया, ईमानदारी उसकी सबसे बड़ी ताकत है।केजरीवाल की ईमानदार मुहिम ने लोकतंत्र के सभी रंगत के दलों पर गहरा असर छोड़ा है। सारे दल किसी न किसी रुप में उसकी इस उपलब्धि और जनप्रभाव से ईर्ष्या करते हैं। साथ ही उसके खिलाफ किसी भी दल का साहस नहीं है कि बेईमान नेता पेश करे। इससे केजरीवाल ने जो राजनीतिक परिदृश्य बनाया है वह लोकतंत्र के लिए शुभ कहा जा सकता है। इसकी तुलना में नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी मूल्यहीन नेता नजर आते हैं।
असली बात यह है कि समाज में एक बड़ा तबका है जो ईमानदार है लेकिन इन तबके की राजनीतिक भूमिका खत्म हो गयी थी। राजनीति में ईमानदारी बोगस कब और कैसे हुई इस पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए। यह कैसे हुआ कि समाज में ईमानदार हैं लेकिन ईमानदारी बोगस हो गयी, कौन हैं इसके लिए जिम्मेदार ? इसी अर्थ में केजरीवाल महत्वपूर्ण नेता है कि उसने ईमानदारी के प्रति क्रेजी भाव पैदा किया। केजरीवाल इसलिए भी मूल्यवान है कि उसने नेताओं को कथनी-करनी में साम्य रखने पर जोर दिया और इस चीज को परीक्षण का आधार बना दिया कि नेता बोलता क्या है और करता क्या है ? आज सभी दल परेशान हैं और कथनी-करनी में साम्य खोज रहे हैं।
केजरीवाल का एक अन्य मूल्यवान पक्ष है दैनंदिन जनसमस्याओं को केन्द्रीय मुद्दा बनाना और उनके समाधान की दिशा में अनवरत सक्रिय रहना। बिजली,पानी के सवाल पर वोट मांगना और इन सवालों को सचमुच में विवाद के विषय बनाना,जनता को जागरुक बनाना और गोलबंद करना,यह बड़ी उपबल्धि है। दिल्ली में सभी दलों ने इन दोनों सवालों को लेकर आम जनता को जागरुक बनाने का काम बंद कर दिया था, आम जनता के जेहन में ये दोनों मुद्दे थे ,नेतागण आते थे ,आश्वासन देते थे और चले जाते थे, इसके आगे कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं होती थी, केजरीवाल ने इन दोनों मुद्दों को ज्वलंत मुद्दे बनाकर सभी राजनीतिकदलों की नींद हराम कर दी है,वह इससे एकदम आगे गया है उसने आम जनता को गोलबंद करके इस पर जिस तरह की जागरुकता और राजनीतिक सक्रियता पैदा की है वह विरल घटना है। कम से कम दिल्ली में उसने इन दो मसलों को टाइमबम बना दिया है। कोई भी सरकार आए उसे इस टाइमबम को डिफ्यूज करना ही होगा।वरना भविष्य खराब है।
आम जनता से वोट मांगना और चुनाव जीतना अलग बात है और आम जनता को उसकी समस्याओं को लेकर जागरुक बनाना और राजनीतिक तौर पर गोलबंद करना एकदम भिन्न चीज है। इससे लोकतंत्र मजबूत बनता है।
केजरीवाल आज सारे देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का निर्विवाद नायक है। यह नायकत्व उसने संघर्षों के जरिए हासिल किया है। सत्ता से मुठभेड़ें करते हुए हासिल किया है। भ्रष्ट अफसर और नेता उसके नाम से थर्राते हैं। यह खूबी आज न तो मोदी में है न शीला दीक्षित में है और न अजय माकन में है। नाम से ही भ्रष्ट अफसर थर्राएं यह चीज आम जनता के लिए चैन देने वाली है। इसलिए केजरीवाल बेहतर विकल्प है।
यह सच है कांग्रेस ने 15साल में दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर का कायाकल्प किया है लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत दिल्ली को चुकानी पड़ी है। दिल्ली का सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह टूट गया है। दिल्ली में मूल्यहानि,पर्यावरणहानि,धनहानि,अधिकारहानि और सामाजिक असुरक्षा आम बात हो गयी है और कांग्रेस ने आलसियों की तरह यह सब देखा है। उसके अंदर इन सबसे लड़ने की कोई बेचैनी नहीं बची है।
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी के मैदान में आने के बाद भाजपा बेहूदे तर्कों के आधार पर चुनाव लड़ रही है। दिल्ली में सबसे भ्रष्ट नगरनिगम प्रशासन देने का वे भारतकेसरी खिताब जीत चुके हैं। उनका तर्क है चूंकि मोदी केन्द्र में जीते हैं अतः उनको दिल्ली में भी जिताओ। यह भोगी का राग है। दिल्ली में भाजपा ने विगत 15 सालों में राजनीतिक –सामाजिक क्षय में सक्रिय भूमिका अदा की है। वह कांग्रेस के लूटतंत्र का अंग बनकर काम करती रही है। उसने लोकतंत्र के स्वस्थ मूल्यों को खोखला बनाया है। लोकतंत्र को हर स्तर पर धोखा दिया है और सिर्फ लोकतंत्र के भोगियों के मन में अपील पैदा की है। मोदी का सबसे बड़ा योगदान है कि उसने लोकतंत्र को भोगियों का तंत्र बनाया है। लोकतंत्र के उपभोग की भावना पैदा की है।मोदी के सारे एक्शन भोगी के एक्शन है। लोकतंत्र में भोगी होना वस्तुतः कैंसर है।लोकतंत्र बचता तब है जब इसमें भोग और आलस्य से लड़ने वाले जज्बाती और कुर्बानी के जज्बे वाले मूल्य पैदा किए जाएं, मोदी के मूल्य भोगी के मूल्य हैं। लोकतंत्र का भोगी अकर्मण्य होता है वह संचित पूंजी खाता है। मोदी अकर्मण्य भोगी नेता है ,जिसका लक्ष्य है लोकतंत्र की एफडी (फिक्स डिपोजिट) खाना। इस परिप्रेक्ष्य में आम आदमी पार्टी एकमात्र विकल्प है जिसको कायदे से वोट दिया जाना चाहिए।
केजरीवाल की पहचान अराजकतावादी के रुप में नहीं एक ईमानदार नेता के रुप में होनी चाहिए। उसने ईमानदारी को आम जनता का नए सिरे से मूल्य और आदत बनाने का काम किया, ईमानदारी उसकी सबसे बड़ी ताकत है।केजरीवाल की ईमानदार मुहिम ने लोकतंत्र के सभी रंगत के दलों पर गहरा असर छोड़ा है। सारे दल किसी न किसी रुप में उसकी इस उपलब्धि और जनप्रभाव से ईर्ष्या करते हैं। साथ ही उसके खिलाफ किसी भी दल का साहस नहीं है कि बेईमान नेता पेश करे। इससे केजरीवाल ने जो राजनीतिक परिदृश्य बनाया है वह लोकतंत्र के लिए शुभ कहा जा सकता है। इसकी तुलना में नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी मूल्यहीन नेता नजर आते हैं।
असली बात यह है कि समाज में एक बड़ा तबका है जो ईमानदार है लेकिन इन तबके की राजनीतिक भूमिका खत्म हो गयी थी। राजनीति में ईमानदारी बोगस कब और कैसे हुई इस पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए। यह कैसे हुआ कि समाज में ईमानदार हैं लेकिन ईमानदारी बोगस हो गयी, कौन हैं इसके लिए जिम्मेदार ? इसी अर्थ में केजरीवाल महत्वपूर्ण नेता है कि उसने ईमानदारी के प्रति क्रेजी भाव पैदा किया। केजरीवाल इसलिए भी मूल्यवान है कि उसने नेताओं को कथनी-करनी में साम्य रखने पर जोर दिया और इस चीज को परीक्षण का आधार बना दिया कि नेता बोलता क्या है और करता क्या है ? आज सभी दल परेशान हैं और कथनी-करनी में साम्य खोज रहे हैं।
केजरीवाल का एक अन्य मूल्यवान पक्ष है दैनंदिन जनसमस्याओं को केन्द्रीय मुद्दा बनाना और उनके समाधान की दिशा में अनवरत सक्रिय रहना। बिजली,पानी के सवाल पर वोट मांगना और इन सवालों को सचमुच में विवाद के विषय बनाना,जनता को जागरुक बनाना और गोलबंद करना,यह बड़ी उपबल्धि है। दिल्ली में सभी दलों ने इन दोनों सवालों को लेकर आम जनता को जागरुक बनाने का काम बंद कर दिया था, आम जनता के जेहन में ये दोनों मुद्दे थे ,नेतागण आते थे ,आश्वासन देते थे और चले जाते थे, इसके आगे कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं होती थी, केजरीवाल ने इन दोनों मुद्दों को ज्वलंत मुद्दे बनाकर सभी राजनीतिकदलों की नींद हराम कर दी है,वह इससे एकदम आगे गया है उसने आम जनता को गोलबंद करके इस पर जिस तरह की जागरुकता और राजनीतिक सक्रियता पैदा की है वह विरल घटना है। कम से कम दिल्ली में उसने इन दो मसलों को टाइमबम बना दिया है। कोई भी सरकार आए उसे इस टाइमबम को डिफ्यूज करना ही होगा।वरना भविष्य खराब है।
आम जनता से वोट मांगना और चुनाव जीतना अलग बात है और आम जनता को उसकी समस्याओं को लेकर जागरुक बनाना और राजनीतिक तौर पर गोलबंद करना एकदम भिन्न चीज है। इससे लोकतंत्र मजबूत बनता है।
केजरीवाल आज सारे देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का निर्विवाद नायक है। यह नायकत्व उसने संघर्षों के जरिए हासिल किया है। सत्ता से मुठभेड़ें करते हुए हासिल किया है। भ्रष्ट अफसर और नेता उसके नाम से थर्राते हैं। यह खूबी आज न तो मोदी में है न शीला दीक्षित में है और न अजय माकन में है। नाम से ही भ्रष्ट अफसर थर्राएं यह चीज आम जनता के लिए चैन देने वाली है। इसलिए केजरीवाल बेहतर विकल्प है।
यह सच है कांग्रेस ने 15साल में दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर का कायाकल्प किया है लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत दिल्ली को चुकानी पड़ी है। दिल्ली का सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह टूट गया है। दिल्ली में मूल्यहानि,पर्यावरणहानि,धनहानि,अधिकारहानि और सामाजिक असुरक्षा आम बात हो गयी है और कांग्रेस ने आलसियों की तरह यह सब देखा है। उसके अंदर इन सबसे लड़ने की कोई बेचैनी नहीं बची है।
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी के मैदान में आने के बाद भाजपा बेहूदे तर्कों के आधार पर चुनाव लड़ रही है। दिल्ली में सबसे भ्रष्ट नगरनिगम प्रशासन देने का वे भारतकेसरी खिताब जीत चुके हैं। उनका तर्क है चूंकि मोदी केन्द्र में जीते हैं अतः उनको दिल्ली में भी जिताओ। यह भोगी का राग है। दिल्ली में भाजपा ने विगत 15 सालों में राजनीतिक –सामाजिक क्षय में सक्रिय भूमिका अदा की है। वह कांग्रेस के लूटतंत्र का अंग बनकर काम करती रही है। उसने लोकतंत्र के स्वस्थ मूल्यों को खोखला बनाया है। लोकतंत्र को हर स्तर पर धोखा दिया है और सिर्फ लोकतंत्र के भोगियों के मन में अपील पैदा की है। मोदी का सबसे बड़ा योगदान है कि उसने लोकतंत्र को भोगियों का तंत्र बनाया है। लोकतंत्र के उपभोग की भावना पैदा की है।मोदी के सारे एक्शन भोगी के एक्शन है। लोकतंत्र में भोगी होना वस्तुतः कैंसर है।लोकतंत्र बचता तब है जब इसमें भोग और आलस्य से लड़ने वाले जज्बाती और कुर्बानी के जज्बे वाले मूल्य पैदा किए जाएं, मोदी के मूल्य भोगी के मूल्य हैं। लोकतंत्र का भोगी अकर्मण्य होता है वह संचित पूंजी खाता है। मोदी अकर्मण्य भोगी नेता है ,जिसका लक्ष्य है लोकतंत्र की एफडी (फिक्स डिपोजिट) खाना। इस परिप्रेक्ष्य में आम आदमी पार्टी एकमात्र विकल्प है जिसको कायदे से वोट दिया जाना चाहिए।
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