सोमवार, 16 नवंबर 2015

लेखक और राष्ट्रवाद

भारत में अनेक लोग हैं जो लेखक को सत्ता,राष्ट्र आदि से बंधा हुआ देखना चाहते हैं,लेकिन लेखक तो इनमें से कोई बंधन पसंद नहीं करता। मसलन् ,भारत जब गुलाम था तो उस समय ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ अनेक अंग्रेज लेखकों ने अपनी सरकार के खिलाफ लिखा। इनमें बायरन का नाम भी आता है।वह भारत की ओर देख रहे थे।1757 में पलासी की लड़ाई के बाद अंग्रेज अपना शासन विस्तार करते चले गए,वे लगातार नए-नए राष्ट्रों को गुलाम बना रहे थे। अंग्रेज लेखक जानते थे कि ब्रिटिश शासन भारत मेंगुलामी स्थापित कर रहा है।
वे एक सभ्य देश का विकास समाप्त कर रहे हैं।वे भारत को सदियों पीछे ठेल रहे हैं। इसी संदर्भ में प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि बायरन ने 1811 में ' द कर्स ऑफ मिनर्वा' नामक कविता लिखी और इस कविता में मिनरवा नाम की देवी इंगलैंडवासियों को शाप देती है। अंग्रेजों को स्वाधीनता प्राप्त हुई है लेकिन वे अपनी स्वाधीनता का दुरुपयोग कर रहे हैं,वे दूसरों को गुलाम बना रहे हैं, वे एक दिन अवश्य विद्रोह करेंगे ।इस कविता के साथ 1857 के संग्राम को याद करें तो ऐसा लगेगा कि बायरन महान भविष्यद्रष्टा हैं-1857 में जो कुछ घटित हुआ उसका पूर्वाभास 1811 की कविता में है-
Look to the East ,where Ganges' swarthy race
Shll shake your tyrant empire to its base;
Lo ! there Rebellion rears her ghastly
And glares the Nemesis of native dead;
Till Indus roll a deep purpureal flood
And claims his long arrear of northern blood,
So may ye perish ! Pallas, when she gave
Your free born rights, forbade ya to enslave
मिनरवा अंग्रेजों से कहती है - "पूरब की तरफ देखो। गंगा के किनारे ये जो काले आदमी हैं,वे तुम्हारे अत्याचारी साम्राज्य को उसकी जड़ सहित हिला देंगे।देखो, वह विद्रोह दहक रहा है। सिंधु नदी लाल रक्त की धारा जैसी बह रही है । उत्तर के निवासियों का रक्त वह मांगती रही है,वह बहुत पुरानी माँग अब पूरी हो रही है।इसी तरह तुम्हारा नाश हो।पैलास देवी ने जब तुम्हें स्वाधीन नागरिकों के अधिकार दिए थे,तब उसने निषेध किया था कि दूसरों को दास मत बनाना।" बायरन की इन पंक्तियों में अंग्रेज शासकों के प्रति तीव्र रोष व्यक्त हुआ है।

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